*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 31 जुलाई 2025*
*🎈दिन - गुरुवार*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - दक्षिणायण*
*🎈ऋतु - वर्षा*
*🎈मास - श्रावण*
*🎈पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - सप्तमी प्रातः 04:57:43 अगस्त 01 तक तत्पश्चात अष्टमी*
*🎈नक्षत्र - चित्रा रात्रि 12:40:36 अगस्त 01 तत्पश्चात् स्वाती*
*🎈योग - साध्य प्रातः 04:30:40अगस्त 01 तक तत्पश्चात् शुभ*
*🎈करण - गर 03:47:24 pm तत्पश्चात् विष्टि भद्र*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सायं 02:22 से सायं 04:02 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈सूर्योदय - 05:59:44 am*
*🎈सूर्यास्त - 07:22:52pm* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या till 11:14:09*
*🎈चन्द्र राशि - तुला from 11:14:09*
*🎈सूर्य राशि - कर्क*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:34 से प्रातः 05:16 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, अगस्त 01 से 01:03 ए एम, अगस्त 01तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈व्रत पर्व विवरण - संत तुलसीदासजी जयंती*
*🎈विशेष - - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है, व शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
शुभ 05:59 - 07:40 शुभ*
रोग. 07:40 - 09:21अशुभ*
उद्वेग 09:21 - 11:01अशुभ*
चर 11:01 - 12:41शुभ*
लाभ 12:41- 14:22 शुभ*
अमृत 14:22 -16:02 शुभ*
काल 16:02 - 17:42 अशुभ*
शुभ 17:42 - 19:23 शुभ*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
अमृत 19:23 - 20:43 शुभ*
चर 20:43 - 22:02 शुभ*
रोग. 22:02 - 23:22 अशुभ*
काल 23:22 - 24:42* अशुभ*
लाभ. 24:42* -26:01*शुभ*
उद्वेग. 26:01* - 27:21* अशुभ
शुभ 27:21* -28:41*शुभ
अमृत 28:41* -- 30:00*शुभ
====================
*नाग कौन हैं?
नाग ऋषि कश्यप और उनकी एक पत्नी कद्रू की संतान हैं। कद्रू ने 1000 साँपों को जन्म दिया था।
क्या हम 1000 साँपों की पूजा करते हैं?
हज़ारों में से, मुख्य 8 नागों की हम पूजा करते हैं जिन्हें अष्ट कुल नाग कहा जाता है और जिनके बारे में हमें अपने प्राचीन ग्रंथों में विशद वर्णन मिलता है।
नाग और सर्प में क्या अंतर है?
नाग वे होते हैं जिनके सिर पर फन होता है और सर्प के सिर पर फन नहीं होता।
नाग कौन हैं?
अनंत, वासुकि, तक्षक, कुलिक, करकोटा, पद्म, महापद्म, शंखपाल।
लेकिन यह श्रावण पंचमी तिथि ही क्यों, अन्य तिथियाँ क्यों नहीं?
1000 नागों में तीसरे भाई तक्षक ने अर्जुन के पौत्र, राजा परीक्षित का वध किया था।
अर्जुन के प्रपौत्र जन्मेजय ने सभी सर्पों को भस्म करने के लिए शक्तिशाली सर्पमेध यज्ञ का आयोजन किया था, लेकिन महान सर्पराज वासुकि के भतीजे आस्तिक ने उन्हें रोक दिया था। जिस दिन ब्राह्मण आस्तिक ऋषि के हस्तक्षेप से सर्पमेध यज्ञ रोका गया था, वह नाग पंचमी का दिन था और तब से इस दिन नाग पूजा मनाई जाती है।
निषाद देश के राजा नल अपने समय के सबसे सुंदर पुरुष थे। एक बार उन्होंने विदर्भ की राजकुमारी दमयंती का चित्र देखा। जी हाँ, उस समय भी पहली नज़र का प्यार होता था। राजा नल ने काम करना छोड़ दिया और दिन-रात दमयंती के बारे में सोचते रहते थे। अंततः उन्होंने अपने बगीचे के हंस के माध्यम से दमयंती को संदेश भेजा। इस प्रकार दोनों में संवाद होने लगा। एक दिन दमयंती के पिता ने उसके लिए सप्तमेश की घोषणा की। यह सुनकर न केवल दुनिया भर के राजा और गण, बल्कि देवराज इंद्र, अग्नि वरुण भी दमयंती का हाथ थामने के लिए उतर आए।
इंद्र जानते थे कि नल और दमयंती एक-दूसरे को पहले से जानते थे और वे एक-दूसरे को कितना चाहते थे। इसलिए स्वयंवर में वे नल के रूप में नल के पास खड़े हो गए। जब दमयंती स्वयंवर सभा में दाखिल हुई, तो उसने देखा कि एक के बाद एक चार नल खड़े हैं। वह हैरान और उलझन में थी, लेकिन उसने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और पाया कि केवल एक व्यक्ति पलकें झपका रहा था और बाकी तीन, जो नल जैसे दिख रहे थे, पलकें नहीं झपका रहे थे। इसलिए उसने असली नल को पहचान लिया और उसे चुन लिया।
स्वयंवर के बाद इंद्र-अग्नि-वरुण ने यह कहानी दूसरों को बताई और कलि को लगा कि यह धोखा है क्योंकि दोनों की पहले से ही एक-दूसरे के साथ रहने की योजना थी, इसलिए यह उनका ईमानदार स्वयंवर नहीं था। इसी वजह से सबक सिखाने के लिए, कलि ने दयालु नल को परेशान करना शुरू कर दिया। पासा के खेल में अपने भाई से सब कुछ हार जाने के बाद, उसे अपनी पत्नी दमयंती के साथ राज्य छोड़ना पड़ा।
इसके बाद, वह अपनी पत्नी को आधे फटे कपड़ों के साथ एक जंगल में छोड़कर एक जंगल में पहुँच गया। जहाँ दावानल सब कुछ भस्म कर रहा था। वहाँ उसने एक विशाल साँप देखा जो लगभग दावानल में जलने ही वाला था, लेकिन वह साँप हिल भी नहीं पा रहा था। नल ने तुरंत उसे जंगल से बाहर निकालकर उसकी जान बचाई। वह साँप कद्रू का पुत्र कर्कोटक था।
कर्कोटक एक भयानक सर्प है जो श्री परमेश्वर की माला है। नारद के शाप के कारण कर्कोटक जंगल की आग में फँस गया था। एक बार कर्कोटक ने नारद मुनि को धोखा दिया और वर्षों तक एक ही स्थिति में स्थिर रहने का शाप पा गया। दावानल से बाहर आते ही कर्कोटक ने नल को काट लिया। उसका विष इतना भयानक था कि नल का शरीर क्षण भर में ही कुरूप हो गया और वह एक बौना कुरूप व्यक्ति बन गया। लेकिन कर्कोटक ने समझाया कि उसने नल को इसलिए काटा था क्योंकि कलि ने उसे जकड़ लिया था और नल को वह कष्ट सहना पड़ा। उसने यह भी आश्वासन दिया कि जब तक नल के शरीर में विष है, उसे कोई नहीं हरा सकता और उसके जीवन में कोई और खतरा नहीं होगा। उन्होंने नल को राजा ऋतुपर्ण के दरबार में जाने का निर्देश दिया। उन्होंने नल को कलि के श्राप से मुक्ति पाने के उपाय बताए और उन्हें रेशमी वस्त्र के दो टुकड़े दिए। जब भी वह उन कपड़ों को पहनेंगे, उन्हें अपनी पूर्व सुंदरता और शरीर पुनः प्राप्त हो जाएगा।
कर्कोटक की कथा का स्मरण और उनकी पूजा करने से हमें कलियुग में आने वाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करने और कलि के श्राप से मुक्त होने का आशीर्वाद मिल सकता है।
कुंडलिनी शक्ति और सर्प ऊर्जा।
कुंडलिनी पृथ्वी (मूलाधार) में सुप्त अवस्था में रहती है। यह वायुमंडल में ऊपर उठती है और शिरोकमल में स्थित परम आकाश में आरोहित होती है। कुंडलिनी एक सर्प है, चेतना की विद्युत/विद्युत ऊर्जा। जीवात्मा की मुक्ति के लिए कुंडलिनी के रूप में उसकी रचनात्मक शक्ति की मुक्ति आवश्यक है ताकि वह सर्वत्र फैल सके और संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हो सके। नाग पंचमी उसके जागरण का दिन है!
शेष भाग कल......
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 30 जुलाई 2025*
*🎈दिन - बुधवार*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - दक्षिणायण*
*🎈ऋतु - वर्षा*
*🎈मास - श्रावण*
*🎈पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - षष्ठी रात्रि 02:40:56 जुलाई 30 तक तत्पश्चात सप्तमी*
*🎈नक्षत्र - हस्त रात्रि 09:51:59 तक तत्पश्चात् चित्रा*
*🎈योग - सिद्ध रात्रि02:38:55* जुलाई 30 तक तत्पश्चात् साध्य*
*🎈करण - कौलव 0 1:39:58 तत्पश्चात् गर*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सायं 12:41 से सायं 02:22 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈सूर्योदय - 05:59:13 am*
*🎈सूर्यास्त - 07:023:29 pm* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या *
*🎈सूर्य राशि - कर्क*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:34 से प्रातः 05:16 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 31 से 01:03 ए एम, जुलाई 31तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 रवि योग - 05:58 ए एम से 09:53 पी एम*
*🎈व्रत पर्व विवरण - षष्ठी तिथि श्रावण बुधवार व्रत, katyayni गौरी व्रत*
*🎈विशेष - - षष्ठी तिथि भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित है। इस दिन उपवास रखने और भगवान की पूजा करने का विधान है। उपवास के दौरान, सात्विक भोजन करना चाहिए और कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
अनाज: अनाज, विशेष रूप से चावल, गेहूं, मक्का आदि का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन्हें व्रत के दौरान अशुद्ध माना जाता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, 17:43)
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
लाभ- 05:59 - 07:40*शुभ*
अमृत- 07:40 - 09:20 शुभ*
काल- 09:20 - 11:01 अशुभ*
शुभ- 11:01- 12:41शुभ*
रोग- 12:41 - 14:22अशुभ*
लाभ- 17:43 - 19:23शुभ*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग-19:23 - 20:43 अशुभ*
शुभ- 20:43-22:03* शुभ
अमृत-22:03-23:22*शुभ
चर- 23:22- 24:42* शुभ
रोग- 24:42* - 26:01* अशुभ*
काल-26:01* - 27:21*अशुभ*
लाभ-27:21* - 28:40* शुभ
उद्वेग-28:40* - 29:59* अशुभ
*🔹♦️कालसर्प दोष शांति के लिए छोटे किंतु असरदार उपाय , जो निश्चित रुप से आपके जीवन पर होने वाले बुरे असर को रोकते हैं 👇🏼👇🏼
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*जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है।
व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है।
उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है।
जातक को तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं बुरे प्रभाव जीवन में तरह-तरह से बाधा पैदा कर सकते हैं। पूरी तरह से मेहनत करने पर भी अंतिम समय में सफलता से दूर हो सकते हैं।
कालसर्प योग को लेकर यह धारणा बन चुकी है कि यह दु:ख और पीड़ा देने वाला ही योग है।
जबकि इस मान्यता को लेकर ज्योतिष के जानकार भी एकमत नहीं है। हालांकि यह बात व्यावहारिक रुप से सच पाई गई है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रहों के आने से कालसर्प योग बन जाता हैं।
उस व्यक्ति का जीवन असाधारण होता है। उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है।
वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। इस तरह माना जा सकता है कि कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है।
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है।
ज्योतिष विज्ञान अनुसार छायाग्रहों यानि दिखाई न देने वाले राहू और केतु के कारण कुण्डली में बने कालसर्प योग के शुभ होने पर जीवन में सुख मिलता है, किंतु इसके बुरे असर से व्यक्ति जीवन भर कठिनाईयों से जूझता रहता है
राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला इस कारण से जातक के जीवन में जो भी दुख का कारण है वह चिरस्थाई हो जाता है,इस चिरस्थाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई ग्रह नही होने से कुंडली देख कर पता किया जाता है,यही कालसर्प दोष माना जाता है,यह बारह प्रकार का होता है।
दोष शांति का अचूक काल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है।
नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती है।
राहु केतु मध्ये सप्तो विध्न हा काल सर्प सारिक:।
सुतयासादि सकलादोषा रोगेन प्रवासे चरणं ध्रुवम।।
शेष भाग कल......
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 29 जुलाई 2025*
*🎈दिन - मगलवार*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - दक्षिणायण*
*🎈ऋतु - वर्षा*
*🎈मास - श्रावण*
*🎈पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - पंचमी रात्रि 12:45:59 जुलाई 30 तक तत्पश्चात षष्ठी*
*🎈नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी शाम 07:26:33 तक तत्पश्चात् हस्त*
*🎈योग - शिव रात्रि 03:03:29 जुलाई 30 तक तत्पश्चात् सिद्ध*
*🎈करणबव 12:00:16 तत्पश्चात् कौलव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सायं 04:03 से सायं 05:43 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈सूर्योदय - 05:58:41 am*
*🎈सूर्यास्त - 07:024:06 pm* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या *
*🎈सूर्य राशि - कर्क*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:33 से प्रातः 05:15 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:14 से दोपहर 01:08 तक*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 30 से 01:03 ए एम, जुलाई 30 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈व्रत पर्व विवरण - नाग पंचमी, श्रावण मंगल वार व्रत,मंगला गौरी व्रत*
*🎈विशेष - - पंचमी को बेल फल खाने से कलंक लगता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
रोग 05:59 - 07:39 अशुभ*
उद्वेग 07:39 - 09:20 अशुभ*
चर. 09:20 - 11:01 शुभ*
लाभ 11:01 - 12:41 शुभ*
अमृत 12:41 - 14:22 शुभ
काल. 14:22 - 16:03 अशुभ
शुभ 16:03 - 17:43. शुभ
रोग 17:43 - 19:24 अशुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
काल 19:24 - 20:43 अशुभ*
लाभ 20:43. - 22:03 शुभ*
उद्वेग 22:03 - 23:22 अशुभ*
शुभ 23:22 - 24:42* शुभ
अमृत 24:42 - 26:01 शुभ*
चर 26:01* - 27:20*. शुभ
रोग27:20* - 28:40* अशुभ
काल 28:40 - 29:59* अशुभ
*🔹♦️नागपंचमी आज 29जुलाई 2025 👇🏼👇🏼
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*नागपंचमी आज 29जुलाई 2025 को पूरे उत्तर भारत मे प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनाई जाती है, भारत के कुछ भागो खासकर मरुस्थलीय क्षेत्र मे इसे श्रावण मास की शुक्ला पक्ष की पंचमी को भी मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म में नागों को बहुत ऊंचा दर्जा दिया जाता है, नाग देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश से एकरूप हुए देवता हैं। नागदेवता ही पृथ्वी का मेरूदंड, अर्थात रीढ की हड्डी हैं ।
शास्त्रानुसार शेषनाग नाग मतांतर से वासुकी नाग ने ही पृथ्वी को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है, अर्थात पृथ्वी नाग के फन पर ही टिकी हुई है।
क्षीरसागर मे भगवान विष्णु की "शैय्या तथा सिर" पर छत्र समान, शेषनाग ही है । भगवान विष्णु ने जब भी धरती पर अवतार रूप मे अवतरण अथवा जन्म लिया तो उनके साथ-2 शेषनाग भी अन्य रूपो मे भगवान के साथ धरती पर अवतरित होते रहे, त्रेता युग मे छोटे भाई लक्ष्मण तथा द्वापर युग मे बड़े भाई बलराम के रूप में शेषनाग ने भगवान की लीला मे उनका साथ निभाया। ऐसा माना जाता है कि श्रीविष्णु भगवान के तमोगुण से शेषनाग की उत्पत्ति हुई ।
सागरमंथन मे सागर को मथने के लिए कूर्मावतार के ऊपर मथानी (मधानी) की रस्सी बनकर वासुकी नाग ने ही देवताओं और दैत्यों की सहायता की थी।
इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अध्याय 10, श्लोक 29 में अपनी विभूति का कथन किया है कि- नागों में श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं’।
भगवान शंकर ने नाग को अपने कंठ मे धारण करके इन्हे उच्च स्थान दिया। इस प्रकार भगवान शंकर की देह पर नौ नाग माने जाते हैं, इसलिए नागपंचमी के दिन नाग का पूजन करना अर्थात नौ नागों के संघ का एक प्रतीक का पूजन करना है, इस प्रकार यह सगुण रूप में शिव की पूजा करने के समान है, इसलिए इस दिन वातावरण में आई हुई शिवतरंगें आकर्षित होती हैं तथा यह तंरगे समस्त जीवो के लिए वर्ष भर लाभकारी सिद्ध होती हैं।
नागपंचमी पर नागपूजा का महत्त्व
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1👉 भारतीय धर्म शास्त्रो के अनुसार जन्मजेय जोकि अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे। उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा हेतु इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई।
2👉 ‘शेषनाग अपने फन पर पृथ्वी को धारण करते हैं । वे पाताल में रहते हैं। उनके सहस्र फन हैं । प्रत्येक फन पर एक हीरा है। उनकी उत्पत्ति श्रीविष्णु के तमोगुण से हुई। श्रीविष्णु प्रत्येक कल्प के अंत में महासागर में शेषनाग के आसन पर शयन करते हैं। त्रेता युग में श्रीविष्णु ने राम-अवतार धारण किया। तब शेषनाग ने लक्ष्मण का अवतार लिया। द्वापर एवं कलियुग के संधिकाल में श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया। उस समय शेषनाग बलराम बने।
3👉 महाभारत काल मे श्रीकृष्ण ने यमुना के कुंड में कालिया नाग का मर्दन किया। उस दिन श्रावण मा।स शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि थी, इसलिए भी नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है।
4👉 पुराणो के अनुसार "सत्येश्वरी" नामक एक देवी मां थी। सत्येश्वर नामक उसका एक भाई था। सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी से एक दिन पूर्व हो गई थी। सत्येश्वरी को उसका भाई नाग के रूप में दिखाई दिया। तब उसने उस नागरूप को अपना भाई माना। उस समय नागदेवता ने वचन दिया कि, जो भी स्त्री मेरी पूजा भाई के रूप में करेगी, मैं भाई समान उसकी रक्षा करूंगा। तब से महिलाएं नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है।
पूर्वजो एवं नागों का परस्पर संबंध
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हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार र्भुवलोक एवं पितृलोक में फंसे हुए पूर्वज अधिकांश रूप से काले नागों के रूप में अपने वंशजों को दर्शन कराते हैं ।
1👉 सात्त्विक पूर्वज पीले रंग के नागों के रूप में दर्शन एवं आशीर्वाद देते हैं । घर, संपत्ति एवं परिजनों के प्रति बहुत ही आसक्ति वाले पूर्वजों को पृथ्वी पर नागयोनी में जन्म मिलता है ।
2👉 मनुष्य जन्म में दूसरों को कष्ट पहुंचाकर वाममार्ग अर्थात गलत ढंग से संपत्ति अर्जित करने वाले पूर्वजों को उनके अगले जन्म में पाताल में काले नागों के रूप में जन्म मिलता है ।
3👉 देवता के कार्य में सहभागी तथा सज्जन प्रवृत्ति के लोग पितृलोक में निवास करने के पश्चात शिवलोक के पास स्थित दैवीय नागलोक में पीले नागों के रूप में वास करते हैं ।
हिन्दू धर्म मे नागदेवता की पूजा के लिए प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी के दिन नागो की विशेष पूजा की जाती है ।
नागपंचमी के दिन वातावरण में स्थिरता आती है । सात्त्विकता ग्रहण करने के लिए यह योग्य और अधिक उपयुक्त काल है। इस दिन शेषनाग और विष्णु की इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए।
‘आपकी कृपा से इस दिन शिवलोक से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगें मेरे द्वारा अधिकाधिक ग्रहण होने दीजिए। मेरी आध्यात्मिक प्रगति में आनेवाली सर्व बाधाएं नष्ट होने दीजिए, मेरे पंचप्राणों में देवताओं की शक्ति समाए तथा उसका उपयोग ईश्वरप्राप्ति और राष्ट्ररक्षा के लिए होने दीजिए । मेरे पंचप्राणों की शुद्धि होने दीजिए ।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व आज है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि एवं मुहूर्त इस प्रकार है।
नागपंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त
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अभिजित मुहूर्त👉
विजय मुहूर्त👉
गोधूलि मुहूर्त👉
पूजन विधि
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नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें नागों की पूजा शिव के अंश के रूप में और शिव के आभूषण के रूप में ही की जाती है। क्योंकि नागों का कोई अपना अस्तित्व नहीं है। अगर वो शिव के गले में नहीं होते तो उनका क्या होता। इसलिए पहले भगवान शिव का पूजन करेंगे। शिव का अभिषेक करें, उन्हें बेलपत्र और जल चढ़ाएं।
इसके बाद शिवजी के गले में विराजमान नागों की पूजा करे। नागों को हल्दी, रोली, चावल और फूल अर्पित करें। इसके बाद चने, खील बताशे और जरा सा कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करेंगे।
नागपंचमी
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महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं।
तक्षक नाग
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धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।
जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।
कर्कोटक नाग
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कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।
कालिया नाग
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श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।
इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं।
नागपंचमी पर नागों की पूजा कर आध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है। लेकिन पूजा के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी है।
अगर कुंडली में राहु-केतु की स्थिति ठीक ना हो तो इस दिन विशेष पूजा का लाभ पाया जा सकता है।
जिनकी कुंडली में विषकन्या या अश्वगंधा योग हो, ऐसे लोगों को भी इस दिन पूजा-उपासना करनी चाहिए. जिनको सांप के सपने आते हों या सर्प से डर लगता हो तो ऐसे लोगों को इस दिन नागों की पूजा विशेष रूप से करना चाहिए।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 28 जुलाई 2025*
*🎈दिन - सोमवार*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - दक्षिणायण*
*🎈ऋतु - वर्षा*
*🎈मास - श्रावण*
*🎈पक्ष - शुक्ल*
*🎈 तिथि - चतुर्थी रात्रि 11:23:49 तक तत्पश्चात पञ्चमी*
*🎈 नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी शाम 05:34:41 तक तत्पश्चात् उत्तराफाल्गुनी*
*🎈 योग - परिघ रात्रि 02:52:37 जुलाई 29 तक तत्पश्चात् शिव*
*🎈करण- वणिज 10:57:21 तत्पश्चात् बव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सायं 07:39 से सा09:20 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈सूर्योदय - 05:58:10 am*
*🎈सूर्यास्त - 07:024:42 pm* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- सिंह till 23:58:59*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या from 23:58:59*
*🎈सूर्य राशि - कर्क*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:33 से प्रातः 05:15 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:14 से दोपहर 01:08 तक*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 29 से 01:03 ए एम, जुलाई 29तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈व्रत पर्व विवरण - विनायक चतुर्थी, श्रावण सोमवार व्रत*
*🎈विशेष - - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
अमृत 05:58-07:39 शुभ*
काल 07:39 - 09:20अशुभ*
शुभ. 09:20 - 11:01शुभ*
रोग 11:01- 12:41 अशुभ*
उद्वेग 12:41- 14:22 अशुभ*
चर 14:22- 16:03 शुभ*
लाभ. 16:03 - 17:44शुभ*
अमृत 17:44 - 19:25 शुभ*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
चर 19:25 - 20:44* शुभ*
रोग. 20:44 - 22:03* अशुभ*
काल 22:03 - 23:22* अशुभ*
लाभ. 23:22- 24:42* शुभ*
उद्वेग. 24:42* - 26:01*अशुभ
शुभ. 26:01* -27:20*शुभ*
अमृत. 27:20* -28:39*शुभ*
चर. 28:39* -29:59*शुभ
*🔹♦️गरुड़-कथा👇🏼👇🏼
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विनतानन्दन गरुड़ जब अण्डा फोड़कर बाहर निकले, तब नवजात शिशु की अवस्था में ही उन्हें आहार ग्रहण करने की इच्छा हुई। वे भूख से व्याकुल होकर माता से बोले–'माँ! मुझे कुछ खाने को दो।'
पर्वत के समान शरीर वाले महाबली गरुड़ को देखकर परम सौभाग्यवती माता विनता के मनमें बड़ा हर्ष हुआ। वे अपने पुत्र से बोलीं–'बेटा! मुझमें तेरी भूख मिटाने की शक्ति नहीं है। तेरे पिता धर्मात्मा कश्यप साक्षात् ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं। वे सोन नदी के उत्तर तटपर तपस्या करते हैं। वहीं जा और अपने पिता से इच्छानुसार भोजन के विषय में परामर्श कर। तात ! उनके उपदेश से तेरी भूख शान्त हो जायगी।'
ऋषि कहते हैं–'माता की बात सुनकर मन के समान वेग वाले महाबली गरुड़ एक ही मुहूर्त में पिता के समीप जा पहुँचे। वहाँ प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी अपने पिता मुनिवर कश्यपजी को देखकर उन्हें मस्तक झुका प्रणाम किया और इस प्रकार कहा–'प्रभो! मैं आपका पुत्र हूँ और आहार की इच्छा से आपके पास आया हूँ। भूख बहुत सता रही है, कृपा करके मुझे कुछ भोजन दीजिये।'
कश्यपजी ने कहा–'वत्स ! उधर समुद्र के किनारे विशाल हाथी और कछुआ रहते हैं। वे दोनों बहुत बड़े जीव हैं। उनमें अपार बल है। वे एक दूसरे को मारने की घात में लगे हुए हैं। तू शीघ्र ही उनके पास जा, उनसे तेरी भूख मिट सकती है।'
पिता की बात सुनकर महान् वेगशाली और विशाल आकार वाले गरुड़ उड़कर वहाँ गये तथा उन दोनों को नखों से विदीर्ण करके चोंच और पंजों में लेकर विद्युत् के समान वेग से आकाश में उड़ चले।
उस समय मन्दराचल आदि पर्वत उन्हें धारण नहीं कर पाते थे। तब वे वायुवेग से दो लाख योजन आगे जाकर एक जामुन के वृक्ष की बहुत बड़ी शाखा पर बैठे।
उनके पंजा रखते ही वह शाखा सहसा टूट पड़ी। उसे गिरते देख महाबली पक्षिराज गरुड़ ने गौ और ब्राह्मणों के वध के भय से तुरन्त पकड़ लिया और फिर बड़े वेग से आकाश में उड़ने लगे।
उन्हें बहुत देर से आकाश में मँडराते देख भगवान् श्रीविष्णु मनुष्य का रूप धारण कर उनके पास जा इस प्रकार बोले–'पक्षिराज! तुम कौन हो और किसलिये यह विशाल शाखा तथा ये महान् हाथी एवं कछुआ लिये आकाश में घूम रहे हो ?'
