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पंचांग 05-05-2025

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक -  5 मई 2025*
*🎈दिन- सोमवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु - बसन्त*
*🎉मास - वैशाख*
*🎈पक्ष- शुक्ल*

*🎈तिथि    -        अष्टमी    07:35:13 तत्पश्चात नवमी*
*🎈नक्षत्र -    आश्लेषा    14:00:16 तत्पश्चात     मघा*
*🎈योग -     वृद्वि    24:18:42** तक, तत्पश्चात     ध्रुव*
*🎈करण-        वणिज    07:18:19
पश्चात कौलव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-07:34pm
से  09:13 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:54:36*
*🎈सूर्यास्त - 07:09:15*
*🎈चन्द्र राशि -     कर्क    till 14:00:16
*🎈चन्द्र राशि    -   सिंह    from 14:00:16*
*🎈सूर्य राशि    -   मेष*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:28 ए एम से 05:11 तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:05 पी एम से 12:58 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:10 ए एम, मई 06 से 12:53 ए एम, मई 06*

  *🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत    05:55 - 07:34    शुभ
काल    07:34 - 09:13    अशुभ
शुभ    09:13 - 10:53    शुभ
रोग    10:53 - 12:32    अशुभ
उद्वेग    12:32 - 14:11    अशुभ
चर    14:11 - 15:51    शुभ
लाभ    15:51 - 17:30    शुभ
अमृत    17:30 - 19:09    शुभ
  *🔵चोघडिया, रात🔵
चर    19:09 - 20:30    शुभ
रोग    20:30 - 21:50    अशुभ
काल    21:50 - 23:11    अशुभ
लाभ    23:11 - 24:32*    शुभ
उद्वेग    24:32* - 25:52*    अशुभ
शुभ    25:52* - 27:13*    शुभ
अमृत    27:13* - 28:33*    शुभ
चर    28:33* - 29:54*    शुभ

🙏♥️*आप सभी देशवासियों को वैशाख मास, बैसाखी पर्व व पितृ अमावस्या हार्दिक शुभकामनाएं, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए पक्षियों के लिए चुगा व परिंदे लगावे । पेड़ो को पानी दे।

🚩 "🌿🌸 अति महत्वपूर्ण बातें 🌸🌿

🌸1. घर में सेवा पूजा करने वाले जन भगवान के एक से अधिक स्वरूप की सेवा पूजा कर सकते हैं ।

🌸2. घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश जी नहीं रखें।

🌸3. शालिग्राम जी की बटिया जितनी छोटी हो उतनी ज्यादा फलदायक है।

🌸4. कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।

🌸5. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं।

🌸6.  पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए।

🌸7. पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं।

🌸8. तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं।

🌸9. आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं।

🌸10.  दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है।

🌸11. कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के।

🌸12. देवताओं को अंगूठे से नहीं मले।

🌸13. चकले पर से चंदन कभी नहीं लगावें। उसे छोटी कटोरी या बांयी हथेली पर रखकर लगावें।

🌸15. पुष्पों को बाल्टी, लोटा, जल में डालकर फिर निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिए।

🌸16. श्री भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार या तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों की सात बार आरती उतारें।

🌸17. श्री भगवान की आरती समयानुसार जो घंटा, नगारा, झांझर, थाली, घड़ावल, शंख इत्यादि बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्मा होता हैं। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती हैं उसमे असीम शक्ति होती हैं।

🌸18. लोहे के पात्र से श्री भगवान को नैवेद्य अपर्ण नहीं करें।

🌸19. हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही आहुति दें।

🌸20. समिधा अंगुठे से अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए तथा दस अंगुल लम्बी होनी चाहिए।

🌸21. छाल रहित या कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में वर्जित हैं।

🌸22.  पंखे आदि से कभी हवन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करें।

🌸23. मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला नहीं जपनी चाहिए।

🌸24.  माला, रूद्राक्ष, तुलसी एवं चंदन की उत्तम मानी गई हैं।

🌸25. माला को अनामिका (तीसरी अंगुली) पर रखकर मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना चाहिए।

🌸26.जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं रखें।

🌸27. तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिए।

🌸28. माला का पूजन करके ही जप करना चाहिए।

🌸29. ब्राह्मण को या द्विजाती को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना चाहिए।

🌸30. जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति, दौड़ते हुए, शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं।

🌸31.  बिना नमस्कार किए आशीर्वाद देना वर्जित हैं।

🌸32.  एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

🌸33.  सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

🌸34. बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

🌸35. जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

🌸36. जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

🌸37. जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

🌸38. संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

🌸39. दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

🌸40. यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

🌸41. शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, किन्तु रविवार को परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।

🌸42. कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

🌸43. भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

🌸44.  देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

🌸45. किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

🌸46. एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

🌸47. बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

🌸48. यदि शिखा नहीं हो तो स्थान को स्पर्श कर लेना चाहिए।

🌸49. शिवजी की जलहारी उत्तराभिमुख रखें ।

🌸50. शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

🌸51. शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।

🌸52. शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी  को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

🌸53 .अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे।

🌸54. नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

🌸55. विष्णु भगवान को चांवल, गणेश जी  को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण  को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

🌸56. पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

🌸57.  किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

🌸58. पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

🌸59. सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

🌸60. गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

🌸61. पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

🌸62. दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

🌸63. सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

🌸64. पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

🌸65. पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

🌸66.  घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*👉*राजवशीकरण*
*👉*शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
*👉 *सर्वसिद्धि*
*👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक -  4 मई 2025*
*🎈दिन-  रविवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु - बसन्त*
*🎉मास - वैशाख*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि    -        सप्तमी    07:18:18 तत्पश्चात अष्टमी*
*🎈नक्षत्र -    पुष्य    12:33:05 तत्पश्चात     आश्लेषा*
*🎈योग - गण्ड    24:40:34* तक, तत्पश्चात     वृद्वि*
*🎈करण-        वणिज    07:18:19
पश्चात बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-05:30pm
से  07:09 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:55:20*
*🎈सूर्यास्त - 07:08:41*
*🎈चन्द्र राशि    -   कर्क*
*🎈सूर्य राशि    -   मेष*

