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पंचांग 30-06-2025

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक -30 जून 2025*
*🎈दिन-   सोमवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    पंचमी    09:23:20 * पश्चात षष्ठी*
*🎈 नक्षत्र    -        मघा    07:19:45 पश्चात पूर्वा फाल्गुनी*
*🎈योग -         सिद्वि    17:19:25 तक, तत्पश्चात् व्यतिपत*
*🎈करण -     बालव    09:23:20 पश्चात      तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 07:29pm
से 09:12 pm तक*
kundli


*🎈सूर्योदय -     05:45:06*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:26*
*🎈चन्द्र राशि-       सिंह    *
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल -  पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:22 ए एम से 05:03 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:11 पी एम से 01:06 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:19 ए एम, जुलाई 01 से 12:59 ए एम, जुलाई 01 तक*

   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
 अमृत    05:45 - 07:29    शुभ
काल    07:29 - 09:12    अशुभ
शुभ    09:12 - 10:55    शुभ
रोग    10:55 - 12:39    अशुभ
उद्वेग    12:39 - 14:22    अशुभ
चर    14:22 - 16:06    शुभ
लाभ    16:06 - 17:49    शुभ
अमृत    17:49 - 19:32    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
 चर    19:32 - 20:49    शुभ
रोग    20:49 - 22:06    अशुभ
काल    22:06 - 23:22    अशुभ
लाभ    23:22 - 24:39*    शुभ
उद्वेग    24:39* - 25:56*    अशुभ
शुभ    25:56* - 27:12*    शुभ
अमृत    27:12* - 28:29*    शुभ
चर    28:29* - 29:45*    शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
🙏 हर आरती के बाद क्यों बोलते हैं "कर्पूरगौरं करुणावतारं..." मंत्र, 
किस देवता के लिये  है ये मंत्र!!!!

जब भी आरती पूर्ण होती है तो एक मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है। 
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि।।

इस मंत्र का अर्थ!!!!

इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-
कर्पूरगौरं- जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं- जो समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभवानी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

मंत्र का पूरा अर्थ- 

जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे हृदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

शिवपुराण के अनुसार शिवजी की इच्छा मात्र से ही इस सृष्टि की रचना ब्रह्माजी ने की है। भगवान विष्णु इसका संचालन कर रहे हैं। इसी वजह से शिवजी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सभी देवी-देवताओं की पूजा में इनका ध्यान करने से पूजा सफल होती है और सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं।भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा की गई थी । ये स्तुति इसीलिए गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें, औऱ हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें ।

आरती क्या है!!!!

ईश्‍वर की छवि को अच्छी तरह निहारकर हृदय में भर सकें। इसलिए आरती को नीराजन कहते हैं, क्योंकि इसमें भगवान की छवि को दीपक की लौ से विशेष रूप से प्रकाशित किया जाता है। आरती करने के दूसरे कारण के रूप में बताया गया है कि साधक अपने आराध्य के अरिष्टों को दीपक की लौ से नष्ट कर देता है। भगवान का रूप सौंदर्य अप्रतिम होता है।

पूजा के बाद आरती क्यों की जाती है!

स्कंदपुराण' में वर्णन है यदि कोई व्यक्ति पूजा विधि नहीं जानता है पूजा के मंत्र नहीं जानता तो उसे केवल आरती ही कर लेनी चाहिए केवल आरती करने मात्र से उसकी पूजा भगवान पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं। इसीलिए आरती हिन्दू धर्म में किसी भी देवी देवता की पूजा में महत्वपूर्ण मानी जाती है ।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱

🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 29 जून 2025*
*🎈दिन-   रविवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    चतुर्थी    09:13:58 * पश्चात पंचमी*
*🎈 नक्षत्र    -        आश्लेषा    06:33:14 पश्चात      मघा*
*🎈योग -     वज्र    17:57:24 तक, तत्पश्चात् सिद्वि*
*🎈करण -     विष्टि भद्र    09:13:58 पश्चात      बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है- 05:49pm
से 07:32 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:44:46*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:24*
*🎈चन्द्र राशि    -  कर्क    till 06:33:14
*🎈चन्द्र राशि-       सिंह    from 06:33:14*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:22 ए एम से 05:03 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:11 पी एम से 01:06 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:18 ए एम, जून 30 से 12:59 ए एम, जून 30 तक*

   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
 उद्वेग    05:45 - 07:28    अशुभ
चर    07:28 - 09:12    शुभ
लाभ    09:12 - 10:55    शुभ
अमृत    10:55 - 12:39    शुभ
काल    12:39 - 14:22    अशुभ
शुभ    14:22 - 16:05    शुभ
रोग    16:05 - 17:49    अशुभ
उद्वेग    17:49 - 19:32    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
 शुभ    19:32 - 20:49    शुभ
अमृत    20:49 - 22:06    शुभ
चर    22:06 - 23:22    शुभ
रोग    23:22 - 24:39*    अशुभ
काल    24:39* - 25:55*    अशुभ
लाभ    25:55* - 27:12*    शुभ
उद्वेग    27:12* - 28:29*    अशुभ
शुभ    28:29* - 29:45*    शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
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🙏गणपति प्रणव स्वरूप है, औम की अभिव्यक्ति है, वैश्विक सिद्धांत है जो माता पार्वती की योनी से उत्पन्न हुआ था। योनी या गर्भ ब्रह्मांडीय चेतना के आदिम स्थान का प्रतिनिधित्व करता है, जहां से गणेश अंतरिक्ष, समय और पदार्थ का एक अवतार पैदा होता है। हाथी, या गणपति का ट्रंक औकारा की पूंछ है, पूंछ देवी के ब्रह्मांडीय गर्भ से उत्पन्न ब्रह्मांड के निरंतर विस्तार का प्रतिनिधित्व करती है।

अपनी माँ गौरी के साथ गणपति की तांत्रिक शक्ति की पूजा सबसे शुभ मानी जाती है क्योंकि यह माँ-पुत्र की जोड़ी पूजा सगुण में निर्गुण की ओर बढ़ने का छिपा हुआ संदेश देती है। पर्व के पूरा होने के बाद पार्वती के योनी से पैदा हुए गणपति की हल्दी या मिट्टी के प्रतीक के रूप में विसर्जन के माध्यम से पानी में पिघल जाता है, पानी परब्रम्हण की ब्रह्मांडीय निराकारता में दिव्य रूप के कामुक पिघलने का प्रतिनिधित्व करता है। कामुक पिघलने किसी की शारीरिक पहचान की रिहाई और ब्रह्मांडीय चेतना के साथ विलय का प्रतिनिधित्व करती है जो दुनिया भर में फैली हुई है। विलय का अर्थ है माता की योनी में वापस आना, क्योंकि स्रोत के साथ वापस आना परम पारगमन है, जिसका आनंद सभी गुना से परे है।

शक्ति परंपरा के अनुसार गणपति की पूजा मुख्य रूप से एक शक्ति पत्नी के साथ उनके रूप में की जाती है, जैसे कि महागणपती, शक्ति गणपति, उचिष्ट गणपति, लक्ष्मी गणपति आदि।

विघ्न हर गणपति भक्तों को सहज सुलभ है, देवी के प्यारे पुत्र है, जो आपसे मित्रता करता है, विघ्न हरता है, और जब तक आप अंतिम मंजिल तक नहीं पहुँच पाते, तब तक साथ रहता है, जो स्रोत में विलीन है, सर्व चेतना की जननी श्रीदेवी।👈
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" 👉व्यक्ति का ज़ब वक्त बुरा सुरु होता है तो उससे सब छूटता जाता है जैसे कामकाज,,रिश्ते, स्वास्थ्य, हर तरफ निराशा हाथ लगती है, क्यूंकि उनकी न तोह तब दसा अनुकूल होती है ना उनमे चलने वाली अंतर दसाये, कहि न कही गोचर भी साथ नहीं देता उनकी यदि ज़ब हम कुंडली स्टडी करते है तोह उनका बुध अस्त, मंगल 8-12 मे मिलता है शुक्र या तो सूर्य से अस्त मिलता है चंद्र मंगल की राशि मे खास्तर वृश्चिक राशि मे दसा शनि मे राहु या राहु मे शनि मंगल.. बहुत सी कुंडली मे शुभ ग्रह की दसा भी जातक के लिए अनुकूल नहीं होती उनका पूछना होता है की चंद्र की शुक्र दसा मे इतना कस्ट क्यों फिर उनको एक सेमटेम्स समझाना पड़ता है तब जाके समझ पाते है 👉सभी ग्रहों की बात हम कर ही चुके हैं, यदि किसी का भी आशुभ फल हमें मिल रहा हैं तोह पहले ये कन्फर्म हों जाय की ओ जिस भाव, जिस राशि और जिस नक्षत्र मे है मित्रवत है की नहीं, ज्यादतर लोग ऐसे ही उपाय करते है और फल नही मिलता, अब जो ग्रह ख़राब हो रहा होगा उसका पहला असर हमारे शरीर पर पड़ता है जिस अंग को जो राशि व ग्रह प्रभावित करता है उशसे समन्धि दिक्कत होने लगती है, लेकिन कभी ये ध्यान दिया है की अधिकतर बिमारियों मे बुध की जरुरत हमें होती है आहार लेते समय, फिर शुक्र की, दवाई यानि नींच और ख़राब मंगल, बुध की जरुरत का मतलब मूंग की डाल का पानी या खिचड़ी, खास्तर पेट के रोगों मे, लिवर के रोगों मे, ब्रेन के रोग, या अधिक, बुद्ध नसो की विशाक्त को हटाने मे मदद करता है बुध लिवर रोगी को मूंग की डाल का सूप वाले लौकी के सूप मे जिन्दा रखता है और ठीक भी करता है क्योंकि लिवर यानी मंगल, गुरु, ज़ब ख़राब होंगे ओ भी दसा गोचर मे तो स्वस्थ जातक को भी रोगी करता है,, अब लिवर बड़ी आंत मे कचरा होने से या अधिक दिक्कत मान लो तो जातक पाचन तंत्र काम नी करता इसलिए सूप के लिए डॉ बोलते है अब इसमें आधा चमच देशी घी भी मिलाने को बोलते है या मिलाना चाइये यानी शुक्र शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे धीरे बढ़ाये और आनार का जूस भी. अब ये तोह था ज़ब शरीर के अंदर ख़राब ग्रह की भूमिका जन्म ले और ऐसे हाल हो.. अब बाहरी तौर पर ज़ब मंगल ख़राब होरा हो और खास्तर मांगलिक भावों मे इनमे भी 1,4,6,7,8,और में 12,मे तो जातक की आये दिन की चीज़े ख़राब होने लगते है अब बुध भी 12 हो तो जातक किये गए कर्म के लिए रात भर सो भी नी पाता, क्यूंकि बुध अगले दिन की टेंशन पहले ही बुद्धि मे देदेता है. 
जातक ने भविष्य के लिए अपना वर्तमान ही ख़राब करा हुआ है, आज हाय तोबा मचा के भविष्य के लिए जोड़कर चलता है, इधर से उधर सिर्फ पैंसा या तो कर्जा या उधार लेके घर गाडी बड़ी से बड़ी शौक की चीज लेके रखी है क्यूंकि तब समय ठीक चल रहा होता है लेकिन जैसे ही विपरीत स्थति होती है उनके ऊपर और बोझ बढ़ जाता है धीरे उधारी व लोन से घर के सुख ख़राब  होते जाते है हर दिन रात अपना शरीर तोड़ दिया और वही शरीर बिमारी का घर बन गयी..अब जिस धन को इक्कठा करने मे लगे हो क्या तुम भोग पावोगे उसका सुख ज्यादातर बुढ़ापे के हाल जिनकी कुंडली है मेरे पास है उनका सारा ख़राब हुआ पढ़ा है बुढ़ापा .. उनमे से 55% लोगो ने अपने परिवार भाई बहन पत्नी के लिए किया आज जैसे रोते है बता नी सकता, अब ये हाल क्यों बने सबमे अलग लेकिन ज़ब चंद्र, गुरु, मंगल 1,4 7मे हो और शनि 10 बुध सूर्य 1मे , और शुक्र केतु 12 ये जातक अपनी फ़िक्र नी करते, बस दुशरा ख़ुश रहे लेकिन इनपर राहु की युति बन जाय तो जो कर्ज लिया होगा ओ भी अगले से मांग कर देंगे और उसका दूसरे से यही कर्म चलता है जो नुकसान एक को नहीं सबको देता है.

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱

🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 28 जून 2025*
*🎈दिन-   शनिवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    तृतीया    09:53:24 * पश्चात चतुर्थी*
*🎈 नक्षत्र    -        पुष्य    06:34:38 पश्चात  आश्लेषा*
*🎈योग -     हर्शण    19:14:07 तक, तत्पश्चात् वज्र*
*🎈करण -     गर    09:53:24 पश्चात      विष्टि भद्र    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-10:55pm
से 12:38 pm तक*
gd



*🎈सूर्योदय -     05:44:07*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:15*
*🎈चन्द्र राशि    -   कर्क*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:22 ए एम से 05:02 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:10 पी एम से 01:06 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:18 ए एम, जून 29 से 12:59 ए एम, जून 29 तक*

   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
 चर    05:44 - 07:28    शुभ
लाभ    07:28 - 09:11    शुभ
अमृत    09:11 - 10:55    शुभ
काल    10:55 - 12:38    अशुभ
शुभ    12:38 - 14:22    शुभ
रोग    14:22 - 16:05    अशुभ
उद्वेग    16:05 - 17:49    अशुभ
चर    17:49 - 19:32    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
 रोग    19:32 - 20:49    अशुभ
काल    20:49 - 22:05    अशुभ
लाभ    22:05 - 23:22    शुभ
उद्वेग    23:22 - 24:38*    अशुभ
शुभ    24:38* - 25:55*    शुभ
अमृत    25:55* - 27:11*    शुभ
चर    27:11* - 28:28*    शुभ
रोग    28:28* - 29:44*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
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🙏महाविद्याओं की तीसरी देवी – माँ त्रिपुरासुंदरी (शोडशी)🙏
👉 " सौंदर्य, प्रेम और ब्रह्म ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी "👈
=====================================
" शोडशी मां त्रिपुरा सुन्दरी: श्री विद्या की अधिष्ठात्री और ब्रह्म ज्ञान की प्रतीक "

1. नाम और स्वरूप:

नाम: त्रिपुरासुंदरी, शोडशी, ललिता देवी, राजराजेश्वरी
स्वरूप:
 • सोलह वर्षीया कन्या के समान युवा और तेजस्वी
 • चार भुजाएँ – पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण किए हुए
 • लाल वस्त्रों में, सिंहासन पर विराजमान
 • श्रीविद्या तंत्र की मुख्य देवी
 • श्रीचक्र के मध्य विराजमान – जिससे पूरी सृष्टि का संचालन होता है

2. मंदिर स्थान:

 • ललिता त्रिपुरासुंदरी मंदिर, कुंभकोणम (तमिलनाडु)
 • श्री विद्याश्रम, मैसूर
 • कांची कामाक्षी मंदिर (माँ ललिता का स्वरूप)
 • त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)
 • त्रिपुरासुंदरी मंदिर, उदयपुर (त्रिपुरा राज्य)

3. देवी की शक्ति:

 • प्रेम, सौंदर्य, सामंजस्य और आत्मज्ञान की देवी
 • इनकी साधना से भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
 • ब्रह्मांड की रचना, स्थिति और संहार का संचालन करती हैं
 • श्रीविद्या तंत्र की अधिष्ठात्री – अद्वैत और भक्तियोग की सर्वोच्च देवी

4. पूजा विधि:

नियम:
 • मन और शरीर की पवित्रता आवश्यक है
 • गुरुमंत्र और श्रीचक्र के बिना साधना पूर्ण नहीं होती
 • सोलह उपचारों से पूजा (षोडशोपचार) विशेष फलदायक

पूजन सामग्री:

 • लाल फूल, चंदन, श्रीफल, पंचामृत
 • श्रीचक्र या यंत्र, सिन्दूर, दही-घी
 • श्रीसूक्त, त्रिपुरासुंदरी सहस्त्रनाम से पूजन

व्रत:
 • पूर्णिमा व्रत
 • नवरात्रि में विशेष पूजा
 • शोडशी जयंती (गुप्त नवरात्र म
5. मंत्र, जाप और यज्ञ:

बीज मंत्र:

“ह्रीं” – यह श्रीविद्या का महामंत्र बीज है

महामंत्र (पंचदशी मंत्र):

“क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं”
(यह गुरु दीक्षा से ही किया जाता है)

जाप विधि:

 • लाल चंदन या स्फटिक माला से 108 बार जाप करें
 • श्रीचक्र के सामने बैठकर ध्यान करें
 • नियम, संयम और समर्पण आवश्यक

यज्ञ विधि:

 • श्रीसूक्त, त्रिपुरासुंदरी स्तुति और सहस्त्रनाम से आहुति
 • श्रीचक्र हो तो उसमें कमल/त्रिकोण में दीप जलाएं

6. विशेष पर्व / दिन:

 • पूर्णिमा
 • शारदीय और वासंतिक नवरात्रि
 • गुप्त नवरात्रि (विशेषकर शौदशी जयंती)
 • ललिता पंचमी

7. विशेष बातें:

 • त्रिपुरासुंदरी श्रीविद्या तंत्र की मूलाधार देवी हैं
 • इनकी साधना केवल गुरु मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए
 • यह साधक को परम आनन्द, सौंदर्य और ब्रह्मज्ञान प्रदान करती हैं
 • माँ ललिता की उपासना से भोग व मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं



🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱

🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 27 जून 2025*
*🎈दिन-   शुक्रवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    द्वितीया    11:18:47 * पश्चात तृतीया*
*🎈 नक्षत्र    -    पुनर्वसु    07:20:54  पश्चात          पुष्य*
*🎈योग -     व्याघात    21:09:03 तक, तत्पश्चात् हर्शण*
*🎈करण -     कौलव    11:18:48 पश्चात  गर    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-10:55pm
से 12:38 pm तक*
gd



*🎈सूर्योदय -     05:44:07*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:15*
*🎈चन्द्र राशि    -   कर्क*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:22 ए एम से 05:02 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:10 पी एम से 01:06 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:18 ए एम, जून 28 से 12:58 ए एम, जून 28 तक*

   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
   चर    05:44 - 07:28    शुभ
   लाभ    07:28 - 09:11    शुभ
   अमृत    09:11 - 10:55    शुभ
   काल    10:55 - 12:38    अशुभ
   शुभ    12:38 - 14:22    शुभ
   रोग    14:22 - 16:05    अशुभ
  उद्वेग    16:05 - 17:49    अशुभ
  चर    17:49 - 19:32    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
   अमृत    19:32 - 20:49    शुभ
   चर    20:49 - 22:05    शुभ
   रोग    22:05 - 23:22    अशुभ
   काल    23:22 - 24:38*    अशुभ
   लाभ    24:38* - 25:55*    शुभ
  उद्वेग    25:55* - 27:11*    अशुभ
  शुभ    27:11* - 28:28*    शुभ
  अमृत    28:28* - 29:44*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 गुप्त नवरात्री प्रथम दिवस से विशेष नौ दिवस की साधना
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माता श्रीमहाकाली एकाक्षरी मन्त्र साधना 
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मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से मां काली भी एक स्वरूप है। महाकाली के रूप को देवी के सभी रूपों में से सबसे शक्तिशाली माना जाता है। काली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘काल’ शब्द से हुई है। हिन्दू शास्त्रों में मां काली को अभिमानी राक्षसों के संहार के लिए जाना जाता है। आमतौर पर मां काली की साधना सन्यासी और तांत्रिक करते हैं। यह भी मान्यता है कि मां काली काल का संहार कर मोक्ष प्रदान करती हैं। वह अपने उपासक हर इच्छा पूरी करती हैं। मां काली के कुछ ऐसे मंत्र हैं जिनका जप कोई भी व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में संकट दूर करने के लिए कर सकता है। इस लेख में आगे हम आपको मां काली, उनके मंत्र और जप से होने वाले फायदों के बारे में विस्तार से बताएंगे।

महाकाली की पूजा के लाभ
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काली शब्द काले रंग का प्रतीक है। साधक काली की उपासना को सबसे प्रभावशाली मानते हैं। काली किसी भी काम का तुरंत परिणाम देती हैं। काली की साधना के बहुत से लाभ होते हैं। जो साधक को साधना पूरी करने के बाद ही पता चल पाते हैं। यदि मां काली आपकी उपासना से प्रसन्न हो जाती हैं तो उनके आशीर्वाद से आपका जीवन बेहद सुखद हो जाता है।

एकाक्षर मंत्र : क्रीं

मां काली का एकाक्षरी मंत्र ‘क्रीं है। इसका जप मां के सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। वैसे इसे चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है।

द्विअक्षर मंत्र : क्रीं क्रीं

इस मंत्र का भी स्वतंत्र रूप से जप किया जाता है। तांत्रिक साधनाएं और मंत्र सिद्धि हेतु हेतु बड़ी संख्या में किसी भी मंत्र का जप करने के पहले और बाद में सात-सात बार इन दोनों बीजाक्षरों के जप का विशिष्ट विधान है।

त्रिअक्षरी मंत्र : क्रीं क्रीं क्रीं

त्रिअक्षरी मंत्र ‘क्रीं क्रीं क्रीं’ काली की साधनाओं और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मंत्र है। द्विअक्षर मंत्र की तरह इसे भी तांत्रिक साधना मंत्र के पहले और बाद में किया जा सकता है।

ज्ञान प्रदाता मन्त्र : ह्रीं

यह भी एकाक्षर मंत्र है। काली की के बाद इस मंत्र के नियमित जप से साधक को सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसे विशेष रूप से दक्षिण काली का मंत्र कहा जाता है।

क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा

पांच अक्षर के इस मंत्र के प्रणेता स्वयं जगतपिता ब्रह्मा जी हैं। इस मंत्र का प्रतिदिन सुबह के समय 108 बार जप करने से सभी दुखों का निवारण करके घन-धान्य की वृद्धि होती है। इसके जप से पारिवारिक शांति भी बनी रहती है।

क्रीं क्रीं फट स्वाहा

छह अक्षरों का यह मंत्र तीनों लोकों को मोहित करने वाला है। सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए इस मंत्र का विशेष रूप से जप किया जाता है।

क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के चारों ध्येयों की आपूर्ति करने में यह मंत्र समर्थ है। आठ अक्षरों से निर्मित इस मंत्र उपासना को उपासना के अंत में जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

शेष भाग से आगे....