उनके इस प्रकार पूछने पर पक्षिराज ने नररूपधारी श्रीनारायण से कहा–'महाबाहो ! मैं गरुड़ हूँ। अपने कर्म के अनुसार मुझे पक्षी होना पड़ा है। मैं कश्यप मुनि का पुत्र हूँ और माता विनता के गर्भ से मेरा जन्म हुआ है। देखिये, इन बड़े-बड़े जीवों को मैंने खाने के लिये पकड़ रखा है। वृक्ष और पर्वत–कोई भी मुझे धारण नहीं कर पाते।
अनेकों योजन उड़ने के बाद मैं एक विशाल जामुन का वृक्ष देखकर इन दोनों को खाने के लिये उसकी शाखा पर बैठा था; किन्तु मेरे बैठते ही वह भी सहसा टूट गयी, अतः सहस्रों ब्राह्मणों और गौओ के वध के डर से इसे भी लिये डोलता हूँ। अब मेरे मन में बड़ा विषाद हो रहा है कि क्या करूँ, कहाँ जाऊँ और कौन मेरा वेग सहन करेगा।'
श्रीविष्णु बोले–'अच्छा, मेरी बाँह पर बैठकर तुम इन दोनों हाथी और कछुए को खाओ।
गरुड़ ने कहा–'बड़े-बड़े पर्वत भी मुझे धारण करने में असमर्थ हो रहे हैं; फिर तुम मुझ जैसे महाबली पक्षी को कैसे धारण कर सकोगे ? भगवान् श्रीनारायण के सिवा दूसरा कौन है, जो मुझे धारण कर सके। तीनों लोकों में कौन ऐसा पुरुष है, जो मेरा भार सह लेगा।'
श्रीविष्णु बोले–'पक्षिश्रेष्ठ! बुद्धिमान् पुरुष को अपना कार्य सिद्ध करना चाहिये, अतः इस समय तुम अपना काम करो। कार्य हो जाने पर निश्चय ही मुझे जान लोगे।'
गरुड़ ने उन्हें महान् शक्ति सम्पन्न देख मन-ही-मन कुछ विचार किया, फिर 'एवमस्तु' कहकर वे उनकी विशाल भुजा पर बैठे। गरुड़ के वेग पूर्वक बैठने पर भी उनकी भुजा काँपी नहीं। वहाँ बैठकर गरुड़ ने उस शाखा को तो पर्वत के शिखर पर डाल दिया और हाथी तथा कछुए को भक्षण किया। तत्पश्चात् वे श्रीविष्णु से बोले–'तुम कौन हो ? इस समय तुम्हारा कौन-सा प्रिय कार्य करूँ ?'
भगवान् श्रीविष्णु ने कहा–'मुझे नारायण समझो, मैं तुम्हारा प्रिय करने के लिये यहाँ आया हूँ।'
यह कहकर भगवान् ने उन्हें विश्वास दिलाने के लिये अपना रूप दिखाया। मेघ के समान श्याम विग्रह पर पीताम्बर शोभा पा रहा था। चार भुजाओं के कारण उनकी झाँकी बड़ी मनोरम जान पड़ती थी। हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये सर्वदेवेश्वर श्रीहरि का दर्शन करके गरुड़ ने उन्हें प्रणाम किया और कहा–'पुरुषोत्तम ! बताइये, मैं आपका कौन-सा प्रिय कार्य करूँ ?'
श्रीविष्णु बोले–'सखे! तुम बड़े शूरवीर हो, अतः हर समय मेरा वाहन बने रहो।'
यह सुनकर पक्षियों में श्रेष्ठ गरुड़ ने भगवान् से कहा–'देवेश्वर! आपका दर्शन करके मैं धन्य हुआ, मेरा जन्म सफल हो गया। प्रभो! मैं पिता-माता से आज्ञा लेकर आपके पास आऊँगा।'
तब भगवान् ने प्रसन्न होकर कहा–'पक्षिराज! तुम अजर-अमर बने रहो, किसी भी प्राणी से तुम्हारा वध न हो। तुम्हारा कर्म और तेज मेरे समान हो। सर्वत्र तुम्हारी गति हो। निश्चय ही तुम्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त हो। तुम्हारे मन में जो-जो इच्छा हो, सब पूर्ण हो जाय। तुम्हें अपनी रुचि के अनुकूल यथेष्ट आहार बिना किसी कष्टके प्राप्त होता रहेगा। तुम शीघ्र ही अपनी माता को कष्टसे मुक्त करोगे। ऐसा कहकर भगवान् श्रीविष्णु तत्काल अन्तर्धान हो गये।'
गरुड़ ने भी अपने पिता के पास जाकर सारा वृत्तान्त कह सुनाया। गरुड़ का वृत्तान्त सुनकर उनके पिता महर्षि कश्यप मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुए और अपने पुत्र से इस प्रकार बोले।
कश्यप मुनि बोले–'खगश्रेष्ठ ! मैं धन्य हूँ, तुम्हारी कल्याणमयी माता भी धन्य है। माता की कोख तथा यह कुल, जिसमें तुम्हारे जैसा पुत्र उत्पन्न हुआ–सभी धन्य हैं। जिसके कुल में वैष्णव पुत्र उत्पन्न होता है; वह धन्य है, वह वैष्णव पुत्र पुरुषों में श्रेष्ठ हैं तथा अपने कुल का उद्धार करके श्रीविष्णु का सायुज्य प्राप्त करता है।
जो प्रतिदिन श्रीविष्णु की पूजा करता, श्रीविष्णु का ध्यान करता, उन्हीं के यश को गाता, सदा उन्हीं के मन्त्र को जपता, श्रीविष्णु के ही स्तोत्र का पाठ करता, उनका प्रसाद पाता और एकादशी के दिन उपवास करता है, वह सब पापों का क्षय हो जाने से निस्सन्देह मुक्त हो जाता है।
जिसके हृदय में सदा ही श्रीगोविन्द विराजते हैं, वह नरश्रेष्ठ विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। जल में, पवित्र स्थान में, उत्तम पथ पर, गौ में, ब्राह्मण में, स्वर्ग में, ब्रह्माजी के भवन में तथा पवित्र पुरुष के घर में सदा ही भगवान् श्रीविष्णु विराजमान रहते हैं।
इन सब स्थानों में जो भगवान् का जप और चिन्तन करता है, वह अपने पुण्य के द्वारा पुरुषों में श्रेष्ठ होता है और सब पापों का क्षय हो जानेसे भगवान् श्रीविष्णु का किंकर होता है। जो श्रीविष्णु का सारूप्य प्राप्त कर ले, वही मानव संसार में धन्य है। बड़े-बड़े देवता जिनकी पूजा करते हैं, जो इस जगत् के स्वामी, नित्य, अच्युत और अविनाशी हैं, वे भगवान् श्रीविष्णु जिसके ऊपर प्रसन्न हो जायें, वही पुरुषों में श्रेष्ठ है।
नाना प्रकार की तपस्या तथा भाँति-भाँति के धर्म और यज्ञों का अनुष्ठान करके भी देवता लोग भगवान् श्रीविष्णु को नहीं पाते; किन्तु तुमने उन्हें प्राप्त कर लिया। अतः तुम धन्य हो।
तुम्हारी माता सौत के द्वारा घोर संकट में डाली गयी है, उसे छुड़ाओ। माता के दुःख का प्रतीकार करके देवेश्वर भगवान् श्रीविष्णु के पास जाना।'
इस प्रकार श्रीविष्णु से महान् वरदान पा और पिता की आज्ञा लेकर गरुड़ अपनी माता के पास गये और हर्ष पूर्वक उन्हें प्रणाम करके सामने खड़े हो उन्होंने पूछा–'माँ! बताओ, मैं तुम्हारा कौन-सा प्रिय कार्य करूँ ? कार्य करके मैं भगवान् विष्णु के पास जाऊँगा।'
यह सुनकर सती विनता ने गरुड़ से कहा–'बेटा! मुझ पर महान् दुःख आ पड़ा है, तुम उसका निवारण करो। बहिन कद्रू मेरी सौत है। पूर्वकाल में उसने मुझे एक बात में अन्यायपूर्वक हराकर दासी बना लिया। अब मैं उसकी दासी हो चुकी हूँ। तुम्हारे सिवा कौन मुझे इस दुःख से छुटकारा दिलायेगा। कुलनन्दन ! जिस समय मैं उसे मुँहमाँगी वस्तु दे दूँगी, उसी समय दासीभाव से मेरी मुक्ति हो सकती है।'
गरुड़ ने कहा–'माँ ! शीघ्र ही उसके पास जाकर पूछो, वह क्या चाहती है ? मैं तुम्हारे कष्ट का निवारण करूँगा।'
तब दुःखिनी विनता ने कद्रू से कहा–'कल्याणी ! तुम अपनी अभीष्ट वस्तु बताओ, जिसे देकर मैं इस कष्ट से छुटकारा पा सकूँ।'
यह सुनकर उस दुष्टा ने कहा–'मुझे अमृत ला दो।' उसकी बात सुनकर विनता धीरे-धीरे लौटी और बेटे से दुःखी होकर बोली- 'तात ! वह तो अमृत माँग रही है, अब तुम क्या करोगे ?'
गरुड़ ने कहा–'माँ ! तुम उदास न हो, मैं अमृत ले आऊँगा।' यों कहकर मन के समान वेगवान् पक्षी गरुड़ सागर से जल ले आकाशमार्ग से चले। उनके पंखों की हवा से बहुत-सी धूल भी उनके साथ-साथ उड़ती गयी। वह धूलराशि उनका साथ न छोड़ सकी। गन्तव्य स्थान पर पहुँचकर गरुड़ ने अपनी चोंच में रखे हुए जल से वहाँ के अग्निमय प्राकार (परकोटे) को बुझा दिया तथा अमृत की रक्षा के लिये जो देवता नियुक्त थे, उनकी आँखों में पूर्वोक्त धूल भर गयी, जिससे वे गरुड़जी को देख नहीं पाते थे। बलवान् गरुड़ ने रक्षकों को मार गिराया और अमृत लेकर वे वहाँ से चल दिये।
पक्षी को अमृत लेकर आते देख ऐरावतपर चढ़े हुए इन्द्र ने कहा–'अहो ! पक्षी का रूप धारण करने वाले तुम कौन हो, जो बल पूर्वक अमृत को लिये जाते हो ? सम्पूर्ण देवताओं का अप्रिय करके यहाँ से जीवित कैसे जा सकते हो।'
गरुड़ ने कहा–'देवराज! मैं तुम्हारा अमृत लिये जाता हूँ, तुम अपना पराक्रम दिखाओ।'
यह सुनकर महाबाहु इन्द्र ने गरुड़ पर तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो मेरुगिरि के शिखर पर मेघ जल की धाराएँ बरसा रहा हो। गरुड़ ने अपने वज्र के समान तीखे नखों से ऐरावत हाथी को विदीर्ण कर डाला तथा मातलि सहित रथ और चक्कों को हानि पहुँचाकर अग्रगामी देवताओं को भी घायल कर दिया।
तब इन्द्र ने कुपित होकर उनके ऊपर वज्र का प्रहार किया। वज्र की चोट खाकर भी महापक्षी गरुड़ विचलित नहीं हुए। वे बड़े वेग से भूतल की ओर चले। तब इन्द्र ने सब देवताओं के आगे स्थित होकर कहा–'निष्पाप गरुड़ ! यदि तुम नागमाता को इस समय अमृत दे दोगे तो सारे साँप अमर हो जायँगे; अतः यदि तुम्हारी सम्मति हो तो मैं इस अमृत को वहाँ से हर लाऊँगा।'
गरुड़ बोले–'मेरी साध्वी माता विनता दासीभाव के कारण बहुत दुःखी है। जिस समय वह दासीपन से मुक्त हो जाय और सब लोग इस बात को जान लें, उस समय तुम अमृत को हर ले आना।
यों कहकर महाबली गरुड़ माता के पास जा इस प्रकार बोले–'माँ! मैं अमृत ले आया हूँ, इसे नागमाता को दे दो।' अमृत सहित पुत्र को आया देख विनता का हृदय हर्षसे खिल उठा। उसने कद्रू को बुलाकर अमृत दे दिया और स्वयं दासीभाव से मुक्त हो गयी।
इसी बीच में इन्द्र ने सहसा पहुँचकर अमृत का घड़ा चुरा लिया और वहाँ विष का पात्र रख दिया। उन्हें ऐसा करते कोई देख न सका। कद्रू का मन बहुत प्रसन्न था। उसने पुत्रों को वेग पूर्वक बुलाया और उनके मुख में अमृत जैसा दिखायी देने वाला विष दे दिया।
नागमाता ने पुत्रों से कहा–'तुम्हारे कुल में होने वाले सभी सर्पों के मुख में ये अमृत की बूँदें नित्य निरन्तर उत्पन्न होती रहें तथा तुम लोग इनसे सदा सन्तुष्ट रहो।' इसके बाद गरुड़ अपने पिता-माता से वार्तालाप करके देवताओं की पूजा कर अविनाशी भगवान् श्रीविष्णु के पास चले गये।
जो गरुड़ के इस उत्तम चरित्र का पाठ या श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर देवलोक में प्रतिष्ठित होता है।'
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 27 जुलाई 2025*
*🎈दिन - रविवार*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - दक्षिणायण*
*🎈ऋतु - वर्षा*
*🎈मास - श्रावण*
*🎈पक्ष - शुक्ल*
*🎈 तिथि - तृतीया रात्रि 10:41:22 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*🎈 नक्षत्र - मघा शाम 04:22:03 तक तत्पश्चात् पूर्वाफाल्गुनी*
*🎈 योग - वरीयान् रात्रि 03:12:05 जुलाई 28 तक तत्पश्चात् परिघ*
*🎈करण- तैतुल 10:36:01 तत्पश्चात् वणिज*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सायं 05:44 से सा07:25 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈सूर्योदय - 05:57:38 am*
*🎈सूर्यास्त - 07:025:16pm* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- सिंह *
*🎈सूर्य राशि - कर्क*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:32 से प्रातः 05:14 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:14 से दोपहर 01:08 तक*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 28 से 01:03 ए एम, जुलाई 28 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈व्रत पर्व विवरण - हरियाली तीज*
*🎈विशेष - विशेष - तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
उद्वेग. 05:58 - 07:39. अशुभ*
चर. 07:39 - 09:20 शुभ*
लाभ. 09:20. - 11:01शुभ*
अमृत. 11:01- 12:41शुभ*
काल. 12:41 - 14:22 अशुभ*
शुभ. 14:22 - 16:03 शुभ*
रोग. 16:03 - 17:44. अशुभ*
उद्वेग 17:44 - 19:25 अशुभ*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ. 19:25. 20:44 शुभ*
अमृत. 20:44-22:03शुभ*
चर. 22:03- 23:23 शुभ*
रोग. 23:23 - 24:42 अशुभ*
काल. 24:42 - 26:01 अशुभ*
लाभ. 26:01 - 27:20* शुभ*
उद्वेग 27:20* -28:39* अशुभ*
शुभ. 28:39 - 29:58 शुभ*
*🔹♦️जन्मकुंडली में नौकरी और शनि👇🏼👇🏼
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👉शनि नौकरी का कारक ग्रह है।
🔹कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार नौकरी से लेकर उच्च स्तर का व्यवसाय करा देना भी शनि के अधिकार क्षेत्र में है।विशेष रूप से शनि नौकरी का ही कारक है।
🔹शुभ शनि का सम्बन्ध 2, 6, 10 भाव से होने पर शनि जातक को रोजगार में धीरे धीरे उन्नति देता है क्योंकि यह बहुत धीमी रफ़्तार से चलने वाला ग्रह है इसके फल शुभ-अशुभ फल भी बहुत दीर्घकाल तक के लिए मिलते है।
🔹शनि जब जातक से नौकरी करवाता है या शनि के कारण जातक को नौकरी मिलती है तब वह निम्न स्तर से मिलती है शनि दशम भाव में उच्च, मूलत्रिकोण, स्वराशि में होता है तब उच्च स्तर की नौकरी ही दिलाता है इसके आलावा अन्य राशि में होने पर या शनि की दृष्टि नौकरी भाव पर होने से निन्म स्तर की नौकरी शनि जातक को कराता है और धीरे धीरे अपनी धीमी गति के साथ शुभ होने पर धीरे धीरे उन्नति कराता है।
👉सूर्य, चन्द्र मंगल, गुरु, बुध, शुक्र इनके द्वारा नौकरी मिलती है तो यह उच्च स्तर की नौकरी कराते है जिसका एक तरह से जातक को ज्यादा अभ्यास नही होता।
🔹शनि जातक को तपा कर निम्न स्तर से उच्च स्तर तक धीरे धीरे ले जाता है और हर तरह का अनुभव कराकर शुभ होने पर उच्च स्तर तक की नौकरी पर ले जाता है।शनि के फल को यहाँ गहराई से समझे, शनि पहले जातक को हर तरह से धीरे धीरे निम्न स्तर से नौकरी कराकर निम्न स्तर से उच्च स्तर तक का ज्ञान कराता है जिससे जातक के पास अनुभव ज्यादा होता है क्योंकि शनि जातक को निम्न नौकरी के माध्यम से हर स्थिति से गुजरवा चूका होता जिससे जातक को हर स्थिति का अनुभव हो जाता है और धीरे धीरे जब शनि जातक को नौकरी में उच्च पद तक ले जाता है तब उसको अपार सफलता देता है।
🔹शनि जातक को नौकरी में तपाकर कोयले से हीरा बनाकर उसको सफल बनाता है जो अनुभव हर स्तर की स्थिति का नौकरी में शनि देता है वह अन्य और कोई ग्रह नही देता क्योंकि❓👇🏼👇🏼
👉सूर्य गुरु शुक्र आदि ग्रह जब नौकरी कराते है तो सीधे जातक को उच्च स्तर की नौकरी दिला देते है जिस काम को करने का जातक को ठीक से अभ्यास भी नही होता।शनि का फल देर से और लंबे समय तक के लिए मिलता है जिस कारण से शनि शुभ होने पर स्थिर नौकरी देकर धीरे धीरे उसमे तरक्की देता है।
🔹शनि प्रधान नौकरी वाले काफी मेहनती होते है।इस कारण जब भी आपको शनि के कारण नौकरी के शुरुआती समय में संघर्ष करना पड़ता है तो ऐसा शनि शुभ बली होने पर धीरे धीरे जातक को ऊचाइयों पर ले जाता है और जब शनि के कारण जातक ऊचाइयों पर पहुचता है तब ऐसे इंसान की ताकत बहुत बढ़ चुकी होती है।जिससे नौकरी में उसका अपना एक अलग ही वर्चस्व स्थापित हो चूका होता है।
🔹यदि शनि किसी जातक/जातिका का अशुभ होता है तब यह नौकरी में सिर्फ संघर्ष कराता है जातक/जातिका को मेहनत के अनुसार फल नही मिलता।
🔹इस कारण जो जातक नौकरी पेशे में है उनको शनि के प्रभाव को समझकर शनि की शुभता में वृद्धि करने के उपाय करने से शनि सम्बंधित शुभ फल और प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।
👉उपाय में शनि मन्त्र का जप करना, शमी के पौधे की देखभाल करना पोधे को जल देना, दिया जलाना।मजदुर वर्ग के लोगो की जरूरत के हिसाब से सहायता करना, शनि मंत्र का जप ,निकल शनि स्त्रोत्र का पाठ, शुभ काम करने से शनि के शुभत्व में वृद्धि की जा सकती है।।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 26 जुलाई 2025*
*🎈दिन - शनिवार*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - दक्षिणायण*
*🎈ऋतु - वर्षा*
*🎈मास - श्रावण*
*🎈पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - द्वितीया रात्रि 10:41:16 तक तत्पश्चात् तृतीया*
*🎈नक्षत्र - अश्लेषा दोपहर 03:51:04 तक तत्पश्चात् मघा*
*🎈योग - व्यतीपात प्रातः 04:04:41 जुलाई 27 तक, तत्पश्चात् वरीयान्*
करण बालव 10:56:50
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सुबह 09:19 से सुबह 11:00 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈सूर्योदय - 05:57:07*
*🎈सूर्यास्त - 07:025:59 (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 चन्द्र राशि- कर्क till 15:51:04*
*🎈चन्द्र राशि- सिंह from15:51:04*
*🎈सूर्य राशि - कर्क*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:32 से प्रातः 05:14 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:14 से दोपहर 01:09 तक*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 27 से 01:03 ए एम, जुलाई 27 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈व्रत पर्व विवरण - व्यतीपात योग (प्रातः 04:04:41 से प्रातः 04:06 जुलाई 27 तक)*
*🎈विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹लक्ष्मी मां की कृपा पाने के लिए आप घर में कुछ विशेष पूजाएं और मंत्र उच्चारण कर सकते हैं। यहाँ कुछ मुख्य तरीके दिए गए हैं:🔹*
लक्ष्मी पूजा की विधि (Puja Vidhi)
लक्ष्मी मां को प्रसन्न करने के लिए आप नियमित रूप से या विशेष अवसरों पर पूजा कर सकते हैं। शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है, इसलिए इस दिन पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
पूजा की तैयारी:
* सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा स्थल को साफ करें।
* घर में सफाई बनाए रखें, खासकर पूजा स्थल पर।
* पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
* उस पर थोड़े से अनाज फैलाएं और हल्दी से कमल का फूल बनाएं।
* एक कलश में पानी भरकर, उसमें चावल, एक सिक्का, गेंदे का फूल और सुपारी डालें।
* कलश के गले में कुछ आम के पत्ते बांधें और उसे चौकी पर कमल के फूल के ऊपर रखें।
* कलश के पीछे भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की मूर्ति या फोटो रखें। गणेश जी को लक्ष्मी जी के दाईं ओर रखें।
* देवताओं को शुद्ध जल, पंचामृत, चंदन जल और गुलाब जल से स्नान कराएं। फिर साफ कपड़े से पोंछकर हल्दी, सिंदूर और चंदन का लेप लगाएं। फूलों की माला से सजाएं।
पूजा प्रक्रिया:
* गणेश जी की पूजा: किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा करना आवश्यक है। गणेश जी को फूल और धूप-दीप अर्पित करें। "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का जाप करें।
* लक्ष्मी जी की पूजा:
* मां लक्ष्मी की मूर्ति या फोटो के सामने धन से संबंधित वस्तुएं जैसे सिक्के और गहने रखें। उन पर चावल और कुमकुम छिड़कें। आप अपनी व्यापारिक बहीखाते भी रख सकते हैं।
* पान के पत्ते, सुपारी, मिठाई और सूखे मेवे अर्पित करें।
* पांच बत्तियों वाला तेल का दीपक और धूपबत्ती जलाएं।
* मां लक्ष्मी के मंत्रों का श्रद्धापूर्वक जाप करें।
* पूजा के बाद देवताओं और कलश के सामने कपूर जलाकर आरती करें।
* मिठाई या फल का भोग लगाएं, जिसे पूजा के बाद परिवार में बांट सकते हैं।
* पूजा के बाद: मुरझाए हुए फूलों को पौधों के आसपास डाल दें। पूजा में उपयोग की गई चुनरी को अपनी तिजोरी में रखें।
लक्ष्मी मां के प्रभावशाली मंत्र (Powerful Mantras)
मां लक्ष्मी की कृपा पाने और धन, समृद्धि तथा सौभाग्य आकर्षित करने के लिए इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं:
* लक्ष्मी बीज मंत्र:
* "ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥"
* यह मंत्र धन और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
* महालक्ष्मी मंत्र:
* "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः॥"
* यह मंत्र सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए बहुत लाभकारी है। इसका 108 बार जाप करने से लाभ मिलता है।
* लक्ष्मी गायत्री मंत्र:
* "ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥"
* यह मंत्र धन, बुद्धि और शुभता प्रदान करता है।
* धन प्राप्ति मंत्र:
* "ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:॥"
* यह मंत्र धन संबंधी समस्याओं को दूर करने और कर्ज से मुक्ति पाने के लिए बहुत प्रभावी है।
* वैभव लक्ष्मी मंत्र:
* "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः॥"
* यह मंत्र वैभव और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें:
* तुलसी पूजा: प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। जल अर्पित करते समय 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र' का जाप करना शुभ होता है।
* स्वच्छता: मां लक्ष्मी को स्वच्छता बहुत पसंद है। घर को हमेशा साफ-सुथरा रखें, खासकर ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को।
* दीपक: रोजाना घर में घी का दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा आती है और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
* गाय को रोटी: लक्ष्मी पूजा के बाद गाय को रोटी खिलाना भी शुभ माना जाता है।
इन उपायों को श्रद्धापूर्वक करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 25 जुलाई 2025*
*🎈दिन - शुक्रवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि - प्रतिपदा रात्रि 11:22:16 जुलाई 24 तक तत्पश्चात् द्वितीया*
*🎈 नक्षत्र - पुष्य 15:59:36 am तक तत्पश्चात् आश्लेषा*
*🎈योग - वज्र 07:26:47 तक तत्पश्चात् व्यतिपत*
*🎈करण किन्स्तुघ्न 11:56:55 तत्पश्चात् बालव*
*🎈राहुकाल - दोपहर 11:00 से शाम 12:41 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 चन्द्र राशि - कर्क *
*🎈 सूर्य राशि - कर्क*
*🎈 सूर्योदय - 05:56:36*
*🎈 सूर्यास्त - 19:26:20* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:32 से प्रातः 05:13 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:14 से दोपहर 01:09 तक*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 26 से 01:03 ए एम, जुलाई 26 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 व्रत पर्व विवरण - दर्श अमावस्या, हरियाली अमावस्या, गुरुपुष्यामृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन, अमृतसिद्धि योग (शाम 04:43 से प्रातः 05:55 जुलाई 25 तक)*
*🎈 विशेष - अमावस्या को स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹श्री दत्तात्रेय उपासना ,,भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है,और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफ़ल और जल्दी से फ़ल देने वाली है,महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे,वे सर्वव्यापी है,और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है,अगर मानसिक,या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो भक्त किसी भी कठिनाई से बहुत जल्दी दूर हो जाते है।
उपासना विधि
श्री दत्तात्रेय जी की प्रतिमा,चित्र या यंत्र को लाकर लाल कपडे पर स्थापित करने के बाद चन्दन लगाकर,फ़ूल चढाकर,धूप की धूनी देकर,नैवेद्य चढाकर दीपक से आरती उतारकर पूजा की जाती है,पूजा के समय में उनके लिये पहले स्तोत्र को ध्यान से पढा जाता है,फ़िर मन्त्र का जाप किया आता है,उनकी उपासना तुरत प्रभावी हो जाती है,और शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है,साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा,दिव्य प्रकाश के द्वारा,या साक्षात उनके दर्शन से होता है,साधना के समय अचानक स्फ़ूर्ति आना भी उनकी उपस्थिति का आभास देती है,भगवान दत्तात्रेय बडे दयालो और आशुतोष है,वे कहीं भी कभी भी किसी भी भक्त को उनको पुकारने पर सहायता के लिये अपनी शक्ति को भेजते है.