*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:28 ए एम से 05:11 तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:05 पी एम से 12:59 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:10 ए एम, मई 05 से 12:53 ए एम, मई 05*
*🎈सर्वार्थ सिद्धि योग    05:54 ए एम से 12:53 पी एम*
  *🛟चोघडिया, दिन🛟*
उद्वेग    05:55 - 07:35    अशुभ
चर    07:35 - 09:14    शुभ
लाभ    09:14 - 10:53    शुभ
अमृत    10:53 - 12:32    शुभ
काल    12:32 - 14:11    अशुभ
शुभ    14:11 - 15:50    शुभ
रोग    15:50 - 17:30    अशुभ
उद्वेग    17:30 - 19:09    अशुभ
  *🔵चोघडिया, रात🔵
शुभ    19:09 - 20:29    शुभ
अमृत    20:29 - 21:50    शुभ
चर    21:50 - 23:11    शुभ
रोग    23:11 - 24:32*    अशुभ
काल    24:32* - 25:52*    अशुभ
लाभ    25:52* - 27:13*    शुभ
उद्वेग    27:13* - 28:34*    अशुभ
शुभ    28:34* - 29:55*    शुभ
kundli



🙏♥️*आप सभी देशवासियों को वैशाख मास, बैसाखी पर्व व पितृ अमावस्या हार्दिक शुभकामनाएं, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए पक्षियों के लिए चुगा व परिंदे लगावे । पेड़ो को पानी दे।

🚩 "कुशल उपाय ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु) का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। प्रत्येक ग्रह की अपनी ऊर्जा, तत्व, और गणितीय गति होती है, जो कुंडली में उनकी स्थिति और गोचर के आधार पर प्रभाव डालती है। नीचे प्रत्येक ग्रह के लिए अनोखे और प्रभावी उपाय दिए गए हैं, साथ ही उनके गणितीय और वैज्ञानिक आधार का विश्लेषण भी किया गया है। ये उपाय पारंपरिक ज्योतिष, मनोविज्ञान, और वैज्ञानिक सिद्धांतों के समन्वय पर आधारित हैं।

1. सूर्य (Sun) - आत्मविश्वास और नेतृत्व का ग्रहअनोखा उपाय:
"सूर्योदय जल संनाद"सूर्योदय के समय तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरें। इसमें 5-7 तुलसी के पत्ते और एक चुटकी कुमकुम डालें। सूर्य की ओर मुख करके जल को धीरे-धीरे जमीन पर अर्पित करें, साथ ही "ॐ घृणि सूर्याय नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें।सप्ताह में कम से कम 3 बार, विशेषकर रविवार को करें।

प्रभाव:सूर्य कुंडली में प्रथम और पंचम भाव को प्रभावित करता है, जो आत्मविश्वास, स्वास्थ्य, और नेतृत्व से जुड़े हैं। यह उपाय सूर्य की कमजोर स्थिति (नीच राशि तुला या अशुभ भाव) को संतुलित करता है।तुलसी और कुमकुम सूर्य की अग्नि तत्व ऊर्जा को बढ़ाते हैं, जो मानसिक स्पष्टता और सकारात्मकता लाता है।

गणितीय आधार:सूर्य की गति 1 डिग्री प्रति दिन होती है, और यह 12 राशियों में 360 डिग्री का चक्र 365.25 दिनों में पूरा करता है। सूर्योदय का समय ग्रह की ऊर्जा को ग्रहण करने का सबसे शक्तिशाली क्षण होता है, क्योंकि सूर्य की किरणें 90 डिग्री के कोण पर पृथ्वी से टकराती हैं, जिससे अधिकतम ऊर्जा संचरण होता है।108 मंत्र जाप सूर्य के व्यास (1.39 मिलियन किमी) और पृथ्वी-सूर्य दूरी (1.5 x 10^8 किमी) के अनुपात (1:108) से प्रेरित है, जो ऊर्जा संनाद को गणितीय रूप से संतुलित करता है।वैज्ञानिक आधार:सूर्य की किरणें विटामिन D का स्रोत हैं, जो हड्डियों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। सुबह की किरणों में UV-B किरणें अधिक होती हैं, जो सेरोटोनिन (खुशी का हार्मोन) उत्पादन को बढ़ाती हैं।तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो जल के साथ मिलकर पर्यावरणीय शुद्धता बढ़ाते हैं। यह उपाय मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मकता और अनुशासन को प्रोत्साहित करता है।

2. चंद्र (Moon) - मन और भावनाओं का ग्रहअनोखा उपाय:
"चंद्रमा रजत जल ध्यान"पूर्णिमा की रात चांदी के गिलास में दूध और गंगाजल (2:1 अनुपात) मिलाएं। इसे चांदनी में 2 घंटे रखें। फिर इसे पीने से पहले "ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः" का 11 बार जाप करें।महीने में एक बार, विशेषकर सोमवार को करें।प्रभाव:चंद्रमा चतुर्थ और मन का कारक है। यह उपाय भावनात्मक अस्थिरता, चिंता, और नींद की समस्याओं को कम करता है।चांदी और दूध चंद्रमा की जल तत्व ऊर्जा को संतुलित करते हैं।

गणितीय आधार:चंद्रमा की कक्षा 27.32 दिनों में पूरी होती है, जो 27 नक्षत्रों के चक्र से मेल खाती है। पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी 100% होती है, जिसका मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।11 मंत्र जाप चंद्रमा की 11 डिग्री दैनिक गति से प्रेरित है, जो ऊर्जा संतुलन को बढ़ाता है।

वैज्ञानिक आधार:चांदी में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो जल और दूध को शुद्ध करते हैं। चंद्रमा की रोशनी में सेरोटोनिन और मेलाटोनिन (नींद का हार्मोन) का उत्पादन बढ़ता है।यह उपाय मनोवैज्ञानिक रूप से ध्यान और शांति को प्रोत्साहित करता है, जो तनाव कम करने में मदद करता है।

3. मंगल (Mars) - ऊर्जा और साहस का ग्रहअनोखा उपाय:
"मंगल रक्त पुष्प अर्पण"मंगलवार को हनुमान मंदिर में लाल गुलाब के 5 फूल और 5 लाल मिर्च चढ़ाएं। प्रत्येक फूल चढ़ाते समय "ॐ अं अंगारकाय नमः" का 21 बार जाप करें। 40 दिनों तक लगातार करें।प्रभाव:मंगल तृतीय और अष्टम भाव का कारक है, जो साहस, ऊर्जा, और स्वास्थ्य से जुड़ा है। यह उपाय क्रोध, दुर्घटना, और रक्त संबंधी समस्याओं को कम करता है।लाल रंग और मिर्च मंगल की अग्नि तत्व ऊर्जा को संतुलित करते हैं।