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱

🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
pawan


*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 26 जून 2025*
*🎈दिन-  गुरुवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    प्रथम    13:23:57 * पश्चात द्वितीया*
*🎈 नक्षत्र    -                आद्रा    08:45:30 पश्चात      पुनर्वसु*
*🎈योग -     ध्रुव     23:38:50 तक, तत्पश्चात् व्याघात*
*🎈करण -     बव    13:23:57  पश्चात  कौलव    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-02:22pm
से 04:05 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:43:49*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:09*
*🎈चन्द्र राशि     - मिथुन    till 25:38:46*
*🎈चन्द्र राशि    -   कर्क    from 25:38:46*
gd


*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:21 ए एम से 05:02 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:10 पी एम से 01:06 पी एम *
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:18 ए एम, जून 27 से 12:58 ए एम, जून 27 तक*


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
शुभ    05:44 - 07:27    शुभ
रोग    07:27 - 09:11    अशुभ
उद्वेग    09:11 - 10:54    अशुभ
चर    10:54 - 12:38    शुभ
लाभ    12:38 - 14:22    शुभ
अमृत    14:22 - 16:05    शुभ
काल    16:05 - 17:49    अशुभ
शुभ    17:49 - 19:32    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
अमृत    19:32 - 20:49    शुभ
चर    20:49 - 22:05    शुभ
रोग    22:05 - 23:22    अशुभ
काल    23:22 - 24:38*    अशुभ
लाभ    24:38* - 25:55*    शुभ
उद्वेग    25:55* - 27:11*    अशुभ
शुभ    27:11* - 28:28*    शुभ
अमृत    28:28* - 29:44*    शुभ
jyotis



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष गुप्त नवरात्रि की अत्यंत महत्वपूर्ण व्याख्या...  (संवत 2082आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तिथि 26/06/2025 गुरु वार से 04/07/2025 शुक्रवार भड़ली नवमी तक) विशेष साधना पर्व का लाभ ले सकते है।

साथियों जैसा कि नाम से ही विख्यात है। गुप्त नवरात्रि यानी गुप्त रूप से स्वच्छ सात्विक होकर साधना करे।

गुप्त नवरात्रि मातृशक्ति के अत्यंत महत्वपूर्ण चैतन्य शक्ति दिवस कहे गए हैं सामान्य व्यक्ति तो इसके महत्व को समझ ही नहीं सकते साधारण मनुष्य उनके भजन तो गा सकता है उनकी भक्ति तो कर सकता है लेकिन साधना करने की क्षमता सिर्फ साधकों में ही होती है जो पूर्णता के साथ भगवती दुर्गा के शक्ति स्वरूप को स्वयं में निहित कर सकते हैं केवल शक्ति की वास्तविक साधना करने वाले साधक ही इन गुप्त नवरात्रों के महत्व को समझ सकते हैं क्योंकि वास्तविक साधक शक्ति के इन नव दिनों में शक्ति की उच्च कोटि की साधना ओं के माध्यम से असीम उर्जा को एकत्रित करते हैं.......

गुप्त नवरात्र हिन्दू धर्म में उसी प्रकार मान्य हैं, जिस प्रकार 'शारदीय' और 'चैत्र नवरात्र'। आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को "गुप्त नवरात्र" कह कर पुकारा जाता है। बहुत कम लोगों को ही इसके ज्ञान या छिपे हुए होने के कारण इसे  'गुप्त नवरात्र' कहा जाता है। गुप्त नवरात्र मनाने और इनकी साधना का विधान 'देवी भागवत' व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। श्रृंगी ऋषि ने गुप्त नवरात्रों के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि- 

"जिस प्रकार वासंतिक नवरात्र में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्र में देवी शक्ति की नौ देवियों की पूजा की प्रधानता रहती है, उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं। यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें, तो जीवन धन-धान्य, राज्य सत्ता और ऐश्वर्य से भर जाता है। 

🔱🚩गुप्त नवरात्रों का महत्त्व 🚩🔱
➖➖➖➖➖➖➖➖➖

 जब हम गुप्त नवरात्रों के महत्व को समजने का  प्रयत्न सामान्य व्यक्ति समझ ही नहीं सकता गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या" नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। ......"शिवसंहिता".... के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति माँ पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं,

🔱🚩 घट स्थापना 🚩🔱
➖➖➖➖➖➖➖➖
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार स्वच्छ दीवार पर सिंदूर से देवी की मुख-आकृति बना ली जाती है। सर्वशुद्धा माता दुर्गा की जो तस्वीर मिल जाए, वही चौकी पर स्थापित कर दी जाती है, परंतु देवी की असली प्रतिमा "घट" है। घट पर घी-सिंदूर से कन्या चिह्न और स्वस्तिक बनाकर उसमें देवी का आह्वान किया जाता है। देवी के दायीं ओर जौ व सामने हवनकुंड रखा जाता है। नौ दिनों तक नित्य देवी का आह्वान फिर स्नान, वस्त्र व गंध आदि से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। नैवेद्य में बताशे और नारियल तथा खीर का भोग होना चाहिए। पूजन और हवन के बाद "दुर्गास सप्तशती" का पाठ करना श्रेष्ठ है। साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के लिए नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की प्रतिदिन पूजा-स्तुति करनी चाहिए।

🔱🚩स्त्री रूप में देवी पूजा 🚩🔱
➖➖➖➖➖➖➖➖➖
'कूर्मपुराण' में पृथ्वी पर देवी के बिंब के रूप में स्त्री का पूरा जीवन नवदुर्गा की मूर्ति के रूप से बताया गया है। जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री", कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" व विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से "चंद्रघंटा" कहलाती है। नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने से "कूष्मांडा" व संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "स्कन्दमाता" होती है। संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "कात्यायनी" व पतिव्रता होने के कारण पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से "कालरात्रि" कहलाती है। संसार का उपकार करने से "महागौरी" व धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार को सिद्धि का आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" मानी जाती हैं।

🔱🚩महानवमी को पूर्णाहुति 🚩🔱
➖➖➖➖➖➖➖➖➖
गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए अष्टमी और नवमी तिथि को आवश्यक रूप से देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता के संमुख "जोत दर्शन" एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।

🔱🚩 देवी की महिमा 🚩🔱
➖➖➖➖➖➖➖➖➖
शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में हुआ था। कभी सागर की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी तो कभी पर्वतराज हिमालय की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति, दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और जीवन शक्ति संसार में जहाँ कहीं भी दिखाई देती है, वहाँ देवी का ही दर्शन होता है। ऋषियों की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र विश्वरूपा देवी को ही देखती है, इसलिए माता दुर्गा ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है। 'देवीभागवत' में लिखा है कि- "देवी ही ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का रूप धर संसार का पालन और संहार करती हैं। जगन्माता दुर्गा सुकृती मनुष्यों के घर संपत्ति, पापियों के घर में अलक्ष्मी, विद्वानों-वैष्णवों के हृदय में बुद्धि व विद्या, सज्जनों में श्रद्धा व भक्ति तथा कुलीन महिलाओं में लज्जा एवं मर्यादा के रूप में निवास करती है। 'मार्कण्डेयपुराण' कहता है कि- "हे देवि! तुम सारे वेद-शास्त्रों का सार हो। भगवान विष्णु के हृदय में निवास करने वाली माँ लक्ष्मी-शशिशेखर भगवान शंकर की महिमा बढ़ाने वाली माँ तुम ही हो।"[1]
सरस्वती पूजा महोत्सव

माघी नवरात्र में पंचमी तिथि सर्वप्रमुख मानी जाती है। इसे 'श्रीपंचमी', 'वसंत पंचमी' और 'सरस्वती महोत्सव' के नाम से कहा जाता है। प्राचीन काल से आज तक इस दिन माता सरस्वती का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह त्रिशक्ति में एक माता शारदा के आराधना के लिए विशिष्ट दिवस के रूप में शास्त्रों में वर्णित है। कई प्रामाणिक विद्वानों का यह भी मानना है कि जो छात्र पढ़ने में कमज़ोर हों या जिनकी पढ़ने में रुचि नहीं हो, ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। देववाणी संस्कृत भाषा में निबद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का दान संकल्प पूर्वक विद्वान ब्राह्मणों को देना चाहिए।

🔱🚩महानवमी को पूर्णाहुति 🚩🔱
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए अष्टमी और नवमी तिथि को आवश्यक रूप से देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता के संमुख "जोत दर्शन" एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*
🎈दिनांक - 25 जून 2025*
*🎈दिन-  बुधवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    अमावस्या    16:00:30 * पश्चात प्रथम*
*🎈 नक्षत्र    -            मृगशीर्षा    10:39:35  पश्चात      आद्रा*
*🎈योग -         गण्ड    05:59:00 तक, तत्पश्चात् ध्रुव*
*🎈करण -             नाग    16:00:30  पश्चात  बव    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-12:38pm
से 02:21 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:43:31*
*🎈सूर्यास्त - 19:32:01*
*🎈चन्द्र राशि     -  मिथुन*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:21 ए एम से 05:02 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:18 ए एम, जून 26 से 12:58 ए एम, जून 26 तक*


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ    05:44 - 07:27    शुभ
अमृत    07:27 - 09:11    शुभ
काल    09:11 - 10:54    अशुभ
शुभ    10:54 - 12:38    शुभ
रोग    12:38 - 14:21    अशुभ
उद्वेग    14:21 - 16:05    अशुभ
चर    16:05 - 17:48    शुभ
लाभ    17:48 - 19:32    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग    19:32 - 20:49    अशुभ
शुभ    20:49 - 22:05    शुभ
अमृत    22:05 - 23:21    शुभ
चर    23:21 - 24:38*    शुभ
रोग    24:38* - 25:54*    अशुभ
काल    25:54* - 27:11*    अशुभ
लाभ    27:11* - 28:27*    शुभ
उद्वेग    28:27* - 29:44*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 कुलमार्ग में एक भक्ति ही विशिष्ट है। देवीमय गुरु ही जब साक्षात् सभी भुवनों में व्याप्त है, तब भक्त के लिये कौन-सा क्षेत्र सिद्ध नहीं है? सभी क्षेत्रों में मन्त्र सिद्ध होते हैं। जो गुरु को मनुष्य, मन्त्र को अक्षर और प्रतिमा को पत्थर मानता है, वह नरकवासी होता है।

शिव के रुष्ट होने पर गुरु त्राता होता है, लेकिन गुरु के रुष्ट होने पर कोई त्राणकर्ता नहीं होता। मन-वचन-कर्म से गुरु का हित साधन करना चाहिये। गुरु के अहित करने से शिष्य विष्टा का कीड़ा होता है। गुरु के शरीर, धन और प्राण की जो वञ्चना करता है, वह नराधम कृमि-कीट-पतङ्ग होता है। 

गुरु के त्याग से मृत्यु होती है और मन्त्र के त्याग से दरिद्रता होती है। गुरु और मन्त्र दोनों के त्याग से शिष्य रौरव नरक में जाता है। गुरु का कठोर वचन आशीष माने। उसकी प्रताड़ना को उनकी कृपा माने। भोग्य योग्य वस्तुओं को गुरु को अर्पित करे। हे कुलेश्वरि ! उसी का जूठन समझकर शेष का उपभोग करे। 

गुरु के आगे तप उपवास व्रतादि न करे। आत्मशुद्धि के लिये तीर्थयात्रा-स्नानादि न करे। गुरु से कर्ज लेना-देना, वस्तुओं की खरीद-विक्री करना शिष्य के लिये सर्वथा वर्जित है। हे अम्बिके! गुरु के सामने जो दूसरों की पूजा करता है, वह घोर नरक में जाता है और उसकी पूजा निष्फल होतो है।

गुरुकोप से बढ़कर अन्य कोई नाश नहीं है एवं गुरुद्रोह से अधिक कोई दूसरा पाप नहीं है। गुरुनिन्दा से बढ़कर कोई मृत्यु नहीं है। गुरु में अनिष्ठा से बढ़कर कोई आपदा नहीं है। मनुष्य जीवित अग्नि में प्रवेश कर जाय या जहर पी जाय या मृत्यु सम्मुख हो तो भी गुरु का अपराध न करे।

 मोहवश यदि कोई ऐसा करता है तो उसे देवता शाप देते हैं। उपचार के बिना गुरु के पास न जाय और उनकी आज्ञा के बिना न बैठे। गुरु के द्वारा उक्त या अनुक्त कार्यों की उपेक्षा न करे।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩
🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 24 जून 2025*
*🎈दिन-  मंगलवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    चतुर्दशी    18:58:51* पश्चात अमावस्या*
*🎈 नक्षत्र    -        रोहिणी    12:53:07 पश्चात  मृगशीर्षा*
*🎈योग -         शूल    09:34:24 तक, तत्पश्चात् गण्ड*
*🎈करण -             विष्टि भद्र    08:33:05  पश्चात  नाग    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-04:05pm
से 05:48 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:43:15*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:53*
*🎈चन्द्र राशि    - वृषभ    till 23:44:34*
*🎈चन्द्र राशि     -  मिथुन    from 23:44:34    *
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:21 ए एम से 05:01 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:10 पी एम से 01:05 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:17 ए एम, जून 25 से 12:58 ए एम, जून 25 तक*


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
रोग    05:43 - 07:27    अशुभ
उद्वेग    07:27 - 09:10    अशुभ
चर    09:10 - 10:54    शुभ
लाभ    10:54 - 12:38    शुभ
अमृत    12:38 - 14:21    शुभ
काल    14:21 - 16:05    अशुभ
शुभ    16:05 - 17:48    शुभ
रोग    17:48 - 19:32    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
काल    19:32 - 20:48    अशुभ
लाभ    20:48 - 22:05    शुभ
उद्वेग    22:05 - 23:21    अशुभ
शुभ    23:21 - 24:38*    शुभ
अमृत    24:38* - 25:54*    शुभ
चर    25:54* - 27:11*    शुभ
रोग    27:11* - 28:27*    अशुभ
काल    28:27* - 29:44*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉🌺 पूजा में बची धूप, जोत, लौंग, इलायची का गुप्त रहस्य 🔥
🔮 ऐसी बातें जो किताबों में नहीं मिलतीं — सिर्फ अनुभव और गुरुकृपा से प्राप्त होती हैं…

🚩 जब हम रोज पूजा करते हैं, तो कई बार बची होई धुप की टुकडा, दीपक की बाती, उसमें डाली लौंग-इलायची, या बचा हुआ कपूर इकट्ठा हो जाता है।
ज्यादातर लोग इन्हें बेकार समझकर फेंक देते हैं ❌
लेकिन यही चीजें असल में ऊर्जा से भरी होती हैं, और यदि इन्हें सही विधि से उपयोग करें — तो ये घर से हर प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकती हैं और दैवीय शक्ति को आमंत्रित कर सकती हैं। 🌠

👁️‍🗨️ बड़े-बड़े साधक और तांत्रिक सोशल मीडिया पर हैं — परंतु ऐसी छोटी पर महत्वपूर्ण बातें किसी को बताते नहीं।
👉 ये बातें ना किसी किताब में मिलेंगी, ना किसी यूट्यूब वीडियो में — ये गुरुओं के अनुभव और साधना की कमाई से निकली ज्ञान-संपत्ति है।

🌟 अब जानते हैं उपाय क्या है — और इसका पूरा प्रयोग कैसे करें?

🔻 बचाव की सामग्री को ऐसे करें संग्रह:

1️⃣ पूजा में बची हुई धूप , दीपक की बाती, लौंग, इलायची, कपूर के टुकड़े — सबको एक थैली में इकट्ठा करें।
2️⃣ जब ये थोड़ी मात्रा में इकट्ठी हो जाए, तो शनिवार शाम को मिट्टी का एक बर्तन लें (या पुराना लोटा भी चलेगा)।
3️⃣ उसमें गाय का उपला रखें, उसे थोड़े से देसी घी या तिल के तेल से भिगो दें।

🔆 अब इस बर्तन में नीचे की ये चीजें डालें:

बची हुई धूप, ज्योत की बाती, लौंग-इलायची, कपूर

ऊपर से डालें: 2 कपूर की टिकियाँ और बची सामग्री

🎯 इसके बाद करें सबसे शक्तिशाली विधि – नकारात्मक ऊर्जा खींचने की:

4️⃣ पूजा स्थान पर बैठें
5️⃣ दोनों हाथों में 2-2 लौंग और 1-1 कपूर की टिकिया रखें
6️⃣ 10 मिनट तक माँ काली का मंत्र जपें –
🕉️ "ॐ क्रीं कालिकायै नमः"
7️⃣ भावना करें: "हे माँ! जो भी मेरे अंदर नकारात्मक ऊर्जा, मलिन विचार, थकान, डर या चिंता है – वो सब खींचकर इन लौंग और कपूर में आ जाएं"
8️⃣ 10 मिनट बाद वह लौंग और कपूर उपले वाले बर्तन में डाल दें और अग्नि प्रज्वलित करें 🔥

🪔 अब बनाएं दिव्य धूनी का मिश्रण – सकारात्मक ऊर्जा के लिए:

✅ किसी भी पूजा सामग्री की दुकान से मिलने वाला धूप मिश्रण लें (आधा किलो)
✅ उसमें मिलाएं:

100 ग्राम गूगल

 100 ग्राम देसी घी (या तिल का तेल)

थोड़ा सा चंदन की लकड़ी का चूरा अगर मिल जाए – अद्भुत होगा 🌼
✅ इन सबको अच्छे से मिलाकर एक धूनी मिश्रण तैयार कर लें।

🔥 जब लौंग विधि वाली सामग्री जलने लगे और अंगारे तैयार हो जाएं – तब थोड़ा-थोड़ा यह धूनी मिश्रण उस पर डालें।
💨 अब उस धुएं को पूरे घर में घुमाएं – हर कोना, हर कमरा, मंदिर, रसोई — लेकिन टॉयलेट-बाथरूम छोड़ दें।

🎁 यह प्रयोग यदि आप 41 दिन तक लगातार करें –
तो आप देखेंगे:
✔️ घर की नकारात्मक ऊर्जा गायब हो रही है
✔️ भय, चिंता, उदासी दूर हो रही है
✔️ बच्चों, बुजुर्गों, बीमार लोगों को राहत मिलने लगी है
✔️ घर में देवी-देवताओं की कृपा की अनुभूति होने लगी है

✨ जैसे-जैसे धुआँ घर में घूमेगा, वैसे-वैसे आप महसूस करेंगे कि कोई शक्ति आपके घर में प्रवेश कर रही है।
🌟 अगर आप यह जानना चाहते हैं कि घर के लिए या स्वयं के लिए सुरक्षा कवच कैसे बनाएं, उसका यंत्र कैसे तैयार करें, उसे कहाँ स्थापित करें और कैसे उपयोग में लाएं — तो नीचे कमेंट करें:
👇 "सुरक्षा कवच"
हम जल्द ही इस विषय पर भी विशेष पोस्ट लेकर आएँगे । 🔰

📣 इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करें, ताकि हर घर में ऊर्जा का शुद्धिकरण हो सके और साधकों को सच्ची दिशा मिल सके।
ऐसे ही दुर्लभ और अनुभवजन्य रहस्यों के लिए
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🔱 जय महाकाल 🔱