श्री दत्तात्रेय की उपासना में विनियोग विधि
पूजा करने के आरम्भ में भगवान श्री दत्तात्रेय के लिय आवाहन किया जाता है,एक साफ़ बर्तन में पानी लेकर पास में रखना चाहिये,बायें हाथ में एक फ़ूल और चावल के दाने लेकर इस प्रकार से विनियोग करना चाहिये- "ऊँ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषि: अनुष्टुप छन्द:,श्री दत्त परमात्मा देवता:, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:",इतना कहकर दाहिने हाथ से फ़ूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा,चित्र या यंत्र पर सिर को झुकाकर चढाने चाहिये,फ़ूल और चावल को चढाने के बाद हाथों को पानी से साफ़ कर लेना चाहिये,और दोनों हाथों को जोडकर प्रणाम मुद्रा में उनके लिये जप स्तुति को करना चाहिये,जप स्तुति इस प्रकार से है। जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम। सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥"
श्री दत्तात्रेयजी का जाप करने वाला मंत्र
पूजा करने में फ़ूल और नैवेद्य चढाने के बाद आरती करनी चाहिये और आरती करने के समय यह स्तोत्र पढना चाहिये:-
जगदुत्पति कर्त्रै च स्थिति संहार हेतवे। भव पाश विमुक्ताय दत्तात्रेय नमो॓ऽस्तुते॥
जराजन्म विनाशाय देह शुद्धि कराय च। दिगम्बर दयामूर्ति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
कर्पूरकान्ति देहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च। वेदशास्त्रं परिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ह्रस्व दीर्घ कृशस्थूलं नामगोत्रा विवर्जित। पंचभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
यज्ञभोक्त्रे च यज्ञाय यशरूपाय तथा च वै। यज्ञ प्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णु: अन्ते देव: सदाशिव:। मूर्तिमय स्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भोगलयाय भोगाय भोग योग्याय धारिणे। जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूप धराय च। सदोदित प्रब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
जम्बूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुर निवासिने। जयमान सता देवं दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भिक्षाटनं गृहे ग्रामं पात्रं हेममयं करे। नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वक्त्रो चाकाश भूतले। प्रज्ञानधन बोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
अवधूत सदानन्द परब्रह्म स्वरूपिणे। विदेह देह रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
सत्यरूप सदाचार सत्यधर्म परायण। सत्याश्रम परोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शूल हस्ताय गदापाणे वनमाला सुकंधर। यज्ञसूत्रधर ब्रह्मान दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्पर पराय च। दत्तमुक्ति परस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दत्तविद्याठ्य लक्ष्मीशं दत्तस्वात्म स्वरूपिणे। गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शत्रु नाश करं स्तोत्रं ज्ञान विज्ञान दायकम।सर्वपाप शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
इस स्तोत्र को पढने के बाद एक सौ आठबार " ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां " का जाप मानसिक रूप से करना चाहिये.इसके बाद दस माला का जाप नित्य इस मंत्र से करना चाहिये " ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा"।
दत्त स्वरूप चिंता
ब्रह्मा विष्णु और महेश की आभा में दत्तात्रेय जी का ध्यान सदा कल्याण कारी माना जाता है। गुरु दत्त के रूप में ब्रह्मा दत्त के रूप में विष्णु और शिवदत्त के रूप में भगवान शिव की आराधना करनी अति उत्तम रहती है। काशी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था,उसने स्वप्न में देखा कि भगवान शिव के तीन सिर है,और तीनों सिरों से वे बात कर रहे है,एक सिर कुछ कह रहा है दूसरा सिर उसे सुन रहा है और तीसरा सिर उस कही हुयी बात को चारों तरफ़ प्रसारित कर रहा है,जब उसने मनीषियों से इस बात का जिक्र किया तो उन्होने भगवान दत्तात्रेय जी के बारे में उसे बताया। दत्तात्रेयजी का कहीं भी प्रकट होना भी माना जाता है,उनके उपासक गुरु के रूप में उन्हे मानते है,स्वामी समर्थ आदि कितने ही गुरु के अनुगामी साधक इस धरती पर पैदा हुये और अपनी अपनी भक्ति से भगवान दत्तात्रेय जी के प्रति अपनी अपनी श्रद्धा प्रकट करने के बाद अपने अपने धाम को चले गये है।
दत्तात्रेय की गाथा
एक बार वैदिक कर्मों का, धर्म का तथा वर्णव्यवस्था का लोप हो गया था। उस समय दत्तात्रेय ने इन सबका पुनरूद्धार किया था। हैहयराज अर्जुन ने अपनी सेवाओं से उन्हें प्रसन्न करके चार वर प्राप्त किये थे:
1. बलवान, सत्यवादी, मनस्वी, अदोषदर्शी तथा सहस्त्र भुजाओं वाला बनने का
2. जरायुज तथा अंडज जीवों के साथ-साथ समस्त चराचर जगत का शासन करने के सामर्थ्य का।
3. देवता, ऋषियों, ब्राह्मणों आदि का यजन करने तथा शत्रुओं का संहार कर पाने का तथा
4. इहलोक, स्वर्गलोक और परलोक विख्यात अनुपम पुरुष के हाथों मारे जाने का।
,, कार्तवीर्य अर्जुन (कृतवीर्य का ज्येष्ठ पुत्र) के द्वारा दत्तात्रेय ने लाखों वर्षों तक लोक कल्याण करवाया। कार्तवीर्य अर्जुन, पुण्यात्मा, प्रजा का रक्षक तथा पालक था। जब वह समुद्र में चलता था तब उसके कपड़े भीगते नहीं थे। उत्तरोत्तर वीरता के प्रमाद से उसका पतन हुआ तथा उसका संहार परशुराम-रूपी अवतार ने किया।
,,कृतवीर्य हैहयराज की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र अर्जुन का राज्याभिषेक होने का अवसर आया तो अर्जुन ने राज्यभार ग्रहण करने के प्रति उदासीनता व्यक्त की। उसने कहा कि प्रजा का हर व्यक्ति अपनी आय का बारहवां भाग इसलिए राजा को देता है कि राजा उसकी सुरक्षा करे। किंतु अनेक बार उसे अपनी सुरक्षा के लिए और उपायों का प्रयोग भी करना पड़ता हैं, अत: राजा का नरक में जाना अवश्यंभावी हो जाता है। ऐसे राज्य को ग्रहण करने से क्या लाभ? उनकी बात सुनकर गर्ग मुनि ने कहा-'तुम्हें दत्तात्रेय का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि उनके रूप में विष्णु ने अवतार लिया है।
, एक बार देवता गण दैत्यों से हारकर बृहस्पति की शरण में गये। बृहस्पति ने उन्हें गर्ग के पास भेजा। वे लक्ष्मी (अपनी पत्नी) सहित आश्रम में विराजमान थे। उन्होंने दानवों को वहां जाने के लिए कहा। देवताओं ने दानवों को युद्ध के लिए ललकारा, फिर दत्तात्रेय के आश्रम में शरण ली। जब दैत्य आश्रम में पहुंचे तो लक्ष्मी का सौंदर्य देखकर आसक्त हो गये। युद्ध की बात भुलाकर वे लोग लक्ष्मी को पालकी में बैठाकर अपने मस्तक से उनका वहन करते हुए चल दिये। पर नारी का स्पर्श करने के कारण उनका तेज नष्ट हो गया। दत्तात्रेय की प्रेरणा से देवताओं ने युद्ध करके उन्हें हरा दिया। दत्तात्रेय की पत्नी, लक्ष्मी पुन: उनके पास पहुंच गयी।' अर्जुन ने उनके प्रभाव विषयक कथा सुनी तो दत्तात्रेय के आश्रम में गये। अपनी सेवा से प्रसन्न कर उन्होंने अनेक वर प्राप्त किये। मुख्य रूप से उन्होंने प्रजा का न्यायपूर्वक पालन तथा युद्धक्षेत्र में एक सहस्त्र हाथ मांगे। साथ ही यह वर भी प्राप्त किया कि कुमार्ग पर चलते ही उन्हें सदैव कोई उपदेशक मिलेगा। तदनंतर अर्जुन का राज्याभिषेक हुआ तथा उसने चिरकाल तक न्यायपूर्वक राज्य-कार्य संपन्न किया।!ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा
〰〰🌼〰〰🌼〰〰
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 24 जुलाई 2025*
*🎈दिन - गुरुवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि - अमावस्या रात्रि 12:40:01 जुलाई 25 तक तत्पश्चात् प्रतिपदा*
*🎈 नक्षत्र - पुनर्वसु शाम 04:42:40 तक तत्पश्चात् पुष्य*
*🎈योग - हर्षण सुबह 09:49:27 तक तत्पश्चात् वज्र*
*🎈करण चतुष्पद 01:30:44*
*🎈राहुकाल - दोपहर 02:23 से शाम 04:04 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 चन्द्र राशि -मिथुन till 10:58:03*
*🎈 चन्द्र राशि - कर्क from 10:58:03*
*🎈 सूर्य राशि - कर्क*
*🎈 सूर्योदय - 05:56:04*
*🎈 सूर्यास्त - 07:26:51* (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈 ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:31 से प्रातः 05:12 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:14 से दोपहर 01:09 तक*
*🎈 निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:21 ए एम, जुलाई 25 से 01:03 ए एम, जुलाई 25 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈 व्रत पर्व विवरण - दर्श अमावस्या, हरियाली अमावस्या, गुरुपुष्यामृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन, अमृतसिद्धि योग (शाम 04:43 से प्रातः 05:55 जुलाई 25 तक)*
*🎈 विशेष - अमावस्या को स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹अमावस्या के दिन ध्यान रखने योग्य बातें🔹*
*🔸1. जो व्यक्ति अमावस्या को दूसरे का अन्न खाता है उसका महीने भर का पुण्य उस अन्न के स्वामी/दाता को मिल जाता है।*
*(स्कन्द पुराण, प्रभाव खं. 207.11.13)*
*🔸2. अमावस्या के दिन पेड़-पौधों से फूल-पत्ते, तिनके आदि नहीं तोड़ने चाहिए, इससे " ब्रह्म हत्या " का पाप लगता है ! -विष्णु पुराण*
*🔸3. अमावस्या के दिन तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*🔸4. जमीन है अपनी... खेती का काम करते हैं तो अमावस्या के दिन खेती का काम न करें, न मजदूर से करवाएं ।*
*🔸5. जप करें, भगवत गीता का ७ वां अध्याय अमावस्या को पढ़ें और उस पाठ का पुण्य अपने पितृ को अर्पण करें । सूर्य को अर्घ्य दें और प्रार्थना करें, आज जो मैंने पाठ किया ...अमावस्या के दिन, मेरे घर में जो गुजर गए हैं, उनको उसका पुण्य मिल जाए । " तो उनका आर्शीवाद हमें मिलेगा और घर में सुख-सम्पति बढ़ेगी ।*
*🔸6. कर्जा हो गया है तो, अमावस्या के दूसरे दिन से पूनम तक रोज रात को चन्द्रमा को अर्घ्य दें, समृद्धि बढ़ेगी ।*
*🔹गरीबी भगाने का शास्त्रीय उपाय🔹*
*गरीबी है, बरकत नहीं है, बेरोजगारी ने गला घोंटा है तो फिक्र न करो । हर अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग करें ।*
*🔸सामग्री : १. काले तिल २. जौ ३. चावल ४. गाय का घी ५. चंदन पाउडर ६. गूगल ७. गुड़ ८. देशी कपूर एवं गौ चंदन या कण्डा ।*
*🔸विधि: गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवन कुण्ड बना लें, फिर उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये मंत्रों से ५ आहुति दें ।*
*आहुति मंत्र*
*१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः*
*२. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः*
*३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः*
*४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः*
*५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः*
*इस प्रयोग से थोड़े ही दिनों में स्वास्थ्य, समृद्धि और मन की प्रसन्नता दिखायी देगी ।*
〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 23 जुलाई 2025*
*🎈दिन - बुधवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- चतुर्दशी 26:28:07* पश्चात अमावस्या*
*🎈 नक्षत्र - आद्रा 17:53:21 पश्चात पुनर्वसु*
*🎈योग - व्याघात 12:32:51 तक, तत्पश्चात् हर्शण*
*🎈करण - विष्टि भद्र 15:31:13 * पश्चात चतुष्पद*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 12:41pm
से 02:23 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:55:33*
*🎈सूर्यास्त - 19:27:20*
*🎈चन्द्र राशि - मिथुन *
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:31 ए एम से 05:13 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 24 से 01:03 ए एम, जुलाई 24 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
लाभ 05:56 - 07:37 शुभ
अमृत. 07:37 - 09:19 शुभ
काल. 09:19 - 10:59 अशुभ
शुभ 10:59 - 12:41 शुभ
रोग. 12:41- 14:23 अशुभ
उद्वेग 14:23 - 16:04 अशुभ
चर. 16:04 - 17:46 शुभ
लाभ. 17:46 - 19:27 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग. 19:27 - 20:46 अशुभ
शुभ. 20:46-22:05. शुभ
अमृत. 22:05. - 23:23 शुभ
चर. 23:23- 24:42* शुभ
रोग. 24:42 - 26:00* अशुभ
काल. 26:00* - 27:19* अशुभ
लाभ. 27:19* - 28:37*शुभ
उद्वेग. 28:37* - 29:56* अशुभ
भाग ५३४
*श्रीरामचरितमानस*
*प्रथम सोपान*
*बाल-काण्ड*
*दोहा सं० २०८*
*(चौपाई सं० ८ एवं ९)*
*विश्वामित्र-यज्ञ-रक्षा एवं अहल्योद्धार प्रकरण*
***************************
*(भाग – १०)*
*तब बसिष्ठ बहुबिधि समुझावा ।*
*नृप संदेह नास कहँ पावा ॥८॥*
*अति आदर दोउ तनय बोलाए ।*
*हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए ॥९॥*
अर्थ – तब वसिष्ठजी ने राजा को बहुत प्रकार से समझाया, जिससे राजा का सन्देह नाश को प्राप्त हुआ। राजा ने बड़े ही आदर से दोनों पुत्रों को बुलाया और हृदय से लगाकर बहुत प्रकार से उन्हें शिक्षा दी।
👉 _*'तब बसिष्ट बहु बिधि समुझावा'*_ – वाल्मीकीय और अध्यात्मादि अनेक रामायणों में वशिष्ठजी द्वारा अनेक प्रकार से समझाना लिखा हैं। यथा —
(क) तुम्हारे कुल की उदारता प्रसिद्ध है कि *'प्रान जाहु बरु बचनु न जाई।'* (२/२८) *'मंगल लहहिं न जिन्ह के नाहीं'* प्रतिज्ञा के उल्लंघन से कुल के अमल-यश में कलंक का दाग लग जायेगा। राजन्! धर्म पर स्थित रहिये।
(ख) 'जो कोई किसी को कुछ देने को कहकर फिर नहीं देता उसका तेज, धर्म, ज्ञान, तप, सत्य, शोभा और श्री सबके सबका नाश हो जाता है और वह अन्त में यमलोक को प्राप्त होता है। तुमने प्रथम कहा था कि *'कहहु सो करत न लावौं बारा'* और अब बदल गये, यह अनुचित हैं।'
(ग) विश्वामित्र बड़े क्रोधी हैं। देखो, हमारे सौ पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया, वे तुम्हारे कुल को नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे।
(घ) स्नेह और ममता के वश पुत्रों की सुकुमारता से भयभीत न हो। विश्वामित्र साधारण ऋषि नहीं हैं, तपस्या के प्रताप से सम्पूर्ण शस्त्रास्त्र विद्या का उनमें निवास है, वे यह सब विद्या राजकुमारों को दे देंगे और अपने तेज से इनकी रक्षा करेंगे। उनके प्रताप से ये सब निशिचरों को मारेंगे और उनके द्वारा त्रैलोक्य में इनका यश फैल जायेगा। राजन्! तुम अभी-अभी उनके विवाह को चिन्ता कर रहे थे। श्रीशिवजी ने उसी चिन्ता के निवारणार्थ विश्वामित्रजी को यहाँ उन्हें लेने के लिये भेजा है। वे इनका विवाह करा देंगे और इनका ही नहीं वरंच भरत शत्रुघ्न के भी विवाह इन्हीं के कारण होंगे।
(ङ) विश्वामित्रजी त्रिकालज्ञ हैं, वे भविष्य जानते हैं। इनके द्वारा कुछ अपूर्व कार्य होना है।
(च) ये दोनों राजकुमार महिभार उतारने के लिये अवतीर्ण हुए हैं। तुम माधुर्य में भूले हुए हो, इसीलिये कातर हो रहे हो। ये मनुष्य नहीं हैं वरंच सनातन परमात्मा हैं। पूर्व जन्म में आपने वर माँगा था कि आप हमारे पुत्र हों, ये रामचन्द्र वही परब्रह्म परमात्मा हैं। विश्वामित्र यज्ञ - रक्षा के बहाने आदिशक्ति से इनका सम्बन्ध करावेंगे। (अध्यात्म रामायण १/४/१२-२०)
👉 क्यों समझाना पड़ा? इसका एक कारण तो गीतावली एवं अ० रा० में यह मिलता है कि मुनि ने राजा को प्रेम से विह्वल देखकर गुरु ने स्वयं उन्हें एकान्त में ले जाकर समझाया। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि गुरु ने यह देखकर कि विश्वामित्रजी को बड़ा क्रोध आ गया है, जैसा कि वाल्मीकीय रामायण से स्पष्ट है, क्योंकि वहाँ उन्होंने क्रोधावेश में आकर राजा से कहा है कि 'प्रतिज्ञा करके नहीं देते हो तो लो हम जाते हैं, तुम मिथ्यावादी होकर जियो।' और इनके कोप से पृथ्वी हिलने लगी है, राजा को समझाया।
👉 *समझाना भी एकान्त में* – वसिष्ठजी का राजा को एकान्त में समझाना आगे की चौपाई से सिद्ध होता है कि *'अति आदर दोउ तनय बोलाए'*। चारों पुत्र मुनि के समीप थे। जब राजा ने मुनि के चरणों पर डालकर पुत्रों से प्रणाम कराया था तब से वे वहीं बने रहे, वहाँ से उनका जाना वर्णन नहीं किया गया।
यदि गुरु ने राजा को विश्वामित्र के समीप ही समझाया होता तो पुत्रों का बुलाया जाना यहाँ नहीं कहा जाता। राजा को एकान्त में ले जाकर समझाने का कारण एक तो यह भी है कि उनको श्रीरामजी के ऐश्वर्य का ज्ञान कराना है, जो श्रीरामजी के सामने नहीं करा सकते थे, क्योंकि श्रीरामजी की इच्छा नहीं है कि उनका ऐश्वर्य खुले जैसा कि उन्होंने अपनी माता से भी कहा था, यथा – _*'हरि जननी बहु बिधि समुझाई । यह जनि कतहुंँ कहसि सुनु माई ॥'*_ (२०२/८) अध्यात्म रामायण (१/४/१९) के अनुसार राजा से वशिष्ठजी ने भी कहा है कि यह अत्यन्त गोपनीय बात है किसी से कहियेगा नहीं।
👉 _*'अति आदर दोउ तनय बोलाए'*_ – 'अति आदर' का भाव यह है कि आदर तो सदा सब दिन ही करते रहे पर आज वियोग का दिन है, आज अपने समीप से उनको बिदा करना चाहते हैं, अतएव आज 'अति आदर' किया। एक कारण यह भी है कि वसिष्ठजी से उनके ऐश्वर्य का बोध अभी-अभी हुआ है, इसलिये भी 'अति आदर' कहा। भाव यह भी है कि आदर तो सभी पुत्रों का करते हैं, पर ये ऐसे हैं कि विश्वामित्र ऐसे मुनि इनके लिये याचक बनकर आये, अतएव 'अति आदर 'कहा।
👉 _*'हृदय लाइ बहु भाँति सिखाए'*_ – वियोग समझ स्नेहवश हुए, इसीलिये हृदय से लगाया। पं० रा० च० मिश्रजी लिखते हैं कि अब यह प्रश्न होता है कि 'ऐश्वर्य जान गये थे तो फिर 'हृदय लाइ बहु भाँति सिखाये'- शिक्षा कैसी? उत्तर यह है कि गुरु के समझाने से राजा का बुलाते समय अवश्य ईश्वरीयभाव था पर उनका मुख देखते ही वे पुनः माधुर्य में मग्न हो गये, गुरुदत्त ज्ञान चलता हुआ। वियोग का समय था, अतः वात्सल्यरस से हृदय में लगा लिया और शिक्षा देने लगे। हृदय में लगाने का एक भाव यह भी है कि शरीर से तो वियोग हो रहा है पर मेरे हृदय में बने रहना।
💥जब रुद्राभिषेक का आवर्तन प्रवर्ग होने लगे तब ओरछ को किसी शीशे के बर्तन में एकत्र कर लेना चाहिये। इसे ही #धन #ओरछ कहते हैं। और समस्त रुद्राभिषेक का यही एकमात्र सबसे बहुमूल्य और उपयोगी प्रभाव वाला तथा परिणाम देने वाला पदार्थ होता है।
जब शनि अपने नक्षत्र उत्तरभाद्रपद में गुरु के नवमांश उत्तरा फाल्गुनी के प्रथम चरण में बैठे ऐसे मंगल द्वारा दृष्ट हो जो गुरु की नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद में बैठे राहु को देखे जिस राहु को राहु की नक्षत्र आर्द्रा में बैठा गुरु देखता हो तो रुद्राभिषेक #महापंचक होता है जो-
🎈"कदली कदंब पयसां बारख श्वात विजम्भृत:।।
लिंगाभिषेको शस्त: महापंचक विभूषितम।।:
और इसके बाद जब छठी बार प्रश्रुम अभिषेक होने वाला होता है तो उसके पूर्व उस छठे अभिषेक जो #कल्परस (विजम्भृत:) होता है उसे किसी शीशे के बर्तन में सुरक्षित रूप से एकत्र कर लेते हैं। इसे ही #धन #ओरछा कहते हैं।
इसे माथे पर तिलक लगाने से
"नर नाग सुर गंधर्व ग्रह किन्नर पिशाचहिं निशिचरा।।
त्रिदेव देवी उदधि शैलहिं सबहिं मोहै वसुधरा।।
अर्थात इस तिलक लगाये व्यक्ति से सब भयभीत होकर इसका कभी अनिष्ट नहीं करते।।
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 22 जुलाई 2025*
*🎈दिन - मंगलवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- द्वादशी 07:04:56*
am* पश्चात चतुर्दशी*
*🎈 नक्षत्र - मृगशीर्षा 19:23:47 पश्चात आद्रा*
*🎈योग - ध्रुव 15:30:55 तक, तत्पश्चात् व्याघात*
*🎈करण - तैतुल 07:04:56 * पश्चात विष्टि भद्र*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 04: 05pm
से 05:46 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:55:02*
*🎈सूर्यास्त - 19:27:48*
*🎈चन्द्र राशि - वृषभ till 08:13:53*
*🎈चन्द्र राशि - मिथुन from 08:13:53 *
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:31 ए एम से 05:12 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:09 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 23 से 01:03 ए एम, जुलाई 23 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
रोग 05:55:44 -07:37:00
उद्वेग 07:37:00 - 09:18:00
चर 09:18:00 -10:59:00
लाभ 10:59:00 -12:41:27
अमृत12:41:27 -14:23:00
काल 14:23:00-16:05:00
शुभ 16:05:18 -17:05:46
रोग 17:05:46 -19:28:00
*🔵चोघडिया, रात🔵*
काल 19:28 -20:46 अशुभ
लाभ 20:46-22:05. शुभ
उद्वेग 22:05 - 23:23अशुभ
शुभ. 23:23- 24:42*शुभ
अमृत 24:42* - 26:00*शुभ
चर. 26:00* - 27:19* शुभ
रोग. 27:19* - 28:37* अशभ
काल 28:37* - 29:56*अशुभ
शरीर के विभिन्न अंगों पर छिपकली गिरने के शुभ/ अशुभ परिणाम
🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
👉 माथे पर छिपकली गिरती है तो बड़ी संपत्ति प्राप्त होती है।
👉 बालों पर अगर छिपकली गिरे तो जीवन पर संकट होता है, मृत्यु भी हो सकती है।
👉 दाहिने कान पर छिपकली के गिरने से स्वर्णाभूषणों की प्राप्ति होती है।
👉 बाएं कान पर छिपकली गिरने से आयु बढ़ती है।
👉 दाहिनी आंख पर छिपकली गिरने पर किसी अच्छे दोस्त से मिलेंगे जबकि बाईं आंख पर छिपकली गिरने से जल्दी ही कोई बड़ा नुकसान होने का संकेत मिलता है।
👉 भौंहों पर छिपकली गिरने से आर्थिक नुकसान होता है।
👉 नाक पर छिपकली का गिरना भाग्योदय का संकेत है।
👉 मुख पर छिपकली का गिरना शीघ्र ही मधुर भोजन की प्राप्ति कराता है।
👉 बाएं गाल पर छिपकली गिरने पर पुराने मित्र से मुलाकात होती है जबकि दाहिने गाल पर छिपकली गिरने से उम्र बढ़ती है।
👉 गर्दन पर छिपकली गिरने से सौभाग्य तथा यश मिलता है।
👉 दाढ़ी पर छिपकली गिरने से किसी बड़े और भयावह संकट का सामना करना पड़ सकता है।
👉 मूंछ पर छिपकली गिरने से सम्मान की प्राप्ति होती है।
👉 कंठ पर छिपकली गिरने पर शत्रुओं का नाश होता है।
👉 दाहिने कंधे पर छिपकली गिरने से वाद-विवाद, युद्ध में विजय मिलती है जबकि बाएं कंधे पर छिपकली गिरने पर नए शत्रु बनते हैं।
👉 दाहिने हाथ पर छिपकली गिरने पर धन लाभ तथा बाएं हाथ पर गिरने पर धनहानि होती है।
👉 दाहिनी हथेली पर छिपकली गिरने से नए वस्त्रों की प्राप्ति होती है जबकि बाईं हथेली पर गिरने पर धनहानि होती है।
👉 दाएं स्तन (अथवा छाती के दाहिनी ओर) छिपकली गिरने पर नई खुशियां मिलती है जबकि बाई छाती (स्तन) पर गिरने से घर में क्लेश होता है।
👉 पेट पर छिपकली गिरना नए आभूषण प्राप्त होने का संकेत है।
👉 कमर के बीच में छिपकली गिरने पर आर्थिक लाभ होता है। पीठ के दाईं तरफ गिरने पर सुख जबकि बाईं तरफ गिरने पर व्यक्ति रोगी बनता है।
👉 पीठ के बीच में छिपकली गिरने पर घर में बड़ा क्लेश होता है।
👉 नाभि पर छिपकली गिरने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
👉 दाईं जाघ पर गिरने से सुख तथा बाईं जांघ पर गिरने पर महान दुख प्राप्त होता है।
👉 दाएं घुटने पर छिपकली गिरना जल्दी ही किसी शुभ यात्रा का संकेत है जबकि बाएं घुटने पर गिरना सौभाग्य की हानि है।
👉 दाएं पैर व दाईं एड़ी पर छिपकली गिरना यानी यात्रा से लाभ मिलता है। बाएं पैर या बाईं एड़ी पर गिरने से बीमारी या घर में कलह होगी तथा दुख होगा।
👉 दाएं पैर के तलवे पर छिपकली गिरने का मतलब ऐश्वर्य की प्राप्ति है। जबकि बाएं पैर के तलवे पर गिरने पर व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है।
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🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 21 जुलाई 2025*
*🎈दिन - सोमवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- एकादशी व्रत 09:38:18*
am* पश्चात द्वादशी त्रयोदशी 28:39:02*(क्षय )
*🎈 नक्षत्र - रोहिणी 21:05:57 पश्चात मृगशीर्षा*
*🎈योग - वृद्वि 18:37:29 तक, तत्पश्चात् ध्रुव*
*🎈करण - बालव 09:38:18 * पश्चात विष्टि तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 07: 36pm
से 09:18 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:54:32*
*🎈सूर्यास्त - 19:28:15*
*🎈चन्द्र राशि - वृषभ *
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:31 ए एम से 05:12 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:09 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 23 से 01:03 ए एम, जुलाई 23 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
अमृत 05:56 - 07:37*
काल. 07:37 - 09:18*
शुभ 09:18 - 10:59*
रोग 10:59 - 12:40*
उद्वेग। 12:40 - 14:21*
चर 14:21 - 16:02*
लाभ। 16:02 - 17:43*
अमृत. 17:43 - 19:24
*🔵चोघडिया, रात🔵*
चर 19:24 - 20:43
रोग. 20:43 - 22:02
काल 22:02 - 23:21*
लाभ 23:21 - 00:40*
उद्वेग 00:40 - 01:59*
शुभ 01:59-3:18*
अमृत 03:18 - 04:37*
चार. 04:37 - 05:56,*
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
(((( 🌻गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप 🌻- हिंदी सारांश ))))
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और इसी उपदेश को सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि ये समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है , उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। गीता के 18 अध्याय में क्या संदेश छिपा हुआ है
शेष भाग से आगे....