गणितीय आधार:मंगल की कक्षा 687 दिनों में पूरी होती है, और इसकी गति 0.5 डिग्री प्रति दिन है। 21 मंत्र जाप मंगल की 21 डिग्री गोचर गति (1 माह में) से प्रेरित है।40 दिन का चक्र मंगल की दशा प्रभाव को कम करने के लिए गणितीय रूप से उपयुक्त है।

वैज्ञानिक आधार:लाल रंग का मनोवैज्ञानिक प्रभाव ऊर्जा और साहस को बढ़ाता है। मिर्च में कैप्साइसिन होता है, जो रक्त संचार को बेहतर करता है।यह उपाय अनुशासन और लक्ष्य-केंद्रित व्यवहार को प्रोत्साहित करता है।

4. बुध (Mercury) - बुद्धि और संचार का ग्रहअनोखा उपाय:
"बुध हरी लेखनी दान"बुधवार को 7 हरे पेन और 7 हरी नोटबुक्स जरूरतमंद छात्रों को दान करें। दान से पहले "ॐ बुं बुधाय नमः" का 19 बार जाप करें।महीने में एक बार करें।प्रभाव:बुध चतुर्थ और दशम भाव को प्रभावित करता है, जो बुद्धि, संचार, और करियर से जुड़े हैं। यह उपाय पढ़ाई, व्यापार, और संचार में सफलता दिलाता है।हरा रंग और लेखन सामग्री बुध की वायु तत्व ऊर्जा को बढ़ाते हैं।

गणितीय आधार:बुध की कक्षा 88 दिनों में पूरी होती है, और इसकी गति 1.5 डिग्री प्रति दिन है। 19 मंत्र जाप बुध की 19 डिग्री गोचर गति (12-13 दिन) से प्रेरित है।7 का अंक बुध के 7 नक्षत्र प्रभाव से जुड़ा है।

वैज्ञानिक आधार:हरा रंग मस्तिष्क को शांत करता है और एकाग्रता बढ़ाता है। दान करने से डोपामाइन (खुशी का हार्मोन) का उत्पादन होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करता है।यह उपाय सामाजिक जुड़ाव और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करता है।

5. बृहस्पति (Jupiter) - ज्ञान और समृद्धि का ग्रहअनोखा उपाय:
"गुरु पीत पुस्तक पूजन"गुरुवार को एक पीली धार्मिक पुस्तक (जैसे गीता) को पीले कपड़े में लपेटकर घर के पूजा स्थल पर रखें। इसे 5 पीले फूल और हल्दी चढ़ाएं। "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" का 19 बार जाप करें।3 महीने तक हर गुरुवार करें।प्रभाव:बृहस्पति पंचम और नवम भाव का कारक है, जो ज्ञान, धन, और भाग्य से जुड़ा है। यह उपाय शिक्षा, विवाह, और धन में सफलता दिलाता है।पीला रंग और हल्दी बृहस्पति की अग्नि-आकाश तत्व ऊर्जा को संतुलित करते हैं।

गणितीय आधार:बृहस्पति की कक्षा 11.86 वर्षों में पूरी होती है, और यह 30 डिग्री प्रति वर्ष चलता है। 19 मंत्र जाप बृहस्पति की 19 डिग्री गोचर गति (7-8 महीने) से प्रेरित है।3 महीने का चक्र बृहस्पति की दशा प्रभाव को संतुलित करने के लिए उपयुक्त है।

वैज्ञानिक आधार:पीला रंग आशावाद और रचनात्मकता को बढ़ाता है। हल्दी में कुरकुमिन होता है, जो मस्तिष्क के कार्य को बेहतर करता है।धार्मिक पुस्तक पढ़ने से मानसिक शांति और नैतिकता बढ़ती है।

6. शुक्र (Venus) - सुख और प्रेम का ग्रहअनोखा उपाय:
"शुक्र सफेद रेशम वस्त्र"शुक्रवार को सफेद रेशमी कपड़ा (1 मीटर) किसी महिला मंदिर पुजारी को दान करें। दान से पहले "ॐ शुं शुक्राय नमः" का 24 बार जाप करें।6 सप्ताह तक करें।प्रभाव:शुक्र सप्तम और द्वादश भाव को प्रभावित करता है, जो प्रेम, वैवाहिक सुख, और विलासिता से जुड़े हैं। यह उपाय रिश्तों और सौंदर्य में सुधार करता है।सफेद रंग और रेशम शुक्र की जल तत्व ऊर्जा को बढ़ाते हैं।

गणितीय आधार:शुक्र की कक्षा 225 दिनों में पूरी होती है, और इसकी गति 1.2 डिग्री प्रति दिन है। 24 मंत्र जाप शुक्र की 24 डिग्री गोचर गति (20 दिन) से प्रेरित है।6 सप्ताह का चक्र शुक्र की दशा प्रभाव को संतुलित करता है।

वैज्ञानिक आधार:सफेद रंग शांति और शुद्धता का प्रतीक है, जो मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव कम करता है। दान से सामाजिक जुड़ाव और आत्म-संतुष्टि बढ़ती है।यह उपाय रिश्तों में सहानुभूति और संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करता है।

7. शनि (Saturn) - कर्म और अनुशासन का ग्रहअनोखा उपाय:
"शनि काले तिल दीप"शनिवार को सरसों के तेल में 108 काले तिल मिलाकर पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का दीया जलाएं। "ॐ शं शनैश्चराय नमः" का 23 बार जाप करें।7 शनिवार तक करें।प्रभाव:शनि षष्ठ और अष्टम भाव का कारक है, जो कर्म, स्वास्थ्य, और दीर्घायु से जुड़ा है। यह उपाय शनि की साढ़ेसाती या दशा के दुष्प्रभाव को कम करता है।काला तिल और तेल शनि की पृथ्वी तत्व ऊर्जा को संतुलित करते हैं।

गणितीय आधार:शनि की कक्षा 29.46 वर्षों में पूरी होती है, और यह 12 डिग्री प्रति वर्ष चलता है। 23 मंत्र जाप शनि की 23 डिग्री गोचर गति (2 वर्ष) से प्रेरित है।108 तिल शनि के 108 नक्षत्र प्रभाव से जुड़े हैं।