 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 23 जून 2025*
*🎈दिन-  सोमवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    त्रयोदशी    22:09:03* पश्चात चतुर्दशी*
*🎈 नक्षत्र    -        कृत्तिका    15:15:44 पश्चात  रोहिणी*
*🎈योग -         धृति    13:16:01 तक, तत्पश्चात् शूल*
*🎈करण -         गर     11:45:32 पश्चात  विष्टि भद्र    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-07:27pm
से 09:10 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:43:00*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:43*
*🎈चन्द्र राशि    -  वृषभ    *
gd


*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:20 ए एम से 05:01 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:09 पी एम से 01:05 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:17 ए एम, जून 24 से 12:58 ए एम, जून 24 तक*


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत    05:43 - 07:27    शुभ
काल    07:27 - 09:10    अशुभ
शुभ    09:10 - 10:54    शुभ
रोग    10:54 - 12:37    अशुभ
उद्वेग    12:37 - 14:21    अशुभ
चर    14:21 - 16:05    शुभ
लाभ    16:05 - 17:48    शुभ
अमृत    17:48 - 19:32    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ    19:32 - 20:48    शुभ
अमृत    20:48 - 22:04    शुभ
चर    22:04 - 23:21    शुभ
रोग    23:21 - 24:37*    अशुभ
काल    24:37* - 25:54*    अशुभ
लाभ    25:54* - 27:10*    शुभ
उद्वेग    27:10* - 28:27*    अशुभ
शुभ    28:27* - 29:43*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*👉वर्तमान मे सभी ग्रहो के गोचर का भोकाल बना है हर दिन कोई न कोई घटना घट रही है इनमे ज्यादातर महिलाओ की भी जिनके पति या तो शहीद हो रहै या पत्नी द्वारा उनको छोड़ना या उनको दुनिया से विदा कर रही है,, केतु के बुरे से फल तो  है लेकिन गुरु का गोचर भी ज्यादातर के लिए अच्छा नहीं है ख़ासकर 7=8=12 मे जिनके है और जिनका शुक्र से मंगल 6 से 8 के मध्य सयोंग है, गुरु द्वारा अचानक लिवर फेल व अंदुरुनी बुखार भी कम उम्र बच्चों के लिए काल बना हुआ है।
👉जानते है की बृहस्पति मनुष्य के शरीर के किस भाग और कुडंली के किस भाग को खासतौर पर अपना ता है वैसे सभी भाव है पर लेकिन जो खास प्रभाव जिन पर हो गुरू का नाभी और जांगो हड्डीयो के जोडो पर अधिकार होता है नाभी को कुडंली का नवा घर हम कहते जो भाग्य भाव गुरू धर्म इनको प्रदर्शित करता है शरीर के आकार का घटना बढना या उसमे फैट बढना गुरू के अधिक बल और अधिक खराबी दोनो बताता है गुरू की शुभता वाला आदमी खाने मे शौकीन पर स्वाद को मुल्य देता है दिन भर पचास चीजे तो चखेगा ही चखेगा और खराब गुरू सिर्फ खाने से मतलब रखेगा ऐसे आदमी को नमक कम या ज्यादा स्वाद है या नी बासी है मतलब नही बस जो मिले खाना है पेट भरना है खराब गुरू के इसी कारण से मोटी बुद्धी का आदमी बोला जाता है हाथ बडे बडे औरो से अधिक ताकत पर शरीर की बुद्धी की नही ऐस लोगो के सिर आधे बाल कम उम्र मे हो जाते है इनको किसी चीज की जिदंगी मे कम ज्यादा से कोई फ्रक नही पडता न जिम्मेदारी न सोच बस जो है उसमे खुश पर समय समय पर इनको बहुत नुकसान होता है ऐसे लोगो की पत्नी भी किसी खास गुण से प्रभावी नही होती या ऐसे लोग पत्नी  की ही सुनते है और कुछ नी बोल पाते । बच्चो मे जिद पढाई से भागना कुछ न कुछ खानै की मागं करके रोने की जिद करना पढाई मे कमजोर रहते है किशोर अवस्था मे पढाई तो करते है पर कोई लक्ष्य नही बनाते बस पढते है पर जिसकी पढाई करते है नौकरी विपरीत करते है जिसका की गई पढाई से वास्ता नही होता जिसका भी नवंम भाव पिडित होगा उसका स्वामी पिडित होगा यानी नसीब खराब हो तो जितनी मरजी पढाई करलो काम खोल लो बरबादी ही होनी है धक्के खाने है  । सबसे शुभ और शातं कहे जाने  वाले बृहस्पति जन्म कुडंली मे सभी ग्रहो को दिशा प्रदान करते है शुक्र राहु बुध इनको शत्रु मानते है ज्ञान और धर्म के रूप मे इनको जाना जाता है  जो समाज की आस्था  को चलाने का काम करता है गुरू एक वेदपाठी पं है जो हिंदू धर्म की नीव है हर मागंलिक कामो मे गुरू प्रथम माना जाता है । शुक्र धन है यानी लक्ष्मी को लाने वाला और गुरू है धन को स्थान देना उसको बढाना और आकार बढना यानी जहा धन रखा जाता उसके स्थान को बढाना जिससे धन संचय होके बढता है अब जिनकी कुडंली मे गुरू खराब होगा उनको धन तो आऐगा पर रूकता नही जिससे खर्चे मे इजाफा और आमदनी मे कमी आती है जिससे आदमी का स्वाभाव पारीवारिक तौर पर बिगढने लगता है  लडकी की कुडंली मे पति कारक है इसलिए मनमुटाव बढता है  और वैसे पारिवारिक सुख का कारक सबके लिए है जिससे उस परिवार मे तनाव उभर जाता है खासतौर पर तब जब कमाने वाला एक हो और खाने वाले चार या अधिक ।  यदि लडकी की  कुडंली मे गुरू शुभ फल मे है हो तो ससुराल  चाहे कैसा हो   पति साथ देने वाला होगा सिर्फ शुक्र ही नही गुरू भी प्रेम का कारक होता है लव मैरिज को सफलता से गुरू ही चलाता है । बचपन से देखा जाए तो यदि गुरू पिडित चल  रहा हो तो बच्चा हठी किस्सम का होगा स्कूल जेल जैसा लगता है उसको पढाई से भागता रहता है यदि पढेगा भी तो सिर्फ किताबी ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान और उसका आधार नही जान पाता । अधिक खराबी मे यानी राहु से पिडित हो वास्तविक शिक्षा से  भटकाता है जातक पढता मेडिकल है पर काम नही कर पाता काम दूसरा ही  करता है ।यदि शुभ गुरू हो भले ही जातक  कम  पढा लिखा हो पर जिम्मेदार होता है सबका चहेता सम्मान पाने वाला होगा ऐसी महिला कम पढी लिखी  होकर भी सब पे भारी रहती  है उसका व्यवाहारिक ज्ञान अच्छा होता है और कोई जान भी नही सकता की वो कम पढी लिखी है एक कर्मशील और जिमेमेदार होती है। पर इसके खराब होने पर बुरा असर महिला ही झेलती है गुरू पुत्र सुख का कारक है खराब होने पर ऐ आजीवन सतांन सुख से वंचित भी रखता है क्यूकि तब केतू भी फल नही देता और सुर्य भी । पारिवारिक सुख मे भी कमि के साथ कलेश और पति पत्नी के रिश्तो भी अलगाव व तनाव देता है । गुप्त शत्रु घुटनो व हड्डीयो का दर्द देता है गुरू सातवे घर मे होतो शादीशुदा जीवन खराब करता है खासतर नीच का है ऐसे मे लडकी के ससुराल पक्ष से उसको पसंद नही किया जाता है उसको सम्मान नही मिलता। यदि मगंल भी बद हो या मागंलिक दोष हो तो ऐ अवस्था और खराब हो जाती है पहले शादी की बात  नही बनती रिश्ता आते है पर पसंद नही आता रिश्ता आता भी है तो कोई जवाब नही मिलता मगंल जब भी खराब हो जाए और गुरू राहु  से युति करे तो अपने ही सबंधी पीठ पीछे बुराई करके रिश्ता नही होने देते । यदि बुध से सबंध बनाऐ तो जब उम्र रहती है तो पढाई के लिऐ रिश्ते ठुकराता रहता है और बाद मे रिश्ते आते नी है बाद मे समाज के तानो के  डर से शादी करनी पडती है जो बडी परेशानिया देता है । खराब गुरू कर्म भटका कर कम उम्र मे घर परिवार से समाज से दूर रहने को उकसाकर धर्म स्थलो की ओर ले जाता है यही लोग अपने कर्म से ध्यान से हटते है और परिवार पर गौर नही करते खुद कमाया और खाया ऐसे लोगो का पैसा लोग मारते रहते है ऐ लोग अपने बच्चो की जगह औरो भला करते है जो इनको इझ्जत तक बाद मे नही देते उनका भला करने मे गर्व महसूस करते है ।  यदि शनी से सबंध हो सन्यास की ओर ले जाता है इनकी शादी होकर यदि टूट जाए तलाक हो जाए तो दूबारा इच्छा नही रखते पहले तो होती ही देर से है। गुरू की खराबी के हालात मे जातक अपना कमाया धन सचंय नही कर पाता है उसका पैसा बचता ही नही महिना खतम होने से पहले जेब खाली यदि शुक्र देव मगंल से पिडित होगे तो ऐसे मे बैकं मे रखा धन पत्नी की बीमारी लगेगा या इनका कोई नुकसान ऐसा होगा की सारा पैसा निकालना पडता है । गुरू पिडित आदमी जितनी औरो का भला करता उतना ही उनकी खरीखोटी सुनता है वही लोग दुश्मन हो जाते है ।गुरू की खराबी मे फिर जिम्मेदारीयो से भगता रहता है और अपनी असफलता का दोष दूसरो पर मडता है खासतर पत्नी पर जो फिर कलेश को जन्म देकर पारिवारिक सुख को खतम करता है या जिम्मेदारीयो से मुह मोड देता है । खराबी वाला गुरू दमा फेफडो के रोग मोटापा लीवर के रोग जोडो का दर्द कमजोर पैर हड्डीयो मे कमजोरी । अतिरिक्त फैट,बालो गिरना इन रोगो को दिखाता है हा इसके साथ कोई भी ग्रह बैठ के इसके फलो को घटाता बढाता है ।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 22 जून 2025*
*🎈दिन- रविवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    द्वादशी    25:21:24* पश्चात त्रयोदशी*
*🎈 नक्षत्र    -        भरणी    17:37:27 पश्चात  कृत्तिका*
*🎈योग -         सुकर्मा    16:56:09 तक, तत्पश्चात् धृति*
*🎈करण -         कौलव    14:55:34 पश्चात  गर    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-05:48pm
से 07:32 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:42:45*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:32*
*🎈चन्द्र राशि-         मेष    till 23:02:36
*🎈चन्द्र राशि    -  वृषभ    from 23:02:36*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:20 ए एम से 05:01 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:09 पी एम से 01:05 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:17 ए एम, जून 23 से 12:58 ए एम, जून 23 तक*


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
उद्वेग    05:43 - 07:26    अशुभ
चर    07:26 - 09:10    शुभ
लाभ    09:10 - 10:54    शुभ
अमृत    10:54 - 12:37    शुभ
काल    12:37 - 14:21    अशुभ
शुभ    14:21 - 16:04    शुभ
रोग    16:04 - 17:48    अशुभ
उद्वेग    17:48 - 19:32    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ    19:32 - 20:48    शुभ
अमृत    20:48 - 22:04    शुभ
चर    22:04 - 23:21    शुभ
रोग    23:21 - 24:37*    अशुभ
काल    24:37* - 25:54*    अशुभ
लाभ    25:54* - 27:10*    शुभ
उद्वेग    27:10* - 28:27*    अशुभ
शुभ    28:27* - 29:43*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*शुकदेव जी के अनुसार:- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है।

सूर्य के पास

"हे राजन्! सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।

सूर्य की चाल

सूर्य भगवान की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक है। उनके साथ-साथ चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। हे राजन्! भगवान भुवन भास्कर इस प्रकार नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तह करते हैं।"

सूर्य का रथ

इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है।

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 21 जून 2025*
*🎈दिन- शनिवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    दशमी    07:18:12
*🎈तिथि    -एकादशी    28:27:01* (क्षय) पश्चात द्वादशी*
*🎈 नक्षत्र    -        अश्विनी    19:49:19 पश्चात  भरणी*
*🎈योग -         अतिगंड    20:27:55 तक, तत्पश्चात् सुकर्मा*
*🎈करण -         विष्टि भद्र    07:18:13 पश्चात  कौलव    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-09:10pm
से 10:53 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:42:19*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:07*
*🎈चन्द्र राशि-     मीन    till 21:43:57*
*🎈चन्द्र राशि-       मेष    from 21:43:57    *
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:20 ए एम से 05:01 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:09 पी एम से 01:05 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:17 ए एम, जून 22 से 12:57 ए एम, जून 22तक*
*🎈05:41 ए एम से 09:45 पी एम *

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
काल    05:43 - 07:26    अशुभ
शुभ    07:26 - 09:10    शुभ
रोग    09:10 - 10:53    अशुभ
उद्वेग    10:53 - 12:37    अशुभ
चर    12:37 - 14:21    शुभ
लाभ    14:21 - 16:04    शुभ
अमृत    16:04 - 17:48    शुभ
काल    17:48 - 19:31    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ    19:31 - 20:48    शुभ
उद्वेग    20:48 - 22:04    अशुभ
शुभ    22:04 - 23:21    शुभ
अमृत    23:21 - 24:37*    शुभ
चर    24:37* - 25:53*    शुभ
रोग    25:53* - 27:10*    अशुभ
काल    27:10* - 28:26*    अशुभ
लाभ    28:26* - 29:43*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌*पंच-तत्व का शरीर क्या है और ये कैसे काम करते है.?*

आज बात करते है शरीर के पंच तत्वों की जिनसे ये शरीर बना है।
ये पंच तत्व ही भौतिक और अभौतिक रूप में शरीर का ही निर्माण करते है।
कम ही लोगों को पता होगा कि ये पंच तत्व क्या है और शरीर में कैसे काम करते है.?

*आज इन्ही तत्वों को समझेगे। ये पंच तत्व है क्रम अनुसार-*

1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश।

*(1). पृथ्वी तत्व-*
ये वो तत्व है जिससे हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्त्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्ही से हमारे भौतिक शरीर की भी सरंचना हुई है। यही कारण है कि हमारे शरीर लौह धातु खून में, कैल्शियम हड्डियों में, कार्बन फाइबर रूप में, नाइट्रोजन प्रोटीन रूप में और भी कितने ही तत्व है जो शरीर में पाए जाते है। और यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर की निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु की भस्मों का प्रयोग किया जाता है।

*(2). जल तत्व-*
जल तत्व से मतलब है तरलता से। जितने भी तरल तत्व जो शरीर में बह रहे है वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो, वसा हो, शरीर मे बनने वाले सभी तरह के रॉ रस और एंजाइम। वो सभी जल तत्व ही है। जो शरीर की ऊर्जा और पोषण तत्वों को पूरे शरीर मे पहुचाते है। *इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से जाना जाता हैं।* इस जल तत्व की मात्रा में संतुलन बिगड़ते ही शरीर भी बिगड़ कर बीमार बना देगा।

*(3). अग्नि तत्व-*
अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोग रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है। *इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से ज जाना जाता है।* इस तत्व की ऊष्मा का भी एक स्तर होता है, उससे ऊपर या नीचे जाने से शरीर भी बीमार हो जाता है।

*(4). वायु तत्व-*
जितना भी प्राण है वो सब वायु तत्व है। जो हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते है, जिससे हमारा होना निश्चित है, जिससे हमारा जीवन है। *वही वायु तत्व है।* पतंजलि योग में जितने भी प्राण व उपप्राण बताये गए है वो सब वायु तत्व के कारण ही काम कर रहे है। इसको आयुर्वेद में वात के नाम से जानते है। इसका भी सन्तुलन बिगड़ने से शरीर का संतुलन बिगड़ कर शरीर बीमार पड़ जाता है।

*(5). आकाश तत्व-*
ये तत्व ऐसा जिसके बारे में कुछ साधक ही बता सकते है कि ये तत्व शरीर मे कैसे विद्यमान है और क्या काम करता है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है।
जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नही है। जैसे आकाश आश्चर्यों से भरा पड़ा है वैसे ही मन के आश्चर्यो की कोई सीमा नही है। जैसे आकाश अनन्त ऊर्जाओं से भरा है वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नही है जो दबी या सोई हुई है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी ख़ुशी, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान है।
किसी उत्कृष्ट लेखक की कलम से..

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 20 जून 2025*
*🎈दिन  -  शुक्रवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    नवमी    09:48:55*
 तत्पश्चात्  दशमी    07:18:12
*🎈तिथि    -एकादशी    28:27:01* (क्षय )*
*🎈 नक्षत्र    -        रेवती    21:43:57पश्चात  अश्विनी*
*🎈योग -         शोभन    23:45:35 तक, तत्पश्चात् अतिगंड*
*🎈करण -         गर     09:48:55 पश्चात  विष्टि भद्र    *
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-10:53pm
से 12:37 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:42:19*
*🎈सूर्यास्त - 19:31:07*
*🎈चन्द्र राशि-     मीन    till 21:43:57*
*🎈चन्द्र राशि-       मेष    from 21:43:57    *
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:20 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:09 पी एम से 01:04 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:17 ए एम, जून 21 से 12:57 ए एम, जून 21 तक*
*🎈05:41 ए एम से 09:45 पी एम *

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर    05:42 - 07:26    शुभ
लाभ    07:26 - 09:10    शुभ
अमृत    09:10 - 10:53    शुभ
काल    10:53 - 12:37    अशुभ
शुभ    12:37 - 14:20    शुभ
रोग    14:20 - 16:04    अशुभ
उद्वेग    16:04 - 17:48    अशुभ
चर    17:48 - 19:31    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग    19:31 - 20:48    अशुभ
काल    20:48 - 22:04    अशुभ
लाभ    22:04 - 23:20    शुभ
उद्वेग    23:20 - 24:37*    अशुभ
शुभ    24:37* - 25:53*    शुभ
अमृत    25:53* - 27:10*    शुभ
चर    27:10* - 28:26*    शुभ
रोग    28:26* - 29:43*    अशुभ

🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.   
kundli

     

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌जो अमावास्या अनुराधा, विशाखा या स्वाति नक्षत्र युक्ता हो उसमें श्राद्ध करनेसे पितृगण (आठ) वर्षतक तृप्त रहते हैं॥ ७ ॥ 
तथा जो अमावास्या पुष्य, आर्द्रा या पुनर्वसु नक्षत्रयुक्ता हो उसमें पूजित होनेसे पितृगण (बारह वर्षतक तृप्त रहते हैं ।॥ ८ ॥

जो पुरुष पितृगण और देवगणको तृप्त करना चाहते हों उनके लिये धनिष्ठा, पूर्वभाद्रपदा अथवा शतभिषा  नक्षत्रयुक्त अमावास्या अति दुर्लभ है ॥ ९॥ 

हे पृथिवीपते । जब अमावास्या इन नौ नक्षत्रोंसे युक्त होती है उस समय किया हुआ श्राद्ध पितृगणको अत्यन्त तृप्तिदायक होता है। इनके अतिरिक्त पितृभक्त इलापुत्र महात्मा पुरूरवाके अति विनीत भावसे पूछनेपर श्रीसनत्कुमारजीने जिनका वर्णन किया था वे अन्य
तिथियाँ भी सुनो ॥ १०-११ ॥ 