बारहवां अध्याय
बारहवें अध्याय में श्री कृष्ण ने बताया कि जो भगवान के ध्यान में लग जाते हैं वे भगवन्निष्ठ होते हैं अर्थात भक्ति से भक्ति पैदा होती है। नौ प्रकार की साधना भक्ति हैं तथा इनके आगे प्रेमलक्षणा भक्ति साध्य भक्ति है जो कर्मयोग और ज्ञानयोग सबकी साध्य है। भगवान कृष्ण ने कहा जो मनुष्य अपने मन को स्थिर करके निरंतर मेरे सगुण रूप की पूजा में लगा रहता है, वह मेरे द्वारा योगियों में अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं। वहीं जो मनुष्य परमात्मा के सर्वव्यापी, अकल्पनीय, निराकार, अविनाशी, अचल स्थित स्वरूप की उपासना करता है और अपनी सभी इन्द्रियों को वश में करके, सभी परिस्थितियों में समान भाव से रहते हुए सभी प्राणीयों के हित में लगा रहता है वह भी मुझे प्राप्त करता है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा की तू अपने मन को मुझमें ही स्थिर कर और मुझमें ही अपनी बुद्धि को लगा, इस प्रकार तू निश्चित रूप से मुझमें ही सदैव निवास करेगा। यदि तू ऐसा नही कर सकता है, तो भक्ति-योग के अभ्यास द्वारा मुझे प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न कर। अगर तू ये भी नही कर सकता है, तो केवल मेरे लिये कर्म करने का प्रयत्न कर, इस प्रकार तू मेरे लिये कर्मों को करता हुआ मेरी प्राप्ति रूपी परम-सिद्धि को प्राप्त करेगा।
तेरहवां अध्याय
तेरहवें अध्याय में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जानने वाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है। गुणों की साम्यावस्था का नाम प्रधान या प्रकृति है। गुणों के वैषम्य से ही वैकृत सृष्टि का जन्म होता है। अकेला सत्व शांत स्वभाव से निर्मल प्रकाश की तरह स्थिर रहता है और अकेला तम भी जड़वत निश्चेष्ट रहता है। किंतु दोनों के बीच में छाया हुआ रजोगुण उन्हें चेष्टा के धरातल पर खींच लाता है। गति तत्व का नाम ही रजस है। भगवान् कृष्ण ने कहा कि मेरे अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु को प्राप्त न करने का भाव, बिना विचलित हुए मेरी भक्ति में स्थिर रहने का भाव, शुद्ध एकान्त स्थान में रहने का भाव, निरन्तर आत्म-स्वरूप में स्थित रहने का भाव और तत्व-स्वरूप परमात्मा से साक्षात्कार करने का भाव यह सब तो मेरे द्वारा ज्ञान कहा गया है और इनके अतिरिक्त जो भी है वह अज्ञान है।
चौदहवां अध्याय
चौदहवें अध्याय में समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है-सत्व, रज, तम नामक तीन गुण-त्रिको की अनेक व्याख्याएं हैं। जो मूल या केंद्र है, जिसे ऊर्ध्व कहते हैं, वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है, दूसरी ओर वही एक एक चैतन्य केंद्र में या प्राणि शरीर में आया हुआ है। जैसा गीता में स्पष्ट कहा है-अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: । वैश्वानर या प्राणमयी चेतना से बढ़कर और दूसरा रहस्य नहीं है। नर या पुरुष तीन हैं-क्षर, अक्षर और अव्यय। पंचभूतों का नाम क्षर है, प्राण का नाम अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है। इन्हीं तीन नरों की एकत्र स्थिति से मानवी चेतना का जन्म होता है उसे ही ऋषियों ने वैश्वानर अग्नि कहा है।
पंद्रहवां अध्याय
पंद्रहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने विश्व के अश्वत्थ रूप का वर्णन किया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तार वाला है। वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा। एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत। नर या पुरुष तीन हैं-क्षर, अक्षर और अव्यय। पंचभूतों का नाम क्षर है, प्राण का नाम अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है। इन्हीं तीन नरों की एकत्र स्थिति से मानवी चेतना का जन्म होता है उसे ही ऋषियों ने वैश्वानर अग्नि कहा है।
सोलहवां अध्याय
सोलहवें अध्याय में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना देवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा। एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत। भगवान कृष्ण ने कहा की अनेक प्रकार की चिन्ताओं से भ्रमित होकर विषय-भोगों में आसक्त आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य नरक में जाते हैं। आसुरी स्वभाव वाले व्यक्ति स्वयं को ही श्रेष्ठ मानते हैं और वे बहुत ही घमंडी होते हैं। ऐसे मनुष्य धन और झूठी मान-प्रतिष्ठा के मद में लीन होकर केवल नाम-मात्र के लिये बिना किसी शास्त्र-विधि के घमण्ड के साथ यज्ञ करते हैं। आसुरी स्वभाव वाले ईष्यालु, क्रूरकर्मी और मनुष्यों में अधम होते हैं, ऐसे अधम मनुष्यों को मैं संसार रूपी सागर में निरन्तर आसुरी योनियों में ही गिराता रहता हूं ।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 20 जुलाई 2025*
*🎈दिन - रविवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- दशमी 12:12:22 pm* पश्चात एकादशी*
*🎈 नक्षत्र - कृत्तिका 22:52:19 पश्चात रोहिणी*
*🎈योग - गण्ड 21:46:52 तक, तत्पश्चात् वृद्धि*
*🎈करण - बालव 09:38:18 * पश्चात विष्टि बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 05: 47pm
से 07:29 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:54:01*
*🎈सूर्यास्त - 19:28:40*
*🎈चन्द्र राशि - मेष till 06:10:53*
*🎈चन्द्र राशि - वृषभ from 06:10:53*
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:30 ए एम से 05:11 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:09 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 21 से 01:02 ए एम, जुलाई 21तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
उद्बेग 05:54 AM 07:36 AM
चर 07:36 AM 09:18 AM
लाभ 09:18 AM 10:59 AM
अमृत (वार वेला) 10:59 AM 12:41 PM
काल (काल वेला) 12:41 PM 02:23 PM
शुभ02:23 PM 04:05 PM
रोग 04:05 PM 05:47 PM
उद्बेग 05:47 PM 07:29 PM
*🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ 07:29 PM 08:47 PM
अमृत 08:47 PM 10:05 PM
चर 10:05 PM 23:23 PM
रोग 23:23 PM 00:42 AM
काल 00:42 AM 01:59 AM
लाभ (काल रात्रि) 01:59 AM 03:18 AM
उद्बेग 03:18 AM 03:36 AM
शुभ 03:36 AM 05:55 AM
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
(((( 🌻गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप 🌻- हिंदी सारांश ))))
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और इसी उपदेश को सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि ये समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है , उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। गीता के 18 अध्याय में क्या संदेश छिपा हुआ है
शेष भाग से आगे....
नवां अध्याय
नवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वेद का समस्त कर्मकांड यज्ञ, अमृत, मृत्यु, संत-असंत और जितने भी देवी-देवता हैं सबका पर्यवसान ब्रह्म में है। इस क्षेत्र में ब्रह्मतत्व का निरूपण ही प्रधान है, उसी से व्यक्त जगत का बारंबार निर्माण होता है। वेद का समस्त कर्मकांड यज्ञ, अमृत, और मृत्यु, संत और असंत, और जितने भी देवी देवता है, सबका पर्यवसान ब्रह्म में है। लोक में जो अनेक प्रकार की देवपूजा प्रचलित है, वह भी अपने अपने स्थान में ठीक है, समन्वय की यह दृष्टि भागवत आचार्यों को मान्य थी, वस्तुत: यह उनकी बड़ी शक्ति थी।
दसवां अध्याय
दसवें अध्याय का सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान की विभूतियाँ हैं, मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। इसका सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान, की विभूतियाँ हैं, मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। बुद्धि से इन देवताओं की व्याख्या चाहे न हो सके किंतु लोक में तो वह हैं ही। कोई पीपल को पूज रहा है। कोई पहाड़ को कोई नदी या समुद्र को, कोई उनमें रहनेवाले मछली, कछुओं को। यों कितने देवता हैं, इसका कोई अंत नहीं। विश्व के इतिहास में देवताओं की यह भरमार सर्वत्र पाई जाती है। भागवतों ने इनकी सत्ता को स्वीकारते हुए सबको विष्णु का रूप मानकर समन्वय की एक नई दृष्टि प्रदान की। इसी का नाम विभूतियोग है। जो सत्व जीव बलयुक्त अथवा चमत्कारयुक्त है, वह सब भगवान का रूप है। इतना मान लेने से चित्त निर्विरोध स्थिति में पहुँच जाता है।
11वां अध्याय
11वें अध्याय में अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। विराट रूप का अर्थ है मानवीय धरातल और परिधि के ऊपर जो अनंत विश्व का प्राणवंत रचनाविधान है, उसका साक्षात दर्शन। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है। जब अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा तो उसके मस्तक का विस्फोटन होने लगा। 'दिशो न जाने न लभे च शर्म' ये ही घबराहट के वाक्य उनके मुख से निकले और उसने प्रार्थना की कि मानव के लिए जो स्वाभाविक स्थिति ईश्वर ने रखी है, वही पर्याप्त है।
शेष भाग आगे.....
🌻वेदों के पवित्र मंत्र और उसके अर्थ और प्रयोग 🌻
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि माता लक्ष्मी उससे प्रसन्न रहें और उसके घर में धन और सुख-समृद्धि की वर्षा करें। प्राचीनकाल से ही मनुष्य में धन पाने की ललक रही है इसलिए हमारे धर्म शास्त्रों में धन प्राप्ति के बहुत सारे साधन बताएं हैं लेकिन धन पाने का जो अत्य़धिक पुरातण मंत्र है वह ऋग्वेद में दिया गया है।
''ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरिरेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।´
- ऋग्वेद (4/32/20-21)
अर्थात: हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसार भर से निराश होकर जो याचक आप से प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं ,उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान, मुझे अर्थ संकट से मुक्त कर दो।
इस मंत्र का हर रोज सुबह श्री लक्ष्मीनारायण के सामने घी का दीपक जलाकर जाप करने से संपत्ति से भरी तिजोरी आपके द्वार आएगी।
कल्याण हो।
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞*🗓
*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 19 जुलाई 2025*
*🎈दिन - शनिवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- नवमी 14:41:28 pm* पश्चात दशमी*
*🎈 नक्षत्र - भरणी 24:36:22 पश्चात कृत्तिका*
*🎈योग - शूल 24:54:04 तक, तत्पश्चात् गण्ड*
*🎈करण - गर 14:41:28 * पश्चात विष्टि भद्र*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 09:13 pm
से 10:53 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:53:00*
*🎈सूर्यास्त - 19:12:10*
*🎈चन्द्र राशि - मेष *
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:29 ए एम से 05:11 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:09 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 20 से 01:02 ए एम, जुलाई 20 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
काल05:53 AM - 07:35 AM*
शुभ 07:35 AM - 09:17 AM*
रोग 09:17 AM -10:59 AM*
उदवेग 10:59 AM-12:41 AM*
चर 12:41 AM - 14:23 PM*
लाभ14:23 PM -16:05 PM*
अमृत 16:05 PM -17:47 PM*
काल 17:47 PM - 19:29 PM*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ 19:29 - 20:47*
उद्वेग 20:47 - 22:05*
शुभ 22:05 - 23:23*
अमृत 23:23 - 00:42*
चर 00:42 - 01:59,am*
रोग01:59 - 03:18,am*
काल 03:18 - 04:36,am*
लाभ 04:36 - 05:54,am*
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
(((( गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप - हिंदी सारांश )))))
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और इसी उपदेश को सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि ये समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है , उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। गीता के 18 अध्याय में क्या संदेश छिपा हुआ है
शेष भाग से आगे....
छठा अध्याय
भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा कि जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम ही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहा जाता है। जब मनुष्य सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके बिना फल की इच्छा के कोई कार्य करता है तो उस समय वह मनुष्य योग मे स्थित कहलाता है। जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका मन ही उसका सबसे अच्छा मित्र बन जाता है, लेकिन जो मनुष्य मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह मन ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। जिसने अपने मन को वश में कर लिया उसको परमात्मा की प्राप्ति होती है और जिस मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है उसके लिए सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी और मान-अपमान सब एक समान हो जाते हैं। ऐसा मनुष्य स्थिर चित्त और इन्द्रियों को वश में करके ज्ञान द्वारा परमात्मा को प्राप्त करके हमेशा सन्तुष्ट रहता है।
सातवां अध्याय
सातवें अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा कि सृष्टि के नानात्व का ज्ञान विज्ञान है और नानात्व से एकत्व की ओर प्रगति ज्ञान है। ये दोनों दृष्टियाँ मानव के लिए उचित हैं। इस अध्याय में भगवान के अनेक रूपों का उल्लेख किया गया है जिनका और विस्तार विभूतियोग नामक दसवें अध्याय में आता है। यहीं विशेष भगवती दृष्टि का भी उल्लेख है जिसका सूत्र-वासुदेव: सर्वमिति, सब वसु या शरीरों में एक ही देवतत्व है, उसी की संज्ञा विष्णु है। किंतु लोक में अपनी अपनी रु चि के अनुसार अनेक नामों और रूपों में उसी एक देवतत्व की उपासना की जाती है। वे सब ठीक हैं। किंतु अच्छा यही है कि बुद्धिमान मनुष्य उस ब्रह्मतत्व को पहचाने जो अध्यात्म विद्या का सर्वोच्च शिखर है।
आठवां अध्याय
आठवें अध्याय में श्री कृष्ण ने बताया कि जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ और गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है। मनुष्य, अर्थात् जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। जीवसंयुक्त भौतिक देह की संज्ञा क्षर है और केवल शक्तितत्व की संज्ञा आधिदैवक है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं।
शेष भाग आगे.....
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 18 जुलाई 2025*
*🎈दिन- शुक्रवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- अष्टमी 17:01:12 pm* पश्चात नवमी*
*🎈 नक्षत्र - अश्विनी 26:12:52 पश्चात भरणी*
*🎈योग - सुकर्मा 06:46:56 तक, तत्पश्चात् शूल*
*🎈करण - बालव 06:06:32 * पश्चात गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 10:59 pm
से 12:41 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:53:00*
*🎈सूर्यास्त - 19:29:27*
*🎈चन्द्र राशि - मेष *
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:29 ए एम से 05:10 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:09 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 19 से 01:02 ए एम, जुलाई 19 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
शुभ 05:53 AM - 07:35 AM*
रोग 07:35 AM - 09:17 AM*
उद्वेग 09:17 AM -10:59 AM*
चर 10:59 AM - 12:41 AM*
लाभ 12:41 AM - 14:23 PM*
अमृत 14:23 PM -16:05 PM*
काल 16:05 PM -17:47 PM*
शुभ 17:47 PM - 17:29 PM*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ 17:29 - 19:29*
उदवेग. 19:28 - 20:47*
शुभ. 20:47 - 22:05*
अमृत. 22:05 - 23:23*
चर. 23:23 - 00:41*
रोग. 00:41 - 01:59am*
काल. 01:59 - 03:17*
लाभ. 03:17 - 04:36*
उदवेग. 04:36 - 05:54*
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
(((( गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप - हिंदी सारांश )))))
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और इसी उपदेश को सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि ये समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है , उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। गीता के 18 अध्याय में क्या संदेश छिपा हुआ है
शेष भाग से आगे....
तीसरा अध्याय
तीसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। कृष्ण ने अपना दृष्टांत देकर कहा कि मैं नारायण का रूप हूं, मेरे लिए कुछ कर्म शेष नहीं है। फिर भी मैं तंद्रारहित होकर कर्म करता हूं और अन्य लोग मेरे मार्ग पर चलते हैं। अंतर इतना ही है कि जो मूर्ख हैं वे लिप्त होकर कर्म करते हैं पर ज्ञानी असंग भाव से कर्म करता हैं। गीता में यहीं एक साभिप्राय शब्द बुद्धिभेद है। अर्थात् जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे हैं उन्हें उस मार्ग से उखाड़ना उचित नहीं, क्योंकि वे ज्ञानवादी बन नहीं सकते और यदि उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों ओर से भटक जाएँगे। प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है पर मन ही मन उसमे डूबा रहता है।
चौथा अध्याय
चौथे अध्याय में बताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यह गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, अर्थात् भगवान की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है। यहीं पर एक वाक्य विशेष ध्यान देने योग्य है- क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा। 'कर्म से सिद्धि'-इससे बड़ा प्रभावशाली सूत्र गीतादर्शन में नहीं है। किंतु गीतातत्व इस सूत्र में इतना सुधार और करता है कि वह कर्म असंग भाव से अर्थात् फलाशक्ति से बचकर करना चाहिए।
पाँचवा अध्याय
पाँचवे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि कर्म के साथ जो मन का संबंध है, उसके संस्कार पर या उसे विशुद्ध करने पर विशेष ध्यान दिलाया गया है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है और जल में खिले कमल के समान कर्म रूपी जल से लिप्त नहीं होता।
शेष भाग आगे.....
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 17 जुलाई 2025*
*🎈दिन- गुरुवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- सप्तमी 19:08:28 pm* पश्चात अष्टमी*
*🎈 नक्षत्र - रेवती 27:38:02 पश्चात अश्विनी*
*🎈योग - अतिगंड 09:27:37 तक, तत्पश्चात् सुकर्मा*
*🎈करण - विष्टिभद्र 08:06:46 * पश्चात बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 02:23 pm
से 04:05 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:52:30*
*🎈सूर्यास्त - 19:29:48*
*🎈चन्द्र राशि - मीन till 27:38:02*
*🎈चन्द्र राशि - मेष from 27:38:02*
*🎈सूर्य राशि - कर्क *
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:29 ए एम से 05:10 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 18 से 01:02 ए एम, जुलाई 18 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
लाभ 05:53 - 07:35*
अमृत 07:35 - 09:17*
काल 09:17 - 10:58*
शुभ 10:58 - 12:40*
रोग 12:40 - 14:21*
उदवेग 14:21 - 16:03*
चर 16:03 - 17:44*
लाभ 17:44 - 19:26*
*🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ 17:44 - 19:26*
उदवेग. 19:26 - 20:44*
शुभ. 20:44 - 22:03*
अमृत. 22:03 - 23:21*
चर. 23:21 - 00:40*
रोग. 00:40 - 01:58*
काल. 01:58 - 03:17*
लाभ. 03:17 - 04:35*
उदवेग. 04:35 - 05:54*
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
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(((( गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप - हिंदी सारांश )))))
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और इसी उपदेश को सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि ये समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है , उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। गीता के 18 अध्याय में क्या संदेश छिपा हुआ है
पहला अध्याय
अर्जुन ने युद्ध भूमि में भगवान श्री कृष्ण से कहा कि मुझे तो केवल अशुभ लक्षण ही दिखाई दे रहे हैं, युद्ध में स्वजनों को मारने में मुझे कोई कल्याण दिखाई नही देता है। मैं न तो विजय चाहता हूं, न ही राज्य और सुखों की इच्छा करता हूं, हमें ऐसे राज्य, सुख अथवा इस जीवन से भी क्या लाभ है। जिनके साथ हमें राज्य आदि सुखों को भोगने की इच्छा है, जब वह ही अपने जीवन के सभी सुखों को त्याग करके इस युद्ध भूमि में खड़े हैं। मैं इन सभी को मारना नहीं चाहता हूं, भले ही यह सभी मुझे ही मार डालें लेकिन अपने ही कुटुम्बियों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं। हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से अपने प्रियजनों को मारने के लिए आतुर हो गए हैं। इस प्रकार शोक से संतप्त होकर अर्जुन युद्ध-भूमि में धनुष को त्यागकर रथ पर बैठ गए तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने कर्तव्य को भूल बैठे अर्जुन को उनके कर्तव्य और कर्म के बारे में बताया। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के सच के परिचित कराया। कृष्ण ने अर्जुन की स्थिति को भांप लिया भगवान कृष्ण समझ गए की अर्जुन का शरीर ठीक है लेकिन युद्ध आरंभ होने से पहले ही उसका मनोबल टूट चुका है। बिना मन के यह शरीर खड़ा नहीं रह सकता। अत: भगवान कृष्ण ने एक गुरु का कर्तव्य निभाते हुए तर्क, बुद्धि, ज्ञान, कर्म की चर्चा, विश्व के स्वभाव, उसमें जीवन की स्थिति और उस सर्वोपरि परम सत्तावान ब्रह्म के साक्षात दर्शन से अर्जुन के मन का उद्धार किया।
दूसरा अध्याय
दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि जीना और मरना, जन्म लेना और बढ़ना, विषयों का आना और जाना। सुख और दुख का अनुभव, ये तो संसार में होते ही हैं। काल की चक्रगति इन सब स्थितियों को लाती है और ले जाती है। जीवन के इस स्वभाव को जान लेने पर फिर शोक नहीं होता। काम, क्रोध, भय, राग, द्वेष से मन का सौम्यभाव बिगड़ जाता है और इंद्रियां वश में नहीं रहती हैं ।इंद्रियजय ही सबसे बड़ी आत्मजय है। बाहर से कोई विषयों को छोड़ भी दे तो भी भीतर का मन नहीं मानता। विषयों का स्वाद जब मन से जाता है, तभी मन प्रफुल्लित, शांत और सुखी होता है। समुद्र में नदियां आकर मिलती हैं पर वह अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता। ऐसे ही संसार में रहते हुए, उसके व्यवहारों को स्वीकारते हुए, अनेक कामनाओं का प्रवेश मन में होता रहता है। किंतु उनसे जिसका मन अपनी मर्यादा नहीं खोता उसे ही शांति मिलती हैं। इसे प्राचीन अध्यात्म परिभाषा में गीता में ब्राह्मीस्थिति कहा है।
शेष भाग आगे.....
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 16 जुलाई 2025*
*🎈दिन- बुधवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- षष्ठी 21:01:18 pm* पश्चात सप्तमी*
*🎈 नक्षत्र - उत्तरभाद्रपदा 28:49:23 पश्चात रेवती*
*🎈योग - शोभन 11:55:57 तक, तत्पश्चात् अतिगंड*
*🎈करण - गर 09:51:53 am* पश्चात विष्टि भद्र*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 12:41 pm
से 02:23 pm तक*
*🎈सूर्योदय- 05:52:00*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:08*
*🎈चन्द्र राशि - मीन*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन till 17:30:05*
*🎈सूर्य राशि - कर्क from 05:30:05*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:28 ए एम से 05:09 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 17 से 01:02 ए एम, जुलाई 17 तक
*दिन का चौघड़िया*
* *रात का चौघड़िया *
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(((( श्रावण मास, महादेव के भक्तों का माह )))))
शेष कल भाग से आगे ......
.
2.क्या सोमवार को ही व्रत रखना चाहिए?
श्रावण माह को कालांतर में 'श्रावण सोमवार' कहने लगे, इससे यह समझा जाने लगा कि श्रावण माह में सिर्फ सोमवार को ही व्रत रखना चाहिए जबकि इस माह से व्रत रखने के दिन शुरू होते हैं, जो 4 माह तक चलते हैं, जिसे चतुर्मास कहते हैं। आमजन सोमवार को ही व्रत रखने सकते हैं। शिवपुराण के अनुसार जिस कामना से कोई इस मास के सोमवारों का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य एवं अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। जिन्हें 16 सोमवार व्रत करने हैं, वे भी सावन के पहले सोमवार से व्रत करने की शुरुआत कर सकते हैं। इस मास में भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक है।
3.क्या पूरे महीने व्रत रखना चाहिए?
हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना गया है। पूरे श्रावण माह में निराहारी या फलाहारी रहने की अनुमति दी गई है। इस माह में शास्त्र अनुसार ही व्रतों का पालन करना चाहिए। मन से या मनमानों व्रतों से दूर रहना चाहिए। इस संपूर्ण माह में नियम से व्रत रख कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
4.श्रावण माह के पवित्र दिन कौन-कौन से है?
इस माह में वैसे तो सभी पवित्र दिन होते हैं लेकिन सोमवार, गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मौना पंचमी, श्रावण माह का पहला शनिवार, कामिका एकादशी, कल्कि अवतार शुक्ल 6, ऋषि पंचमी, 12वीं को हिंडोला व्रत, हरियाली अमावस्या, विनायक चतुर्थी, नागपंचमी, पुत्रदा एकादशी, त्रयोदशी, वरा लक्ष्मी व्रत, गोवत्स और बाहुला व्रत, पिथोरी, पोला, नराली पूर्णिमा, श्रावणी पूर्णिमा, पवित्रारोपन, शिव चतुर्दशी और रक्षा बंधन आदि पवित्र दिन हैं।
5.यदि संपूर्ण माह व्रत रखें तो क्या करना चाहिए?
पूर्ण श्रावण कर रहे हैं तो इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि का त्याग कर दिया जाता है। इस दौरान दाढ़ी नहीं बनाना चाहिए, बाल और नाखुन भी नहीं काटना चाहिए।
अग्निपुराण में कहा गया है कि व्रत करने वालों को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए, सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए। इसमें होम एवं पूजा में अंतर माना गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में व्यवस्था है कि जो व्रत-उपवास करता है, उसे इष्टदेव के मंत्रों का मौन जप करना चाहिए, उनका ध्यान करना चाहिए उनकी कथाएं सुननी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।
6.पूर्ण व्रत के अलावा क्या यह श्रावणी उपाकर्म कर्म?
कुछ लोग इस माह में श्रावणी उपाकर्म भी करते हैं। वैसे यह कार्य कुंभ स्नान के दौरान भी होता है। यह कर्म किसी आश्रम, जंगल या नदी के किनारे संपूर्ण किया जाता है। मतलब यह कि घर परिवार से दूर संन्यासी जैसा जीवन जीकर यह कर्म किया जाता है।
श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं-
प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। पूरे माह किसी नदी के किनारे किसी गुरु के सान्निध्य में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए। यह सबसे सिद्धिदायक महीना होता है इसीलिए इस दौरान व्यक्ति कठिन उपवास करते हुए जप, ध्यान या तप करता है। श्रावण माह में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म प्रत्येक अधिकारी के लिए जरूर बताया गया है। इसमें दसविधि स्नान करने से आत्मशुद्धि होती है व पितरों के तर्पण से उन्हें भी तृप्ति होती है। श्रावणी पर्व वैदिक काल से शरीर, मन और इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता है।
7.श्रावण माह में इस तरह के व्रत रखना वर्जित है?