वैज्ञानिक आधार:काले तिल में एंटीऑक्सीडेंट और आयरन होता है, जो पर्यावरणीय शुद्धता और स्वास्थ्य को बढ़ाता है। दीया जलाने से नकारात्मक ऊर्जा कम होती है।यह उपाय अनुशासन और धैर्य को प्रोत्साहित करता है।

8. राहु (North Node) - भ्रम और महत्वाकांक्षा का ग्रहअनोखा उपाय:
"राहु नीला धुआं"शनिवार या मंगलवार की रात नीले रंग की अगरबत्ती जलाएं और इसके धुएं को घर के कोनों में फैलाएं। "ॐ रां राहवे नमः" का 18 बार जाप करें।9 सप्ताह तक करें।प्रभाव:राहु दशम और एकादश भाव को प्रभावित करता है, जो महत्वाकांक्षा और भ्रम से जुड़े हैं। यह उपाय मानसिक भटकाव और गलत निर्णयों को रोकता है।नीला रंग और धुआं राहु की वायु तत्व ऊर्जा को शांत करते हैं।

गणितीय आधार:राहु की कक्षा 18.6 वर्षों में पूरी होती है, और यह 20 डिग्री प्रति वर्ष चलता है। 18 मंत्र जाप राहु की 18 डिग्री गोचर गति (1 वर्ष) से प्रेरित है।9 सप्ताह का चक्र राहु के 9 नक्षत्र प्रभाव से जुड़ा है।

वैज्ञानिक आधार:नीला रंग मन को शांत करता है और तनाव कम करता है। अगरबत्ती का धुआं पर्यावरण को शुद्ध करता है और ध्यान को बढ़ाता है।यह उपाय मानसिक स्पष्टता और आत्म-नियंत्रण को प्रोत्साहित करता है।

9. केतु (South Node) - आध्यात्मिकता और मुक्ति का ग्रहअनोखा उपाय:
"केतु भस्म स्नान"मंगलवार या शनिवार को गाय के गोबर से बनी भस्म को पानी में मिलाकर स्नान करें। स्नान से पहले "ॐ कें केतवे नमः" का 18 बार जाप करें।11 सप्ताह तक करें।प्रभाव:केतु नवम और द्वादश भाव को प्रभावित करता है, जो आध्यात्मिकता और मुक्ति से जुड़े हैं। यह उपाय मानसिक अशांति और पिछले कर्मों के प्रभाव को कम करता है।भस्म और गोबर केतु की अग्नि तत्व ऊर्जा को शांत करते हैं।

गणितीय आधार:केतु की कक्षा 18.6 वर्षों में पूरी होती है, और यह 20 डिग्री प्रति वर्ष चलता है। 18 मंत्र जाप केतु की 18 डिग्री गोचर गति (1 वर्ष) से प्रेरित है।11 सप्ताह का चक्र केतु के 11 नक्षत्र प्रभाव से जुड़ा है।

वैज्ञानिक आधार:गोबर में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो त्वचा और पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। भस्म स्नान से तनाव कम होता है और ध्यान बढ़ता है।यह उपाय आध्यात्मिक जागरूकता और आत्म-चिंतन को प्रोत्साहित करता है।

सामान्य सावधानियां

उपाय करने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाएं, क्योंकि ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति-विशेष पर निर्भर करता है।सभी उपाय श्रद्धा और नियमितता के साथ करें।उपाय के साथ सत्कर्म, दान, और नैतिक जीवन अपनाएं, क्योंकि ज्योतिष कर्मों के संतुलन पर आधारित है।

ज्योतिषीय सिद्धांतों, गणितीय गणनाओं, और वैज्ञानिक तथ्यों का समन्वय हैं। प्रत्येक उपाय ग्रह की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। गणितीय आधार ग्रहों की गति और चक्रों पर आधारित है, जबकि वैज्ञानिक आधार रंग, पदार्थ, और मनोविज्ञान के प्रभावों को ध्यान में रखता है। इन उपायों को नियमित और विश्वास के साथ करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव संभव हैं।

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*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
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*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis



*🎈दिनांक - 3 मई 2025*
*🎈दिन-  शनिवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु - बसन्त*
*🎉मास - वैशाख*
*🎈पक्ष- शुक्ल *
*🎈तिथि    -        षष्ठी    07:51:17 तत्पश्चात सप्तमी*
*🎈नक्षत्र -    पुनर्वसु    12:33:05 तत्पश्चात     पुष्य*
*🎈योग - शूल    25:39:39* तक, तत्पश्चात     गण्ड*
*🎈करण-        तैतुल    07:51:17
पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-09:14pm
से  10:58 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:56:05*
*🎈सूर्यास्त - 07:08:07*
*🎈चन्द्र राशि-     मिथुन    till 06:36:00*
*🎈चन्द्र राशि-       कर्क    from 06:36:00    *
*🎈सूर्य राशि    -   मेष*

*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:29 ए एम से 05:12 तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 12:59 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:10 ए एम, मई 04 से 12:53 ए एम, मई 04*
  *🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर    05:57 - 07:36    शुभ
लाभ    07:36 - 09:15    शुभ
अमृत    09:15 - 10:53    शुभ
काल    10:53 - 12:32    अशुभ
शुभ    12:32 - 14:11    शुभ
रोग    14:11 - 15:50    अशुभ
उद्वेग    15:50 - 17:29    अशुभ
चर    17:29 - 19:08    शुभ
  *🔵चोघडिया, रात🔵
रोग    19:08 - 20:29    अशुभ
काल    20:29 - 21:50    अशुभ
लाभ    21:50 - 23:11    शुभ
उद्वेग    23:11 - 24:32*    अशुभ
शुभ    24:32* - 25:53*    शुभ
अमृत    25:53* - 27:14*    शुभ
चर    27:14* - 28:35*    शुभ
रोग    28:35* - 29:56*    अशुभ
kundli



🙏♥️*आप सभी देशवासियों को वैशाख मास, बैसाखी पर्व व पितृ अमावस्या हार्दिक शुभकामनाएं, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए पक्षियों के लिए चुगा व परिंदे लगावे । पेड़ो को पानी दे।

🚩 "गणेश जी और चमत्कारी खीर"
एक बार गणेश जी ने बालक का वेश धारण किया और संसार की लीला देखने नगर की ओर निकल पड़े। उनके हाथ में केवल चुटकी भर चावल और चुल्लू भर दूध था। नगर में घूमते हुए वे हर किसी से आग्रह करते—
“माई, मेरे लिए खीर बना दो।”

लोग उनकी बात सुनते और हँसते। कोई कहता, “अरे बालक, इतनी-सी सामग्री से भला खीर कैसे बनेगी?”
कुछ तो ताना भी देते, “इतना सामान लेकर आए हो, या मज़ाक करने आए हो?”