श्रीसनत्कुमारजी बोले- 
वैशाखमासकी शुक्ला तृतीया, 
कार्तिक शुक्ला नवमी, 
भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशी
 तथा माघमासकी अमावास्या -
 इन चार तिथियोंको पुराणोंमें 'युगाद्या' कहा है। ये चारों तिथियाँ अनन्त पुण्यदायिनी हैं। 
चन्द्रमा या सूर्यके ग्रहणके समय, 
तीन अष्टकाओंमें अथवा उत्तरायण या दक्षिणायनके आरम्भमें जो पुरुष एकाग्रचित्तसे पितृगणकी तिलसहित जल भी दान करता है वह मानो एक सहस्त्र(1000)  वर्षके लिये श्राद्ध कर देता है-
 यह परम रहस्य स्वयं पितृगण ही कहते हैं ॥ १२-१४ ॥ 
यदि कदाचित् माघकी अमावास्याका शतभिषा-नक्षत्रसे योग हो जाय तो पितृगणकी तृप्तिके लिये यह परम
उत्कृष्ट काल होता है। हे राजन् ! अल्पपुण्यवान् पुरुषोंको ऐसा समय नहीं मिलता ॥ १५ ॥ 
और यदि उस समय (माघकी अमावास्यामें) धनिष्ठानक्षत्रका योग हो तब तो अपने ही कुलमें उत्पन्न हुए पुरुषद्वारा दिये हुए अन्नोदकसे पितृगणकी दस सहस्र वर्षतक तृप्ति रहती है ॥ १६ ॥ तथा यदि उसके साथ पूर्वभाद्रपदनक्षत्रका योग हो और उस समय पितृगणके लिये श्राद्ध किया जाय तो उन्हें परम तृप्ति होती है।
गंगा , यमुना आदि में स्नान करके पितृगणों की पूजा से भी पाप नष्ट हो जाते हैं।  वर्षाकाल  के मघा नक्षत्र में तृप्त होकर माघ की अमावस्या को तीर्थ में दी गई जलांजली से भी तृप्त होते हैं। अथवा कुछ न बने तो किसी जितेन्द्रिय विप्र को एक मुट्ठी भर तिल देने से ही पितर संतुष्ट होकर आशीर्वाद दे देते हैं जिससे पुनः सुख और शान्ति मिलने लगती है तदोपरान्त सविधि श्राद्ध कर्म करते हुये दान पुण्य अवश्य करें। धन , संतान सुख आदि का लाभ होने का अर्थ है कि आपसे पितृगण संतुष्ट हैं।
श्राद्ध कर्म के विस्तार हेतु आप विष्णु पुराण के तृतीय अंश के अध्याय 11,13 ,14 और 15,16 पढ़े। 🚩🙏🌹

🍁👉
।।#साधना का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहिए। सभी साधनाएं या #मंत्र सभी के लिए नहीं होती है। 

लोगों ने धारणा बना रखी है कि सभी देव देवी कल्याणकारी है तो हमारा अहित कैसे कर सकते है। 
लेकिन हम ऊर्जा के दृष्टिकोण से नहीं देखते है। ऊर्जा की अधिकता असंतुलन का कारण बनती है। 

किसी भी देवी या देवता की पूजा आप मन्दिर में कर रहे हैं, तो इसका यह अर्थ है कि उस देवी या देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे हैं। वास्तव में, सभी पहले से शरीर में हैं। आप #ब्रह्माण्ड से उनकी शक्ति को शरीर में खींचकर उनकी शक्ति बढ़ा रहे है।

अब यदि वह शक्ति पहले से आपके शरीर में अधिक है, तो शरीर का सारा ऊर्जा समीकरण असन्तुलित हो जायेगा। उस शक्ति का गुण इतना बढ़ जायेगा कि आप उस शक्ति के कारण ही विनष्ट हो जायेंगे।

 आप में काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और काली या भैरवजी की पूजा कर रहे हैं तो कलह, झगड़े, राजदण्ड और अकाल मृत्यु को आमन्त्रित कर रहे हैं, ऐसे व्यक्ति को शिव की पूजा करनी चाहिए।

सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है। इसी प्रकार चंचल प्रकृति के सक्रिय व्यक्ति हैं, तो आपके लिए दुर्गाजी की पूजा उचित नहीं है।

विस्मय यह है कि ज्योतिष में रत्न, अंगूठी, तावीज आदि के चुनाव में इसकी सावधानी बरती जाती है, पूजा, अनुष्ठान में हम जाने किस अन्धश्रद्धा के शिकार हैं। फलतः परिश्रम भी करते हैं और लाभ के बदले हानि और अनिष्ट के शिकार हो जाते हैं।



🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 19 जून 2025*
*🎈दिन- गुरुवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    अष्टमी    11:54:58*
 तत्पश्चात्  नवमी*
*🎈 नक्षत्र    -                उत्तरभाद्रपदा    23:15:55पश्चात  रेवती*
*🎈योग -         सौभाग्य    26:44:52 तक, तत्पश्चात् शोभन*
*🎈करण -         कौलव    11:54:58 पश्चात  गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-02:20pm
से 04:04 pm तक*
gd


*🎈सूर्योदय -     05:42:08*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:53*
*🎈चन्द्र राशि    -   मीन    *
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:20 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:09 पी एम से 01:04 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:16 ए एम, जून 20 से 12:57 ए एम, जून 20तक*
*🎈रवि योग    05:40 ए एम से 01:01 ए एम, जून 18*

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
शुभ    05:42 - 07:26    शुभ
रोग    07:26 - 09:09    अशुभ
उद्वेग    09:09 - 10:53    अशुभ
चर    10:53 - 12:37    शुभ
लाभ    12:37 - 14:20    शुभ
अमृत    14:20 - 16:04    शुभ
काल    16:04 - 17:47    अशुभ
शुभ    17:47 - 19:31    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
अमृत    19:31 - 20:47    शुभ
चर    20:47 - 22:04    शुभ
रोग    22:04 - 23:20    अशुभ
काल    23:20 - 24:37*    अशुभ
लाभ    24:37* - 25:53*    शुभ
उद्वेग    25:53* - 27:09*    अशुभ
शुभ    27:09* - 28:26*    शुभ
अमृत    28:26* - 29:42*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌कुत्ता भगवान दादा भैरव का वाहन है और इसे शनि और केतु का प्रतीक माना जाता है जिन लोगों की कुंडली में केतु खराब होता है उनको 1 बार कुत्ता जरूर काटता है यदि कुंडली मै राहु, केतु या शनि का कोई भी दोष है या तीनों ग्रहों के कारण पीड़ा मिल रही है तो नियमित रूप से कुत्ते को।सरसों के तेल से चुपड़ी रोटी खिलानी चाहिए इस उपाय से ग्रह शांत रहेंगे और आपकी परेशानियां दूर होने लगेंगी ।।
मेष, वृष और कुंभ राशि वाले जिनके घर अभी जनवरी से क्लेश बढ़ गया है, व्यापार मै तरक्की रुक गई है, पति पत्नी मै रोज झगड़ा हो रहा है या नौबत तलाक तक आ है बो भाई बहन मैसेज कर सकते है समाधान सबका होगा बस आप अगर सच्चे मन और श्रद्धा भाव से करोगे तो सब कार्य सफल।होंगे इतनी मेरी गारंटी है ।। 
जय दादा काल भैरव 🚩🙏🌹

🍁👉
।।#साधना का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहिए। सभी साधनाएं या #मंत्र सभी के लिए नहीं होती है। 

लोगों ने धारणा बना रखी है कि सभी देव देवी कल्याणकारी है तो हमारा अहित कैसे कर सकते है। 
लेकिन हम ऊर्जा के दृष्टिकोण से नहीं देखते है। ऊर्जा की अधिकता असंतुलन का कारण बनती है। 

किसी भी देवी या देवता की पूजा आप मन्दिर में कर रहे हैं, तो इसका यह अर्थ है कि उस देवी या देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे हैं। वास्तव में, सभी पहले से शरीर में हैं। आप #ब्रह्माण्ड से उनकी शक्ति को शरीर में खींचकर उनकी शक्ति बढ़ा रहे है।

अब यदि वह शक्ति पहले से आपके शरीर में अधिक है, तो शरीर का सारा ऊर्जा समीकरण असन्तुलित हो जायेगा। उस शक्ति का गुण इतना बढ़ जायेगा कि आप उस शक्ति के कारण ही विनष्ट हो जायेंगे।

 आप में काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और काली या भैरवजी की पूजा कर रहे हैं तो कलह, झगड़े, राजदण्ड और अकाल मृत्यु को आमन्त्रित कर रहे हैं, ऐसे व्यक्ति को शिव की पूजा करनी चाहिए।

सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है। इसी प्रकार चंचल प्रकृति के सक्रिय व्यक्ति हैं, तो आपके लिए दुर्गाजी की पूजा उचित नहीं है।

विस्मय यह है कि ज्योतिष में रत्न, अंगूठी, तावीज आदि के चुनाव में इसकी सावधानी बरती जाती है, पूजा, अनुष्ठान में हम जाने किस अन्धश्रद्धा के शिकार हैं। फलतः परिश्रम भी करते हैं और लाभ के बदले हानि और अनिष्ट के शिकार हो जाते हैं।



🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 18 जून 2025*
*🎈दिन- बुधवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    सप्तमी    13:34:09*
 तत्पश्चात्  अष्टमी*
*🎈 नक्षत्र    -            पूर्वभाद्रपदा    24:21:55 पश्चात  उत्तरभाद्रपदा*
*🎈योग -         प्रीति    07:39:08 तक, तत्पश्चात् सौभाग्य*
*🎈करण -         बव    13:34:09 पश्चात  कौलव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-12:36pm
से 02:20 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:42:08*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:53*
*🎈चन्द्र राशि    -   मीन    *
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:16 ए एम, जून 19 से 12:57 ए एम, जून 19 तक*
*🎈रवि योग    05:40 ए एम से 01:01 ए एम, जून 18*

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ    05:42 - 07:26    शुभ
अमृत    07:26 - 09:09    शुभ
काल    09:09 - 10:53    अशुभ
शुभ    10:53 - 12:36    शुभ
रोग    12:36 - 14:20    अशुभ
उद्वेग    14:20 - 16:03    अशुभ
चर    16:03 - 17:47    शुभ
लाभ    17:47 - 19:31    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग    19:31 - 20:47    अशुभ
शुभ    20:47 - 22:04    शुभ
अमृत    22:04 - 23:20    शुभ
चर    23:20 - 24:36*    शुभ
रोग    24:36* - 25:53*    अशुभ
काल    25:53* - 27:09*    अशुभ
लाभ    27:09* - 28:26*    शुभ
उद्वेग    28:26* - 29:42*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌18 जून को भद्र राजयोग का राजसी संयोग, सिंह सहित 5 राशियों को मिलेगा भरपूर लाभ, गणपति महाराज पूरे करेंगे आपके काज::-🌹

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।।यतो धर्मः ततो जयः।।
सफेददाग 
शरीर पर सफेद दाग हो जाना एक चर्म रोग है यदि शरीर में मेलानिन नमक क तत्व की कमी हो जाए तो शरीर पर सफेद दाग हो जाते हैं ।
ज्योतिषीयकारण
1. मेष या वृष राशि में चंद्र या मंगल या शनि की युति हो  ,
2. यदि शनि 12वें भाव में हो या मंगल दूसरे भाव में हो या चंद्र लग्न में हो या सूर्य सातवें भाव में हो ,
3. यदि चंद्र और शुक्र का योग किसी जल राशि में हो जाए ,
4. यदि राहु या केतु से चंद्रमा या मंगल या बुद्ध या लगनाधिपति योग करें ,
5. बुद्ध शत्रु राशि में हो या अस्त या वक्री हो ,
6. शुक्र अस्त हो या नीचे हो या शनि और राहु के बीच में आ जाए या दोनों में से किसी एक के साथ युति कर ले ,

1. एक या दो रत्ती का हीरा पहने जाए,
2. 8 रती का फिरोज धरण करें  ,
3. 4 से 7 रत्ती का पुखराज पहने ।
विशेष - बिना ज्योतिषीय परामर्श के कोई भी किसी भी प्रकार का रत्न धारण न करें ।

#प्रेमरहस्य!!
     पार्वती शिव की केवल अर्धांगिनी ही नहीं अपितु शिष्या भी बनी, वे नित्य ही अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए शिव से अनेकों प्रश्न पूछती और उनपर चर्चा करती ! एक दिन उन्होंने शिव से कहा- प्रेम क्या है बताइए महादेव, कृपया बताइए की प्रेम का रहस्य क्या है, क्या है इसका वास्तविक स्वरुप, क्या है इसका भविष्य ! आप तो हमारे गुरु की भी भूमिका निभा रहे हैं इस प्रेम ज्ञान से अवगत कराना भी तो आपका ही दायित्व है ! बताइए महादेव ! 

भगवान शिव कहते हैं- प्रेम क्या है ! यह तुम पूछ रही हो पार्वती ? प्रेम का रहस्य क्या है ? प्रेम का स्वरुप क्या है ? तुमने ही प्रेम के अनेको रूप उजागर किये हैं पार्वती ! तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियाँ हुयी ! तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर निहित है ! 

पार्वती ने कहा- क्या इन विभिन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है ? 

शिव बोले- सती के रूप में जब तुम अपने प्राण त्याग दूर चली गयी, मेरा जीवन, मेरा संसार, मेरा दायित्व, सब निरर्थक और निराधार हो गया ! मेरे नेत्रों से अश्रुओं की धाराएँ बहने लगी ! अपने से दूर कर तुमने मुझे मुझ से भी दूर कर दिया था पार्वती ! ये ही तो प्रेम है पार्वती ! तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्टि का अपूर्ण हो जाना ये ही प्रेम है ! तुम्हारे और मेरे पुन: मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास करना हर संभव षड्यंत्र रचना,  इसका कारण हमारा असीम प्रेम ही तो है ! तुम्हारा पार्वती के रूप में पुन: जनम लेकर मेरे एकांकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बाहर निकलने पर विवश करना, और मेरा विवश हो जाना यह प्रेम ही तो है ! 

जब जब अन्नपूर्णा के रूप में तुम मेरी क्षुधा को बिना प्रतिबन्धन के शांत करती हो या कामख्या के रूप में मेरी कामना करती हो तो वह प्रेम की अनुभूति ही है ! तुम्हारे सौम्य और सहज गौरी रूप में हर प्रकार के अधिकार जब मैं तुम पर व्यक्त करता हूँ और तुम उन अधिकारों को मान्यता देती हो और मुझे विशवास दिलाती रहती हो की सिवाए मेरे इस संसार में तुम्हे किसी का वर्चस्व स्वीकार नहीं तो वह प्रेम की अनुभूति ही होती है ! 

जब तुम मनोरंजन हेतु मुझे चौसर में पराजित करती हो तो भी विजय मेरी ही होती है, क्योंकि उस समय तुम्हारे मुख पर आई प्रसन्नता मुझे मेरे दायित्व की पूर्णता का आभास कराती है ! तुम्हे सुखी देख कर मुझे सुख का जो आभास होता है यही तो प्रेम है पार्वती ! 

जब तुमने अपने अस्त्र वहन कर शक्तिशाली दुर्गा रूप में अपने संरक्षण में मुझे सशक्त बनाया तो वह अनुभूति प्रेम की ही थी ! जब तुमने काली के रूप में संहार कर नृत्य करते हुए मेरे शरीर पर पाँव रखा तो तुम्हे अपनी भूल का आभास हुआ, और तुम्हारी जिह्वा बहार निकली, वही प्रेम था पार्वती !

जब तुम अपना सौंदर्यपूर्ण ललिता रूप जो कि अति भयंकर भैरवी रूप भी है, का दर्शन देती हो, और जब मैं तुम्हारे अति-भाग्यशाली मंगला रूप जो कि उग्र चंडिका रूप भी है, का अनुभव करता हूँ, जब मैं तुम्हे पूर्णतया देखता हूँ बिना किसी प्रयत्न के, तो मैं अनुभव करता हूँ की मैं सत्य देखने में सक्षम हूँ ! जब तुम मुझे अपने सम्पूर्ण रूपों के दर्शन देती हो और मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ ! इस तरह तुम मेरे लिए एक दर्पण बन जाती हो जिसमें झांक कर में स्वयं को देख पाता हूँ की मैं कौन हूँ ! तुम अपने दर्शन से साक्षात् कराती हो और मैं आनंदविभोर हो नाच उठता हूँ और नटराज कहलाता हूँ ! यही तो प्रेम है ! 

जब तुम बारम्बार स्वयं को मेरे प्रति समर्पित कर मुझे आभास कराती हो कि मैं तुम्हारे योग्य हूँ, तुमने मेरी वास्तविकता को प्रतिबिम्बित कर मेरे दर्पण के रूप को धारण कर लिया वही तो प्रेम था पार्वती।

      ।। ॐ शिव शक्तये नमः ।।


🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 17 जून 2025*
*🎈दिन- मंगलवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    षष्ठी    14:45:57*
 तत्पश्चात्  सप्तमी*
*🎈 नक्षत्र    -            शतभिष    25:00:43 पश्चात   पूर्वभाद्रपदा*
*🎈योग -         विश्कुम्भ    09:33:02 तक, तत्पश्चात् प्रीति*
*🎈करण -         वणिज    14:45:57 पश्चात  बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-07:25am
से 09:09 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:58*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:38*
*🎈चन्द्र राशि-     कुम्भ    till 18:34:11*
*🎈चन्द्र राशि    -   मीन    from 18:34:11*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:08 पी एम से 01:04 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:16 ए एम, जून 18 से 12:56 ए एम, जून 18 तक*
*🎈रवि योग    05:40 ए एम से 01:01 ए एम, जून 18*

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
रोग    05:42 - 07:25    अशुभ
उद्वेग    07:25 - 09:09    अशुभ
चर    09:09 - 10:53    शुभ
लाभ    10:53 - 12:36    शुभ
अमृत    12:36 - 14:20    शुभ
काल    14:20 - 16:03    अशुभ
शुभ    16:03 - 17:47    शुभ
रोग    17:47 - 19:30    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
काल    19:30 - 20:47    अशुभ
लाभ    20:47 - 22:03    शुभ
उद्वेग    22:03 - 23:20    अशुभ
शुभ    23:20 - 24:36*    शुभ
अमृत    24:36* - 25:53*    शुभ
चर    25:53* - 27:09*    शुभ
रोग    27:09* - 28:26*    अशुभ
काल    28:26* - 29:42*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         

🍁⚛️  ⚛️🌹‌👉‌तिथियों और नक्षत्रों के देवता तथा उनके पूजन का फल::-🌹

🍁👉तिथि विभाजन के समय प्रतिपदा आदि सभी तिथियां अग्नि आदि देवताओं को तथा सप्तमी भगवान सूर्य को प्रदान की गई। जिन्हें जो तिथि दी गई, वह उसका ही स्वामी कहलाया। अत: अपने दिन पर ही अपने मंत्रों से पूजे जाने पर वे देवता अभीष्ट प्रदान करते हैं। 

🍁👉सूर्य ने अग्नि को प्रतिपदा, 
ब्रह्मा को द्वितीया, 
यक्षराज कुवेर को तृतीया 
और गणेश को चतुर्थी तिथि दी है। 
नागराज को पंचमी, 
कार्तिकेय को षष्ठी, 
अपने लिए सप्तमी और 
रुद्र को अष्टमी तिथि प्रदान की है। 
दुर्गादेवी को नवमी, 
अपने पुत्र यमराज को दशमी, 
विश्वेदेवगणों को एकादशी तिथि दी गई है। विष्णु को द्वादशी, 
कामदेव को त्रयोदशी, 

🍁👉शंकर को चतुर्दशी तथा 
चंद्रमा को पूर्णिमा की तिथि दी है। 
सूर्य के द्वारा पितरों को पवित्र, पुण्यशालिनी अमावास्या तिथि दी गई है। 

🍁👉ये कही गई पंद्रह तिथियां चंद्रमा की हैं। कृष्ण पक्ष में देवता इन सभी तिथियों में शनै: शनै: चंद्रकलाओं का पान कर लेते हैं। वे शुक्ल पक्ष में पुन: सोलहवीं कला के साथ उदित होती हैं। वह अकेली षोडशी कला सदैव अक्षय रहती है। उसमें साक्षात सूर्य का निवास रहता है। इस प्रकार तिथियों का क्षय और वृद्धि स्वयं सूर्यनारायण ही करते हैं। अत: वे सबके स्वामी माने जाते हैं। ध्यानमात्र से ही सूर्यदेव अक्षय गति प्रदान करते हैं।दूसरे देवता भी जिस प्रकार उपासकों की अभीष्ट कामना पूर्ण करते हैं, संक्षेप में वह इस प्रकार है:

🍁👉प्रतिपदा तिथि में अग्निदेव की पूजा करके अमृतरूपी घृत का हवन करे तो उस हवि से समस्त धान्य और अपरिमित धन की प्राप्ति होती है। 

🍁👉द्वितीया को ब्रह्मा की पूजा करके ब्रह्मचारी ब्राह्मण को भोजन कराने से मनुष्य सभी विद्याओं में पारंगत हो जाता है। 

🍁👉तृतीया तिथि में धन के स्वामी कुबेर का पूजन करने से मनुष्य निश्चित ही विपुल धनवान बन जाता है तथा क्रय-विक्रयादि व्यापारिक व्यवहार में उसे अत्यधिक लाभ होता है। 

🍁👉चतुर्थी तिथि में भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए। इससे सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। 

🍁👉पंचमी तिथि में नागों की पूजा करने से विष का भय नहीं रहता, स्त्री और पुत्र प्राप्त होते हैं और श्रेष्ठ लक्ष्मी भी प्राप्त होती है। 

🍁👉षष्ठी तिथि में कार्तिकेय की पूजा करने से मनुष्य श्रेष्ठ मेधावी, रूपसंपन्न, दीर्घायु और कीर्ति को बढ़ानेवाला हो जाता है। 