अधिकतर लोग दो समय खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं। कुछ लोग एक समय ही भोजन करते हैं। कुछ लोग तो अपने मन से ही नियम बना लेते हैं और फिर उपवास करते हैं। यह भी देखा गया है कुछ लोग चप्पल छोड़ देते हैं लेकिन गाली देना नहीं। जबकि व्रत में यात्रा, सहवास, वार्ता, भोजन आदि त्यागकर नियमपूर्वक व्रत रखना चाहिए तो ही उसका फल मिलता है। हालांकि उपवास में कई लोग साबूदाने की खिचड़ी, फलाहार या राजगिरे की रोटी और भिंडी की सब्जी खूब ठूसकर खा लेते हैं। इस तरह के उपवास से कैसे लाभ मिलेगा? उपवास या व्रत के शास्त्रों में उल्लेखित नियम का पालन करेंगे तभी तो लाभ मिलेगा।
8.किसे व्रत नहीं रखना चाहिए?
अशौच अवस्था में व्रत नहीं करना चाहिए। जिसकी शारीरिक स्थिति ठीक न हो व्रत करने से उत्तेजना बढ़े और व्रत रखने पर व्रत भंग होने की संभावना हो उसे व्रत नहीं करना चाहिए। रजस्वरा स्त्री को भी व्रत नहीं रखना चाहिए। यदि कहीं पर जरूरी यात्रा करनी हो तब भी व्रत रखना जरूरी नहीं है। युद्ध के जैसी स्थिति में भी व्रत त्याज्य है।
9.क्या होगा व्रत रखने से, नहीं रखेंगे तो क्या होगा?
व्रत रखने के तीन कारण है पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुर्नजीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होगा।
दैहिक में आपकी देह शुद्ध होती है। शरीर के भीतर के टॉक्सिन या जमी गंदगी बाहर निकल जाती है। इससे जहां शरीर निरोगी होता है वही मन संकल्पवान बनकर सुदृढ़ बनता है। देह और मन के मजबूत बनने से आत्मा अर्थात आप स्वयं खुद को महसूस करते हैं। आत्मिक ज्ञान का अर्थ ही यह है कि आप खुद को शरीर और मन से उपर उठकर देख पाते हैं।
हालांकि व्रत रखने का मूल उद्येश्य होता है संकल्प को विकसित करना। संकल्पवान मन में ही सकारात्मकता, दृढ़ता और एकनिष्ठता होती है। संकल्पवान व्यक्ति ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता हैं। जिस व्यक्ति में मन, वचन और कर्म की दृढ़ता या संकल्पता नहीं है वह मृत समान माना गया है। संकल्पहीन व्यक्ति की बातों, वादों, क्रोध, भावना और उसके प्रेम का कोई भरोसा नहीं। ऐसे व्यक्ति कभी भी किसी भी समय बदल सकते हैं।
अब यदि श्रावण माह में आप व्रत नहीं रखेंगे तो निश्चित ही एक दिन आपकी पाचन क्रिया सुस्त पड़ जाएगी। आंतों में सड़ाव लग सकता है। पेट फूल जाएगा, तोंद निकल आएगी। आप यदि कसरत भी करते हैं और पेट को न भी निकलने देते हैं तो आने वाले समय में आपको किसी भी प्रकार का गंभीर रोग हो सकता है। व्रत का अर्थ पूर्णत: भूखा रहकर शरीर को सूखाना नहीं बल्कि शरीर को कुछ समय के लिए आराम देना और उसमें से जहरिलें तत्वों को बाहर करना होता है। पशु, पक्षी और अन्य सभी प्राणी समय समय पर व्रत रखकर अपने शरीर को स्वास्थ कर लेते हैं। शरीर के स्वस्थ होने से मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ हो जाते हैं। अत: रोग और शोक मिटाने वाले चतुर्मास में कुछ विशेष दिनों में व्रत रखना चाहिए। डॉक्टर परहेज रखने का कहे उससे पहले ही आप व्रत रखना शुरू कर दें।
10.प्रकृति लेती है फिर से जन्म......
इस माह में पतझड़ से मुरझाई हुई प्रकृति पुनर्जन्म लेती है। लाखों-करोड़ों वनस्पतियों, कीट-पतंगों आदि का जन्म होता है। अन्न और जल में भी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है जिनमें से कई तो रोग पैदा करने वाले होते हैं। ऐसे में उबला और छना हुआ जल ग्रहण करना चाहिए, साथ ही व्रत रखकर कुछ अच्छा ग्रहण करना चाहिए। श्रावण माह से वर्षा ऋतु का प्रारंभ होता है। प्रकृति में जीवेषणा बढ़ती है। मनुष्य के शरीर में भी परिवर्तन होता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। ऐसे में यदि किसी पौधे को पोषक तत्व मिलेंगे, तो वह अच्छे से पनप पाएगा और यदि उसके ऊपर किसी जीवाणु का कब्जा हो गया, तो जीवाणु उसे खा जाएंगे। इसी तरह मनुष्य यदि इस मौसम में खुद के शरीर का ध्यान रखते हुए उसे जरूरी रस, पौष्टिक तत्व आदि दे तो उसका शरीर नया जीवन और यौवन प्राप्त करता है।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 15 जुलाई 2025*
*🎈दिन- मंगलवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- पंचमी 22:38:27 am* पश्चात षष्ठी*
*🎈 नक्षत्र - शतभिष 06:25: 17पश्चात पूर्वभाद्रपदा 29:45:27 पश्चात उतरभद्रपद*
*🎈योग - सौभाग्य 14:11:10 pm तक, तत्पश्चात् शोभन*
*🎈करण - कौलव 11:20:53 am* पश्चात गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 07:34 pm
से 09:16 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:51:33*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:44*
*🎈चन्द्र राशि - कुम्भ till 23:56:57*
*🎈चन्द्र राशि - कुम्भ till 23:56:57
*🎈चन्द्र राशि - मीन from 23:56:57*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन 05:30:05*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:28 ए एम से 05:09 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 16 से 01:02 ए एम, जुलाई 16 तक*
*🎈रवि योग- 05:46 ए एम, जुलाई 16 से 05:51 ए एम, जुलाई 16*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
।।दिन का चौघड़िया।।
*अमृत - राहु काल 05:52 - 07:34*
काल काल वेला-07:34 - 09:16*
शुभ-09:16 - 10:58*
रोग-10:58 - 12:40*
उदवेग - 12:40 - 14:21
चर -14:21 - 16:03
लाभ वार वेला - 16:03 - 17:45
अमृत -17:45 - 19:27
*🔵चोघडिया, रात🔵*
चर 19:31 से 20:48 शुभ
रोग 20:48 - 22:06 अशुभ
काल 22:06 - 23:24 अशुभ
लाभ 23:24-24:41* शुभ
उद्वेग 24:41* - 25:59*अशुभ
शुभ 25:59* -27:16*शुभ
अमृत 27:16* -28:34* शुभ
चर 28:34* -29:52* शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
(((( श्रावण मास, महादेव के भक्तों का माह )))))
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श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना। अर्थात सुनकर धर्म को समझना। वेदों को श्रुति कहा जाता है अर्थात उस ज्ञान को ईश्वर से सुनकर ऋषियों ने लोगों को सुनाया था। यह महीना भक्तिभाव और संत्संग के लिए होता है। जिस भी भगवान को आप मानते हैं, आप उसकी पूरे मन से आराधना कर सकते हैं। लेकिन सावन के महीने में विशेषकर भगवान शिव, मां पार्वती और श्रीकृष्णजी की पूजा का काफी महत्व होता है।
हिन्दू धर्म में व्रत तो बहुत हैं जैसे, चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्य, पूर्णिमा आदि। लेकिन हिन्दू धर्म में चतुर्मास को ही व्रतों का खास महीना कहा गया है। चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। ये 4 माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। चातुर्मास के प्रारंभ को 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है और अंत को 'देवोत्थान एकादशी'। चतुर्मास का प्रथम महीना है श्रावण मास आओ इसके बारे में जानते हैं मुख्य 10 बातें।
1.किसने शुरू किया श्रावण सोमवार व्रत?
हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को विशेषकर देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया।
शेष भाग आगे ......
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 14 जुलाई 2025*
*🎈दिन- सोमवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- चतुर्थी 23:59:03 am* पश्चात पंचमी*
*🎈 नक्षत्र - धनिष्ठा 06:47:56 पश्चात शतभिष &पूर्वभाद्रपदा*
*🎈योग - आयुष्मान 16:12:38 pm तक, तत्पश्चात् सौभाग्य*
*🎈करण - बव 12:32:49 am* पश्चात बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 07:34 pm
से 09:14 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:51:02*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:44*
*🎈चन्द्र राशि - कुम्भ*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:27 ए एम से 05:09 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:13 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:21 ए एम, जुलाई 15 से 01:02 ए एम, जुलाई 15 11:00am तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत 05:51 - 07:34 शुभ
काल 07:34 - 09:16 अशुभ
शुभ 09:16 - 10:58 शुभ
रोग 10:58 - 12:41 अशुभ
उद्वेग 12:41 - 14:23 अशुभ
चर 14:23 - 16:06 शुभ
लाभ 16:06 - 17:48 शुभ
अमृत 17:48 - 19:31 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
चर 19:31 - 20:48 शुभ
रोग 20:48 - 22:06 अशुभ
काल 22:06 - 23:24 अशुभ
लाभ 23:24 - 24:41* शुभ
उद्वेग 24:41* - 25:59* अशुभ
शुभ 25:59* - 27:16* शुभ
अमृत 27:16* - 28:34* शुभ
चर 28:34* - 29:52* शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
साथियों जैसे कि आपको पता ही है कि कल सावन का पहला सोमवार है सावन के महीने में महादेव की पूजा करना अति शुभ माना जाता है कुछ मंत्र आपके लिए भेजे जा रहे हैं कृपया जो उचित लगे इस मंत्र के अनुसार अपनी पूरे सावन की साधना को करें।
🌻🌹💐 🌹विशेष शिवलिंग स्वरूपों के मंत्र 🌹
१.-🍁 ब्रह्मेश्वर लिंग मंत्र
(शिव का ब्रह्मा रूप — सृष्टिकर्ता रूप में)
१.> ॐ ह्रीं ब्रह्मेश्वराय सृष्टिसंहारकर्त्रे नमः॥
ॐ ब्रह्मरूपाय ब्रह्मेश्वराय नमः॥
२..> ॐ ब्रह्मेश्वराय विद्महे त्रिलोकेश्वराय धीमहि।
तन्नः शिवः प्रचोदयात्॥
++++++++++++++++++
२.🍁हरिश्वर लिंग मंत्र
(शिव का विष्णु से ऐक्य रूप – वैष्णवभाव में)
> ॐ नमो हरिश्वराय महाविष्णुरूपाय नमः॥
ॐ हरिः शिवः हरिश्वरः नमो नमः॥
हरिश्वर गायत्री मंत्र :ॐ हरिश्वराय विद्महे नारायणात्मने धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
++++++++++±++±+±++
३.🍁. हरिहरेश्वर लिंग मंत्र
(हरि + हर = शिव-नारायण संयुक्त रूप)
> ॐ ह्रीं क्लीं हरिहरेश्वराय नमः॥
ॐ नमो भगवते हरिहरेश्वराय नारायणरूपधारी महेश्वराय नमः॥
ॐ ह्रौं ह्रीं शंकर नारायणाय ह्रीं ह्रौं नमः।
गायत्री मंत्र:- ॐ हरिहरेश्वराय विद्महे त्रिदेवात्मने धीमहि। तन्नः शिवनारायणः प्रचोदयात्॥
****************---
४.🍁 गोपेश्वरमहादेव लिंग मंत्र
(श्रीकृष्ण के रासमंडल संरक्षक – वृंदावनधाम)
> ॐ गोपेश्वराय नमः वृन्दावननाथाय नमः॥
ॐ गोपगोपीशं गोपेश्वरं रासेश्वरं नमाम्यहम्॥
गायत्री मंत्र :- ॐ गोपेश्वराय विद्महे रासेश्वराय धीमहि। तन्नो शंकरः प्रचोदयात्॥
------------------------------
५.-🍁गणपतिश्वर शिव मंत्र
(शिव का वह रूप जो स्वयं गणेश के अधिष्ठाता हैं)
> ॐ गणपतिश्वराय नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं गणनाथनाथाय शिवाय नमः॥
गायत्री मंत्र :- ॐ गणपतिश्वराय विद्महे एकदन्ताधिपाय धीमहि।तन्नः शिवः प्रचोदयात्॥
-------------------
६.-🍁आदित्येश्वर शिवमंत्र
(शिव का सूर्यात्मक रूप तेजस्विता का प्रतीक)
> ॐ आदित्येश्वराय तेजोमूर्तये नमः॥
ॐ ह्रौं सूर्यलिङ्गाय आदित्येश्वराय नमः॥
गायत्री मंत्र:- ॐ आदित्येश्वराय विद्महे तेजोनाथाय धीमहि। तन्नः भास्करशिवः प्रचोदयात्॥💐
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 13 जुलाई 2025*
*🎈दिन- रविवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- तृतीया 25:02:01 am* पश्चात चतुर्थी*
*🎈 नक्षत्र - श्रवण 06:51:59 पश्चात धनिष्ठा*
*🎈योग - प्रीति 17:59:26 pm तक, तत्पश्चात् आयुष्मान*
*🎈करण - वणिज 13:26:25 am* पश्चात बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 05:48 pm
से 07:31 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:50:34*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:00*
*🎈चन्द्र राशि- मकर till 18:52:24*
*🎈चन्द्र राशि - कुम्भ from 18:52:24 *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:27 ए एम से 05:08 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:13 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 14 से 01:02 ए एम, जुलाई 14 जुलाई 2025 11:00am तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
उद्वेग 05:51 - 07:33 अशुभ
चर 07:33 - 09:16 शुभ
लाभ 09:16 - 10:58 शुभ
अमृत 10:58 - 12:41 शुभ
काल 12:41 - 14:23 अशुभ
शुभ 14:23 - 16:06 शुभ
रोग 16:06 - 17:48 अशुभ
उद्वेग 17:48 - 19:31 अशुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ 19:31 - 20:49 शुभ
अमृत 20:49 - 22:06 शुभ
चर 22:06 - 23:24 शुभ
रोग 23:24 - 24:41* अशुभ
काल 24:41* - 25:59* अशुभ
लाभ 25:59* - 27:16* शुभ
उद्वेग 27:16* - 28:34* अशुभ
शुभ 28:34* - 29:51* शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺
🌻🌹💐 कल का शेष भाग.......
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🙏🙏🙏🙏🙏
निधनेशं धनाधीशं अपमृत्युविनाशनम् ।
लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८१॥
भक्तकल्याणदं व्यस्तं वेदवेदान्तसंस्तुतम् ।
कल्पकृत्कल्पनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८२॥
घोरपातकदावाग्निं जन्मकर्मविवर्जितम् ।
कपालमालाभरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८३॥
मातङ्गचर्मवसनं विराड्रूपविदारकम् ।
विष्णुक्रान्तमनन्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८४॥
यज्ञकर्मफलाध्यक्षं यज्ञविघ्नविनाशकम् ।
यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II८५॥
कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्टनिग्रहकारकम् ।
योगिमानसपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८६॥
महोन्नतमहाकायं महोदरमहाभुजम् ।
महावक्त्रं महावृद्धं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८७॥
सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीमपराक्रमम् ।
महेश्वरं शिवतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् II८८॥
समस्तजगदाधारं समस्तगुणसागरम् ।
सत्यं सत्यगुणोपेतं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८९॥
माघकृष्णचतुर्दश्यां पूजार्थं च जगद्गुरोः ।
दुर्लभं सर्वदेवानां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९०॥
तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे ।
प्रदोषकाले पूजायां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९१॥
तटाकं धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम्
कोटिकन्यामहादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९२॥
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II९३॥
तुलसीबिल्वनिर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा ।
पञ्चबिल्वमिति ख्यातं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९४॥
अखण्डबिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दिकेश्वरम् ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९५॥
सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम् ।
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९६॥
दन्त्यश्वकोटिदानानि अश्वमेधसहस्रकम् ।
सवत्सधेनुदानानि एकबिल्वं शिवार्पणम् II९७॥
चतुर्वेदसहस्राणि भारतादिपुराणकम् ।
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९८॥
सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम् ।
तुलाभागं शतावर्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९९॥
अष्टोत्तरश्शतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके ।
अधर्वोक्तं अधेभ्यस्तु एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१००॥
काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II१०१॥
अष्टोत्तरशतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा ।
त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०२॥
दन्तिकोटिसहस्राणां भूः हिरण्यसहस्रकम्
सर्वक्रतुमयं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् II१०३॥
पुत्रपौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम् ।
अन्ते च शिवसायुज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०४॥
विप्रकोटिसहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम् ।
तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०५॥
त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वं तवपादाम्बु यः पिबेत्
जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०६॥
अनेकदानफलदं अनन्तसुकृतादिकम् ।
तीर्थयात्राखिलं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०७॥
त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यानकृतं तव ।
भवनं शाङ्करं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०८॥
प्रश्न नही स्वाध्यायं कर आराधना करें।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
#कुछ_विशेष_विषय_वस्तु
शिव जी को बेलपत्र अर्पित करते समय साथ ही में जल की धारा जरूर चढ़ाएं ।
बिना जल के बेलपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए ।
2. बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए. | कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैं| एवम् बिल्वपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं ।
3. बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं , यह जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं ।
4. अगर बेलपत्र उपलब्ध न हो, तो बेल के वृक्ष के दर्शन ही कर लेना चाहिए , उससे भी पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं ।
5. शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए ।
6.बिल्वपत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बिल्व पत्र चढ़ाया जा सकता है जिसे नित्य शुद्ध जल से धोकर शिवलिंग पर पुनः स्थापित कर सकते हैं ।
भगवान शिव के अंशावतार हनुमान जी को भी बेल पत्र अर्पित करने से प्रसन्न किया जा सकता है और लक्ष्मी का वर पाया जा सकता है। घर की धन-दौलत में वृद्धि होने लगती है। अधूरी कामनाओं को पूरा करता है सावन का महीना शिव पुराण अनुसार सावन माह के सोमवार को शिवालय में बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है।
बेल के पेड़ की जरा सी जड़ सफेद धागे में पिरोकर रविवार को पहनें इससे रक्तचाप, क्रोध और असाध्य रोगों से निजात मिलेगा ।
मधुमेह व पेट के रोगियों को विल्व पत्र का सेवन करना चाहिए ।।
लिंग पुराण*~"बिल्बपत्रे स्थिता लक्ष्मीदेवि लक्षण संयुक्ता"
अर्थात् बिल्बपत्र में लक्ष्मी का वास माना जाता है ।
बिल्बवृक्ष को *श्रीवृक्ष* की भी मान्यता है - ऋग्वेदोक्त *श्री सूक्त* के अनुसार माँ लक्ष्मी के तपोबल से बिल्बपत्र उत्पन्न हुआ जो अंत: एवं वाह्य दरिद्रता निवारक है ।
श्रावण के महीने में १०८ बेलपत्तो पर चंदन से *"ॐ नमः शिवाय"* लिखकर इसी मंत्र का जप करते हुए शिवजी को अर्पित करते हैं ।
शिव आराधना ३१ दिनो तक नियमपूर्वक करने पर घर में *सुख शांति एवं आनन्द* सद्भाव लाभ एवं प्रगति प्राप्ति की यह अनुपम प्रयोग विधा है मनोकामना पूर्त्ति के लिए १००८ बिल्व पत्र शिव सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए अर्पित करने की पौराणिक रीति है
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाने से बेलपत्र संख्या के बराबर युगों तक कैलास में सुख पूर्वक वास कर पुनः श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर भगवान शिव का परम भक्त होने का सुअवसर मिलता है।
शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में बिल्वपत्र का वर्णित महात्म्य मिलता है विद्या पुत्र धन धान्य सुख सम्पत्ति प्रजा समृद्धि और भवन भूमि सभी उसके लिए सुलभ रहते हैं।
बेल वृक्ष महादेव शिवजी का ही स्वरूप हैं देवताओं ने भी इसकी स्तुति की महिमा बतायी है तीनों लोकोंमे जितने पुण्य तीर्थ प्रसिद्ध हैं सम्पूर्ण तीर्थ बिल्व के मूलभाग में निवास करते हैं |
श्रद्धावान पुण्यात्मा जन जो बिल्व के मूल में लिंग स्वरुप अविनाशी महादेवजी का पूजन करते हैं निश्चय ही शिवपद को प्राप्त होते हैं |
बेल की जडके पास जलसे अपने मस्तक को सींचता हैं वह सम्पूर्ण तीर्थों का स्नान का फल पा लेता हैं और वहीं इस भूतलपर पावन माना जाता हैं बिल्व की जड के परम उत्तम थाले को जलसे भरा हुआ देखकर महादेवजी पूर्णतया संतुष्ट होते हैं |
बेल के मूलभाग को जो मनुष्य गंध, पुष्प आदि का पूजन करता हैं वह शिवलोक को पाता हैं और इस लोकमें भी उसकी सुख सन्तति बढती हैं |
बिल्व की जड के समीप आदरपूर्वक दीप माला प्रज्वलित कर रखता हैं वह तत्त्वज्ञान से सम्पन्न हो भगवान् महेश्वर शिव भक्ति में तल्लीन हो कर अपार आनन्द पाता हैं |
बेल की शाखा थाम कर हाथ से उसके नये नये पल्लव उतार कर उस बिल्व की पूजा करता हैं, वह सब पापों से मुक्त हो जाता हैं
बेल की जड के समीप भगवान् शिव में अनुराग रखने वाले एक भक्त को भी भक्तिपूर्वक भोजन कराता हैं उसे कोई तिगुना पुण्य प्राप्त होता हैं ।
बिल्व की जड के पास शिवभक्त को खीर और घृत से युक्त अन्न देता हैं वह कभी दरिद्र नहीं होता |
बिल्वाष्टकम् उच्चारण करते हुए तीन पत्तियो वाला बिल्वपत्र शिवलिंग पर इस तरह समर्पित करते हैं कि चिकना भाग शिवलिंग को स्पर्श करता रहे ~
*बिल्वाष्टकम*
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।
त्रिजन्म पाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्र्च अच्छिद्रै: कोमलैः शुभैः।
शिवपूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
अखण्ड बिल्व पात्रेण पूजिते नन्दिकेश्र्वरे ।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत् ।
सोमयज्ञ महापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
दन्ति कोटि सहस्राणि वाजपेय शतानि च ।
कोटि कन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।
लक्ष्म्यास्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम् ।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पाप नाशनम् ।
अघोर पाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
काशीक्षेत्र निवासं च काल भैरव दर्शनम् ।
प्रयाग माधवं दृष्ट्वा एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णु रूपिणे ।
अग्रतः शिवरूपाय एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥
बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ ।
सर्व पाप विनिर्मुक्तः शिव लोकमवाप्नुयात् ॥
इति श्री बिल्वाष्टकम संपूर्णम्।।💐
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 12 जुलाई 2025*
*🎈दिन- शनिवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- द्वितीया 25:45:44 am* पश्चात तृतीया*
*🎈 नक्षत्र - उत्तराषाढा 06:35:17am पश्चात श्रवण*
*🎈योग - विश्कुम्भ 19:30:15 pm तक, तत्पश्चात् प्रीति*
*🎈करण - तैतुल 13:59:41 pm* पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 09:15 am
से 10:58 am तक*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:15 pm*
*🎈चन्द्र राशि - मकर*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:27 ए एम से 05:08 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:13 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 06:36 ए एम से 05:49 ए एम, जुलाई 13 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
काल 05:50 - 07:33 अशुभ
शुभ 07:33 - 09:15 शुभ
रोग 09:15 - 10:58 अशुभ
उद्वेग 10:58 - 12:41 अशुभ
चर 12:41 - 14:23 शुभ
लाभ 14:23 - 16:06 शुभ
अमृत 16:06 - 17:49 शुभ
काल 17:49 - 19:31 अशुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ 19:31 - 20:49 शुभ
उद्वेग 20:49 - 22:06 अशुभ
शुभ 22:06 - 23:23 शुभ
अमृत 23:23 - 24:41* शुभ
चर 24:41* - 25:58* शुभ
रोग 25:58* - 27:16* अशुभ
काल 27:16* - 28:33* अशुभ
लाभ 28:33* - 29:51* शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻🌹💐 बिल्वपत्र_तोड़ने_का_चढ़ाने_का_नियम_अवश्य_समझिये?? 💐
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🙏🙏🙏🙏🙏
बिल्वपत्र_तोड़ने_का_चढ़ाने_का_नियम_अवश्य_समझिये??
बेल के पत्ते तोड़ने से पहले निम्न मंत्र का उच्चरण करना चाहिए -
अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रियःसदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥
(आचारेन्दु)
>> अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष मैं तुम्हारे पत्र तोड़ता हूँ ।
कब_न_तोड़ें_बिल्व_कि_पत्तियां ?
अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥
>>>अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।
★ विशेष दिन या विशेष पर्वो के अवसर पर बिल्व के
पेड़ से पत्तियां तोड़ना निषेध हैं।
★ शास्त्रों के अनुसार बेल कि पत्तियां इन दिनों में
नहीं तोड़ना चाहिए ।
★ बेल कि पत्तियां सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
★ बेल कि पत्तियां चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
★ बेल कि पत्तियां संक्रांति के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
★ टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए,
कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए. पत्र इतनी
सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान
न पहुँचे ।
★ बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को
मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए ।
*चढ़ाया गया पत्र भी पुनः चढ़ा सकते हैं *?