पर गणेश जी न हार मानने वाले थे। वे तो प्रेम और श्रद्धा की परीक्षा ले रहे थे। घंटों बीत गए, पर किसी ने भी उन्हें खीर बनाकर नहीं दी।

तभी एक कोने में बैठी एक बुज़ुर्ग अम्मा ने उन्हें पुकारा—
“आ जा बेटा, मेरे पास कुछ नहीं, पर तेरी सेवा में जो भी हो सकेगा, करूँगी।”

गणेश जी मुस्कराते हुए अम्मा के साथ उनके झोपड़ी जैसे घर में चले गए। अम्मा ने आदर से चावल और दूध को एक छोटे से बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। तभी कुछ चमत्कार हुआ—
जैसे ही बर्तन में खीर उबलने लगी, वह बर्तन छोटा पड़ने लगा। अम्मा ने चौंककर बड़ा बर्तन रखा। वह भी भर गया। फिर तो जैसे खीर रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।

खीर की मीठी-सुहानी खुशबू चारों ओर फैलने लगी। अम्मा की बहू, जो रसोई के पास से गुजर रही थी, उस सुवास से आकर्षित हो गई। खीर की सुगंध से उसके मन में लालच आ गया।

वह चुपचाप आई, एक कटोरी में खीर निकाली, और दरवाज़े के पीछे बैठकर बोली—
“ले गणेश, तू भी खा, मैं भी खाऊं।”
और बिना किसी को बताए खीर खा गई।

थोड़ी देर बाद अम्मा ने गणेश जी को बुलाया—
“बेटा, तेरी खीर तैयार है, आ जा, खा ले।”

गणेश जी मुस्कराकर बोले—
“अम्मा, तेरी बहू ने भोग लगा दिया, मेरा पेट भर गया है। अब तू इस खीर से सारे गाँव को तृप्त कर।”

अम्मा चौंकी, फिर प्रसन्न होकर पूरे गाँव में संदेश दिया—
“आओ, भगवान ने खीर बनाई है, सब आकर खाओ!”

लोग हँसे, मज़ाक उड़ाया—
“जिसके पास खुद के खाने को नहीं, वो गाँव को क्या खिलाएगी?”
पर फिर भी, जिज्ञासावश कुछ लोग चल पड़े।

जब सब अम्मा के घर पहुँचे, तो देखा कि सचमुच एक बड़ा भंडार खीर का बना है। सबने मिलकर खाया। ऐसी स्वादिष्ट, मीठी और तृप्त करने वाली खीर किसी ने पहले कभी नहीं खाई थी।

गाँव का हर व्यक्ति पेट भर खीर खाकर प्रसन्न हो गया, पर चमत्कार यह था कि खीर फिर भी समाप्त नहीं हुई। जैसे वह एक अक्षय भंडार बन गई हो।

सब समझ गए— यह कोई साधारण बालक नहीं था, स्वयं विघ्नहर्ता गणेश थे, जो श्रद्धा, सेवा और सच्चे भाव की परीक्षा लेने आए थे।
शिक्षा:
सच्ची सेवा, प्रेम और श्रद्धा से किया गया अर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाता। भगवान को भोग भाव से प्रिय होता है, भोग की मात्रा से नहीं।
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*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

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*🎈दिनांक - 2 मई 2025*
*🎈दिन-  शुक्रवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु - बसन्त*
*🎉मास - वैशाख*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि    -        पंचमी    09:14:07 तत्पश्चात षष्ठी*
*🎈नक्षत्र -                आद्रा    13:03:07 तत्पश्चात             पुनर्वसु*
*🎈योग - धृति    27:18:39 तक, तत्पश्चात शूल*
*🎈करण-        बालव    09:14:08
पश्चात तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-2:11pm
से  03:50 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:56:52*
*🎈सूर्यास्त - 07:07:34*
*🎈चन्द्र राशि-       मिथुन    *
*🎈सूर्य राशि    -   मेष*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:29 ए एम से 05:12 तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 12:59 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:10 ए एम, मई 03 से 12:53 ए एम, मई 03*
  *🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर    05:57 - 07:36    शुभ
लाभ    07:36 - 09:15    शुभ
अमृत    09:15 - 10:53    शुभ
काल    10:53 - 12:32    अशुभ
शुभ    12:32 - 14:11    शुभ
रोग    14:11 - 15:50    अशुभ
उद्वेग    15:50 - 17:29    अशुभ
चर    17:29 - 19:08    शुभ
  *🔵चोघडिया, रात🔵
रोग    19:08 - 20:29    अशुभ
काल    20:29 - 21:50    अशुभ
लाभ    21:50 - 23:11    शुभ
उद्वेग    23:11 - 24:32*    अशुभ
शुभ    24:32* - 25:53*    शुभ
अमृत    25:53* - 27:14*    शुभ
चर    27:14* - 28:35*    शुभ
रोग    28:35* - 29:56*    अशुभ
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🚩 भगवान श्री दत्तात्रेय: जीवन, 24 गुरु, और आध्यात्मिक दर्शन का ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, और व्यवहारिक विश्लेषण

               एक परिचय
   भगवान श्री दत्तात्रेय हिंदू धर्म में एक अद्वितीय और सर्वोच्च आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं, जिन्हें त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) का संयुक्त अवतार माना जाता है। वे योग, तंत्र, और भक्ति के प्रतीक हैं, जिनका जीवन और शिक्षाएं मानवता को आत्म-साक्षात्कार और विश्व-दृष्टिकोण का मार्ग दिखाती हैं।
दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की अवधारणा उनकी शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्रकृति और जीवन के प्रत्येक पहलू से सीखने की प्रेरणा देती है। इस लेख में, हम उनके जीवन, 24 गुरुओं, और उनके दर्शन को ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, और व्यवहारिक दृष्टिकोण से विश्लेषित करेंगे, साथ ही आध्यात्मिक दर्शन पर शोधात्मक विवेचना करेंगे।

   दत्तात्रेय का जीवन: पौराणिक और ऐतिहासिक संदर्भ

       जन्म और उत्पत्ति

पुराणों के अनुसार, दत्तात्रेय का जन्म महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया के पुत्र के रूप में हुआ। अनसूया की पवित्रता और तपस्या से प्रभावित होकर, त्रिदेवों ने उनके गर्भ से अवतार लिया। दत्तात्रेय का जन्म एक प्रतीकात्मक संदेश है, जो सृजन (ब्रह्मा), पालन (विष्णु), और संहार (शिव) के सामंजस्य को दर्शाता है।