🍁👉सप्तमी तिथि को चित्रभानु नामवाले भगवान सूर्यनारायण का पूजन करना चाहिए, ये सबके स्वामी एवं रक्षक हैं। 

🍁👉अष्टमी तिथि को वृषभ से सुशोभित भगवान सदाशिव की पूजा करनी चाहिए, वे प्रचुर ज्ञान तथा अत्यधिक कांति प्रदान करते हैं। भगवान शंकर मृत्य्हरण करनेवाले, ज्ञान देने वाले और बंधनमुक्त करने वाले हैं। 

🍁👉नवमी तिथि में दुर्गा की पूजा करके मनुष्य इच्छापूर्वक संसार-सागर को पार कर लेता है तथा संग्राम और लोकव्यवहार में वह सदा विजय प्राप्त करता है। 

🍁👉दशमी तिथि को यह की पूजा करनी चाहिए, वे निश्चित ही सभी रोगों को नष्ट करने वाले और नरक तथा मृत्यु से मानव का उद्धार करने वाले हैं। 

🍁👉एकादशी तिथि को विश्वेदेवों की भली प्रकार से पूजा करनी चाहिए। वे भक्त को संतान, धन-धान्य और पृथ्वी प्रदान करते हैं। 

🍁👉द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करके मनुष्य सदा विजयी होकर समस्त लोक में वैसे ही पूज्य हो जाता है, जैसे किरणमालौ भगवान सूर्य पूज्य हैं। 

🍁👉त्रयोदशी में कामदेव की पूजा करने से मनुष्य उत्तम भार्या प्राप्त करता है तथा उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। 

🍁👉चतुर्दशी तिथि में भगवान देवदेवेश्वर सदाशिव की पूजा करके मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों से समन्वित हो जाता है तथा बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है। 

🍁👉पूर्णमा तिथि में जो भक्तिमान मनुष्य चंद्रमा की पूजा करता है, उसका संपूर्ण संसार पर अपना आधिपत्य हो जाता है और वह कभी नष्ट नहीं होता। अपने दिन में अर्थात् अमावास्या में पितृगण पूजित होने पर सदैव प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा, आयु तथा बल-शक्ति प्रदान करते हैं। उपवास के बिना भी ये पितृगण उक्त फल को देनेवाले होते हैं। अत: मानव को चाहिए कि पितरों को भक्तिपूर्वक पूजा के द्वारा सदा प्रसन्न रखे। मूलमंत्र, नाम-संकीर्तन और अंश मंत्रों से कमल के मध्य में स्थित तिथियों के स्वामी देवताओं की विविध उपचारों से भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजा करनी चाहिए तथा जप-होमादि कार्य संपन्न करने चाहिए। इसके प्रभाव से मानव इस लोक में और परलोक में सदा सुखी रहता है। उन-उन देवों के लोकों को प्राप्त करता है और मनुष्य उस देवता के अनुरूप हो जाता है। उसके सारे अरिष्ट नष्ट हो जाते हैं तथा वह उत्तम रूपवान, धार्मिक, शत्रुओं का नाश करनेवाला राजा होता है।

इसी प्रकार सभी नक्षत्र-देवता जो नक्षत्रों में ही व्यवस्थित हैं, वे पूजित होने पर समस्त अभीष्ट कामनाओं को प्रदान करते हैं।

🍁👉अश्विनी नक्षत्र में अश्विनीकुमारों की पूजा करने से मनुष्य दीर्घायु एवं व्याधिमुक्त होता है। 

🍁👉भरणी नक्षरे में कृष्णवर्ण के सुंदर पुष्पों से बनी हुई मान्यादि और होम के द्वारा पूजा करने से अग्निदेव निश्चित ही यथेष्ट फल देते हैं। 

🍁👉कृतिका नक्षत्र में शिव पुत्र कार्तिकेय एवं अग्नि की पूजा एवं कृतिका नक्षत्र के सवा लाख वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है।एवं अग्नि में आहुतियां डाली जाती है

🍁👉रोहिणी नक्षत्र में ब्रह्मा की पूजा करने से वह साधका की अभिलाषा पूरी कर देते हैं। 

🍁👉मृगशिरा नक्षत्र में पूजित होने पर उसके स्वामी चंद्रदेव उसे ज्ञान और आरोग्य प्रदान करते हैं। 

🍁👉आर्द्रा नक्षत्र में शिव के अर्चन से विजय प्राप्त होती है। सुंदर कमल आदि पुष्पों से पूजे गए भगवान शिव सदा कल्याण करते हैं।

🍁👉पुनर्वसु नक्षत्र में अदिति की पूजा करनी चाहिए। पूजा से संतृप्त होकर वे माता के सदृश रक्षा करती हैं। 

🍁👉पुष्य नक्षत्र में उसके स्वामी बृहस्पति अपनी पूजा से प्रसन्न होकर प्रचुत सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। 

🍁👉आश्लेषा नक्षत्र में नागों की पूजा करने से नागदेव निर्भय कर देते हैं, काटते नहीं। 

🍁👉मघा नक्षत्र में हव्य-कव्य के द्वारा पूजे गए सभी पितृगण धन-धान्य, भृत्य, पुत्र तथा पशु प्रदान करते हैं। 

🍁👉पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में पूषा की पूजा करने पर विजय प्राप्त हो जाती है और 

🍁👉उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भग नामक सूर्यदेव की पुष्पादि से पूजा करने पर वे विजय कन्या को अभीप्सित पति और पुरुष को अभीष्ट पत्नी प्रदान करते हैं तथा उन्हें रूप एवं द्रव्य-संपदा से संपन्न बना देते हैं। 

🍁👉हस्त नक्षत्र में भगवान सूर्य गंध-पुष्पादि से पूजित होने पर सभी प्रकार की धन-संपत्तियां प्रदान करते हैं।

🍁👉चित्रा नक्षत्र में पूजे गए भगवान त्वष्टा शत्रुरहित राज्य प्रदान करते हैं। 

🍁👉स्वाती नक्षत्र में वायुदेव पूजित होने पर संतुष्ट जो परम शक्ति प्रदान करते हैं। 

🍁👉विशाखा नक्षत्र में लाल पुष्पों से इंद्राग्नि का पूजन करके मनुष्य इस लोक में धन-धान्य प्राप्त कर सदा तेजस्वी रहता है।

🍁👉अनुराधा नक्षत्र में लाल पुष्पों से भगवान मित्रदेव की भक्तिपूर्वक विधिवत पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और वह इस लोक में चिरकाल तक जीवित रहता है।

🍁👉ज्येष्ठा नक्षत्र में देवराज इंद्र की पूजा करने से मनुष्य पुष्टि बल प्राप्त करता है तथा गुणों में, धन में एवं कर्म में सबसे श्रेष्ठ हो जाता है।

🍁👉मूल नक्षत्र में सभी देवताओं और पितरों की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मानव स्वर्ग में अचलरूप से निवास करता है और पूर्वोक्त फलों को प्राप्त करता है। 

🍁👉पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अप्-देवता (जल) की पूजा और हवन करके मनुष्य शारीरिक तथा मानसिक संतापों से मुक्त हो जाता है।

🍁👉उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में विश्वेदेवों और भगवान विश्वेश्वर कि पुष्पादि द्वारा पूजा करने से मनुष्य सभी कुछ प्राप्त कर लेता है।

🍁👉श्रवण नक्षत्र में श्वेत, पीत और नीलवर्ण के पुष्पों द्वारा भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा कर मनुष्य उत्तम लक्ष्मी और विजय को प्राप्त करता है। 

🍁👉धनिष्ठा नक्षत्र में गन्ध-पुष्पादि से वसुओं के पूजन से मनुष्य बहुत बड़े भय से भी मुक्त हो जाता है। उसे कहीं भी कुछ भी भय नहीं रहता। 

🍁👉शतभिषा नक्षत्र में इन्द्र की पूजा करने से मनुष्य व्याधियों से मुक्त हो जाता है और आतुर व्यक्ति पुष्टि, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। 

🍁👉पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुद्ध स्फटिक मणि के समान कांतिमान अजन्मा प्रभु की पूजा करने से उत्तम भक्ति और विजय प्राप्त होती है।

🍁👉उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मेँ अहिर्बुध्न्य की पूजा करने से परम शांति की प्राप्ति होती है। 

🍁👉रेवती नक्षत्र श्वेत पुष्प से पूजे गए भगवान पूषा सदैव मंगल प्रदान करते हैं और अचल धृति तथा विजय भी देते हैं। 

🍁👉अपनी सामर्थ्य के अनुसार भक्ति से किए गए पूजन से ये सभी सदा फल देने वाले होते हैं। यात्रा करने की इच्छा हो अथवा किसी कार्य को प्रारंभ करने की इच्छा हो तो नक्षत्र-देवता की पूजा आदि करके ही वह सब कार्य करना उचित है। इस प्रकार करने पर यात्रा में तथा क्रिया में सफलता होती है - ऐसा स्वयं भगवान सूर्य ने कहा है।

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
 🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 16 जून 2025*
*🎈दिन- सोमवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    पंचमी    15:31:02*
 तत्पश्चात्  षष्ठी*
*🎈 नक्षत्र    -            धनिष्ठा    25:12:37 पश्चात   शतभिष*
*🎈योग -         ऐन्द्र    12:18:11 तक, तत्पश्चात् विश्कुम्भ*
*🎈करण -         वैधृति    11:05:40 पश्चात  वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-07:25am
से 09:09 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:40*
*🎈सूर्यास्त - 19:30:04*
*🎈चन्द्र राशि-       मकर    l*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ    till 06:43:04*
*🎈सूर्य राशि    -   मिथुन    from 06:43:04*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:08 पी एम से 01:04 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:16 ए एम, जून 17 से 12:56 ए एम, जून 17 तक*

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत    05:42 - 07:25    शुभ
काल    07:25 - 09:09    अशुभ
शुभ    09:09 - 10:52    शुभ
रोग    10:52 - 12:36    अशुभ
उद्वेग    12:36 - 14:19    अशुभ
चर    14:19 - 16:03    शुभ
लाभ    16:03 - 17:47    शुभ
अमृत    17:47 - 19:30    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
चर    19:30 - 20:47    शुभ
रोग    20:47 - 22:03    अशुभ
काल    22:03 - 23:19    अशुभ
लाभ    23:19 - 24:36*    शुभ
उद्वेग    24:36* - 25:52*    अशुभ
शुभ    25:52* - 27:09*    शुभ
अमृत    27:09* - 28:25*    शुभ
चर    28:25* - 29:42*    शुभ
kundli


🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         🍁⚛️  ⚛️🌹‌दो मुखी रुद्राक्ष पहनने के फायदे🌹
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👉‌दो मुखी रुद्राक्ष को शिव और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह रुद्राक्ष कई लाभ प्रदान करता है, जैसे की शांति, धैर्य और नेतृत्व करने, आत्मविश्वास बढ़ाने और बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।

👉 दो मुखी रुद्राक्ष के फायदे:-
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👉 दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को शांति और धैर्य प्राप्त होता है। 

👉 यह रुद्राक्ष नेतृत्व क्षमता को विकसित करने में मदद करता है।

👉 दो मुखी रुद्राक्ष मानसिक तनाव को कम करने और   आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है। 

👉यह किडनी, आंत, और बायी  आंख से संबंधित समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।

👉दो मुखी रुद्राक्ष रिश्तो में सामंजस्य और सद्भावना को बढ़ावा देता है। 

👉 यह रुद्राक्ष वैवाहिक जीवन में सुख और शांति लाता है।

👉 दो मुखी रुद्राक्ष व्यापार में सफलता और साझेदारी में मदद करता है।
👉 यह गर्भधारण में आ रही समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। 
👉 यह चंद्रमा के अशोक प्रभाव को कम करने में मदद करता है। 

🌹  दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने की विधि:- 
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👉 शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार या भगवान शिव के किसी भी शुभ दिन पर रुद्राक्ष धारण करें। 
👉 प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहने। 
👉 घर के पूजा स्थल के सामने आसन पर बैठ जाएं। 
👉 भगवान शिव की मूर्ति के सामने तांबे के पात्र में रुद्राक्ष पर कच्चा दूध छिड़क कर उसे पवित्र करें।
👉 मंदिर में घी का दीपक जलाएं और 108 बार "ओम अर्धनारीश्वर आए नमः "  का जाप करें ।
👉 रुद्राक्ष को सफेद दिया लाल धागे में बांधकर धारण कर लें।

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♦ √ सप्तम भाव, भाग्य का बीज है, खेत है, फसल (उत्पादन) है। जिसका यह ठीक नहीं, उसको भाग्यवन्त कैसे कहा जाय ? लग्न के ठीक नीचे वा सामने सप्तम भाव है। पापग्रस्त होने पर यह सबसे पहले लग्न को बिगाड़ता है। लग्न के बिगड़ने पर पश्चम एवं नवम महत्वहीन हो जाते हैं। इस बिगड़ी को बनाने वाला देव मेरे सम्मुख मुस्करा रहा है। नित्य इसको प्रणाम करता हूँ। यह देव सुन्दर है, योगियों का चित्त इसमें रमण करता है, यह सब के भीतर रमण करता है, यह रम्य है। इसलिये इसे राम कहा जाता है। यह सतत स्मरण करने वाले जीवों के समस्त पापों को हर लेता है, न स्मरण करने वालों की सम्पत्तियाँ हर लेता है। इससे इसे हरि कहा जाता है। सभी प्राणी अनायास इसकी ओर खिंच रहे हैं, यह सबको अपने में आत्मसात करने के लिये खींच रहा है, यह बहुत ही सुन्दर (कृष्ट) है। इसलिये इसे कृष्ण कहा जाता है। यह देव अग्नि के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। इन विशेषताओं के कारण
 अग्नि के तीन नाम हैं-हरि, राम, कृष्ण ।

√● सातों विभक्तियों से परे 'सम्बोधन' होता है। हरे! सम्बोधन से हिरण्यगर्भा अग्नि का प्राकटय होता है है। राम ! सम्बोधन से रश्मिवान् सूर्य का उदय होता है। कृष्ण । सम्बोधन से कालाग्नि के अभय स्पर्श की सुखद अनुभूति होती है। अतः बिगड़ी को बनाने के लिये, दुर्भाग्य को सौभागय में बदलने के लिये अग्नि के त्रिनामात्मक (राम, कृष्ण, हरि) सम्बोन मन्त्र का गान करना चाहिये। मन्त्र है...

"हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।"
     (महामंत्र, कलिसंतरणोपनिषद् )

√● कलि का अर्थ है-लड़ाई झगड़ा असहमति, मतभेद, उथल-पुथल, अशांति यह कलियुग है। युगधर्म से कोई बच्चा नहीं है। कलिमस्त जीवों के उद्धार का साधन यह त्रिपाल महामन्त्र है। यह अग्निमन्त्र है। इससे कलि का कूड़ा कर्कट जल कर भस्म हो जाता है। यह पाप ताप नाशक है। यह शांतिदायक है। यह भाग्यगुरु है। इसे मेरा प्रणाम ।

 

√● जिस जातक के १, ५, ७, ९ भाव सर्वशुद्ध हों वह महाभाग्यशाली है। ऐसा जातक असाधारण कोटि का होता है। ऐसे जातक को भगवान् कहा जाता है। श्रीकृष्ण की कुण्डली ऐसी ही है। यहाँ लग्न में उच्च का चन्द्रमा एवं राहु, पञ्चम में उच्च का बुध, सप्तम में उच्च का केतु, नवम में उच्च का मंगल है। ये चारों भाव भाग्यायतन हैं, हर प्रकार से शुभ प्रभाव में हैं। इन पर तनिक भी पाप प्रभाव नहीं है।

√★ १. लग्न में दो उच्च के ग्रह राहु एवं चन्द्र के होने से कृष्ण महाबली हुए। बाहुबल तृतीय का स्वामी चन्द्रमा लग्न में उच्च का है। राहु के बल का कोई थाह ही नहीं है।

 √★२. पचन में पचमेश एवं धनेश बुध उच्च का होकर बैठा है। इसे स्वगृही गुरु अपनी सजम पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। यही कारण है कि श्री कृष्ण अनेक पुत्रों के पिता हुए। 

√★३. सप्तम में उच्च का केतु एक अतिशुभ ग्रह है। इस केतु को बृहस्पति अपनी नवम मित्रदृष्टि से देख रहा है। भाग्येश एवं केन्द्रेश शनि शुभ प्रभाव वाला होकर केतु को अपनी दशम दृष्टि से झाँक रहा है। इस प्रकार सप्तम भाव बहुत ही बली एवं शुभ हुआ। यही कारण है कि कृष्ण के जीवन में अनेक स्त्रिय भोगने को मिली।

√★ ४. नवम में उच्च का मंगल होने से कृष्ण ने धर्मयुद्ध किया। 'परित्राणाय साधूनां विनाशय च दुष्कृताम्'- यही श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा है। वेद का एक मन्त्र है- 

"पश्येम शरदः शतम्।"
(अथर्ववेद १९।६७।१)

 इस मन्त्र का प्राण है, शरदः>शर= अन्धकार को नष्ट करने वाला अर्थात् प्रकाश (शु हिंसायाम्) । शरदः = प्रकाश को देने वाला अर्थात् दिन इस मन्त्र में शरद का अर्थ है दिन। शतम् = अनेक मन्त्र का सरल अर्थ हुआ-हम अनेक दिनों को देखें। दिन में सूर्य के दर्शन होते हैं। प्रकाश देने वाला सूर्य है। सूर्य = प्रकाश = ज्ञान ।शर= जो अज्ञान का नाश करे। शरद = अज्ञान का नाश कर ज्ञान देने गुरु/ सूर्य शरदः शतम्= गुरु या सूर्य के अनेकों रूप ज्ञान की विभिन्न विधाएँ, शाखा प्रशाखाएँ अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञान अब मन्त्र का अर्थ हुआ-हम सम्पूर्ण ज्ञान का साक्षात्कार करें, ज्ञानी हों जो ज्ञानी है, वही भाग्यशाली है। इस बात को विभिन्न प्रकार से मंत्रबद्ध किया गया है...