~~शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र तोडकर चढ़ाने से मना किया गया हैं तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित् ॥
(स्कन्दपुराण) और (आचारेन्दु)
>>>अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।
~~भगवान शंकर को विल्वपत्र अर्पित करने से मनुष्य कि सर्वकार्य व मनोकामना सिद्ध होती हैं। श्रावण में विल्व पत्र अर्पित करने का विशेष महत्व शास्त्रो में बताया गया हैं।
विल्व_पत्र_अर्पित_करने_का_मन्त्र : -
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहार, विल्वपत्र शिवार्पणम् ॥
~~तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले
और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे
शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूँ ।
शिवलिंग_पर_कैसे_चढ़ाएं_बेलपत्र : -
महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना
चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के
ऊपर रहना चाहिए –
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बिल्वपत्र_चढाने_के_108_मन्त्र -
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।
त्रिजन्म पापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१॥
त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।
तव पूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥
सर्वत्रैलोक्यकर्तारं सर्वत्रैलोक्यपालनम् ।
सर्वत्रैलोक्यहर्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३॥
नागाधिराजवलयं नागहारेण भूषितम् ।
नागकुण्डलसंयुक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४॥
अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वतीप्रियवल्लभम् ।
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५॥
त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गादेहार्धधारिणम् ।
विभूत्यभ्यर्चितं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥
त्रिशूलधारिणं देवं नागाभरणसुन्दरम् ।
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७॥
गङ्गाधराम्बिकानाथं फणिकुण्डलमण्डितम् ।
कालकालं गिरीशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८॥
शुद्धस्फटिक सङ्काशं शितिकण्ठं कृपानिधिम् ।
सर्वेश्वरं सदाशान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९॥
सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम् ।
वागीश्वरं चिदाकाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०॥
शिपिविष्टं सहस्राक्षं कैलासाचलवासिनम् ।
हिरण्यबाहुं सेनान्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥११॥
अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम् ।
ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१२॥
हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम् ।
अघोररूपकं कुम्भं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१३॥
पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्करनायकम् ।
नीलकण्ठं जघन्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१४॥
सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम् I
महासेनं महावीरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१५॥
कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम् ।
तौर्यातौर्यं च देव्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१६॥
दशकर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् ।
अशेषपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१७॥
नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीननाथं महेश्वरम् ।
महापापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१८॥
चूडामणीकृतविभुं वलयीकृतवासुकिम् ।
कैलासवासिनं भीमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१९॥
कर्पूरकुन्दधवलं नरकार्णवतारकम् ।
करुणामृतसिन्धुं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२०॥
महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिपकङ्कणम् ।
महापापहरं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२१॥
भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम् ।
वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२२॥
फालेक्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलम् ।
नीललोहितखट्वाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२३॥
कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम् ।
वृषाङ्कं वृषभारूढं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२४॥
सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलितविग्रहम् ।
मृत्युञ्जयं लोकनाथं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२५॥
दारिद्र्यदुःखहरणं रविचन्द्रानलेक्षणम् ।
मृगपाणिं चन्द्रमौळिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२६॥
सर्वलोकभयाकारं सर्वलोकैकसाक्षिणम् ।
निर्मलं निर्गुणाकारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२७॥
सर्वतत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम् ।
सर्वतत्त्वस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२८॥
सर्वलोकगुरुं स्थाणुं सर्वलोकवरप्रदम् ।
सर्वलोकैकनेत्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II२९॥
मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम् ।
कमलाप्रियपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३०॥
तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनम् ।
भवरोगविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३१॥
स्वर्गापवर्गफलदं रघुनाथवरप्रदम् ।
नगराजसुताकान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३२॥
मञ्जीरपादयुगलं शुभलक्षणलक्षितम् ।
फणिराजविराजं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३३॥
निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम् ।
तेजोरूपं महारौद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३४॥
सर्वलोकैकपितरं सर्वलोकैकमातरम् ।
सर्वलोकैकनाथं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३५॥
चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वरवाहनम् ।
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३६॥
रत्नकञ्चुकरत्नेशं रत्नकुण्डलमण्डितम् ।
नवरत्नकिरीटं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३७॥
दिव्यरत्नाङ्गुलीस्वर्णं कण्ठाभरणभूषितम् ।
नानारत्नमणिमयं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३८॥
रत्नाङ्गुलीयविलसत्करशाखानखप्रभम् ।
भक्तमानसगेहं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३९॥
वामाङ्गभागविलसदम्बिकावीक्षणप्रियम् ।
पुण्डरीकनिभाक्षं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४०॥
सम्पूर्णकामदं सौख्यं भक्तेष्टफलकारणम् ।
सौभाग्यदं हितकरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४१॥
नानाशास्त्रगुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम् ।
विद्याविभेदरहितं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४२॥
अप्रमेयगुणाधारं वेदकृद्रूपविग्रहम् ।
धर्माधर्मप्रवृत्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४३॥
गौरीविलाससदनं जीवजीवपितामहम् ।
कल्पान्तभैरवं शुभ्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४४॥
सुखदं सुखनाशं च दुःखदं दुःखनाशनम् ।
दुःखावतारं भद्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४५॥
सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्मफलप्रदम् ।
अतीन्द्रियं महामायं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४६॥
सर्वपक्षिमृगाकारं सर्वपक्षिमृगाधिपम् ।
सर्वपक्षिमृगाधारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४७॥
जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीवजीवनरक्षकम् ।
जीवकृज्जीवहरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४८॥
विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मावज्रहस्तकम् ।
वज्रेशं वज्रभूषं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४९॥
गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकम् ।
जितेन्द्रियं वीरभद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५०॥
त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम् ।
दिगम्बरं क्षोभनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५१॥
कुन्देन्दुशङ्खधवलं भगनेत्रभिदुज्ज्वलम् ।
कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५२॥
कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम् ।
शार्दूलचर्मवसनं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५३॥
जगदुत्पत्तिहेतुं च जगत्प्रलयकारणम् ।
पूर्णानन्दस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५४॥
सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनम् ।
ब्रह्माण्डनायकं तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५५॥
मन्दारमूलनिलयं मन्दारकुसुमप्रियम् ।
बृन्दारकप्रियतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५६॥
महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम् ।
सुलभासुलभं लभ्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५७॥
बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम् ।
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५८॥
युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम् ।
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५९॥
धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम् ।
कर्पूरगौरं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II६०॥
सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम् ।
योगदं योगिनां सिंहं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६१॥
उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुरसूदनम् ।
भक्तकल्पद्रुमस्तोमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६२॥
विचित्रमाल्यवसनं दिव्यचन्दनचर्चितम् ।
विष्णुब्रह्मादि वन्द्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६३॥
कुमारं पितरं देवं श्रितचन्द्रकलानिधिम् ।
ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६४॥
लावण्यमधुराकारं करुणारसवारधिम् ।
भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६५॥
जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकम् ।
कामदं सर्वदागम्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II६६॥
शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम् ।
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६७॥
वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रहकारणम् ।
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६८॥
शशाङ्कधारिणं भर्गं सर्वलोकैकशङ्करम् I
शुद्धं च शाश्वतं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६९॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणम् ।
गम्भीरं च वषट्कारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७०॥
भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् I
करणं कारणं जिष्णुं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७१॥
क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैकप्रयोजनम् ।
व्योमकेशं भीमवेषं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७२॥
भवज्ञं तरुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम् ।
हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७३॥
दक्षं चामुण्डजनकं मोक्षदं मोक्षनायकम् ।
हिरण्यदं हेमरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७४॥
महाश्मशाननिलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभम् ।
वेदास्यं वेदरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७५॥
स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् I
जगन्निवासं प्रथममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७६॥
रुद्राक्षमालाभरणं रुद्राक्षप्रियवत्सलम् ।
रुद्राक्षभक्तसंस्तोममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७७॥
फणीन्द्रविलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरणप्रियम् I
दक्षाध्वरविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७८॥
नागेन्द्रविलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम् ।
मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठमेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७९॥
मृगेन्द्रचर्मवसनं मुनीनामेकजीवनम् ।
सर्वदेवादिपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II८०॥
शेष भाग कल....
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 11 जुलाई 2025*
*🎈दिन- शुक्रवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - श्रावण*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि- प्रतिपदा 26:07:55 am* पश्चात द्वितीया*
*🎈 नक्षत्र - पूर्वाषाढा 05:55:10 am पश्चात उत्तराषाढा*
*🎈योग - वैधृति 20:43:15 pm तक, तत्पश्चात् विश्कुम्भ*
*🎈करण - बालव 14:10:03 pm* पश्चात तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 10:58 am
से 12:31 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:49:37 am*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:28 pm*
*🎈चन्द्र राशि- धनु till 12:07:33*
*🎈चन्द्र राशि - मकर from 12:07*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:26 ए एम से 05:07 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:13 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 12 से 01:01 ए एम, जुलाई 12 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर 05:50 - 07:32 शुभ
लाभ 07:32 - 09:15 शुभ
अमृत 09:15 - 10:58 शुभ
काल 10:58 - 12:41 अशुभ
शुभ 12:41 - 14:23 शुभ
रोग 14:23 - 16:06 अशुभ
उद्वेग 16:06 - 17:49 अशुभ
चर 17:49 - 19:31 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग 19:31 - 20:49 अशुभ
काल 20:49 - 22:06 अशुभ
लाभ 22:06 - 23:23 शुभ
उद्वेग 23:23 - 24:41* अशुभ
शुभ 24:41* - 25:58* शुभ
अमृत 25:58* - 27:15* शुभ
चर 27:15* - 28:33* शुभ
रोग 28:33* - 29:50* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻🌹💐 महामृत्युंजय मंत्र💐
-----------------
🙏🙏🙏🙏🙏
महामृत्युंजय मंत्र में रखें इन बातों की सावधानियाँ।
महामृत्युंजय मंत्र के जप के लिए निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। महामृत्युंजय जप अनुष्ठान शास्त्रीय विधि-विधान से करना चाहिए। मनमाने ढंग से करना या कराना हानिप्रद हो सकता है।
मंत्र का जप शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए जैसे महाशिवरात्रि, श्रावणी सोमवार, प्रदोष (सोम प्रदोष अधिक शुभ है), सर्वार्थ या अमृत सिद्धि योग, मासिक शिवरात्रि (कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) अथवा अति आवश्यक होने पर शुभ लाभ या अमृत चौघड़िया में किसी भी दिन।
जिस जातक के हेतु इस मंत्र का प्रयोग करना हो, उसके लिए शुक्ल पक्ष में चंद्र शुभ तथा कृष्ण पक्ष में तारा (नक्षत्र) बलवान होना चाहिए।
जप के लिए साधक या ब्राह्मण को कुश या कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या की गणना के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए।
मंत्र जप करते समय माला गौमुखी के अंदर रखनी चाहिए।
जिस रोगी के लिए अनुष्ठान करना हो, ‘ॐ सर्वं विष्णुमयं जगत्’ का उच्चारण कर उसके नाम और गोत्र का उच्चारण कर ‘ममाभिष्ट शुभफल प्राप्त्यर्थं श्री महामृत्युंजय रुद्र देवता प्रीत्यर्थं महामृत्युंजय मंत्र जपं करिष्ये।’ कहते हुए अंजलि से जल छोड़ें।
महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या सवा लाख है।
एक दिन में इतनी संख्या में जप करना संभव नहीं है। अतः प्रतिदिन प्रति व्यक्ति एक हजार की संख्या में जप करते हुए 125 दिन में जप अनुष्ठान पूर्ण किया जा सकता है।
आवश्यक होने पर 5 या 11 ब्राह्मणों से इसका जप कराएं तो ऊपर वर्णित जप संख्या शीघ्र पूर्ण हो जाएगी।
सामान्यतः यह जप संख्या कम से कम 45 और अधिकतम 84 दिनों में पूर्ण हो जानी चाहिए।
प्रतिदिन की जप संख्या समान अथवा बढ़ते हुए क्रम में होनी चाहिए।
जप संख्या पूर्ण होने पर उसका दशांश हवन करना चाहिए अर्थात 1,25,000 मंत्रों के जप के लिए 12, 500 मंत्रों का हवन करना चाहिए और यथा शक्ति पांच ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
महामृत्युंजय जप के लिए पार्थिवेश्वर की पूजा का विधान है। यह सभी कार्यों के लिए प्रशस्त है।
रोग से मुक्ति के लिए तांबे के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पारद शिवलिंग की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 10 जुलाई 2025*
*🎈दिन- गुरुवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- वर्षा*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- गुरु पूर्णिमा 12:45:05 am* पश्चात प्रतिपदा*
*🎈 नक्षत्र - पूर्वाषाढा 29:55:10 पश्चात पूर्वाषाढा*
*🎈योग - ऐन्द्र 21:36:23 pm तक, तत्पश्चात् वैधृति*
*🎈करण - विष्टि भद्र 13:54:38 am* पश्चात बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 02:23 pm
से 04:06 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:49:10*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:40*
*🎈चन्द्र राशि- धनु *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:26 ए एम से 05:07 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:13 पी एम से 01:08 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 11 से 01:01 ए एम, जुलाई 11 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
शुभ 05:49 - 07:32 शुभ
रोग 07:32 - 09:15 अशुभ
उद्वेग 09:15 - 10:58 अशुभ
चर 10:58 - 12:40 शुभ
लाभ 12:40 - 14:23 शुभ
अमृत 14:23 - 16:06 शुभ
काल 16:06 - 17:49 अशुभ
शुभ 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
अमृत 19:32 - 20:49 शुभ
चर 20:49 - 22:06 शुभ
रोग 22:06 - 23:23 अशुभ
काल 23:23 - 24:41* अशुभ
लाभ 24:41* - 25:58* शुभ
उद्वेग 25:58* - 27:15* अशुभ
शुभ 27:15* - 28:32* शुभ
अमृत 28:32* - 29:50* शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻🌹💐 गुरु पूर्णिमा💐
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गुरु पूर्णिमा,,आषाढ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. हमारी संकृति में गुरु का विशेष महत्व है. गुरु के बताये मार्ग पर चलने से ही हमें ईश्वर से मिलने का मार्ग प्रशस्त होता है और गुरु हमें सद्गति प्रदान करते है.
हमारे जन्मदाता तो माता पिता हैं पर प्रथम गुरु भी है जिन्होंने पाल पोस कर बड़ा किया हमारे कर्म के दाता गुरुदेव है. इनकी शरण में आकर दुखिया और रोगी को चैन मिल जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा का विधान है. प्राचीन काल में विार्थी प्रायः गुरुकुलों में ही शिक्षा प्राप्त करने जाते थे. छात्र इस दिन श्रृद्धा भाव से प्रेरित अपने गुरू का पूजन करके अपनी सामर्थ्य के अनुसार गुरुजी को प्रसन्न करते थे. इस दिन विद्या ग्रहण करने वाले छात्रों को पूजा आदि से निवृत्त होकर अपने गुरु के पास जाकर वस्त्र, फल व माला अर्पण करके उन्हें प्रसन्न करना चाहिए. गुरु का आशीर्वाद ही मंगलकारी और ज्ञानवर्द्धक होता है. चारों वेदों के व्याख्याता गुरु व्यास थे. हमें वेदों का दान देने वाले व्यास जी ही हैं. इसलिए वो हमारे आदि गुरु हुए. गुरु पूर्णिमा के दिन ही ऋषि व्यास का भी जन्मदिन मनाया जाता है. उन की स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने गुरु को व्यास जी का ही अंश मान कर सम्मानपूर्वक उन की पूजा करनी चाहिए. गुरु की कृपा से ही विद्या की प्राप्ति होती है.
गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उध स्थान दिया है. संस्कृत में गु का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं रु का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं.
हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं. जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुआती आवश्यकताओं को सिखाते हैं. अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है. जीवन का विकास सुचारू रूप से चलता रहे, उसके लिए हमें गुरु की आवश्यकता होती है. भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है.
मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विशेष योगदान है. महर्षि वाल्मीकि जिनका पूर्व नाम रत्नाकर था. वे अपने परिवार कापालन पोषण करने हेतु दस्युकर्म करते थे. महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, ये तभी संभव हो सका, जब गुरू रूपी नारद जी ने उनका ह्दय परिर्वतित किया. मित्रों, पंचतंत्र की कथाएं हम सब ने सुनी है. नीति कुशल गुरू विष्णु शर्मा ने किस तरह राजा अमरशक्ति के तीनों अज्ञानी पुत्रों को कहानियों एवं अन्य माध्यमों से उन्हें ज्ञानी बना दिया.
गुरु शिष्य का संबंध सेतु के समान होता है. गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है.
स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से परमात्मा को पाने की चाह थी. उनकी ये इच्छा तभी पूरी हो सकी, जब उनको गुरु परमहंस का आशीर्वाद मिला. गुरु की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार हो सका.
छत्रपति शिवाजी पर अपने गुरु समर्थ गुरु रामदास का प्रभाव हमेशा रहा.
गुरु द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है. कबीर दास जी का अपने गुरु के प्रति जो समर्पण था, उसको स्पष्ट करना आवश्यक है क्योंकि गुरु के महत्व को सबसे ज्यादा कबीर दास जी के दोहों में देखा जा सकता है. एक बार रामानंद जी गंगा स्नान को जा रहे थे, सीढी उतरते समय उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पड गया. रामानंद जी के मुख से राम-राम शब्द निकल पडा. उसी शब्द को कबीर दास जी ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया. ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जीवन में गुरु के महत्व का वर्णन कबीर दास जी ने अपने दोहों में पूरी आत्मियता से किया है.
गुरू गोविंद दोऊ खडे काके लागू पांव
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय.
गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है. हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तभ गुरू हैं। कई ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया।
आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूती थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। गुरू चाणक्य कुशल राजनितिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं। उन्होने अपने वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिहांसनारूढ करके अपनी जिस विलक्षंण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है।
गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं। दुनिया को देखने का नजरिया गुरू की कृपा से मिलता है। पुरातन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा ही नही जा सकता। संत कबीर भी कहते हैं कि
सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए॥
गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने गुरु को सिर्फ याद करने का प्रयास है। गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो। अंत में कबीर दास जी के निम्न दोहे से अपनी कलम को विराम देते हैं।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
इस दिन क्या करना चाहिए
१. जिसने अपने गुरु बनाए हैं वह गुरु के दर्शन करें।
२. हिन्दु शास्त्र में श्री आदि शंकराचार्य को जगतगुरु माना जाता है इसलिए उनकी पूजा करनी चाहिए।
३. गुरु के भी गुरु यानि गुरु दत्तात्रेय की पूजा करनी चाहिए एवं दत बावनी का पठन करना चाहिए।
ज्योतिष और कुंडली के आधार पर नीचे दी गयी स्थिति में गुरु यंत्र रखना चाहिए, एवं गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए-
१. आपकी कुंडली में गुरु नीचस्थ राशि में यानि की मकर राशि में है तो गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
२. गुरु-राहु, गुरु-केतु या गुरु-शनि युति में होने पर भी यह यंत्र लाभदायी है।
३. आपकी कुंडली में गुरु नीचस्थ स्थान में यानि कि ६, ८ या १२ वे स्थान में है तो आपको गुरु यंत्र रखना चाहिए एवं उसकी नियमित तौर पर पूजा करनी चाहिए।
४. कुंडली में गुरु वक्री या अस्त है तो गुरु अपना बल प्राप्त नहीं कर पाता, इसलिए आपको इस यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
५. जिनकी कुंडली में विद्याभ्यास, संतान, वित्त एवं दाम्पत्यजीवन सम्बंधित तकलीफ है तो उन्हें विद्वान ज्योतिष की सलाह लेकर गुरु का रत्न पुखराज कल्पित करना आवश्यक है।
६. इस के अलावा आपकी कुंडली में हो रहे हर तरह के वित्तीय दोष को दूर करने के लिए आप श्री यंत्र की पूजा करेंगे तो अधिक लाभ होगा।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 9 जुलाई 2025*
*🎈दिन- बुधवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- चतुर्दशी 25:36:25* पश्चात पूर्णिमा*
*🎈 नक्षत्र - मूल 28:48:50 पश्चात पूर्वाषाढा*
*🎈योग - ब्रह्म 22:07:42 तक, तत्पश्चात् ऐन्द्र*
*🎈करण - गर 13:10:51* पश्चात विष्टि भद्र*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 12:40 pm
से 02:23 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:48:43*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:50*
*🎈चन्द्र राशि- धनु *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:26 ए एम से 05:06 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 10 से 01:01 ए एम, जुलाई 10 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ 05:49 - 07:32 शुभ
अमृत 07:32 - 09:15 शुभ
काल 09:15 - 10:57 अशुभ
शुभ 10:57 - 12:40 शुभ
रोग 12:40 - 14:23 अशुभ
उद्वेग 14:23 - 16:06 अशुभ
चर 16:06 - 17:49 शुभ
लाभ 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग 19:32 - 20:49 अशुभ
शुभ 20:49 - 22:06 शुभ
अमृत 22:06 - 23:23 शुभ
चर 23:23 - 24:41* शुभ
रोग 24:41* - 25:58* अशुभ
काल 25:58* - 27:15* अशुभ
लाभ 27:15* - 28:32* शुभ
उद्वेग 28:32* - 29:49* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻🌹💐 गुरु पूर्णिमा💐
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वैसे तो गुरु को पूर्ण ब्रह्म बताया गया है।
पर "गुरु पूर्णिमा" इस शब्द का भी अपने आप में बड़ा महत्व है।
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है. इसलिए इस दिन वायु की परीक्षा करके आने वाली फसलों का अनुमान भी किया जाता है.
इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करता है और यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करता है शिष्य इस दिन अपनी सारे अवगुणों को गुरु को अर्पित कर देता है और अपना सारा भार गुरु को दे देता है. इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुवार, १० जुलाई २०२५ को मनाया जाएगा.
कौन हो सकता है आपका गुरु?
सामान्यतः हम लोग शिक्षा प्रदान करने वाले को ही गुरु समझते हैं, लेकिन वास्तव में ज्ञान देने वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों में गुरु होता है. जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से मुक्त कराके जो व्यक्ति या सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती हो. ऐसी सत्ता ही गुरु हो सकती है. गुरु होने की तमाम शर्तें बताई गई हैं जिनमें से 13 शर्तें प्रमुख निम्न हैं. शांत/दान्त/कुलीन/विनीत/शुद्धवेषवाह/शुद्धाचारी/सुप्रतिष्ठित/शुचिर्दक्ष/सुबुद्धि/आश्रमी/ध्याननिष्ठ/तंत्र-मंत्र विशारद/निग्रह-अनुग्रह. गुरु की प्राप्ति हो जाने के बाद प्रयास करना चाहिए कि उसके दिशा निर्देशों का यथा शक्ति पालन किया जाए.
कैसे करें गुरु की उपासना?
गुरु को उच्च आसन पर बैठाएं. उनके चरण जल से धुलायें , और पोंछे. फिर उनके चरणों में पीले या सफेद पुष्प अर्पित करें. इसके बाद उन्हें श्वेत या पीले वस्त्र दें. यथाशक्ति फल,मिष्ठान्न दक्षिणा, अर्पित करें. गुरु से अपना दायित्व स्वीकार करने की प्रार्थना करें.
अगर आपके गुरु नहीं हैं तो क्या करें?
हर गुरु के पीछे गुरु सत्ता के रूप में शिव जी ही हैं. इसलिए अगर गुरु न हों तो शिव जी को ही गुरु मानकर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाना चाहिए. श्रीकृष्ण को भी गुरु मान सकते हैं. श्रीकृष्ण या शिव जी का ध्यान कमल के पुष्प पर बैठे हुये करें. मानसिक रूप से उनके पुष्प, मिष्ठान्न, और दक्षिणा अर्पित करें. स्वयं को शिष्य के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना करें.