      ज्योतिषीय दृष्टिकोण:
दत्तात्रेय का जन्म नक्षत्र और ग्रहों के विशेष संयोग में माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार, उनका जन्म मृगशिरा या रोहिणी नक्षत्र में हो सकता है, जो बुद्धि और आध्यात्मिकता से संबंधित है। गुरु (बृहस्पति) और शनि का प्रभाव उनकी शिक्षाओं में संतुलन और वैराग्य के रूप में देखा जा सकता है।

    वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
दत्तात्रेय की उत्पत्ति को एक प्रतीकात्मक मॉडल के रूप में देखा जा सकता है, जो मानव चेतना के विकास को दर्शाता है। त्रिमूर्ति का संयोजन मस्तिष्क के त्रिगुणात्मक कार्य (सृजन, संरक्षण, और परिवर्तन) का प्रतीक हो सकता है, जो न्यूरोसाइंस में रचनात्मकता, स्मृति, और अनुकूलन से संबंधित है।

जीवन और कार्य

दत्तात्रेय एक संन्यासी, योगी, और शिक्षक थे, जिन्होंने विभिन्न राजाओं, ऋषियों, और साधकों को मार्गदर्शन दिया। उनकी शिक्षाएं दत्तात्रेय उपनिषद, अवधूत गीता, और त्रिपुरा रहस्य जैसे ग्रंथों में संकलित हैं। वे सहजता, वैराग्य, और विश्व-बंधुत्व के प्रतीक थे।

     व्यवहारिक दृष्टिकोण:
दत्तात्रेय का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची शिक्षा किताबों तक सीमित नहीं है। उनका जीवन एक खुली पुस्तक था, जो प्रकृति और समाज के प्रत्येक पहलू से सीखने की प्रेरणा देता है। यह आधुनिक शिक्षण पद्धतियों में एक्सपेरिमेंटल लर्निंग (प्रायोगिक शिक्षा) के समान है।

दत्तात्रेय के 24 गुरु: प्रकृति और जीवन से शिक्षा

दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरुओं के माध्यम से यह सिखाया कि जीवन का प्रत्येक तत्व—चाहे वह प्रकृति, प्राणी, या परिस्थिति हो—एक शिक्षक हो सकता है। श्रीमद्भागवत पुराण (11.7-9) में इसका वर्णन मिलता है। नीचे प्रत्येक गुरु और उनकी शिक्षाओं का विश्लेषण ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, और व्यवहारिक आधार पर किया गया है।

       पृथ्वी (Earth)
शिक्षा: धैर्य और सहनशीलता।
ज्योतिषीय आधार: पृथ्वी शनि का प्रतीक है, जो धैर्य और कर्म का कारक है।
वैज्ञानिक आधार: पृथ्वी की स्थिरता भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं (जैसे टेक्टोनिक प्लेट्स) का परिणाम है, जो दीर्घकालिक संतुलन को दर्शाती है।
व्यवहारिक आधार: तनावपूर्ण परिस्थितियों में शांत रहना और सहनशीलता अपनाना।

       वायु (Air)
शिक्षा: सर्वव्यापकता और अनासक्ति।
ज्योतिषीय आधार: वायु बुध और राहु से संबंधित है, जो गति और स्वतंत्रता का प्रतीक है।
वैज्ञानिक आधार: वायु का प्रवाह थर्मोडायनामिक्स के सिद्धांतों पर आधारित है, जो ऊर्जा के संरक्षण को दर्शाता है।
व्यवहारिक आधार: विचारों और भावनाओं में लचीलापन रखना।

      आकाश (Sky)
शिक्षा: असीमता और शुद्धता।
ज्योतिषीय आधार: आकाश गुरु (बृहस्पति) का प्रतीक है, जो ज्ञान और विस्तार का कारक है।
वैज्ञानिक आधार: आकाश का विस्तार कॉस्मोलॉजी में ब्रह्मांड के विस्तार से तुलनीय है।
व्यवहारिक आधार: मन को संकीर्णता से मुक्त करना।

        जल (Water)
शिक्षा: शुद्धता और अनुकूलन।
ज्योतिषीय आधार: जल चंद्रमा और शुक्र से संबंधित है, जो भावनाओं और सामंजस्य का प्रतीक है।
वैज्ञानिक आधार: जल की तरलता और अनुकूलनशीलता भौतिकी के द्रव-गतिकी सिद्धांतों से समझी जा सकती है।
व्यवहारिक आधार: परिस्थितियों के अनुसार ढलना।

      अग्नि (Fire)
शिक्षा: परिवर्तन और ऊर्जा।
ज्योतिषीय आधार: अग्नि मंगल का प्रतीक है, जो शक्ति और परिवर्तन का कारक है।
वैज्ञानिक आधार: अग्नि रासायनिक प्रतिक्रिया (दहन) का परिणाम है, जो ऊर्जा रूपांतरण को दर्शाता है।
व्यवहारिक आधार: पुरानी आदतों को त्यागकर नया अपनाना।

     चंद्रमा (Moon)
शिक्षा: परिवर्तनशीलता और स्थिरता का संतुलन।
ज्योतिषीय आधार: चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक है।
वैज्ञानिक आधार: चंद्रमा की कलाएं खगोलीय चक्रों का हिस्सा हैं, जो समय और परिवर्तन को दर्शाती हैं।
व्यवहारिक आधार: भावनात्मक स्थिरता बनाए रखना।

         सूर्य (Sun)
शिक्षा: निष्पक्षता और प्रकाश।
ज्योतिषीय आधार: सूर्य आत्मा और नेतृत्व का प्रतीक है।
वैज्ञानिक आधार: सूर्य की ऊर्जा सौर विकिरण से उत्पन्न होती है, जो जीवन का आधार है।
व्यवहारिक आधार: सभी के प्रति समान दृष्टिकोण रखना।

     कबूतर (Pigeon)
शिक्षा: आसक्ति का त्याग।
ज्योतिषीय आधार: शुक्र की अतिशयता आसक्ति को दर्शाती है।
वैज्ञानिक आधार: कबूतर का व्यवहार जीवविज्ञान में प्रजनन और परिवार से संबंधित है।
व्यवहारिक आधार: पारिवारिक मोह से मुक्त होना।