 "जीवेम शरदः शतम् ।"
( अथर्व १९।६७।२ )
(हम ज्ञानमय जीवन जिये) 

"बुध्येम शरदः शतम् ।"
( अथर्व १९।६७।३ )
(हम ज्ञान को बुद्धि में पचा लें)

 "रोहेम शरदः शतम्।"
(अथर्व १९ । ६७ । ४ )

(हम ज्ञान की सीढ़ियों से / पर चढ़े।

 "पूषेम शरदः शतम् ।"
  ( अथर्व १९ । ६७ । ५ )
(हम ज्ञान से अपने स्वरूप का पोषण करें।

 "भवेम शरदः शतम् ।"
 (अथर्व १९ । ६७ । ६)
(हम सम्पूर्ण ज्ञान के विग्रह होवें)।

 "भूयेम शरदः शतम्।"
 (अथर्व १९ । ६७ । ७ )
(हम ज्ञान से सत्तावान् होवें)

"भूयसी: शरदः शतम्।"
( अथर्व १९ । ६७ । ८ )
(हम ज्ञान से विस्तार को प्राप्त होवें)।

√●अथर्ववेद के इस सूक्त में ज्ञान की चाहना की गई है। ज्ञान से विश्वत्व मिलता है। ज्ञानी विष्णु होता है। ज्ञान अनन्त भुजाओं, चरणों, शीर्षो, नेत्रों वाला है। मनुष्य देह पाकर यह ज्ञान नहीं मिला तो जन्म व्यर्थ है, ऐसा समझना चाहिये। भाग्य का चरम बिन्दु है ज्ञान इस ज्ञान से वंचित स्त्री पुरुष हाहाकार करते हुए जीवन जी रहे हैं, नरक में स्वर्ग को ढूंढ रहे हैं, स्वर्ग को नरक समझ कर उससे पराङ्मुख हो रहे हैं, पुरुष की लताड़ सहती हुई स्त्री पुनः उसी के पीछे भाग रही है किन्तु अपने भीतर बैठे राम की ओर देख भी नहीं रही है, स्त्री के द्वारा नचाया जाता हुआ पुरुष उसके मलायतन को सर्वस्व समझता है पर उस राम को नहीं भजता जो सर्वसुखों का सार है। 

पुरुष की गुरु स्त्री है। तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली ने अपने पति को फटकारा- 

"अस्थिवर्ममय देह मम तामे अवसी प्रीति । 
ऐसी यदि श्री राम में होती न भव भीति ।।"

तुलसी ने यह उपदेश शिरोधार्य किया और सन्त ज्ञानी भक्त बने। ऐसी रत्नावली एवं ऐसे तुलसीदास को मैं बारम्बार नमन करता हूँ। वह स्त्री जो अपने पति को पतन के गर्त में गिरने से बचा ले तथा ऐसा पति जो अपनी पत्नी को पाप करने से रोक ले, धन्य होता है। जो धन्य है वही धनवान् भाग्यवान् है

🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 15 जून 2025*
*🎈दिन- रविवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    चतुर्थी    15:50:42*
 तत्पश्चात्  पंचमी*
*🎈 नक्षत्र    -            श्रवण    24:58:52 पश्चात   धनिष्ठा*
*🎈योग -         ऐन्द्र    12:18:11 तक, तत्पश्चात् वैद्युति*
*🎈करण -         बालव    15:50:42 पश्चात  तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-05:46am
से 7:30 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:33*
*🎈सूर्यास्त - 19:29:46*
*🎈चन्द्र राशि-       मकर    till 13:08:52*
*🎈चन्द्र राशि    -   कुम्भ    from 13:08:52*
*🎈सूर्य राशि-       मिथुन*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:07 पी एम से 01:03 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:15 ए एम, जून 16 से 12:56 ए एम, जून 16तक*

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
उद्वेग    05:42 - 07:25    अशुभ
चर    07:25 - 09:09    शुभ
लाभ    09:09 - 10:52    शुभ
अमृत    10:52 - 12:36    शुभ
काल    12:36 - 14:19    अशुभ
शुभ    14:19 - 16:03    शुभ
रोग    16:03 - 17:46    अशुभ
उद्वेग    17:46 - 19:30    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ    19:30 - 20:46    शुभ
अमृत    20:46 - 22:03    शुभ
चर    22:03 - 23:19    शुभ
रोग    23:19 - 24:36*    अशुभ
काल    24:36* - 25:52*    अशुभ
लाभ    25:52* - 27:09*    शुभ
उद्वेग    27:09* - 28:25*    अशुभ
शुभ    28:25* - 29:42*    शुभ
kundli


🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         🍁⚛️  ⚛️

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🍁👉♦नक्षत्र योनि के अनुसार आप का व्यक्तित्व♦

♦ अश्व योनि : जिस व्यक्ति का जन्म अश्व योनि में होता है,वह व्यक्ति स्वेच्छाचारी अर्थात अपने मन के अनुसार चलने वाला होता है। वह व्यक्ति किसी और का कहा नहीं मानता है, जो भी इनका मन कहता है वह उसी को मानता हैं। इस योनि में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुत ही गुणी होते हैं। काफी बहादुर और हिम्मत वाले होते हैं। प्रभावशाली और ओजस्वी होते हैं, अपने आस-पास के लोगों पर अपना प्रभाव कायम करने में सफल होते हैं। यश दूर दूर तक फैलता है और सम्मान प्राप्त करते हैं। आवाज़ में घरघराहट रहती है।

♦ गज योनि : गज योनि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत ही बलवान व शक्तिशाली होता हैं। इस योनि के जातक बहुत ही उत्साही होते हैं।  हर प्रकार का सांसारिक सुख प्राप्त करते हैं। बड़े-बड़े लोगों एवं प्रतिष्ठित लोगों से इन्हें मान सम्मान एवं आदर प्राप्त होता है।

♦ गौ योनि :  जिन लोगों का जन्म गौ योनि में होता है वे सदा उत्साहित और आशावादी रहते हैं। किसी बात से निराश नहीं होते हैं और सदैव भविष्य की ओर देखते हैं। मेहनती होते हैं और परिश्रम से पीछे नहीं हटते हैं। इस योनि के जातक बातों में निपुण होते हें, अपनी बातों से  लोगों का दिल जीतना खूब जानते हैं। ऐसा व्यक्ति स्त्रियों को प्रिय होते हैं यानी स्त्रियां इनकी ओर आर्किषत रहती हैं। इस आयु के जातक की आयु कम रहती है।

♦  सर्प योनी :  सर्प योनि में जन्म लेने वाला व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होता है। बहुत अधिक क्रोध और गुस्सा आता है, क्रोध आने पर उसे नियंत्रित कर पाना बहुत कठिन होता है।  मन अस्थिर और चंचल होता है, किसी विषय में अधिक गम्भीरता से नहीं सोच पाते हैं । अच्छे -अच्छे खाने और व्यंजन के शौकीन होते हैं। जल्दी किसी के उपकार को नहीं मानते हैं।

♦    श्वान योनि : श्वान योनि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है। वह व्यक्ति बहुत बहादुर और साहसी होता है। इस योनि के जातक उत्साही और जोश से भरे होते हैं। मेहनती और परिश्रमी होते हैं।  अपने माता-पिता की खूब सेवा करते हैं, उन्हें भगवान की तरह आदर देते हैं। दोस्तों एवं अड़ोस-पड़ोस के लोगों की पूरी पूरी सहायता करने वाला होता है। इनमें एक प्रमुख कमी यह होती है कि ये अपने भाई बंधुओं से छोटी-छोटी बात पर लड़ पड़ते हैं।

♦मार्जार योनि : मार्जार यानि में जन्म लेने वाला जातक बहुत ही बहादुर और हिम्मत वाला होता है।  निडर होते हैं और किसी भी हाल में डरते नहीं हैं। स्वभाव बहुत अच्छा नहीं रहता है औऱ लोगों के प्रति दुष्टता का भाव रखते हैं। ये सभी प्रकार के कार्य करने में सक्षम होते हैं तथा मिठाईयों के शौकीन होते हैं।

♦ मेष योनि : जिनका जन्म मेष योनि में होता है वे युद्ध के मैदान में अपने पराक्रम को दिखाते हैं। पराक्रमी और महान योद्धा होते हैं।  उत्साह भरा होता है, औऱ धन-दौलत से परिपूर्ण ऐश्वर्यशाली, भोगी तथा दूसरों पर उपकार करने वाला होता है। इस योनि का जातक मेहनती होता है।

♦मूषक योनि : जिन व्यक्तियों का जन्म मूषक योनि मे होता है वे काफी बुद्धिमान और चतुर होते हैं। ये अपने काम में तत्पर और सजग रहते है। ये जो भी कदम उठाते हैं उसमें काफी सोच विचार कर और समझदारी से आगे बढ़ते हैं।आसानी से किसी पर विश्वास नहीं करते, और सदैव सचेत रहते हैं एवं इनके पास काफी धन होता है।

♦सिंह योनि : इस योनि में जन्म लेने वाला जातक धर्म का आचरण करने वाला धर्मात्मा होता है। इनमें स्वाभिमान भरा होता है।गुणवान होते हें। इनका आचरण व व्यवहार नेक और सरल होता है।अपने निश्चय यानी इरादों के पक्के होते हैं। साहस और हिम्मत कूट-कूट कर भरा होता है।अपने कुटुम्ब एवं परिवार वालों का पूरा-पूरा ख्याल रखते हैं।

♦ महिष योनि : महिष यानी भैंस योनि में जन्म लेने वाले व्यक्ति कुछ मंद बुद्धि के अर्थात कम बुद्धि वाले होते है। मार पीट एवं युद्ध में इन्हें सफलता मिलती है ये काम के प्रति बहुत अधिक उत्साही होते हैं। इन्हें कई संतानों का ख्याल रखना पड़ता है अर्थात इनके कई बच्चे होते हें। इन् वात रोग का सामना करना होताह है।

♦  व्याघ्र योनि : व्याघ्र योनि में जन्म लेने वाला व्यक्ति सभी प्रकार के काम में कुशल होता है। किसी के अधीन रह कर काम करना पसंद नहीं करते हैं, स्वतंत्र रूप से काम करके धन अर्जन करने वाले होते हैं। इस योनि के जातक अपने मुंह मियां मिट्ठू होते हैं यानी अपनी तारीफ अपने मुंह से करने वाले होते हैं।अपने आपको बढ़ा चढ़ा कर बताने वाले होते हैं।

♦  मृग योनि : जो व्यक्ति मृग योनि में जन्म लेते हैं वे कोमल हृदय के व्यक्ति होते हैं। इनका व्यवहार नम्र और प्रेमपूर्ण होता है। ये शान्त मन के व्यक्ति होते हैं। सच्चे विचारों के और सत्य बोलने वाले होते हैं। ये धर्म कर्म मे आस्था रखने वाले होते हैं। ये अपने भाई बंधुओं से प्रेम करते हैं। ये स्वतंत्र विचारों के होते हैं और लड़ाई-झगड़े दूर रहने वाले होते हैं।

♦वानर योनि : जिस व्यक्ति का जन्म वानर योनि में होता है वह चंचल स्वभाव का होता है। बात बात पर लड़ाई करने हेतु तत्पर हो जाते हैं। काफी बहादुर और हिम्मत वाले होते हैं। इनमें काम के प्रति काफी उत्तेजना रहती है। इन्हें मीठा काफी पसंद होता है। ये अधिक से अधिक धन प्राप्त करने की चाहत रखते हैं। इनका घर संतान की किलकारियों से गूंजता रहता है।
 
♦  नकुल योनि : जिन व्यक्तियों का जन्म नकुल योनि में होता है वे हर काम में पारंगत होते हैं।  किसी भी काम को कुशलता पूर्वक करने में सक्षम होते हैं। परोपकार में ये तन, मन, धन से जुटे रहते हैं।  विद्या के धनी विद्वान होते हैं तथा माता पिता की सेवा एवं भक्ति हृदय से करते हैं।
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 14 जून 2025*
*🎈दिन- शनिवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    तृतीया    15:46:10*
 तत्पश्चात्   चतुर्थी*
*🎈 नक्षत्र    -            उत्तराषाढा    24:20:53 पश्चात   श्रवण*
*🎈योग -         ब्रह्म    13:11:40 तक, तत्पश्चात्  *इंद्र*
*🎈करण -         विष्टि भद्र    15:46:10 पश्चात  बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-09:08am
से  10:52 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:27*
*🎈सूर्यास्त - 19:29:27*
*🎈चन्द्र राशि    -   मकर    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:08 पी एम से 01:03 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:15 ए एम, जून 15 से 12:56 ए एम, जून 15 तक*

    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
काल    05:41 - 07:25    अशुभ
शुभ    07:25 - 09:08    शुभ
रोग    09:08 - 10:52    अशुभ
उद्वेग    10:52 - 12:35    अशुभ
चर    12:35 - 14:19    शुभ
लाभ    14:19 - 16:02    शुभ
अमृत    16:02 - 17:46    शुभ
काल    17:46 - 19:29    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ    19:29 - 20:46    शुभ
उद्वेग    20:46 - 22:02    अशुभ
शुभ    22:02 - 23:19    शुभ
अमृत    23:19 - 24:36*    शुभ
चर    24:36* - 25:52*    शुभ
रोग    25:52* - 27:09*    अशुभ
काल    27:09* - 28:25*    अशुभ
लाभ    28:25* - 29:42*    शुभ
kundli


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🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🍁👉 झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास
शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर में झाड़ू का अपमान होता है वहां धन हानि होती है, क्योंकि झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास माना गया है। विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है।
जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है।
ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके। घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है।
वास्तु विज्ञान के अनुसार झाड़ू सिर्फ घर की गंदगी को दूर नहीं करती है बल्कि दरिद्रता को भी घर से बाहर निकालकर घर में सुख समृद्घि लाती है।
झाड़ू का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि रोगों को दूर करने वाली शीतला माता अपने एक हाथ में झाड़ू धारण करती हैं।
यदि भूलवश झाड़ू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।
जब घर में झाड़ू का इस्तेमाल न हो, तब उसे नजरों के सामने से हटाकर रखना चाहिए।
इस दिन नई झाडू खरीदना माना जाता है शुभ
वास्तु शास्त्र के मुताबिक जब भी घर में पुरानी झाडू को बदलकर नई झाडू इस्तेमाल करनी हो तो इसके लिए शनिवार के दिन का ही चुनाव करें। अगर आप नई झाडू खरीदने जा रहे हैं तो कृष्णपक्ष में ही झाडू खरीदनी शुभ मानी जाती है।
ऐसे ही झाड़ू के कुछ सतर्कता के नुस्खे अपनाये गये उनमें से आप सभी मित्रों के समक्ष हैं जैसे
1. शाम के समय सूर्यास्त के बाद झाड़ू नहीं लगाना चाहिए इससे आर्थिक परेशानी आती है।
2. झाड़ू को कभी भी खड़ा नहीं रखना चाहिए, इससे कलह होता है।
3. आपके अच्छे दिन कभी भी खत्म न हो, इसके लिए हमें चाहिए कि हम गलती से भी कभी झाड़ू को पैर नहीं लगाए या लात ना लगने दें, अगर ऐसा होता है तो मां लक्ष्मी रुष्ठ होकर हमारे घर से चली जाती है।
4. झाड़ू हमेशा साफ रखें ,गिला न छोडे ।
5. ज्यादा पुरानी झाड़ू को घर में न रखें।
6. झाड़ू को कभी घर के बाहर बिखराकर न फेके और इसको जलाना भी नहीं चाहिए।
7. झाड़ू को कभी भी घर से बाहर अथवा छत पर नहीं रखना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में चोरी की वारदात होने का भय उत्पन्न होता है। झाड़ू को हमेशा छिपाकर रखना चाहिए। ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां से झाड़ू हमें, घर या बाहर के किसी भी सदस्यों को दिखाई नहीं दें।
8. गौ माता या अन्य किसी भी जानवर को झाड़ू से मारकर कभी भी नहीं भगाना चाहिए।
9. घर-परिवार के सदस्य अगर किसी खास कार्य से घर से बाहर निकले हो तो उनके जाने के उपरांत तुरंत झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। यह बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है। ऐसा करने से बाहर गए व्यक्ति को अपने कार्य में असफलता का मुंह देखना पड़ सकता है।
10. शनिवार को पुरानी झाड़ू बदल देना चाहिए।
11. सपने मे झाड़ू देखने का मतलब है नुकसान।
12. घर के मुख्य दरवाजा के पीछे एक छोटी झाड़ू टांगकर रखना चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
13. उलटा झाडू रखना अपशकुन माना जाता है. झाडू को हमेशा लेटाकर रखना चाहिए. झाडू को खड़ा करके रखने पर कलह होता है.
14. अंधेरा होने के बाद घर में झाडू लगाने से लक्ष्मी नाराज होती है.
15. झाडू को घर से बाहर या छत पर नहीं रखें क्योंकि ऐसा करने से घर में चोरी होने का भय होता है.
पूजा घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्वी कोने में झाडू व कूड़ेदान आदि नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और घर में बरकत नहीं रहती है इसलिए वास्तु के अनुसार अगर संभव हो तो पूजा घर को साफ करने के लिए एक अलग से साफ कपड़े को रखें।
जो लोग किराये पर रहते हैं वह नया घर किराये पर लेते हैं अथवा अपना घर बनवाकर उसमें गृह प्रवेश करते हैं तब इस बात का ध्यान रखें कि आपका झाड़ू पुराने घर में न रह जाए। मान्यता है कि ऐसा होने पर लक्ष्मी पुराने घर में ही रह जाती है और नए घर में सुख-समृद्घि का विकास रूक जाता है।
महालक्ष्मी नमो नमः
नमस्तेस्तु महामायी शितिथे सुरभुशिते शंखचक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते
नमस्ते गरुडारुढ़े कोल्हासुर भयंकरी सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते
महालक्ष्मी नमोस्तुते
नमस्तेस्तु महामायी शितिथे सुरभुशिते शंखचक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भुक्ति मुक्ति प्रदायनी मंत्र पुजे सदा देवी
महालक्ष्मी नमोस्तुते
आदयंत रहिते देवी आद्यशक्ति महेश्वरी
योगजे योगसंभुते महालक्ष्मी नमोस्तुते
नमस्तेस्तु महामायी शितिथे सुरभुशिते शंखचक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते
स्थूलसुश्म महारोद्रे महाशक्ति महोदरे महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते
महालक्ष्मी नमोस्तुते
पद्मासन स्तिथे देवी परब्रह स्वरूपिणी परमेशि जगनमातर महालक्ष्मी नमोस्तुते महालक्ष्मी नमोस्तुते
नमस्तेस्तु महामायी शितिथे सुरभुशिते शंखचक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 13 जून 2025*
*🎈दिन- शुक्रवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    द्वितीया    15:18:14*
 तत्पश्चात्   तृतीया*
*🎈 नक्षत्र    -            पूर्वाषाढा    23:19:47 पश्चात   उतराषाढा*
*🎈योग -         शुक्ल    13:46:45 तक, तत्पश्चात्  ब्रह्म*
*🎈करण -         गर    15:18:14 पश्चात विष्टि भद्र*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-10:52am
से  12:35 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:23*
*🎈सूर्यास्त - 19:29:07*
*🎈चन्द्र राशि-    धनु    till 29:37:12*
*🎈चन्द्र राशि    -   मकर    from 29:37:12*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:08 पी एम से 01:03 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:15 ए एम, जून 14 से 12:56 ए एम, जून 14 तक*

    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर    05:41 - 07:25    शुभ
लाभ    07:25 - 09:08    शुभ
अमृत    09:08 - 10:52    शुभ
काल    10:52 - 12:35    अशुभ
शुभ    12:35 - 14:19    शुभ
रोग    14:19 - 16:02    अशुभ
उद्वेग    16:02 - 17:46    अशुभ
चर    17:46 - 19:29    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग    19:29 - 20:46    अशुभ
काल    20:46 - 22:02    अशुभ
लाभ    22:02 - 23:19    शुभ
उद्वेग    23:19 - 24:35*    अशुभ
शुभ    24:35* - 25:52*    शुभ
अमृत    25:52* - 27:08*    शुभ
चर    27:08* - 28:25*    शुभ
रोग    28:25* - 29:41*    अशुभ
Kundli


🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         🍁⚛️  ⚛️
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🍁👉
🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
🍁👉 "#भवानीअष्टकम"🍁👉
    आदिगुरु शंकराचार्य एक बार शाक्तमत का खंडन करने के लिए कश्मीर गए थे।  लेकिन कश्मीर में उनकी तबीयत खराब हो गई । उनके शरीर में कोई ताकत नहीं थी । 
 वे एक पेड़ के पास लेटे हुए थे ।
वहां एक ग्वालन सिर पर दही का बर्तन लेकर निकली ।  आचार्य का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे थे। उन्हों ने ग्वालन से दही मांगने के लिए उनके पास आने को इशारा किया । ग्वालन ने थोड़ी दूर से कहा "आप यहाँ दही लेने आओ"

आचार्य ने धीरे से कहा, “मुझमें इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है।  बिना शक्ति के कैसे?

हंसते हुए ग्वालन ने कहा, 'शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठाता और आप शक्ति का खंडन करने निकले हैं?'

इतना सुनते ही आचार्य की आंखें खुल गईं । वह समझ गए कि भगवती स्वयं ही इस ग्वालन के रूप में आयी हैं।  उनके मन में जो शिव और शक्ति के बीच का अंतर था वो मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया और शब्द निकले "गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी"

समर्पण का यह स्तवन "भवानी अष्टकम" के नाम से प्रसिद्ध है, जो अद्भुत है । शिव स्थिर शक्ति हैं और भवानी उनमें गतिशील शक्ति हैं.... दोनों अलग-अलग हैं... एक दूध है और दूसरा उसकी सफेदी है... नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा भी माँ ने ही हटाया था इसी लिए शंकर ने कहा "माँ, मैं कुछ नहीं जानता"।

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
          न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
    न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
          प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
    कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं  
          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ २॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
          न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
    न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ३॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
          न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
    न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्-
          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ४॥

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
          कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
    कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ५॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
          दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
    न जानामि चान्यत् सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥ 6॥

हे शिव ! हे शंकर !  हे महादेव ! हे शम्भो ❤
कोटि - कोटि प्रणाम! हर - हर - महादेव 🙏
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🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 12 जून 2025*
*🎈दिन- गुरुवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - आषाढ़*
*🎈पक्ष- कृष्ण*
*🎈तिथि-    प्रथम    14:27:07*
 तत्पश्चात् द्वितीया*
*🎈 नक्षत्र    -            मूल    21:56:03 पश्चात पूर्वाषाढा*
*🎈योग -     शुभ    14:03:43 तक, तत्पश्चात्  शुक्ल*
*🎈करण -     कौलव    14:27:06 पश्चात गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-02:18pm
से  04:02 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:19*
*🎈सूर्यास्त - 19:28:46*
*🎈चन्द्र राशि-      धनु    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:07 पी एम से 01:03 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:15 ए एम, जून 13 से 12:55 ए एम, जून 13 तक*

    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
शुभ    05:41 - 07:25    शुभ
रोग    07:25 - 09:08    अशुभ
उद्वेग    09:08 - 10:52    अशुभ
चर    10:52 - 12:35    शुभ
लाभ    12:35 - 14:18    शुभ
अमृत    14:18 - 16:02    शुभ
काल    16:02 - 17:45    अशुभ
शुभ    17:45 - 19:29    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
अमृत    19:29 - 20:45    शुभ
चर    20:45 - 22:02    शुभ
रोग    22:02 - 23:19    अशुभ
काल    23:19 - 24:35*    अशुभ
लाभ    24:35* - 25:52*    शुभ
उद्वेग    25:52* - 27:08*    अशुभ
शुभ    27:08* - 28:25*    शुभ
अमृत    28:25* - 29:41*    शुभ
🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         🍁⚛️  ⚛️
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🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱
गुरु प्रदत्त मन्त्र चैतन्य मन्त्र होता है इस चैतन्यता के कारण साधना में प्रगति तेजी से होती है बशर्ते निष्ठा नियमितता एकाग्रता से साधना की जाए। सिद्ध गुरु प्रदत्त मन्त्र से बढ़ कर कुछ भी नहीं।

◆आत्मिक साधना पथ में भी कभी कभी गुरु एक समय आने पर कहते हैं कि अब इससे आगे का मार्ग अगले गुरु से मिलेगा और वह उस गुरु का पता भी बताते हैं ऐसे अगले गुरु को खोजना अधिकतर कठिन होता है अथवा मिलने पर भी ऐसे नवीन गुरु परीक्षण प्रयोग करते हैं।

रामकृष्ण परमहंस पर लिखी गई "श्री रामकृष्ण लीला प्रसंग " पुस्तक में इसके उदाहरण देख सकते हैं, जब रामकृष्णदेव को सगुण शक्तिरूपिणी माँ की उपासना से आगे की निराकार ब्रह्म की उपासना कराने के लिए श्रीमत स्वामी तोतापुरी जी ने दर्शन दिए ।

★गुरु मन्त्र के संदर्भ में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि ऐसे मन्त्र दाता गुरु स्वयं कितने सक्षम हैं?