भारतीय परंपरा और हिंदू धर्म में गुरू का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा माना गया है क्योकिं गुरू के ज्ञान के माध्यम से ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
इस मृत्युलोक में गुरु की महिमा का वर्णन शब्दों में संभव नहीं है क्योंकि उस परमपिता परमेश्वर को भी इस मृत्युलोक में आकर के गुरु कृपा का आश्रय लेना पड़ा चाहे कृष्ण अवतार में मुनि सांदीपनि अथवा रामावतार में गुरु वशिष्ठ विश्वामित्र इत्यादि इसीलिए भू लोक पर गुरु महिमा का विधान बहुत विशेष है तभी तो गुरु को ब्रह्मा विष्णु शिव इन सब का प्रतिरूप परब्रह्म बताया गया है।
हिंदू धर्म में गुरू की पूजा के दिन का विधान है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हिंदू धर्म में गुरू पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन दिन गुरू वंदना के साथ कुछ ऐसे उपाय भी करे, जिनको अपनाने से आपके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और जीवन में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होगी।
1-गुरू पूर्णिमा का दिन गुरू और छात्रों का दिन होता है। इस दिन ऐसे छात्र जिनका पढ़ने में मन नहीं लगता है, उनको गुरु पूर्णिमा के दिन गीता का पाठ करना चाहिए और गाय की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से अध्ययन में आ रही समस्या समाप्त हो जाएगी।
2- गुरु पूर्णिमा के दिन पर पीपल के पेड़ की जड़ में मीठा जल डालना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के लिए को धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं।
3- दाम्पत्य जीवन में समस्या आ रही हो तो गुरु पूर्णिमा को पति-पत्नी मिलकर चंद्रमा का दर्शन करें और दूध का अर्घ्य प्रदान करें। ऐसा करने से उनके दाम्पत्य जीवन में आने वाली समस्या दूर होती है।
4- गुरु पूर्णिमा के दिन सांय काल में तुलसी के पेड़ के पास घी का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
5- गुरु पूर्णिमा के दिन बुजुर्ग व्यक्ति का अपमान नहीं करना चाहिए। इस दिन मांस-मदिरा आदि तामसिक चीजों का सेवन न करें। ऐसा करने से गुरू की कृपा प्राप्त होने में समस्या आने लगती है।
6- ज्ञान की वृद्धि के लिए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
ॐ गुं गुरवे नम:।
ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
किसी लेखक की कलम.... से प्रेरित
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 8 जुलाई 2025*
*🎈दिन- मंगलवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- त्रयोदशी 24:37:50* पश्चात चतुर्दशी*
*🎈 नक्षत्र - ज्येष्ठा 27:14:10 पश्चात मूल*
*🎈योग - शुक्ल 22:15:59 तक, तत्पश्चात् ब्रह्म*
*🎈करण - कौलव 11:57:22 पश्चात गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 07:31 pm
से 09:14 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:47:50*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:07*
*🎈चन्द्र राशि- वृश्चिक till 27:14:10*
*🎈चन्द्र राशि- धनु from 27:14:10*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:24 ए एम से 05:05 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 08 से 01:01 ए एम, जुलाई 08तक*
🛟चोघडिया, दिन🛟
रोग 05:48 - 07:31 अशुभ
उद्वेग 07:31 - 09:14 अशुभ
चर 09:14 - 10:57 शुभ
लाभ 10:57 - 12:40 शुभ
अमृत 12:40 - 14:23 शुभ
काल 14:23 - 16:06 अशुभ
शुभ 16:06 - 17:49 शुभ
रोग 17:49 - 19:32 अशुभ
🛟चोघडिया, रात्रि 🛟
काल 19:32 - 20:49 अशुभ
लाभ 20:49 - 22:06 शुभ
उद्वेग 22:06 - 23:23 अशुभ
शुभ 23:23 - 24:40* शुभ
अमृत 24:40* - 25:57* शुभ
चर 25:57* - 27:15* शुभ
रोग 27:15* - 28:32* अशुभ
काल 28:32* - 29:49* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻🌹 ⛳जयापार्वती व्रत मंगलवार 08,जुलाई 2025
जयापार्वती प्रदोष पूजा मुहूर्त - 07:32 से 21:33- अवधि - 02 घण्टे 01 मिनट्स
जया पार्वती व्रत रविवार13, जुलाई 13, 2025 को समाप्त
गौरी व्रत रविवार 06,जुलाई 2025 को था।
जयापार्वती व्रत का महत्व
इस व्रत में कुंवारी कन्याएं या महिलाएं पांच दिनों तक फलहार खाकर और भगवान शिव की पूजा करने के बाद व्रत के अंतिम दिन युवतियां पूरी रात जागती हैं और सुबह जल्दी उठकर ब्राह्मण या साधु के घर भोजन सामग्री के साथ दान देकर व्रत पूरा करती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार बचपन से ही तरह-तरह के व्रत करने के संस्कार मिलते हैं। जया पार्वती का पहला व्रत माता पार्वती ने शिवाजी को पति के रूप में पाने के लिए किया था। माता पार्वती द्वारा किए गए व्रतों को महिलाएं और लड़कियां करती हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक लड़कियों द्वारा किया जाने वाला व्रत गौरी व्रत या गोरियो कहलाता है, जबकि सौभाग्यशाली महिलाओं और वृद्ध महिलाओं द्वारा किए गए इस व्रत को जया पार्वती व्रत कहा जाता है।
इस व्रत को करने से पति के स्वास्थ्य में सुधार होता है। बच्चों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। यह व्रत आषाढ़ सूद तेरस से आषाढ़ सूद बीज तक पांच दिनों तक चलता है। इस दिन युवतियां और महिलाएं जल्दी उठकर नहा कर शिलालय में जाकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इन पांच दिनों में स्त्रियां सूखे मेवे या दूध के साथ बिना नामक का भोजन करती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत 30 वर्ष तक करना होता है। व्रत पूरा करने के लिए लोक कथाओं के अनुसार जागना होता है। व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत समाप्त होने के बाद ब्राह्मण दंपत्ति का व्रत करना चाहिए। हो सके तो जोड़े को कपड़े पहनाएं। साथ ही सौभाग्य की अखंडता के लिए कंकू और काजल का दान करें। जिस घर में लड़कियां और महिलाएं यह व्रत करती हैं, वह घर खुशियों से भर जाता है। इस व्रत के अंतिम दिन कुंवारी लड़कियां और महिलाएं जागती हैं।
अत्यंत संस्कारी और अच्छे पति की चाहत रखने वाली कन्या या कुंवारी युवतियां, यदि इस व्रत को शास्त्रों के अनुसार बड़ी श्रद्धा से करती है, तो उसके मन की मनोकामना पूर्ण होती है। मां पार्वती हमेशा उन पर अपना अशीर्ववाद बनाए रखती हैं।
इस दिन भगवान शिव की पूजा कराना अत्यंत ही शुभ माना जाता है, अगर आप इस दिन भगवान शिव का रूद्राभिषेक कराना चाहते हैं, तो यहां क्लिक करें…
इस व्रत की कथा
एक समय में कौदिन्य नामक नगर में वामन नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उनकी पत्नी का नाम सत्या था। उसके घर में कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन वह बहुत दुखी था, क्योंकि वहां उसके बच्चे नहीं थे। एक दिन नारदजी उनके पास आए। उन्होंने नारदजी की सेवा की और उनकी समस्या का समाधान मांगा। तब नारदजी ने कहा कि जंगल के दक्षिणी भाग में बिली वृक्ष के नीचे, भगवान शंकर माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजमान हैं। उनकी पूजा करने से निश्चित ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने शिवलिंग को पाया और पूरे विधि-विधान से उसकी पूजा की। इस प्रकार पूजा का क्रम चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए। एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजा के लिए फूल चुन रहे थे, उन्हें एक सांप ने काट लिया और जंगल में गिर गए। ब्राह्मण नहीं लौटा, तो उसकी पत्नी उसे खोजने निकल पड़ी। अपने पति को बेहोश देखकर वह विलाप करने लगी और पार्वती को याद करने लगी।
ब्राह्मणी की दयनीय पुकार सुनकर, माता पार्वती वहां पहुंच गई और ब्राह्मण के मुंह में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ गया। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती की पूजा की। माता पार्वती ने उनसे आशीर्वाद मांगने को कहा। फिर दोनों ने संतान की मांग की। तब माता पार्वती ने उनसे जया पार्वती का व्रत करने को कहा। ब्राह्मण दंपति ने यह अनुष्ठान किया और परिणामस्वरूप उन्होंने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया।
कैसे मनाया जाता है गौरी व्रत
गौरी व्रत में बोए जाते हैं सात प्रकार के अनाज
यह व्रत जिसमें सात अलग-अलग प्रकार के अनाज के बीज घर पर बोए जाते हैं, इन बोए गए बीजों को चार दिनों तक सुरक्षित रखा जाता है। चौथे दिन जागने के बाद पांचवें दिन इसे नदी, वाव (बावड़ी) या सरोवर में बहा दिया जाता है। इन दिनों व्रत करने वाला रोज सुबह भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करता है और बिना नमक वाली चीजें ही खाता है।
गौरी व्रत के नियम
5 दिनों की अवधि में इस व्रत को करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है। इस व्रत के दौरान –
गेहूं या गेहूं से बनी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए।
मसाले, सादा नमक और कुछ सब्जियां जैसे टमाटर का भी सेवन 5 दिन की अवधि के दौरान नहीं करना चाहिए।
पांच दिन का उत्सव
पहले दिन- गेहूं के बीजों को मिट्टी के बर्तन में लगाया जाता है, जिसे सिंदूर से सजाया जाता है, ‘नगला’ (रूई से बना एक हार जैसी माला) पहनाया जाता है। भक्त 5 दिनों तक इस बर्तन की पूजा करते हैं.
दूसरे से चौथे दिन- महिलायें शिवालय जाती हैं और शिव पार्वती की पूजा करती हैं।
पांचवें दिन- महिलाएं पूरी रात जागती रहती हैं और जया पार्वती जागरण (भजन, भजन, आरती करना) करती हैं।
छठे दिन- गेहूं से भरा हुआ घड़ा किसी भी जलाशय या पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है।
मां गौरी की आरती
जय आद्य शक्ति माँ जय आद्य शक्ति
अखंड ब्रहमाण्ड दिपाव्या
पनावे प्रगत्य माँ
द्वितीया में स्वरूप शिवशक्ति जणु
माँ शिवशक्ति जणु
ब्रह्मा गणपती गाये
ब्रह्मा गणपती गाये
हर्दाई हर माँ
तृतीया त्रण स्वरूप त्रिभुवन माँ बैठा
माँ त्रिभुवन माँ बैठा
दया थकी कर्वेली
दया थकी कर्वेली
उतरवेनी माँ
चौथे चतुरा महालक्ष्मी माँ
सचराचल व्याप्य
माँ सचराचल व्याप्य
चार भुजा चौ दिशा
चार भुजा चौ दिशा
प्रगत्य दक्षिण माँ
पंचमे पन्चरुशी पंचमी गुणसगणा
माँ पंचमी गुणसगणा
पंचतत्व त्या सोहिये
पंचतत्व त्या सोहिये
पंचेतत्वे माँ
षष्ठी तू नारायणी महिषासुर मार्यो
माँ महिषासुर मार्यो
नर नारी ने रुपे
नर नारी ने रुपे
व्याप्य सर्वे माँ
सप्तमी सप्त पाताळ संध्या सावित्री
माँ संध्या सावित्री
गऊ गंगा गायत्री
गऊ गंगा गायत्री
गौरी गीता माँ
अष्टमी अष्ट भुजा आई आनन्दा
माँ आई आनन्दा
सुरिनर मुनिवर जनमा
सुरिनर मुनिवर जनमा
देव दैत्यो माँ
नवमी नवकुळ नाग सेवे नवदुर्गा
माँ सेवे नवदुर्गा
नवरात्री ना पूजन
शिवरात्रि ना अर्चन
किधा हर ब्रह्मा
दशमी दश अवतार जय विजयादशमी
माँ जय विजयादशमी
रामे रावण मार्या
रामे रावण मार्या
रावण मार्यो माँ
एकादशी अगियार तत्य निकामा
माँ तत्य निकामा
कालदुर्गा कालिका
कालदुर्गा कालिका
शामा ने रामा
बारसे काला रूप बहुचरि अंबा माँ
माँ बहुचरि अंबा माँ
असुर भैरव सोहिये
काळ भैरव सोहिये
तारा छे तुज माँ
तेरसे तुलजा रूप तू तारुणिमाता
माँ तू तारुणिमाता
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
गुण तारा गाता
चौदशे चौदा रूप चंडी चामुंडा
माँ चंडी चामुंडा
भाव भक्ति कई आपो
चतुराई कही आपो
सिंहवासिनी माता
पूनम कुम्भ भर्यो साम्भळजे करुणा
माँ साम्भळजे करुणा
वशिष्ठ देवे वखाणया
मार्कण्ड देवे वखाणया
गाइये शुभ कविता
सवन्त सोळ सत्तावन सोळसे बविसमा
माँ सोळसे बविसमा
सवन्त सोळ प्रगट्या
सवन्त सोळ प्रगट्या
रेवाने तीरे माँ गंगाने तीरे
त्रंबावटी नगरिमा रूपावटी नगरी
माँ रूपावटी नगरी
सोळ सहस्त्र त्या सोहिये
सोळ सहस्त्र त्या सोहिये
क्षमा करो गौरी
माँ दया करो गौरी
शिवभक्ति नि आरती जे कोई गाये
माँ जे कोई गाये
बणे शिवानन्द स्वामी
बणे शिवानन्द स्वामी
सुख सम्पति ध्यसे
हर कैलाशे जशे
माँ अंबा दुःख हरशे
भाव न जाणू भक्ति न जाणू नव जाणु सेवा
माँ नव जाणू सेवा
वल्लभ भट्ट्ने आपि
एवो अमने आपो
चरणोंनी सेवा
माँ नी चुंदड़ी लाल गुलाल शोभा अतिसारी
माँ शोभा अतिसारी
आँगन कुकड़ नाचे
आँगन कुकड़ नाचे
जय बहुचर वाळी
माँ नो मंडप लाल गुलाल शोभा अतिसारी
माँ शोभा अतिसारी
हू छू बाळ तमारो
हू छू बाळ तमारो
राखो नीज चरणे
मंगला गौरी आरती
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
विपरीत यदि कुंडली में राहु खराब है और शनि भी खराब है तब ऐसी स्थिति में खराब परिणाम मिलना आवश्यक है राहु शनि दोनों के खराब होने से खराब काम होते हैं असफलता मिलती है
शेष भाग आगे......
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 7 जुलाई 2025*
*🎈दिन- सोमवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- द्वादशी 23:09:41* पश्चात त्रयोदशी*
*🎈 नक्षत्र - अनुराधा 25:10:43 पश्चात ज्येष्ठा*
*🎈योग - शुभ 22:01:22 तक, तत्पश्चात् शुक्ल*
*🎈करण - बव 10:15:10 पश्चात कौलव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 07:31 pm
से 09:14 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:47:50*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:07*
*🎈चन्द्र राशि- वृश्चिक till 27:14:10*
*🎈चन्द्र राशि- धनु from 27:14:10*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:24 ए एम से 05:05 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 08 से 01:01 ए एम, जुलाई 08तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत 05:48 - 07:31 शुभ
काल 07:31 - 09:14 अशुभ
शुभ 09:14 - 10:57 शुभ
रोग 10:57 - 12:40 अशुभ
उद्वेग 12:40 - 14:23 अशुभ
चर 14:23 - 16:06 शुभ
लाभ 16:06 - 17:49 शुभ
अमृत 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग 20:49 - 22:06 अशुभ
काल 22:06 - 23:23 अशुभ
लाभ 23:23 - 24:40* शुभ
उद्वेग 24:40* - 25:57* अशुभ
शुभ 25:57* - 27:14* शुभ
अमृत 27:14* - 28:31* शुभ
चर 28:31* - 29:48* शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻🌹धन्दा यक्षिनी माला मंत्र (गुरू प्रम्परागत)🌹
सावन मे धन्दा यक्षिनी प्रयोग बहुत ही प्रचंड प्रभाव देता है क्युकी मां ये स्वरूप माहादेव जी के साथ विराजती है !! बड़े कर्ज खत्म हो ज़ाते है !! जीवन मे धन की कभी कमी नही होगी आपको मार्ग मिलता रहेगा !! ज़िससे आपको धन की कभी कमी नही आ सकती!! धन्दा यक्षिनी स्वयम मां पर्वाती का स्वरूप है !! जो यक्षो यक्षिनीयो से सेवित हुई है !! भगवान शिव को माहायक्ष बोला जाता है !!
धन्दा यक्षिनी स्वरूप मुख्या इनकी साधना आम व्यकती को धन प्रापती व्यपार व्रिधी के लिये ही करनी चाहिये !!
आप इसी से अन्दाजा लगा लिजिये की केदारनाथ की ये मुख्या शेत्रपाल है !! जब सारकार ने इनके मन्दिर को बदलना चाहा तो वाहां बादल फट गये थे !!केदारनाथ सबको पता होगा जब वाहां घोर तबाही हुई थी !!
इनही के कोप के कारण सबको नुक्सान झेलना परा था !! बाद मे सरसकार को भी फैसला बदलना पढा !! मन्दिर वही का वही है
पिहले लोगो ने बहुत समझाया मन्दिर को दुसरी जगाह ले जाने के लिये वाहां के लोगो ने कोट केस किये !! पर सरकार ने नही सुनी कोट का फैसला भी सरकार की तर्फ आया !!
ज़िस दिन सरकार ने शेरशार करने के लिये jcb मंगवायी उसी दिन बादल फट गये थे !! भ्यंकर मां का कोप देख कर सरकार को आपना फैसला बदलना परा था !! इतनी प्रचंड शक्ती इस मां के स्वरूप मे है !!
इनकी साधना तुरंत फलीभूत होती है !!ये स्वरूप अती प्रचंडता से जागृती कलियुग मे है !! इनकी साधना साधक विशेश
प्रकार की शक्तिया अर्जित करने के लिये करते है !!
🚩 जैसे आपको थोरा सा ग्यात क्रवाते है !! अगर आपको रोग बीमारी पकडी हुई है !! आप सब डोकटर के पास जा आये दवायी काम नही कर रही !!
तब एनके य़न्त्र को माला मंत्र जाप करते हुए शँख से अभीशेक करे !! 27 बार
4 बार तर्पन करे य्न्त्र का जो ज़ल होगा उसको रोगी व्यकती को दे !! 41 दिन के अन्दर उसका रोग खत्म होने लग जाता है !!
बाकी दृष्टीबधन कर देंना आदी जो गुपत शक्तिया इनही से प्रापत करते है !! यही साधना से शक्ती धन प्रापती होती रहती है
करजा मुक्ती भी विशेश प्रयोग है !! मुखया जो साधक नही है वो धन धान्या के लिये ही साधना करे !!
अगर किसी गर्भवती महिला इनका जाप करे तो उसको संतान दिव्य सौभागयाशाली प्रापती होती है !!
ज़िनको गर्भ नही रुक्ता तो यही साधना करके (प्रयोग विधी गुप्त ) इसको इस्त्री क्लावे को अभीमंत्रित करके बाजू मे धारन करे तो वो महिला गर्भवती हो जाती है !!
🚩नोट-- ये सभी प्रयोग तब सिध होंगे अगर इनकी विधिवत साधना करके इनके मंत्र जागृती आपने की है !!
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 6 जुलाई 2025*
*🎈दिन- रविवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- एकादशी 21:14:28* पश्चात द्वादशी*
*🎈 नक्षत्र - विशाखा 22:40:48 पश्चात अनुराधा*
*🎈योग - साध्य 21:26:02 तक, तत्पश्चात् शुभ*
*🎈करण - वणिज 08:08:27 पश्चात बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 05:47 pm
से 07:32 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:47:25*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:14*
*🎈चन्द्र राशि - तुला till 15:59:48*
*🎈चन्द्र राशि- वृश्चिक from 15:59:48 *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:24 ए एम से 05:05 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:20 ए एम, जुलाई 07 से 01:00 ए एम, जुलाई 07 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
उद्वेग 05:47 - 07:31 अशुभ
चर 07:31 - 09:14 शुभ
लाभ 09:14 - 10:57 शुभ
अमृत 10:57 - 12:40 शुभ
काल 12:40 - 14:23 अशुभ
शुभ 14:23 - 16:06 शुभ
रोग 16:06 - 17:49 अशुभ
उद्वेग 17:49 - 19:32 अशुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग 19:32 - 20:49 अशुभ
काल 20:49 - 22:06 अशुभ
लाभ 22:06 - 23:23 शुभ
उद्वेग 23:23 - 24:40* अशुभ
शुभ 24:40* - 25:57* शुभ
अमृत 25:57* - 27:13* शुभ
चर 27:13* - 28:30* शुभ
रोग 28:30* - 29:47* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 🌻श्री देव शयनी एकादशीव्रत🌻
🌻श्री देव पोढी़ एकादशी व्रत🌻🌻श्री हरि शयनी एकादशीव्रत🌻
06 जुलाई 2025,रविवार
🛟चातुर्मास प्रारंभ🛟
💥आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की श्री देव शयनी एकादशी व्रत 06 जुलाई 2025, रविवार को है🙏
💥देवशयनी एकादशी के बाद से चार माह के लिए व्रत और साधना का समय प्रारंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास कहते हैं सावन,भादो, आश्विन और कार्तिक इन 4 माह में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं होगा पूजा, तप और साधना के 4 माह रहेंगे 🙏
💥इस अवधि में यात्राएं रोककर संत समाज एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं, क्योंकि यह चार माह मांगलिक कार्यों के लिए नहीं बल्कि तप, साधना और पूजा के लिए होते हैं। इस 4 माह में की गई पूजा, तप या साधना जल्द ही फलीभूत होती है🙏🏻
💥सो जाते हैं प्रभु श्री हरि
चार माह के लिए देव यानी की श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसीलिए सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य बंद हो जाते हैं, क्योंकि हर मांगलिक और शुभ कार्य में श्री हरी विष्णु सहित सभी देवताओं का आह्वान किया जाता है और श्री हरि विष्णु संसार के पालन करता है पर इन चार मासों में प्रभु श्री हरि विष्णु की अनुपस्थिति होती है इन 4 मास में प्रभु श्री हरि राजा बलि के वहां पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाते हैं ऐसा भी कहा जाता है कि पाताल लोक में बलि को दिये हुए वरदान के वसीभुत वहां पहरेदारी भी श्री हरि विष्णु इन 4 मासों में करते हैं
💥सूर्य और चंद्र का तेज हो जाता है कम
💥देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते इसीलिए भी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं और प्रभु श्री हरि विष्णु जी की उपस्थिति भी नहीं होती है🙏
💥 इस अवधि में यात्राएं रोककर संत समाज एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं, क्योंकि यह चार माह मांगलिक कार्यों के लिए नहीं.... बल्कि तप, साधना और पूजा के लिए होते हैं इस माह में की गई पूजा, तप या साधना जल्द ही फलीभूत होती है🙏
💥भोजन में रखी जाती है सावधानी
💥मांगलिक कार्यों में हर तरह का भोजन बनता है लेकिन चातुर्मास में वर्षा ऋतु का समय रहता है। इस दौरान भोजन को सावधानी पूर्वक चयन करके खाना होता है अन्यथा किसी भी प्रकार का रोग हो सकता है। चारों माह में किस तरह का भोजन करना चाहिए और किस तरह का नहीं यह बताया गया है क्योंकि जठर की अग्नि मंद हो जाती है🙏
💥स्वास्थ्य सुधारने के माह
💥यह चार माह स्वास्थ्य सुधार कर आयु बढ़ाने के माह भी होते है। यदि आप किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त हैं तो आपको इन चार माह में व्रत और चातुर्मास के नियमों का पालन करना चाहिए इन चार माह में बाल, दाढ़ी और नाखून भी नहीं काटने चाहिए 🙏
💥होती है मनोकामना पूर्ण
💥इन महीनों को कामना पूर्ति का महीना भी कहा जाता है। इन माह में जो भी कामना की जाती है उसकी पूर्ति हो जाती है, क्योंकि इस माह में प्रकृति खुली होती है🙏
💥सूर्य हो जाता है दक्षिणायन
💥सूर्य जब मकर राशि में भ्रमण कर लेते हैं तो उस समय से लेकर अभी के चातुर्मास देव शयनी समय तक का समय उत्तरायणका होता है यानी कि सूर्य की 6 माह तक गति उत्तर तरफ रहती है श्री हरि देव शयनी के बाद कर्क राशि में भ्रमण करने लगता है तो उसके बाद 6 माह वह दक्षिणायनरहता है यानी कि सूर्य देव की गति दक्षिण तरफ रहती है। दक्षिणायन को पितरों का समय और उत्तरायण को देवताओं का समय माना जाता है। इसीलिए दक्षिणायन समय में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं🙏
💥चार माह नहीं करते हैं ये कार्य
इन चार माह में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, जातकर्म ,संस्कार आदि कार्य नहीं किए जाते क्योंकि चातुर्मास को नकारात्मक शक्तियों के सक्रिय रहने का मास भी कहा जाता है. इसीलिए भी इस चातुर्मास में जप, तप, ध्यान, व्रत, दान ज्यादा किए जाते हैं🙏
💥शिव के गण रहते हैं सक्रिय
💥 चातुर्मास में श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए पाताल लोक में राजा बलि के यहां शयन करने चले जाते हैं और उनकी जगह भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं और तब इस दौरान शिवजी के गण भी सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में यह शिव पूजा, तप और साधना का होता है, मांगलिक कार्यों का नहीं🙏
💥ऋतुओं का प्रभाव
.
💥हिन्दू व्रत और त्योहार का संबंध मौसम से भी रहता है। अच्छे मौसम में मांगलिक कार्य और कठिन मौसम में व्रत रखें जाते हैं। चातुर्मास में वर्षा, शिशिर और शीत ऋतुओं का चक्र रहता है जो कि शीत प्रकोप पैदा करता है शीत प्रकोप के कारण जठराग्नि मंद हो जाती है, पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है, इसीलिए भी आरोग्य की दृष्टि से जप तप के द्वारा खाने में संयम रखने के लिए व्रत उपवास आदि किए जाते हैं 🙏
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
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*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 5 जुलाई 2025*
*🎈दिन- शनिवार *
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- दशमी 18:58:17* पश्चात एकादशी*
*🎈 नक्षत्र - स्वाति 19:50:18 पश्चात एकादशी*
*🎈योग - सिद्ध 20:34:35 तक, तत्पश्चात् साध्य*
*🎈करण - गर 18:58:17 पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 10:56 pm
से 12:40 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:46:36*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:23*
*🎈चन्द्र राशि - तुला *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:24 ए एम से 05:05 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, जुलाई 06 से 01:00 ए एम, जुलाई 06 तक*
*🎈 रवि योग 05:46 ए एम से 07:51 पी एम*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर 05:47 - 07:30 शुभ
लाभ 07:30 - 09:13 शुभ
अमृत 09:13 - 10:56 शुभ
काल 10:56 - 12:40 अशुभ
शुभ 12:40 - 14:23 शुभ
रोग 14:23 - 16:06 अशुभ
उद्वेग 16:06 - 17:49 अशुभ
चर 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग 19:32 - 20:49 अशुभ
काल 20:49 - 22:06 अशुभ
लाभ 22:06 - 23:23 शुभ
उद्वेग 23:23 - 24:40* अशुभ
शुभ 24:40* - 25:57* शुभ
अमृत 25:57* - 27:13* शुभ
चर 27:13* - 28:30* शुभ
रोग 28:30* - 29:47* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 #ॐ_श्री_गुरूवे_नमः:---
माता सती के बार अनुरोध करने पर भगवान शिव ने कहा-----
यो गुरु स शिवः प्रोक्तो, यः शिवः स गुरुस्मृतः |
विकल्पं यस्तु कुर्वीत स नरो गुरुतल्पगः ||
जो गुरु हैं वे ही शिव हैं, जो शिव हैं वे ही गुरु हैं | दोनों में जो अन्तर मानता है वह गुरुपत्नीगमन करनेवाले के समान पापी है |
वेद्शास्त्रपुराणानि चेतिहासादिकानि च |
मंत्रयंत्रविद्यादिनिमोहनोच्चाटनादिकम् ||
शैवशाक्तागमादिनि ह्यन्ये च बहवो मताः |
अपभ्रंशाः समस्तानां जीवानां भ्रांतचेतसाम् ||
जपस्तपोव्रतं तीर्थं यज्ञो दानं तथैव च |
गुरु तत्वं अविज्ञाय सर्वं व्यर्थं भवेत् प्रिये ||
हे प्रिये ! वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास आदि मंत्र, यंत्र, मोहन, उच्चाट्न आदि विद्या शैव, शाक्त आगम और अन्य सर्व मत मतान्तर, ये सब बातें गुरुतत्व को जाने बिना भ्रान्त चित्तवाले जीवों को पथभ्रष्ट करनेवाली हैं और जप, तप व्रत तीर्थ, यज्ञ, दान, ये सब व्यर्थ हो जाते हैं | (19, 20, 21)
#शिवतत्व:-----
३६ तत्त्व हैं। इनको तीन मुख्य भागों द्वारा समझ सकते हैं -
गुरू ही शिव है शिव ही गुरू है मुख्य रुप से यह तीन तत्व ही है बाकी विभाग है।
(1) शिवतत्व,
(2) विद्यातत्व
(3) आत्मत्व।
1--#शिवतत्व
शिवतत्व में शिवतत्व और (2) शक्तितत्व का अंतर्भाव है। परमशिव प्रकाशविमर्शमय है। इसी प्रकाशरूप को शिव और विमर्शरूप को शक्तितत्व कहते हैं। जैसा प्रारंभ में कहा जा चुका है, पूर्ण अकृत्रिम अहं (मैं) की स्फूर्ति को विमर्श कहते हैं। यही स्फूर्ति विश्व की सृष्टि, स्थिति और संहार के रूप में प्रकट होती है। बिना विमर्श या शक्ति के शिव को अपने प्रकाश का ज्ञान नहीं होता। शिव ही जब अंत:स्थित अर्थतत्व को बाहर करने के लिये उन्मुख होता है, शक्ति कहलाता है।
(3) सदाशिव, (4) ईश्वर और (5) सद्विद्या।
सदाशिव शक्ति के द्वारा शिव की चेतना अहं और इदं में विभक्त हो जाती है। परंतु पहले अहमंश स्फुट रहता है और इदमंश अस्फुट रहता है। अहंता से आच्छादित अस्फुट इदमंश की अवस्था को सद्विद्या या शुद्धविद्यातत्व कहते हैं। इसमें क्रिया का प्राधान्य रहता है। शिव का परामर्श है "अहं"। सदाशिव तत्व का परामर्श है "अहमिदम्"। ईश्वरतत्व का परामर्श है "इदमहं"। शुद्धविद्यातत्व का परामर्श है "अहं इदं च"।
यहाँ तक "अहं" और "इद" में अभेद रहता है।
#आत्म_के३१तत्व :-
(6) माया, (7) कला, (8) विद्या, (9) राग, (10) काल, (11) नियति, (12) पुरुष, (13) प्रकृति, (14) बुद्धि (15) अहंकार, (16) मन,
#पंच कर्मेन्द्रियाँ
(17-21) श्रोत्र; त्वक्, चक्षु, जिह्वी, घ्राण (पंचज्ञानेंद्रिय)
(22-26) पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक् (पञ्च कर्मेन्द्रिय)
#तनमात्राऐं
(27-31) शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध (पंच तन्मात्राएँ),
#पंचमहाभूत
(32-36) आकाश, वायु, तेज (अग्नि), आप (जल), भूमि (पंचभूत)।
(6) माया - यह अहं और इदं को पृथक् कर देती है। यहीं से भेद-बुद्धि प्रारंभ होती है। अहमंश पुरुष हो जाता है और इदमंश प्रकृति। माया की पाँच उपाधियाँ हैहृ कला, विद्या, राग, काल और नियति। इन्हें "कंचुक" (आवरण) कहते हैं, क्योंकि ये पुरुष के स्वरूप को ढक देते है। इनके द्वारा पुरुष की शक्तियाँ संकुचित या परिमित हो जाती हैं। इन्हीं के कारण जीव परिमित प्रमाता कहलाता है। शांकर वेदांत और त्रिक्दर्शन की माया एक नहीं है। वेदांत में माया आगंतुक के रूप में है जिससे ईश्वरचैतन्य उपहित हो जाता है। इस दर्शन में माया शिव की स्वातंत्र्यशक्ति का ही विजृंभण मात्र है जिसके द्वारा वह अपने वैभव को अभिव्यक्त करता है।
(7) कला सर्वकर्तृत्व को संकुचित करके अनित्यत्व प्रस्थापित करता है।
(8) विद्या सर्वज्ञत्व को संकुचित कर किंचिज्ज्ञत्व लाती है।
(9) राग नित्यतृप्तित्व को संकुचित कर अनुराग लाता है।
(10) काल नित्यत्व को संकुचित करके अनित्यत्व प्रस्थापित करता है।
(11) नियति स्वातंत्र्य को संकुचित करके कार्य-कारण-संबंध प्रस्थापित करती है।
(12) इन्हीं कंचुकों से आवृत जीव पुरुष कहलाता है।
(13) प्रकृति महततत्व से लेकर पृथ्वीतत्व तक का मूल कारण है।
14 से 36 तत्व बिलकुल सांख्य की तरह हैं।
बन्ध आणव मल के कारण जीव बन्धन में पड़ता है। स्वातंत्र्य की हानि और स्वातंत्र्य के अज्ञान को आणव मल कहते हैं। माया के संसर्ग से उसमें मायीय मल भी आ जाता है। यही शरीर भुवनादि भिन्नता का कारण होता है। फल के लिये किए हुए धर्माधर्म कर्म और उसकी वासना से उत्पन्न हुए मल को कार्म मल कहते हैं। इन्हीं तीन मलों के कारण जीव बंधन में पड़ता है।
#नोट:-
इतना उपलब्धि के बाद गुरूत्व की प्राप्ति होती है इनका गुरू के पास तात्विक ग्यान होता है और गुरू इन सब का मर्मग्य और अधिष्ठाता होता है अब मुझको विवश न करे मै अभी इस योग्य नहीं हूँ 🙏
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 4 जुलाई 2025*
*🎈दिन- शुक्रवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- नवमी 16:31:08* पश्चात दशमी*
*🎈 नक्षत्र - चित्रा 16:48:54 पश्चात स्वाति*
*🎈योग - शिव 19:34:13 तक, तत्पश्चात् सिद्ध*
*🎈करण - कौलव 16:31:08 पश्चात गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 10:56 pm
से 12:40 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:46:36*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:23*
*🎈चन्द्र राशि - तुला *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:24 ए एम से 05:04 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, जुलाई 05 से 01:00 ए एम, जुलाई 05 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर 05:47 - 07:30 शुभ
लाभ 07:30 - 09:13 शुभ
अमृत 09:13 - 10:56 शुभ
काल 10:56 - 12:40 अशुभ
शुभ 12:40 - 14:23 शुभ
रोग 14:23 - 16:06 अशुभ
उद्वेग 16:06 - 17:49 अशुभ
चर 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग 19:32 - 20:49 अशुभ
काल 20:49 - 22:06 अशुभ
लाभ 22:06 - 23:23 शुभ
उद्वेग 23:23 - 24:40* अशुभ
शुभ 24:40* - 25:57* शुभ
अमृत 25:57* - 27:13* शुभ
चर 27:13* - 28:30* शुभ
रोग 28:30* - 29:47* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
नव रात्रि की नवमी तिथि 4 जुलाई, शुक्रवार को है। इसे भड़ली नवमी भी कहा जाता है। इस दिन, भक्त देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और कुछ लोग कन्या पूजन भी करते हैं। गुप्त नवरात्रि में, तांत्रिक साधनाओं और मंत्रों का जाप किया जाता है।
गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि, जिसे भड़ली नवमी भी कहा जाता है, 4 जुलाई, शुक्रवार को है. यह दिन देवी दुर्गा की पूजा और तांत्रिक साधनाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. कुछ लोग इस दिन कन्या पूजन भी करते हैं.