        अजगर (Python)
शिक्षा: संतोष और आवश्यकता के अनुसार ग्रहण।
ज्योतिषीय आधार: शनि और राहु संतोष और संयम का प्रतीक हैं।
वैज्ञानिक आधार: अजगर की शारीरिक संरचना और शिकार की रणनीति जैव-ऊर्जा संरक्षण को दर्शाती है।
व्यवहारिक आधार: न्यूनतम संसाधनों में संतुष्ट रहना।

       समुद्र (Ocean)
शिक्षा: गहराई और स्थिरता।
ज्योतिषीय आधार: चंद्रमा और गुरु समुद्र की गहराई और विशालता से संबंधित हैं।
वैज्ञानिक आधार: समुद्र का पारिस्थितिकी तंत्र जैव-विविधता और संतुलन को दर्शाता है।
व्यवहारिक आधार: भावनात्मक गहराई और स्थिरता बनाए रखना।

(इसी प्रकार, शेष 14 गुरुओं—मधुमक्खी, हाथी, हिरण, पिंगला वेश्या, बाज, बालक, कन्या, तीरंदाज, सर्प, मकड़ी, भृंगी, मछली, और वायु—का विश्लेषण भी ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, और व्यवहारिक दृष्टिकोण से किया जा सकता है। स्थान की सीमा के कारण, यहाँ संक्षेप में उल्लेख किया गया है।)

आध्यात्मिक दर्शन: अवधूत गीता और अद्वैत वेदांत

दत्तात्रेय का दर्शन अवधूत गीता में संकलित है, जो अद्वैत वेदांत का सार है। उनका दर्शन निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है:

आत्म-साक्षात्कार: आत्मा ही एकमात्र सत्य है, और विश्व माया का खेल है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: यह क्वांटम भौतिकी के अवलोकन-सिद्धांत से तुलनीय है, जहां चेतना वास्तविकता को प्रभावित करती है।

सहजता: जीवन को स्वाभाविक रूप से जीना, बिना बंधनों के।
व्यवहारिक दृष्टिकोण: यह माइंडफुलनेस और न्यूरोप्लास्टिसिटी के सिद्धांतों से मेल खाता है।

विश्व-बंधुत्व: सभी प्राणियों में एक ही चेतना का दर्शन।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण: यह गुरु और नेपच्यून के वैश्विक दृष्टिकोण से संबंधित है।

      शोधात्मक विवेचना

दत्तात्रेय का दर्शन और उनके 24 गुरुओं की अवधारणा एक बहुआयामी शिक्षण मॉडल है, जो आधुनिक मनोविज्ञान, न्यूरोसाइंस, और पर्यावरण विज्ञान से गहराई से जुड़ा है। उनके दर्शन को निम्नलिखित संदर्भों में समझा जा सकता है:

     मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:
दत्तात्रेय की शिक्षाएं संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) और माइंडफुलनेस-आधारित तनाव न्यूनीकरण (MBSR) के समान हैं, जो आत्म-जागरूकता और भावनात्मक संतुलन पर जोर देती हैं।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण: 24 गुरुओं की अवधारणा प्रकृति से सीखने पर बल देती है, जो आधुनिक पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के सिद्धांतों से मेल खाती है।

    ज्योतिषीय दृष्टिकोण:
दत्तात्रेय की शिक्षाएं ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव को आत्म-विकास के लिए उपयोग करने की प्रेरणा देती हैं।

    भगवान श्री दत्तात्रेय का जीवन और उनकी 24 गुरुओं की अवधारणा एक सार्वभौमिक शिक्षण मॉडल है, जो ज्योतिष, विज्ञान, और व्यवहारिक दृष्टिकोणों के साथ आध्यात्मिकता का समन्वय करता है। उनका दर्शन हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह प्रकृति, प्राणियों, और स्वयं के अनुभवों में निहित है। आधुनिक युग में, दत्तात्रेय की शिक्षाएं हमें आत्म-जागरूकता, पर्यावरण संरक्षण, और वैश्विक एकता की दिशा में प्रेरित करती हैं।

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*👉*शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
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*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis

 

*🎈दिनांक - 1 मई 2025*
*🎈दिन-  गुरुवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु - बसन्त*
*🎉मास - वैशाख*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि    -        चतुर्थी    11:23:06 तत्पश्चात पंचमी*
*🎈नक्षत्र -            मृगशीर्षा    14:19:51 तत्पश्चात             आद्रा*
*🎈योग - अतिगंड    08:33:08* तक, तत्पश्चात धृति*
*🎈करण-        विष्टि भद्र    11:23:06
पश्चात बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-2:11pm
से  03:50 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:57:39*
*🎈सूर्यास्त - 07:07:00*
*🎈चन्द्र राशि-       मिथुन*
*🎈सूर्य राशि    -   मेष*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:30 ए एम से 05:13 तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 12:59 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:10 ए एम, मई 02 से 12:54 ए एम, मई 02*
  *🛟चोघडिया, दिन🛟*
शुभ    05:58 - 07:36    शुभ
रोग    07:36 - 09:15    अशुभ
उद्वेग    09:15 - 10:54    अशुभ
चर    10:54 - 12:32    शुभ
लाभ    12:32 - 14:11    शुभ
अमृत    14:11 - 15:50    शुभ
काल    15:50 - 17:28    अशुभ
शुभ    17:28 - 19:07    शुभ
  *🔵चोघडिया, रात🔵
अमृत    19:07 - 20:28    शुभ
चर    20:28 - 21:49    शुभ
रोग    21:49 - 23:11    अशुभ
काल    23:11 - 24:32*    अशुभ
लाभ    24:32* - 25:53*    शुभ
उद्वेग    25:53* - 27:14*    अशुभ
शुभ    27:14* - 28:36*    शुभ
अमृत    28:36* - 29:57*    शुभ

kundli



🙏♥️* आज मजदूर दिवस की शुभकामनाएं।

🙏♥️*आप सभी देशवासियों को वैशाख मास, बैसाखी पर्व व पितृ अमावस्या हार्दिक शुभकामनाएं, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए पक्षियों के लिए चुगा व परिंदे लगावे । पेड़ो को पानी दे।

🚩 भगवान शिव के गले में लिपटे नागराज को वासुकी कहते हैं. कुछ बरसों पहले आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों को द्वारका तट पर समुद्री रिसर्च में दुनिया के सबसे बड़े सांप के अवशेष मिले थे. वैज्ञानिकों ने इसकी तुलना नाग वासुकी से की. नाम दिया वासुकी इंडिकस. इस वैज्ञानिक खोज का जिक्र हम ज्योतिर्लिंग सीरीज मे इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि नाग वासुकी का संबंध ना सिर्फ भगवान शिव और द्वारका से है, बल्कि उस पौराणिक कथा से भी बलवती होती है, जो भगवान शिव को नागेश्वर बनाती है. नागेश्वर, यानी नागों के ईश्वर. इस रूप में भगवान द्वारका के तट पर युगों से विराजमान है. भगवान शिव के इस रूप को 8वें ज्योतिर्लिंग के रूप में मिली हुई है. आज हम भगवान शिव के इसी नागेश्वर रूप की रहस्यगाथा बताने जा रहे हैं.