यदि वे केवल पुरोहित कर्म करते हुए वंश परंपरागत क्रम से गुरु हैं जैसे कि पुरोहित के पिताजी साधक के पिता के गुरु थे इसलिए वर्तमान पुरोहित भी साधक के आटोमेटिक अर्थात स्वतः ही गुरु हैं -ऐसी स्थिति में साधक को मन्त्र देने वाले गुरुपुत्र की योग्यता जाने बिना कुछ कहना कठिन है।

★फिर भी बिना मन्त्र के साधना की तुलना में ऐसे गुरु का मन्त्र जप करते रहना ही श्रेयस्कर होता है।

●अब प्रश्न पर दूसरी तरह से विचार करते हैं।कई बार मन किसी देव के प्रति सहज आकर्षित हो जाने पर उस देव से सम्बन्धित उपासना का और मन्त्र जप का विचार प्रबल हो जाता है।ऐसी स्थिति में मन्त्र के शुद्ध उच्चारण पर कोई उलझन हो तो ज्ञानी व्यक्ति से परामर्श ले कर उसीमन्त्र का जप करते रहने में कोई हर्ज नहीं है।
आपकी लगन और गहरी आस्था के अनुसार समय आने पर आपके इष्टदेव आपको आगे मार्गदर्शन के लिए सक्षम गुरु से आपका साक्षात्कार ही करा देंगे ऐसी आस्था से साधना करते रहना चाहिए।

◆गुरु मन्त्र के अतिरिक्त साधक के उद्देश्य भेद से अन्य मन्त्र का जप भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता। आइए आगे देखते हैं।
जैसे किसी की सांसारिक इच्छाआकांक्षाओं की पूर्ति की लालसा मन में अधिक है पर गुरु जी ने मोक्ष कारक विष्णु मन्त्र दिया है तो या तो गुरु आपका आकलन नहीं कर सके और परिपक्व होने के पहले ही आपको मन्त्र दे दिया ऐसा कहा जाएगा। 

🌹🙏🏻🌹

ब्रह्मपुराण में संग्रहीत भारत वर्ष के 
मुख्य तीर्थो का दुर्लभ संग्रह..... ✍️

प्रथम तीर्थ पुष्कर है। तब नैमिषारण्य, प्रयाग, धर्मारण्य, धेनुक, चम्पकारण्य, सैन्धवारण्य, पवित्र मगधारण्य,
दण्डकारम्य, गया, प्रभास, श्रीतीर्थ, दिव्य कनखल, भृगुतुंग, हिरण्याक्ष, भीमारण्य, द्वारकापुरी, लोहाकुल, केदार, मन्दरारण्य, महाबल, कोटितीर्थ, सर्वपापहार, रूपतीर्थ, शूकरव, महाफलदायक चक्रतीर्थ, योगतीर्थ, सोमतीर्थ, साहोटक तीर्थ, कोकामुख, पवित्र बदरीशैल, सोमतीर्थ, तुंगकूट, स्कन्दाश्रम, कोटितीर्थ, अग्निपद तीर्थ, पञ्चशिख, धर्मोद्भव कोटितीर्थ, बाधप्रमोचन तीर्थ, गंगाद्वार, पञ्चकूट, मध्यकेसर, चक्रप्रभ मतंग, प्रसिद्ध क्रुशदण्ड, दंष्ट्राकुण्ड, विष्णुतीर्थ, सार्वकामिक तीर्थ, मत्स्यतिल, बदरी, सुप्रभ, ब्रह्मकुण्ड, वह्निकुण्ड, सत्यपदतीर्थ, चतुःश्रोत, चतुःशृंग, शैल, द्वादशधारक, उर्वशि तथा लोकपाल, मनुवर, सोमाह्वशैल, सदाप्रभ,मेरुकुण्ड, सोमाभिषेचन तीर्थ, महास्रोत, कोटरक, पञ्चधार, त्रिधार, एकाधार, सप्तधार, चामरकंटक तीर्थ, शालग्राम, चक्रतीर्थ, कोटिद्रुम, बिल्वप्रभ, देवहद, विष्णुहृद, शंखप्रभ, देवकुण्ड, वज्रायुध, अग्निप्रभ, पुंनाग, देवप्रभ, विद्याधर, गान्धर्व, श्रीतीर्थ, ब्रह्महृद, सातीर्थ, लोकपाल, मणिपूरगिरि, पञ्चह्रद, पिण्डारक, मलव्य, गोप्रभाव, गोवर, वटमूलक, स्नानदण्ड, गुह्य, विष्णुपद, प्रयाग, कन्याश्रम, वायुकुण्ड, जम्बूमार्ग, गभस्तितीर्थ, ययातिपतन, कोटितीर्थ, भद्रवट, महाकालवन, नर्मदातीर्थ, तीर्थव्रज्र, अर्बुद, पिंगुतीर्थ, वासिष्ठ, पृथसंगम, दौर्वासिक, पिञ्जरक, ऋषितीर्थ, ब्रह्मतुंग, वसुतीर्थ, कुमारिक, शक्रतीर्थ, पञ्चनद, रेणुकातीर्थ, पैतामह, विमल, रुद्रपाद, मणिमत्त, कामाख्य, कृष्णतीर्थ, कुशाविल, यजन, याजन, ब्रह्मवालुक, पुष्पन्यास, पुण्डरीक, मणिपूर, दीर्घसत्र, हयपद, अनशन, गंगोद्भेद, शिवोद्भेद, नर्मदोद्भेद, वस्त्रापद, दारुवल, छायारोहण, सिद्धेश्वर, मित्रबल, कालिकाश्रम, वटावट, भद्रवट, कौशाम्बी, दिवाकर, द्वीप, सारस्वत, विजय, कामद, रुद्रकोटि, सुमनस, सद्रावनामित, स्यमन्तपञ्चक, ब्रह्मतीर्थ, सुदर्शन, सतत, पृथिवीसर्व, पारिप्लव, पृथूदक, दशाश्वमेधिक, सर्पिज, विषयान्तिक, कोटितीर्थ, पञ्चनद, वाराह, यक्षिणीहद, पुण्डरीक, सोमतीर्थ, मुञ्चवाट, बदरीवन, रत्नमूलक, लोकद्वार, पञ्चतीर्थ, कपिलातीर्थ, सूर्यतीर्थ, शंखिनी, गर्वा भवन, यक्षराजतीर्थ, ब्रह्मावर्त्त, सुतीर्थक, कामेश्वर, मातृतीर्थ, शीतवन, स्नानलोमापह, माससंसरक, दशाश्वमेध, केदार, ब्रह्मोदुम्बर, सप्तर्षिकुण्ड, सुजम्बुक, ईहास्पद, कोटिकूट, किंदान, किंजप, कारण्डव, अवेध्य, त्रिविष्टप, पाणिखात, मिश्रक, मधूवट, मनोजव, कौशिकी, देवतीर्थ, ऋणमोचन, नृगधूम, विष्णुपद, देवताओं का पवित्र हृद कोटितीर्थ, श्रीकुञ्ज, शालितीर्थ, प्रसिद्ध नैमिषेय, ब्रह्मस्थान, सोमतीर्थ, कन्यातीर्थ, ब्रह्मतीर्थ, मनस्तीर्थ, कारुपावन, सौगन्धिकवन, मणितीर्थ, सरस्वती, ईशानतीर्थ, प्रवर, पावन, पाञ्चयज्ञिक, त्रिशूलधार, माहेन्द्र, देवस्थान, कृतालय, शाकम्भरी, देवतीर्थ, सुवर्णा, कलि, हद, क्षीरश्रव, विरूपाक्ष, भृगुतीर्थ, कुशोद्भव, ब्रह्मतीर्थ, ब्रह्मयोनि, नीलपर्वत, कुब्जाम्बक, भद्रवट, वसिष्ठपद, स्वर्गद्वार, प्रजाद्वार, कालिकाश्रम, रुद्रावर्त, सुगन्धाश्व, कपिलावन, भद्रकर्णहद, शंकुकर्णह्रद, सप्तसारस्वत, औशनस, कपालमोचन, अवकीर्ण, काम्यक, चतुःसामुद्रिक, शतिक, सहस्रिक, रेणुक, पञ्चवट, विमोचन, औजस, स्थाणुतीर्थ, कुरुतीर्थ, स्वर्गद्वार, कुशध्वज, विश्वेश्वर, मानवक, कूप,नारायणाश्रय,गंगाह्रद, वट, बदरीपाटन, इन्द्रमार्ग, एकरात्र, क्षीरकावास, सोमतीर्थ, दधीच, श्रुततीर्थ, कोटितीर्थस्थली, भद्रकालीह्रद, अरुन्धतीवन, ब्रह्मावर्त, अश्ववेदी, कुब्जावन, यमुनाप्रभव, वीर, प्रमोक्ष, सिन्धूत्थ, ऋषिकुल्या, सकृत्तिक, उर्वीसंक्रमण, मायाविद्योद्भव, महाश्रम, वैतासिकारूप, सुन्दरिकाश्रम, बाहुतीर्थ, चारुनदी, विमलाशोक, विद्वान् मार्कण्डेय का पञ्चनदतीर्थ, सोमतीर्थ, सितोद, मत्स्योदरी, सूर्यप्रभ, सूर्यतीर्थ, अशोकवन, अरुणास्पद, कामद, शुक्रतीर्थ, सवालुक, पिशाचमोचन, सुभद्राहृद, विमलदण्ड-कुण्ड, चण्डेश्वर-तीर्थ, ज्येष्ठस्थानहद, पवित्र ब्रह्मसर, जैगीषव्यगुहा, हरिकेशवन, अजामुखसर, घण्टाकर्णह्रद, पुण्डरीकहद, कर्कोटक-वापी, सुवर्णास्योदपान, श्वेततीर्थहृद, घर्घरिकाकुण्ड, श्यामाकूप, चन्द्रिका, श्मशानस्तम्भकूप, विनायकह्रद, सिन्धूद्भवकूप, पवित्र ब्रह्मसर, रुद्रावास, नागतीर्थ, पुलोमक भक्तहृद, क्षीरसर, प्रेताधार, कुमारक, ब्रह्मावर्त्त, कुशावर्त्त, दधिकर्णोदपान, शृंगतीर्थ, महातीर्थ, तीर्थस्त्रेष्ठा, महानदा, गयाशीर्षाक्षयवट, दक्षिण, उत्तर, गोमय, रूपशीतिक, कपिलाहद, गृध्रवट, सावित्रीह्रद, प्रभासन, सीतवन, योनिद्वार, धेनुक, धन्यक, कोकिलाख्य, मतंगह्रद, पितृकूप, रुद्रतीर्थ, शक्रतीर्थ, सुमाली, ब्रह्मस्थान, सप्तकुण्ड, मणिरत्नहद, कौशिक्य, भरत, ज्येष्ठालिका, विश्वेश्वर, कल्पसर, कन्यासंवेद्य, निश्चीवाप्रभव, वसिष्ठाश्रम, देवकूट, कूप, वीराश्रम, ब्रह्मवीरावकापिली, कुमारधारा, श्रीधारा, गौरीशिखर, शुनः कुण्ड, शुनस्तीर्थ, नन्दितीर्थ, कुमारवास, श्रीवास, और्वीशीतीर्थ, कुम्भकर्णहृद, धर्मतीर्थ, कामतीर्थ, उद्दालकतीर्थ, सन्ध्यातीर्थ, कारतोय, कपिल, लोहितार्णव, शोणोद्भव, वंशगुल्म, ऋषभ, कलतीर्थक, पुण्यावतीह्रद, बदरिकाश्रम, रामतीर्थ, पितृवन, विरजातीर्थ, मार्कण्डेयवन, कृष्णतीर्थ, वटतीर्थ, रोहिणीकूपप्रवर, इन्द्रद्युम्नसर, सानुगर्त, समाहेन्द्र, श्रीतीर्थ, श्रीनद, इषुतीर्थ, ऋषभतीर्थ, कावेरीह्रद, कन्यातीर्थ, गोकर्ण, गायत्रीस्थान, बदरीहद, मध्यस्थान, विकर्णक, जातीहद, देवकूप, कुशप्रवण, सर्वदेवव्रत, कन्याश्रमहद – ये तीर्थ और आश्रम । इसी प्रकार वालखिल्यों और दूसरे महर्षियों के भी अखण्डित हृद अर्थात् तीर्थस्थान हैं। 

जो मनुष्य जितेन्द्रिय, उपवासी तथा पूर्ण श्रद्धालु होकर इन तीर्थों में स्नान करता है और क्रमशः देव, ऋषि, मनुष्य तथा पितरों का तर्पण कर देव-पूजन करते हुये तीन रात वहां वास करता है, वह प्रत्येक तीर्थ में पृथक्-पृथक् अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त करता है। 

हे शिव ! हे शंकर !  हे महादेव ! हे शम्भो ❤
कोटि - कोटि प्रणाम! हर - हर - महादेव 🙏
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🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 11 जून 2025*
*🎈दिन- बुधवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    पूर्णिमा    13:12:38*
 तत्पश्चात् प्रथम*
*🎈 नक्षत्र    -            ज्येष्ठा    20:09:41 पश्चात मूल*
*🎈योग -     साध्य    14:02:33 तक, तत्पश्चात्  शुभ*
*🎈करण -     बव    13:12:39 पश्चात कौलव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-07:25pm
से  09:18 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:17*
*🎈सूर्यास्त - 19:28:24*
*🎈चन्द्र राशि    - वृश्चिक    till 20:09:41*
*🎈चन्द्र राशि-      धनु    from 20:09:41*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:15 ए एम, जून 12 से 12:55 ए एम, जून 12तक*

    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ    05:41 - 07:25    शुभ
अमृत    07:25 - 09:08    शुभ
काल    09:08 - 10:51    अशुभ
शुभ    10:51 - 12:35    शुभ
रोग    12:35 - 14:18    अशुभ
उद्वेग    14:18 - 16:02    अशुभ
चर    16:02 - 17:45    शुभ
लाभ    17:45 - 19:28    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग    19:28 - 20:45    अशुभ
शुभ    20:45 - 22:02    शुभ
अमृत    22:02 - 23:18    शुभ
चर    23:18 - 24:35*    शुभ
रोग    24:35* - 25:51*    अशुभ
काल    25:51* - 27:08*    अशुभ
लाभ    27:08* - 28:25*    शुभ
उद्वेग    28:25* - 29:41*    अशुभ
kundli


🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         🍁⚛️  ⚛️
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🍁👉भगवती दुर्गतोद्धारिणी 💐
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(वह शक्ति जो दुर्गति से उद्धार करे)

"जिनकी कृपा से पतन भी पावन बन जाए, वही हैं दुर्गतोद्धारिणी..."

जहाँ हर ओर पतन हो — वहाँ से कौन उबारे? 👇

समय ऐसा आता है जब व्यक्ति के चारों ओर सब कुछ गिरता हुआ लगता है — स्वास्थ्य ढलता है, संबंध बिखरते हैं, अर्थ नष्ट होता है, और सबसे भयानक — आत्मविश्वास भी दरक जाता है।
यह मात्र जीवन की विफलताएँ नहीं होतीं — यह दुर्गति होती है।
कभी ऐसा लगता है न कि सब कुछ खत्म हो गया है?
कंधे झुक जाते हैं, आवाज खो जाती है, और जीवन बस एक बोझ बनकर रह जाता है।
हर प्रयास व्यर्थ, हर आशा झूठी।

तभी भीतर से एक धीमी-सी पुकार उठती है —
“माँ… अब तू ही बचा।”

वहीं से शुरू होती है उस शक्ति की यात्रा—
जो अंधेरे में दीया नहीं, स्वयं सूर्य बनकर आती है।
जो हाथ पकड़कर नहीं, आत्मा को उठाकर साथ ले जाती है। जो तुम्हारा इतिहास नहीं पूछती, बस तुम्हारा हृदय देखती है।

तंत्र, मंत्र, यंत्र सब तब तक काम करते हैं जब तक साधक के पास चेतना है। पर जब चेतना भी हार जाए, जब जप भी रुक जाए, तब एकमात्र सहारा—माँ दुर्गतोद्धारिणी बनती है।

क्योंकि वह न साधना मांगती है,
न पूर्णता —
वह केवल विरह से भीगा मन मांगती है।

‘दुर्गति’ – जहाँ मनुष्य गिरता है, बिखरता है, टूटता है।
‘उद्धारिणी’ – जो उस टूटन को जोड़ देती है, जो उस बिखराव से सुंदर चित्र बना देती है।

यह कोई नाम नहीं, यह एक जीवंत दिव्य क्रिया है —
जहाँ पतन से मोक्ष तक की यात्रा एक माँ के आँचल से होकर गुजरती है।

जब तन, मन और आत्मा — तीनों एक साथ अवसाद, भय, और पीड़ा में फँस जाएँ, तब मनुष्य रोता नहीं, बल्कि भीतर ही भीतर मरता है। और ठीक उसी क्षण, जब कोई उसे उबारने वाला नहीं दिखता  वहीं एक अदृश्यकरुणा उसकी ओर बढ़ती है — वह करुणा है ‘दुर्गतोद्धारिणी’ — पतितों की उद्धारिणी।

भगवती के नाम का अर्थ ही है : "दुर्गति से उद्धार"

दुर्गति = दु:खजनित गमन, जीवन का पतन, विपत्ति।
उद्धारिणी = उद्धार करने वाली, उबारने वाली शक्ति।
दुर्गतोद्धारिणी अर्थात् —
वह भगवती जो मनुष्य की तमाम शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक एवं आत्मिक दुर्गतियों से उसका उद्धार करें।

तांत्रिक ग्रंथों में उल्लेख: मिलते है जैसे कि  👇

 रुद्रयामल तंत्र में भी वर्णन है —भगवती के लिए 👇
 "यस्य जीवनं नष्टं, यस्य आशा भंगिता।
या जीवनं धारयति सा देवी दुर्गतोद्धारिणी॥"

 देवी रहस्य में यह भी कहा गया है 👇

 "नास्ति तया समा देवी या पतनं मोचयति।
सा तिष्ठति भक्तहृदि दुर्गतोद्धारिणी शुभा॥"

यह शक्ति देवी के करुणामयी, रक्षात्मक और जाग्रत तांत्रिक स्वरूप की एक अत्यंत उच्च अभिव्यक्ति है।

 क्यों आती है जीवन में  दुर्गति? ☝️👇

शास्त्रों के अनुसार, मनुष्य की दुर्गति के मूल कारण हैं: 👇
पूर्व जन्म व वर्तमान के पाप
गुरु व माता-पिता का अपमान
संकल्प भंग, व्रत भ्रष्ट
तीव्र रज-तम प्रभाव
भूत, पिशाच, प्रेत बाधा
निज पितृदोष व कुल दोष
इनके प्रभाव से जीवन धीरे-धीरे एक अंधेरी गली में उतरता चला जाता है — जहाँ भक्ति का दीपक भी बुझने लगता है।

कौन है दुर्गतोद्धारिणी? 👇
वह माँ जो गिरते को थाम लेती है। वह शक्ति जो पापी को भी साधक बना सकती है। वह देवी जो मृत्यु से पहले जीवन लौटाती है। वह चेतना जो भीतर की राख में फिर से अग्नि जगा देती है। जब कोई नहीं बचाता — तब वह स्वयं आकर कंधा देती है। वह “कृपा” नहीं, वह मुक्ति का संकल्प है —
दुर्गतोद्धारिणी।