नवमी तिथि का महत्व:
यह दिन देवी दुर्गा की पूजा और तांत्रिक साधनाओं के लिए महत्वपूर्ण है.
कुछ लोग इस दिन कन्या पूजन भी करते हैं।
यह दिन अबूझ मुहूर्त माना जाता है और शुभ कार्यों के लिए भी अच्छा माना जाता है।
पूजा विधि:
देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
कलश स्थापना करें।
देवी दुर्गा की पूजा करें, आरती करें, और मंत्रों का जाप करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
कन्या पूजन करें (वैकल्पिक).
नवमी तिथि के दिन, कुछ लोग घट विसर्जन भी करते हैं।
🙏
★👉🔥"पीली सरसों का चमत्कारी ढाला!"
✋ "रुके काम चलेंगे,बंधन टूटेंगे!"
🧿 "नजर, टोटका, नकारात्मकता सब खत्म!"
दोस्तो, आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए लेकर आए हैं पीली सरसों का एक चमत्कारी प्रयोग, जिसे करने से आपके रुके हुए काम बन सकते हैं, नकारात्मकता दूर होती है, और सौभाग्य व सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
🌾 पीली सरसों का शक्तिशाली ढाला (प्रयोग)
📌 यह प्रयोग किनके लिए है:
जिनके व्यापार में रुकावट है
दुकान, फैक्ट्री, ऑफिस में काम नहीं चल रहा
कोई अज्ञात नकारात्मक शक्ति प्रभाव डाल रही है
घर में डरावने सपने, अजीब घटनाएं हो रही हैं
शरीर पर नीले निशान बनते हैं या महसूस होता है किसी ने कुछ कर रखा है
🪔 प्रयोग - 1: कारोबार, दुकान या फैक्ट्री के लिए
आवश्यक सामग्री:
पीली सरसों (थोड़ी-सी मुट्ठी भर)
सरसों का तेल
दीपक (या कोई जलती अग्नि)
दीये की बाती
विधि:
1. शनिवार के दिन सुबह या शाम को यह प्रयोग करें।
2. एक मुट्ठी पीली सरसों लें।
3. सरसों के तेल में बाती डालकर एक दीया तैयार करें।
4. अपनी दुकान, फैक्ट्री या ऑफिस के चारों ओर दीये को 7 बार घुमाएं (घड़ी की दिशा में)।
5. फिर उसी दीये में वह पीली सरसों डाल दें।
6. अब दीया वहीं पर जला दें, जहां काम रुक रहा है।
7. ध्यान रखें कि सारी सरसों जल जानी चाहिए, कोई दाना बचना नहीं चाहिए।
8. अगर दीया न जले या सरसों न जले, तो आप उसे जलती हुई आग में भी डाल सकते हैं।
> यह प्रयोग सिर्फ तीन बार – शनिवार, रविवार, सोमवार करना है।
🔥 प्रयोग - 2: नकारात्मक ऊर्जा, नजर दोष, भय, गलत सपने आदि के लिए
आवश्यक सामग्री:
पीली सरसों – थोड़ी-सी
जलती हुई आग (अंगीठी, हवन अग्नि या लकड़ी की आग)
विधि:
1. शनिवार से यह प्रयोग शुरू करें और लगातार 7 दिन करें।
2. रोज सुबह या शाम, एक मुट्ठी पीली सरसों लें।
3. उसे अपनी मुट्ठी में लेकर अपने सिर से सात बार घुमाएं।
4. फिर वह सरसों जलती हुई आग में डाल दें।
> ऐसा करने से यदि कोई बुरी शक्ति, नजर दोष, टोना-टोटका, या नकारात्मक ऊर्जा साथ लगी हो, वह तुरंत हट जाती है।
पीली सरसों साफ और शुद्ध होनी चाहिए।
प्रयोग करते समय मन में विश्वास और सकारात्मक भावना होनी चाहिए।
एक बार ली गई सरसों दोबारा प्रयोग में न लें।
प्रयोग के समय आसपास शांति रखें।
> यह प्रयोग हजारों लोगों ने आज़माया है और बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
अगर आप भी अपने जीवन में बदलाव चाहते हैं, तो श्रद्धा और विधिपूर्वक इसे ज़रूर करें।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 3 जुलाई 2025*
*🎈दिन- गुरुवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- अष्टमी 14:06:08* पश्चात नवमी*
*🎈 नक्षत्र - हस्त 13:49:27 पश्चात चित्रा*
*🎈योग - परिघ 18:34:16 तक, तत्पश्चात् शिव*
*🎈करण - बव 14:06:08 पश्चात कौलव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 12:39 pm
से 02:22 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:45:50*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:27*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या till 27:18:03*
*🎈चन्द्र राशि - तुला from 27:18:03*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:23 ए एम से 05:04 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, जुलाई 04 से 01:00 ए एम, जुलाई 04 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ 05:46 - 07:29 शुभ
अमृत 07:29 - 09:12 शुभ
काल 09:12 - 10:56 अशुभ
शुभ 10:56 - 12:39 शुभ
रोग 12:39 - 14:22 अशुभ
उद्वेग 14:22 - 16:06 अशुभ
चर 16:06 - 17:49 शुभ
लाभ 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग 19:32 - 20:49 अशुभ
शुभ 20:49 - 22:06 शुभ
अमृत 22:06 - 23:23 शुभ
चर 23:23 - 24:39* शुभ
रोग 24:39* - 25:56* अशुभ
काल 25:56* - 27:13* अशुभ
लाभ 27:13* - 28:29* शुभ
उद्वेग 28:29* - 29:46* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
🙏
★ #👉लोग अधिकतर रोज पूछते है की हम भगवान की बहुत पूजा करते है हर पाठ, हर मंत्र उनमे ग्रहो के भी है, लेकिन फिर भी दुखी ही है काम काज बर्बाद हों गया, भगवान कर्म की ऒर अग्रसर करने को कहते है न की कर्म और धर्म से हट कर पूजा पाठ मे लगा रहे जातक लेकिन अपनी श्रद्धा है यह ये भी आवश्यक है जीवन काल्याण हेतु.. खैर चलिए छोटी बात और ग्रह योग से जानते है की क्यों आखिर फल नी देती, जैसे मंगल के लिए 90% लोग हनुमान जी शरण मे जाते है वैसे ही और भी है.
जब भी मगंल अधिक खराबी के हालाद मे हो और कुडंली का दूसरा और नवां घर पिडित हो तो जितनी चाहे पूजा करो कोई फल नही मिलता मगंल और खराब फल देता है यहा जब भी अधिक पूजा पाठ करेगे फल विपरीत मिलेगे ऐ भी पाता हू की यदि बृहस्पत या केतू दूसरे घर या नवें घर मे होगे और खराबी मे हो या इन भावो के स्वामी होकर 6-8 मे पिडित हो तो जातक पूजा पाठ मे लगा रहेगा पर दुखी रहेगा ऐसा जातक पारीवारिक सुखो को नही भोग पाता है जिम्मेदारी बोझ समझकर दुखी रहेगा अब वो मदिंरो के चक्कर काटता रहेगा उसका भाग्य जो पिडित है वो कर्म से भागेगा । बात शनि देव की करे अधिकतर लोग और ज्योतिष गण शनि देव को तुला मे उच्च मान कर ध्यान नही देते है लोग तो बडे खुश होते है कि भाई उच्च का शनि है ऐ बुरा कैसे लाखो रूपय का कर्जा इन्ही उच्च शनि वालो पर पाया है मैने कारण जब समझाया तो वो ऐ की शनि यदि सुर्य घर जिसे मगंल का भी मानते है पहला घर वहा तुला का बैठा शनि और उस घर अधिपति 6-8-12 मे पिडित हो या राहू से चोट खा रहा हो तो एक तो बिमारी आऐ दिन लगी रहती है मन दुखी शरिर पर खायापिया नी लगता थकान कमजोरी देगा अब पहले घर का शनि 3-7-10 को भी चोट देगा पैसा बचेगा नी शादी के हालाद खराब इसका कारण दसवा घर पिडित यानी काम नही होगा तो शादी होनी या करनी असभंव है या शादीशुदा जिदंगी खराब अब यदि चौथे घर का तुला का शनी इन पर लोन और कर्ज हमेशा बना रहता है चुकाऐगा फिर लेगा इस घर का मालिक चद्र यदि 6-8-12 मे हो और शुक्र मगंल से सुर्य से पिडित हो तो फिर बरबाद समझो वो यही बात बोलता और रोता है की उसने क्या पाप किऐ की नर्क जैसी जिदंगी न माता पिता का सुख इनका होना भी न के बराबर है न पैसे का सुख न मान सम्मान कुछ नही ऐसा आदमी यदि माता के नाम पर काम शुरू करे जमीन खरीदे तो या खुद से तॅ बरबादी और समझो ऐसा आदमी काम बदलता रहेगा पैसा डूबता रहेगा पर होता कुछ नही अब यदि चौथे मे बुध और शुक्र साथ हो मगंल दसवे हो तो फिर जिस काम मे हाथ डालेगा खूब पैसा कमाऐगा सुख भी भोगता है परर एक सुख नही भोगता औलाद का या तो होगी नही या शादी नही करता या औलाद पैदा करने ताकत नही होती कजूंस भी होगा ।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 2 जुलाई 2025*
*🎈दिन- बुधवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- सप्तमी 11:57:52* पश्चात अष्टमी*
*🎈 नक्षत्र - उत्तर फाल्गुनी 11:06:15 पश्चात हस्त*
*🎈योग - वरियान 17:45:14 तक, तत्पश्चात् वरियान*
*🎈करण - वणिज 11:57:52 पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 12:39 pm
से 02:22 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:45:50*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:27*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या *
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:23 ए एम से 05:04 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं *
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, जुलाई 03 से 01:00 ए एम, जुलाई 03 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ 05:46 - 07:29 शुभ
अमृत 07:29 - 09:12 शुभ
काल 09:12 - 10:56 अशुभ
शुभ 10:56 - 12:39 शुभ
रोग 12:39 - 14:22 अशुभ
उद्वेग 14:22 - 16:06 अशुभ
चर 16:06 - 17:49 शुभ
लाभ 17:49 - 19:32 शुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग 19:32 - 20:49 अशुभ
शुभ 20:49 - 22:06 शुभ
अमृत 22:06 - 23:23 शुभ
चर 23:23 - 24:39* शुभ
रोग 24:39* - 25:56* अशुभ
काल 25:56* - 27:13* अशुभ
लाभ 27:13* - 28:29* शुभ
उद्वेग 28:29* - 29:46* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
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★ #मेरे द्वारा लिखी हुई सभी पोस्टें फेसबुक के द्वारा और मैसेंजर द्वारा हजारों नहीं तो सैकड़ों सरकार और सभी वर्गों के समाज तक तो पहुंचती होगी।
सन् 2017 से ग्लोबल वार्मिंग,बायु प्रदूषण, कोरोना से लेकर सभी वैज्ञानिक विषयों पर,धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष पर कुछ न कुछ लिखकर आज तक भेज रहा हूं।अब फेसबुक पर बातें करने वाला समाज और विद्वान उस विषय पर बात नहीं करता है।
1- जिस समय विश्व में कोरोना हुआ। इन्टरनेट शोसल मीडिया पर कोरोना का कारण काल संक्रमण के लिए लिखा।इससे बचने का भी उपाय लिखा।उसके उपरांत भी भारत सरकार या समाज ने मेरे द्वारा लिखे हुए विषयों पर ध्यान नहीं दिया। लाखों की संख्या में मौतें हुई।और आज तक कोरोना का मूल कारण भारत सरकार या वैज्ञानिक नहीं खोज पाये?और न ही काल संक्रमण क्या होता है।इसको हिन्दू धर्म के ज्योतिषाचार्य और वैज्ञानिक समझ पाये और न ही जानते हैं?जब कि काल संक्रमण की खोज और इसके कारणों को विश्व का वैज्ञानिक नहीं खोज सकता है। इन्टरनेट शोसल मीडिया पर लिखने के उपरांत भी भारत ने अपने को नहीं बचा पाया।
आज मुझे महान दुख इस भारत में हो रहा है।जब भी कोई भी विषय भारत के सनातन धर्म का ईश्वर या भगवान का विषय जन्मता है।और धर्माचार्यों के कारण गरीब जनता,,मूर्ख जनता मरती है।
2- कल्कि अवतार, युग परिवर्तन,समय का अंत होना, उड़ीसा के संत अच्युतानंद जी की भविष्य मालिका की भविष्यवाणी की चर्चा इन्टरनेट शोसल मीडिया पर हिन्दू धर्म के सभी प्रमुख ज्योतिषाचार्यो और विद्वानों ने सैकड़ों बीडीओ बना कर श्री जगन्नाथ जी के मंदिर के प्रति कई भविष्य वाणीया की।उसके उपरांत भी सैकड़ों गरीबों पर ही बीती।
3- सुनो? हिन्दू धर्म के भविष्य वक्ताओ और विद्वानों?
हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों में वर्णित हिंदी भाषा का प्रत्येक शब्द त्रिगुणात्मक और रूड होता है।कभी जाना त्रिगुणात्मक शब्द की रचना और विज्ञान क्या है?रूडता क्या होता है।और इसकी विज्ञान क्या है? विश्व में कोई भी आज तक विद्वान पैदा नहीं हुआ है।किसी ने भी इन दोनों शब्दों की विज्ञान की खोज या चर्चा की हो।।किसी भी देश के वैज्ञानिक ने कितनी भी खोजें की हो,या आकाश के किसी भी ग्रह पर यानो को भेजा हो। लेकिन इन दोनों शब्दों की विज्ञान नहीं खोज पाया और न ही खोज सकता है?
4-ज्योतिष विज्ञान की रचना या सिद्धांतों के तीन स्वरूप होते हैं।एक सगुण और दूसरा निर्गुण तीसरा काल।अषाढ़ शुक्ल पक्ष द्विज को निकलने वाली भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा के विषय में हिन्दू धर्म के प्रमुख ज्योतिषाचार्यो ने मीडिया चैनलो पर जितनी भी भविष्य वाणियां की है।उनके दो स्वरूप, विज्ञान और प्रभाव है।पहला स्वरूप जो विषय आपकों नंगी आंखों से दिखाई देख रहा हैं। दूसरा स्वरूप जो उस विषय या घटना में दिखाई नहीं दे रहा है। अलौकिक है। तीसरा विषय,काल या समय,जिसके अंतर्गत हो रहा है।तो सगुण सदैव अलौकिक है। क्यों कि वह ईश्वर है। निर्गुण है।जो सामने दिखाई तो दे रहा है। लेकिन किसी शक्ति के द्वारा हो रहा है। इसलिए वह निर्गुण है।संत या विद्वान वहीं है।जो इन तीनों स्वरूपो को देख रहा है।अब यह दोनों विषय किसके अन्तर्गत हो रहै है।काल के अन्तर्गत?काल की रचना किसने की। हिन्दू धर्म की ज्योतिष विज्ञान ने,या धर्माचार्यों ने?किसके प्रति की ? ईश्वर के प्रति।
5- हिन्दू धर्म के धर्माचार्यों ने सगुण रूप से सभी भविष्यवाणी तो कर दी।और समय अर्थात काल के मुहूर्त की रचना कर दी।अब जो इन भयानक भविष्य वाणियों का जो निर्गुण प्रभाव होगा,उसका जिम्मेदार कौन होगा?यह गरीब और मूर्ख जनता?जिसको न तो धर्म का, ईश्वर,मोक्ष या काल का ज्ञान है।मोक्ष का ज्ञान देकर उनको मार रहे हो।अपने द्वारा की गई भविष्यवाणी का तो कोई निदान या उनसे किसी का बचाव कर रहे हो?
6- सभी ज्योतिषाचार्य़ो और धर्म विचारकों समझें?
विक्रम संवत 2081 का अषाढ़ मास की पडबा को अहमदाबाद में हवाई जहाज की दुर्घटना हुई।जो अषाढ़ मास की पड़बा का निर्गुण स्वरूप देखने को मिला।उसके उपरांत द्विज को बद्रीनाथ में हेलीकॉप्टर दुर्घटना तीज को नदी का पुल टुठने की दुर्घटना। इस प्रकार निर्गुण स्वरूप आप देख रहे हैं।इसके सगुण स्वरूप को ज्योतिष, धर्म या ईश्वर से भी आप जोड़िये।किन विषयों की हानि हुई है?
7- अषाढ़ शुक्ल पक्ष द्विज की यात्रा सैकड़ों वर्षों की जगन्नाथ पुरी की सनातन धर्म के ईश्वर की आत्म तत्व की यात्रा है।जिनमें ईश्वर की तीन मूर्तियों की निर्गुण रचनाये है। यात्रा में सभी से आगे सनातन धर्म के सभी ब्रम्हांडो के काल देवता आगे आगे चल रहे हैं।उनके पीछे-पीछे शक्ति।किसकी?आत्म तत्व की सगुण स्वरूप में।न कि भगवान की। सनातन धर्म के हिन्दू धर्म का काल का अंक का मास अषाढ़ की शुक्ल पक्ष द्विज को भारत के उड़ीसा जगन्नाथ जी के मंदिर का निर्गुण स्वरूप काल प्रथ्बी पर चार कदम चलकर और रुक गया।
8- सम्माननीय हिन्दू धर्म के गुरु आचार्यों निर्गुण आपके सामने है। अषाढ़ मास भी आपके सामने है।और घटनाएं भी आपके सामने है।मेरे ज्ञान के आधार पर प्रथ्बी का गुरु तत्व अषाढ़ शुक्ल पक्ष द्विज को समाप्त हो गया है। क्यों कि अषाढ़ मास ब्राम्हण जाति के गुरूओ का आदि काल मास है।उसके उपरांत अगले दिन व्रम्ह मुहूर्त में निकाली गई यात्रा उसकी भी निर्गुणता सभी के सामने है।अब विषय अहमदाबाद का? अहमदाबाद में हाथी के विचरने से जो भी निर्गुणता बनी उसे सगुण में आप सभी देखकर अब देश को बचाओ।
9- मेरे ज्ञान के आधार पर हिन्दू धर्म का गुरु मास का ब्रम्ह तत्व दोनों प्रभावित हुए हैं।जब यह दोनों तत्व प्रभावित हुए हैं। सभी हिन्दू धर्म का ब्राम्हण संत समाज इन विषयों पर गहन मंथन करके देश को बचाए। क्या कि इन विषयों का ज्ञान भारत सरकार,आर एस एस या वैज्ञानिक नहीं रखते हैं।अगर आप सक्षम नहीं है।तो मीडिया के द्वारा मुझ से वार्ता कर सकते हैं।
इन विषयों के हल होने से और भी सभी विषय हल हो सकते हैं। फेसबुक इन्फो और सभी सदस्यों से अनुरोध है कि इस पोस्ट को अधिक से अधिक लोगों के पास भेजे।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 1 जुलाई 2025*
*🎈दिन- मंगलवार*
*🎈संवत्सर -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि- षष्ठी 10:20:03 * पश्चात सप्तमी*
*🎈 नक्षत्र - पूर्व फाल्गुनी 08:52:49 पश्चात उत्तर फाल्गुनी*
*🎈योग - व्यतिपत 17:17:22 तक, तत्पश्चात् वरियान*
*🎈करण - तैतुल 10:20:03 पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 04:06pm
से 05:49 pm तक*
*🎈सूर्योदय - 05:45:28*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:27*
*🎈चन्द्र राशि - सिंह till 15:22:44*
*🎈चन्द्र राशि - कन्या from 15:22:44*
*🎈सूर्य राशि - मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:23 ए एम से 05:03 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:11 पी एम से 01:07 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, जुलाई 02 से 01:00 ए एम, जुलाई 02 तक*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
रोग 05:45 - 07:29 अशुभ
उद्वेग 07:29 - 09:12 अशुभ
चर 09:12 - 10:56 शुभ
लाभ 10:56 - 12:39 शुभ
अमृत 12:39 - 14:22 शुभ
काल 14:22 - 16:06 अशुभ
शुभ 16:06 - 17:49 शुभ
रोग 17:49 - 19:32 अशुभ
*🔵चोघडिया, रात🔵*
काल 19:32 - 20:49 अशुभ
लाभ 20:49 - 22:06 शुभ
उद्वेग 22:06 - 23:22 अशुभ
शुभ 23:22 - 24:39* शुभ
अमृत 24:39* - 25:56* शुभ
चर 25:56* - 27:12* शुभ
रोग 27:12* - 28:29* अशुभ
काल 28:29* - 29:46* अशुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.
🍁⚛️ ⚛️🌹👉*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
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★ #चन्द्रायान_व्रत_महात्म्यन् ★
विशेष नोट 👉🏻 : किसी भी अप्सरा साधना सिद्ध करने से पहले चन्द्रायण व्रत का प्रावधान है!
इस व्रत से आत्मा की शुद्धिकरण अथवा मन को सम्पूर्ण आश्वासन प्राप्ती की अनुभूति होती है!
🔹️पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है।
🔹️प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है।
🔹️इसके दो अर्थ होते है।
प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।
प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥
🔸️(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि।
✨️प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।
🔸️(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय।
✨️प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।
✨️दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना।
✨️तप का यही उद्देश्य भी है।
✨️चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है।
⚡️चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना।
*इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -*
_*(1) पिपीलिका मध्य चान्द्रायण*_
एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥
🌀 अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए।
🔹️चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे।
🔸️इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।
_*(2) यव मध्य चान्द्रायण*_
प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।
शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥
🌀 अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें।
🔹️फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे।
🔹️इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।
_*(3) यति चान्द्रायण*_
अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।
नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥
🔹️अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें।
🔹️इसे यति चांद्रायण कहते है।
🔸️इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।
_*(4) शिशु चान्द्रायण*_
बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।
चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥
⚡️अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें।
⚡️इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।
_*(5) मासपरायण :-*_
चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का (दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें।
‼️ भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।
🔸️तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है।
🔸️ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है।
🔸️बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है।
🔸️परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है।
🔸️एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है।
🔸️इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है।
🔸️पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी।
🔸️गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो।
🔸️पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।
🔸️जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है।
🔹️अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।
🌀 चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए।
✅️ भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है।
🔸️अनुष्ठान - एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है।
🔸️इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।
🔸️यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा।
लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है।
तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें।
_*प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर:-*_
ॐ।
भूः।
भूवः।
स्वः।
महः।
जनः।
तपः।
सत्यं।
यशः।
श्रीः।
अर्क।
ईट।
ओजः।
तेजः।
पुरुष।
धर्म।
शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा-
‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’।
ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं।
इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा
(2) ॐ भूः नमः स्वाहा
(3) ॐ भुवः नमः स्वाहा
(4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।
व्रत की समाप्ति पर मां भगवती भोजनालय में दान दें तथा सत्साहित्य और मन्त्रलेखन पुस्तिका ज्ञान दान में बांटे है।
★ ॐ क्रीं कालिकायै नमः ★
● ॐ ह्रौं अघोर शिवाय नमः ●
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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