द्वारका के पास है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

गुजरात में श्रीकृष्ण की द्वारका से बीस किलोमीटर की दूरी पर शिव का द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक नागेश्वर स्थित है. द्वारका का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग आध्यात्मिक विरासत, पौराणिक कथाओं और भक्तों की अटूट आस्था का संगम है. जो भी श्रद्धालु द्वारका आते हैं, वो नागेश्वर जरुर जाते हैं. मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने से भक्तों की कुंडली में कालसर्प, सर्प दोष जैसे अशुभ योग का असर कम हो जाता है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव की दिव्य शक्ति का स्थान माना जाता है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शकों और उपासकों को सर्प के जहर से बचाने की क्षमता रखता है. जो व्यक्ति स्वच्छ मन से नागेश्वर का ध्यान करते हैं, वे सभी भौतिक और आध्यात्मिक विषाक्त पदार्थों जैसे माया, पाप, क्रोध और लोभ से मुक्त हो जाते हैं.

नागेश्वर शब्द नागों के राजा को संदर्भित करता है जो हर समय भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है... जो व्यक्ति इस मंदिर में प्रार्थना करता है, उसे सांपों से कोई नुकसान नहीं होगा, और यह गहरी मान्यता मंदिर को अद्वितीय महत्व प्रदान करती है, जो शिवभक्तों को आकर्षित करती है.

रुद्र संहिता में भगवान शिव को क्या कहा गया?

शिवपुराण की रुद्र संहिता में शिव जी को नागेशं दारुकावने कहा गया है. नागेश्वर का अर्थ है नागों के ईश्वर. मंदिर की मान्यताएं महाभारत काल से जुड़ी हैं. महाभारत काल में जब पांडव वनवास काट रहे थे, तब वे द्वारका क्षेत्र में भी आए थे. उस समय भीम ने यहां देखा कि एक गाय एक तालाब में दूध दे रही है.

ये बात भीम को हैरान करने वाली लगी. भीम तालाब में उतरकर उस जगह पहुंचे तो वहां एक शिवलिंग देखा. इसके बाद भीम और अन्य पांडवों ने तालाब का पानी खाली किया और शिवलिंग की पूजा-अर्चना की. बाद में श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताया था कि ये शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर है.

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, न केवल भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है, बल्कि यह एक ऐसी गाथा का जीवंत प्रमाण भी है जो सदियों से भक्तों की आस्था और श्रद्धा को प्रेरित करती आई है.

मंदिर अपने आध्यात्मिक महत्व, ऐतिहासिक गहराई और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है. नागेश्वर मंदिर का संबंध महाभारत काल के अलावा एक और पौराणिक कथाओं में मिलता है जिसके मुताबिक, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध दारुकवन नामक एक प्राचीन और रहस्यमय जंगल से भी है.

शिवपुराण में भोलेनाथ की क्या है कथा

शिवपुराण में वर्णित कथा की मानें तो दारुका नाम की शक्तिशाली राक्षसी ने देवी पार्वती से एक विशेष वरदान प्राप्त किया था, जिसके कारण वो दारूकवन को कहीं भी ले जा सकती थी. इस वरदान का दुरुपयोग करते हुए, दारुका और उसके राक्षस पति दारुक ने उस वन में अत्याचार मचाना शुरू कर दिया, जिससे ऋषि-मुनि और आमजन भयभीत हो गए.

इसी वन में सुप्रिया नाम की एक परम शिव भक्त निवास करती थी. जब दारुका ने सुप्रिया समेत कई लोगों को बंदी बना लिया, तो सुप्रिया ने अपनी अटूट भक्ति और भगवान शिव के प्रति पूर्ण समर्पण का परिचय दिया. कारागार में भी, उसने अन्य बंदियों को भगवान शिव की आराधना करने के लिए प्रेरित किया और ''ओम नमः शिवाय'' का जाप निरंतर जारी रखा.

जब राक्षसी दारुका को इस भक्ति के बारे में पता चला, तो उसने सुप्रिया को धमकाया. अपने भक्त की पुकार सुनकर, करुणामय भगवान शिव तत्काल वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने राक्षसों का संहार किया और भक्तों की प्रार्थना पर, भगवान शिव उसी स्थान पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए.

गर्भगृह के निचले स्तर पर मूल ज्योतिर्लिंग स्थापित

ऐसा माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह जहर संबंधी रोगों और अन्य कष्टों से भी मुक्ति दिलाता है. यह स्थान उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो बुरी वृत्तियों और नकारात्मक प्रभावों से छुटकारा पाना चाहते हैं. नागेश्वर मंदिर का वर्तमान स्वरूप भव्य और आकर्षक है.
 
मंदिर परिसर में भगवान शिव की 125 फीट ऊंची ध्यान मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा स्थापित है, जो इसकी आध्यात्मिक आभा को और भी बढ़ाती है. यह विशाल मूर्ति लगभग 3 किलोमीटर की दूरी से भी दिखाई देती है, जो भक्तों को इस पवित्र स्थान की ओर आकर्षित करती है.
 
मंदिर के मुख्य गर्भगृह के निचले स्तर पर मूल ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जिसके शीर्ष पर चांदी का एक बड़ा नाग विराजमान है. मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक भारतीय शैली में निर्मित है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है.

सर्दियों में दर्शन के लिए जाना बेहतर

नागेश्वर मंदिर के पास ही नागेश्वर बीच है जो एक शांत और कम भीड़-भाड़ वाला समुद्र तट है जो अपनी शांति के लिए जाना जाता है. शिवभक्त यहां प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने आते हैं,
शेष भाग कल.........
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
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