*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 1 जुलाई 2025*
*🎈दिन- मंगलवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- षष्ठी 10:20:03 * पश्चात सप्तमी*
*🎈 नक्षत्र - पूर्व फाल्गुनी 08:52:49 पश्चात उत्तर फाल्गुनी*
*🎈योग - व्यतिपत 17:17:22 तक, तत्पश्चात् वरियान*
*🎈करण - तैतुल 10:20:03 पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 04:06pm
से 05:49 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:45:28*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:27*
*🎈चन्द्र राशि - सिंह till 15:22:44*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या from 15:22:44*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:23 ए एम से 05:03 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:11 पी एम से 01:07 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, जुलाई 02 से 01:00 ए एम, जुलाई 02 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
रोग 05:45 - 07:29 अशुभ
उद्वेग 07:29 - 09:12 अशुभ
चर 09:12 - 10:56 शुभ
लाभ 10:56 - 12:39 शुभ
अमृत 12:39 - 14:22 शुभ
काल 14:22 - 16:06 अशुभ
शुभ 16:06 - 17:49 शुभ
रोग 17:49 - 19:32 अशुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
काल 19:32 - 20:49 अशुभ
लाभ 20:49 - 22:06 शुभ
उद्वेग 22:06 - 23:22 अशुभ
शुभ 23:22 - 24:39* शुभ
अमृत 24:39* - 25:56* शुभ
चर 25:56* - 27:12* शुभ
रोग 27:12* - 28:29* अशुभ
काल 28:29* - 29:46* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
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★ #चन्द्रायान_व्रत_महात्म्यन् ★
विशेष नोट 👉🏻 : किसी भी अप्सरा साधना सिद्ध करने से पहले चन्द्रायण व्रत का प्रावधान है!
इस व्रत से आत्मा की शुद्धिकरण अथवा मन को सम्पूर्ण आश्वासन प्राप्ती की अनुभूति होती है!
🔹️पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है।
🔹️प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है।
🔹️इसके दो अर्थ होते है।
प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।
प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥
🔸️(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि।
✨️प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।
🔸️(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय।
✨️प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।
✨️दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना।
✨️तप का यही उद्देश्य भी है।
✨️चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है।
⚡️चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना।
*इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -*
_*(1) पिपीलिका मध्य चान्द्रायण*_
एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥
🌀 अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए।
🔹️चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे।
🔸️इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।
_*(2) यव मध्य चान्द्रायण*_
प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।
शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥
🌀 अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें।
🔹️फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे।
🔹️इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।
_*(3) यति चान्द्रायण*_
अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।
नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥
🔹️अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें।
🔹️इसे यति चांद्रायण कहते है।
🔸️इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।
_*(4) शिशु चान्द्रायण*_
बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।
चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥
⚡️अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें।
⚡️इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।
_*(5) मासपरायण :-*_
चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का (दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें।
‼️ भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।
🔸️तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है।
🔸️ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है।
🔸️बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है।
🔸️परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है।
🔸️एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है।
🔸️इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है।
🔸️पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी।
🔸️गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो।
🔸️पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।
🔸️जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है।
🔹️अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।
🌀 चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए।
✅️ भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है।
🔸️अनुष्ठान - एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है।
🔸️इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।
🔸️यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा।
लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है।
तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें।
_*प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर:-*_
ॐ।
भूः।
भूवः।
स्वः।
महः।
जनः।
तपः।
सत्यं।
यशः।
श्रीः।
अर्क।
ईट।
ओजः।
तेजः।
पुरुष।
धर्म।
शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा-
‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’।
ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं।
इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा
(2) ॐ भूः नमः स्वाहा
(3) ॐ भुवः नमः स्वाहा
(4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।
व्रत की समाप्ति पर मां भगवती भोजनालय में दान दें तथा सत्साहित्य और मन्त्रलेखन पुस्तिका ज्ञान दान में बांटे है।
★ ॐ क्रीं कालिकायै नमः ★
● ॐ ह्रौं अघोर शिवाय नमः ●
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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