 तांत्रिक अनुभूतियाँ और साधकों के अनुभव: कुछ बता रहा हु आपको 👇

जिन घरों में अकाल मृत्यु की घटनाएँ हो रही थीं, वहाँ इस साधना से जीवन रक्षा हुई।

जिनके बच्चे मानसिक विकृति से ग्रस्त थे, उन्होंने चमत्कारिक सुधार देखा। जो व्यक्ति आत्महत्या की कगार पर थे, उन्होंने आश्चर्यजनक नवजीवन पाया। कई साधकों के अनुभव में यह शक्ति रात्रि स्वप्न में आती है, या कमल पर बैठी रक्तवर्णा देवी जिनकी आँखों से आँसू बहते हैं, पर मुख पर करुण मुस्कान होती है।

साधना की आवश्यकता: कब करें दुर्गतोद्धारिणी का आह्वान? 👇
यदि आपके जीवन में: निरंतर असफलता हो शारीरिक रोग खत्म ही न हो भय, अवसाद, अशुभ सपने, आत्महत्या के विचार अचानक अपनों का परायापन कर्ज, मुकदमे, गृह कलह, या व्यापार में विनाश तो यह संकेत है कि आपके भीतर की शक्ति सुप्त है — अब समय है, उसे जगाने का।

 दुर्गतोद्धारिणी तांत्रिक साधना विधि: (समान्य रूप से )

नोट ☝️ यह साधना  गुरु आश्रय में ही करे यह कुशल साधक से परामर्श लेकर करे 💐 

 स्थान:
एकांत, पवित्र साधना स्थल (शक्ति पीठ या घर का उत्तर-पूर्व कोना)।

 काल:
अमावस्या, चैत्र नवरात्रि, या गुरुवार/शनिवार की मध्यरात्रि।

 वस्त्र:
श्वेत या रक्तवर्ण वस्त्र। शरीर शुद्ध, सात्त्विक आहार पूर्ववर्ती।
1. संकल्प: (नाम, गोत्र, तिथि, वार सहित संकल्प करें)

"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दुर्गतोद्धारिणीं साधयाम्यहम्।
मम सम्पूर्ण दुर्गतिनाशार्थं, जीवनोद्धारणाय च॥"

2. ध्यान (विग्रह): का माई के 
 "करुणार्द्रां, रक्तवर्णां, पद्मासनां, वरप्रदाम्।
दुर्गतोद्धारिणीं देवीं, चिन्मुद्रामण्डले स्थिताम्॥"

3. मंत्र जप:
 "ॐ ह्रीं दुर्गतोद्धारिण्यै नमः॥"
(108 या 1008 बार, रुद्राक्ष या लाल चन्दन माला से)

4. यंत्र पूजन:
दुर्गतोद्धारिणी यंत्र (त्रिकोण में बिंदु युक्त), चंदन, केसर, पुष्प से पूजन करें।

5. हवन:
 गुग्गुल + लोबान + तिल + चावल + शुद्ध घी — 108 आहुति।

 मंत्र: "ॐ दुर्गतोद्धारिण्यै स्वाहा॥"

6. स्तुति:
 "त्वमेव जननी दुर्गतोद्धारिणी। त्वमेव शरणं मम संकटहरिणी॥ कृपया दृष्टिं पातु मम जीवनम् — भव सदा हृदि, करुणामयी भगवति॥"

साधना के  मध्य संकेत: 👇
मन का शांति में उतरना
स्वप्न में देवी का दर्शन
शरीर में कंपन, ताप या दिव्य गंध का अनुभव
अचानक जीवन की स्थितियों में परिवर्तन

 अनुभव से सिद्ध होती है भगवती — न केवल मंत्र से एक साधिका ने केवल 21 दिन मंत्र का जप किया — उसकी 3 साल से बंद कोख फिर से पवित्र हो गई। एक वृद्ध साधक ने मृत्यु की तैयारी में यह साधना की — 40वें दिन रिपोर्ट्स ने कहा — "अत्यधिक सुधार, जीवन शेष है।" यही है दुर्गतोद्धारिणी —
जो मृत जैसे जीवन को पुनः हरा-भरा बना देती है।

 कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ: बरतनी चाहिए ☝️👇
इस साधना को किसी के लिए नुकसान के उद्देश्य से न करें। गूढ़ तांत्रिक प्रयोग दीक्षा बिना न करें। साधना बीच में न छोड़ें। स्त्री रजस्वला अवस्था में या दोषकाल में न करें।


वह शक्ति जो मृतप्राय हृदय में जीवन का संगीत भर दे —
वह कोई सामान्य शक्ति नहीं, वह स्वयं माँ दुर्गा की कृपा का साक्षात रूप है — दुर्गतोद्धारिणी।


 "नास्ति पातकं जगति, या तिष्ठति भक्तहृदि।
सा दुर्गतोद्धारिणी देवी, करुणासिन्धुरेव च॥"

अब तक मैं अपनी दुर्गति का कारण स्वयं था। अब आप मेरी उद्धारिणी बनकर कृपा करें। मेरे जीवन को फिर से जीवन दें। मुझे अपने चरणों की शरण में ले लें —
और मुझे मेरे भीतर से मुक्त करें..."
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 10 जून 2025*
*🎈दिन- मंगलवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    चतुर्दशी    11:34:57*
 तत्पश्चात् पूर्णिमा*
*🎈 नक्षत्र    -            अनुराधा    18:00:43 पश्चात ज्येष्ठा*
*🎈योग -     सिद्ध    13:43:25 तक, तत्पश्चात्  साध्य*
*🎈करण -     वणिज    11:34:57 पश्चात बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-07:25pm
से  09:18 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:16*
*🎈सूर्यास्त - 19:27:38*
*🎈चन्द्र राशि    -   वृश्चिक*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:07 पी एम से 01:02 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:14 ए एम, जून 11 से 12:55 ए एम, जून 11 तक*

    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत    05:41 - 07:25    शुभ
काल    07:25 - 09:08    अशुभ
शुभ    09:08 - 10:51    शुभ
रोग    10:51 - 12:34    अशुभ
उद्वेग    12:34 - 14:18    अशुभ
चर    14:18 - 16:01    शुभ
लाभ    16:01 - 17:44    शुभ
अमृत    17:44 - 19:28    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
चर    19:28 - 20:44    शुभ
रोग    20:44 - 22:01    अशुभ
काल    22:01 - 23:18    अशुभ
लाभ    23:18 - 24:34*    शुभ
उद्वेग    24:34* - 25:51*    अशुभ
शुभ    25:51* - 27:08*    शुभ
अमृत    27:08* - 28:25*    शुभ
चर    28:25* - 29:41*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.         🍁⚛️  ⚛️
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🍁👉ग्रहों का सेनापति मंगल राशि बदलकर कर्क से सिंह में आ गया है। सिंह राशि में केतु पहले से ही स्थित है, अब मंगल और केतु की युति बन गई है। इस राशि पर राहु की दृष्टि भी बनी हुई है। मंगल के राशि बदलने से सभी 12 राशियों पर इसका असर बदल गया है।
मंगल का राशि परिवर्तन सिंह राशि में केतु के साथ हो चुकी है और तरह तरह के कयास लगाना भी शुरू कर चुके हैं लोग.... युद्ध, आगजनी, प्राकृतिक दुर्घटना, आदि आदि.... और भी पता नहीं क्या क्या.... 
          जैसा चल रहा है वैसा ही चलेगा, कुछ भी खतरनाक नहीं होगा... कमसे कम मंगल की वजह से तो कुछ भी नहीं होगा... बल्कि मंगल यहां शुभ ही रहेगा... मित्र राशि में रहेगा, खुद की राशि पर चौथी दृष्टि.. सातवीं दृष्टि सम.. आठवीं दृष्टि भी मित्र राशि पर ही रहेगी....  जिनकी केतु की दशा अंतर्दशा है वो ही बस थोड़ी सावधानी रखें बाकी कुछ भी नहीं है, जबरन का हउआ बना रखा है.....

शनि+केतु......
         इनके पास बीच का कोई रास्ता नहीं होता, या तो सफलता का उच्च शिखर या फिर घोर असफलता... खासतौर पर लग्न या सप्तम, दशमः से संबंध बने तो ये लोग या तो कुछ करते ही नहीं या फिर कमाल करते हैं... 
     काम बदलते बदलते उम्र निकल जाती है , साथ वाले लोग आगे निकल जाते हैं इनसे कम काबिल होते हुए भी... बल्कि इन्ही की सलाह लेकर लोग बन जाते हैं पर इनका कुछ नहीं हो पाता... 
       ये जब बात करेंगे तो बात करते करते इतनी गहरी बातें करेंगे कि इन्हें स्वयं पता नहीं चलता कि ये सब बातें उनके अंदर से कैसे निकल रही हैं... 
        संबंधों में नीरसता और एकाकीपन इन्हें हमेशा घेर कर रखता है, गलतफहमियां घरेलू जीवन का हिस्सा बन जाती हैं... 
          ये सब बातें तो हुईं इस युति कि कुछ नकारात्मकता की...  लेकिन यही युति सफलता के शिखर पर भी पहुंचा सकती है अगर जातक इसका सही इस्तेमाल करना जान ले तो... 
           शनि हैं कर्म और केतु हैं विरक्ति... केतु है सूक्ष्मता... केतु है जड़.. जो अपने काम में माहिर हो, सर्वश्रेष्ठ.. वही है केतु... 
            बाल की खाल निकालने वाली हर विधा का मालिक केतु है... जब तक केतु को संतुष्ट नहीं करेंगे तब तक यह युति भटकाते ही रहेगी... घंटों सोचने और व्यर्थ की खोजबीन करने से बेहतर है अपने हुनर को इतना तराशा जाए कि अपने अंदर का केतु संतुष्ट हो जाये... 
          आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है इस युति के लिए, क्योंकि जो भी कार्य करने के लिए आगे बढ़ते हैं, कार्य की असफलता के बारे में सोच सोचकर काम शुरू ही नहीं कर पाते... 
          उपाय???...... ध्यान( मेडिटेशन ).... केतु से जुड़े कार्य ( अध्यात्म, ज्योतिष, सेवा) से जुड़े रहें... अपने काम में महारत हासिल करें... नीयत साफ रखें... किसी न किसी आध्यात्मिक गुरु व स्थान से निरंतर संपर्क में रहें.... बार बार कार्य बदलें नहीं... 
           "बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख" ... इस कहावत को याद रखें... 🙏🙏🙏
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

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*🎈दिनांक - 09 जून 2025*
*🎈दिन- सोमवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    त्रयोदशी    09:35:19*
 तत्पश्चात् चतुर्दशी*
*🎈 नक्षत्र    -            विशाखा    15:30:08 पश्चात अनुराधा*
*🎈योग -     शिव    13:07:21 तक, तत्पश्चात्  सिद्ध*
*🎈करण -     तैतुल    09:35:19 पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-04:01pm
से  05:45 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:16*
*🎈सूर्यास्त - 19:28:02*
*🎈चन्द्र राशि-  तुला    till 08:49:25*
*🎈चन्द्र राशि    -   वृश्चिक    from 08:49:25*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:07 पी एम से 01:02 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:14 ए एम, जून 10 से 12:55 ए एम, जून 10 तक*
*🎈रवि योग    03:31 पी एम से 05:40 ए एम, जून 10*
    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत    05:41 - 07:25    शुभ
काल    07:25 - 09:08    अशुभ
शुभ    09:08 - 10:51    शुभ
रोग    10:51 - 12:34    अशुभ
उद्वेग    12:34 - 14:18    अशुभ
चर    14:18 - 16:01    शुभ
लाभ    16:01 - 17:44    शुभ
अमृत    17:44 - 19:28    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
चर    19:28 - 20:44    शुभ
रोग    20:44 - 22:01    अशुभ
काल    22:01 - 23:18    अशुभ
लाभ    23:18 - 24:34*    शुभ
उद्वेग    24:34* - 25:51*    अशुभ
शुभ    25:51* - 27:08*    शुभ
अमृत    27:08* - 28:25*    शुभ
चर    28:25* - 29:41*    शुभ
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🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
🍁⚛️ सूर्य स्नान कैसे करें ⚛️
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सूर्य की किरणों में रोगों को दूर करने की इतनी अधिक शक्ति है कि उनका वर्णन नहीं हो सकता उनसे त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं और शरीर में संचित दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। अशुद्ध रक्त और रोग नष्ट हुए बिना नहीं रहते। सूर्य-स्नान करते समय निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

(1) सूर्य-स्नान करते समय सिर को भीगे रुमाल अथवा हरे पत्तों से ढ़क लेना चाहिए।

(2) सूर्य-स्नान का सर्वोत्तम समय सूर्योदय काल है। उस समय यदि स्नान का सुयोग न मिले तो फिर सूर्यास्त काल। तेज धूप में न बैठे। इसके लिए प्रातःकाल और सायंकाल की हल्की किरणें ही उत्तम होती हैं।

(3) धूप-स्नान का आरम्भ सावधानी से करें। पहले दिन 15 मिनट स्नान करें। फिर रोज पाँच मिनट बढ़ाते जायं। परन्तु एक घंटे से अधिक नहीं।

(4) जितनी देर स्नान करना हो उसके चार भाग करके पीठ के बल, पेट के बल, दाहिनी करवट और बायीं करवट से धूप लें, जिससे सारे शरीर पर धूप लग सके।

(5) सूर्य-स्नान करते समय शरीर पर लंगोट छोड़कर कोई वस्त्र न रखें।

(6) खुले स्थान में, जहाँ जोर की हवा न आती हो सूर्य-स्नान करें।

(7)भोजन करने के एक घंटे पहले और दो घंटे बाद तक सूर्यस्नान न करें।

(8) सूर्य-स्नान करने के उपरान्त ठंडे पानी में भीगे तौलिये से शरीर का प्रत्येक अंग खूब रगड़ना आवश्यक है।

(9) सूर्य-स्नान के बाद यदि शरीर में फुर्ती, उत्साह आता जान पड़े तो ठीक है। यदि सिर में दर्द तथा अन्य किसी प्रकार का कष्ट जान पड़े तो सूर्य-स्नान का समय कुछ घटा दें।

(10) सदा नियमित रूप से स्नान करें। बीच-2 में नागा करने से लाभ नहीं होता। स्नान का पूरा लाभ रोज नियमित रूप से करने से ही प्राप्त होता है। बालक, वृद्ध, युवा, स्त्री, पुरुष सभी को सूर्य स्नान से लाभ उठाना चाहिए।

वेटिब, डब्लू आर लुकस, जानसन, रोलियर, लुइस, रडोक, टाइरल आदि अनेक डॉक्टरों और अनेक वैद्यों ने सूर्य-स्नान की बहुत-बहुत प्रशंसा की है। महात्मा गाँधी ने कहा है कि प्लेग के विष का सामना करने और हमारे रक्त को शुद्ध करने के लिए रोज सवेरे सूर्य-स्नान करना चाहिए। विदेशों में इस विषय पर नित्य नये ग्रन्थ लिखे जा रहे हैं और हमारे तो पुरातनकाल से ही प्रातः सायं और मध्याह्न संध्या का विधान है। जिसका अर्थ हैं खुले बदन पर सूर्य की बलदायक और आरोग्यप्रद किरणें पड़ने देना। बिल्कुल मुफ्त मिलने वाले सूर्य-किरणों का लाभ उठाकर हमें अपना स्वास्थ सुधारने में चूकना नहीं चाहिए।
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

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*🎈दिनांक - 08 जून 2025*
*🎈दिन- रविवार*
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
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*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    द्वादशी    07:17:17*
 तत्पश्चात् त्रयोदशी*
*🎈 नक्षत्र    -        स्वाति    12:40:54 पश्चात विशाखा*
*🎈योग -     परिघ    12:16:45 तक, तत्पश्चात्  शिव*
*🎈करण -     बालव    07:17:17 पश्चात तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-05:44pm
से  07:27 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:17*
*🎈सूर्यास्त - 19:27:14*
*🎈चन्द्र राशि-     तुला*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल -  पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:07 पी एम से 01:02 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:14 ए एम, जून 09 से 12:55 ए एम, जून 09 तक*

*🎈प्रदोष व्रत आज है।
8 जून, 2025 के दिन रविवार को ज्येष्ठ माह के रवि प्रदोष का व्रत रखा जाएगा*।
    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
उद्वेग    05:41 - 07:25    अशुभ
चर    07:25 - 09:08    शुभ
लाभ    09:08 - 10:51    शुभ
अमृत    10:51 - 12:34    शुभ
काल    12:34 - 14:18    अशुभ
शुभ    14:18 - 16:01    शुभ
रोग    16:01 - 17:44    अशुभ
उद्वेग    17:44 - 19:27    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
शुभ    19:27 - 20:44    शुभ
अमृत    20:44 - 22:01    शुभ
चर    22:01 - 23:18    शुभ
रोग    23:18 - 24:34*    अशुभ
काल    24:34* - 25:51*    अशुभ
लाभ    25:51* - 27:08*    शुभ
उद्वेग    27:08* - 28:25*    अशुभ
शुभ    28:25* - 29:41*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
🍁👉√•जिसके भाग्य में अपने बनाये घर में नहीं रहना है, वह कैसे अपने घर में रहेगा ? जिसके भाग्य में दोषयुक्त वास्तु है, उसे दोषयुक्त घर मिलेगा । वास्तुविद् दोषयुक्त घर में रहता है। वास्तु से अनभिज्ञ निर्दोष घर में रहता है। यह सब भाग्य अथवा चतुर्थ भाव (सुख) का खेल है। इसे जान कर जो शान्त रहता है, वह ज्ञानी है। उसे मेरा नमस्कार। 

√•कहा जाता है शिव ने विवाहोपरान्त पत्नी पार्वती के लिये विश्वकर्मा से कह कर सुन्दर वास्तु का निर्माण लंका द्वीप पर करवाया। गृहप्रवेश के लिये उन्होंने एक ब्राह्मण पुरोहित रावण का चयन किया। रावण को शिव का यह घर बहुत अच्छा लगा। गृह प्रवेश का कर्मकाण्ड होने के पश्चात शिव ने उससे दक्षिणा मांगने को कहा। रावण ने दक्षिणा में उनका यह घर ही माँग लिया। शिव ने यह घर दे दिया। पुनः सभार्या वे कैलाश पर जाकर हिमगुफा में रहने लगे। शिव प्रकृतिपुत्र हैं। वह इन्हें सदैव अपनी गोद में रखेगी, कृत्रिम वास्तु में नहीं। यही दशा विष्णु जी की है। वे अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ अनन्त सर्प के फण की छाया में उसी की देह पर लेटते हैं। उन्हें एकान्त मिलता नहीं। इसलिये लक्ष्मी से उनका सहवास कभी होता नहीं। अतएव वे निःसंतान हैं। रहने के लिये घर नहीं और रखे हैं दो पलियाँ । कहते हैं...

 "श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च द्वे पल्यौ।"
        (यजु ३१/ २२ )

 √•विष्णु को दो पत्नियाँ हैं। न चारपाई है, न ओढ़ना है, न बिछौना है, न भूमि है। रहते हैं, समुद्र में। सर्प की शय्या है, उसके फन की छत है। लक्ष्मी जी से पैर दबवाते हैं, श्री को अपने वक्ष से चिपकाये रहते हैं। बहुत ठीठ हैं। गरुण पर बैठ कर आकाश में घूमते हैं। जब बच्चा पैदा करने की इच्छा होती है तो अवतार ग्रहण करते हैं। उचित भी यही है। देवियाँ गर्भ धारण नहीं करतीं पुत्रवान् होने के लिये भूमि पर आना पड़ता है। यहाँ घर मिलता है। विष्णु जी राम बन कर अयोध्या में आते हैं। लक्ष्मी को सीता बनाते हैं। वही विष्णु कृष्ण बन कर मथुरा में आते हैं लक्ष्मी जी रुक्मिणी बनती हैं। राम के रूप में विष्णु मर्यादित हैं, कृष्ण के रूप में अमर्यादित। हम इन के दोनों स्वरूपों को सम्मान देते हैं। 

√•शिव जी निगृही होकर दो पत्नियों के स्वामी हैं-गंगा च पार्वती च जैसे विष्णु श्री को अपनी छाती से चिपकाये रहते हैं, वैसे ही शिव जी भी गंगा को अपने सिर पर जटा में छिपाये रखते हैं। गंगा उन्हें शीतलता देती है, शान्त रखती है। पार्वती को वे अपने बायें पार्श्व में रखते हैं शिवजी का वाहन बैल है। इस दिव्य वृष पर बैठ कर शिव जी आकाश में विचरते हैं। यह वृष सपक्ष है, इसलिये उड़ता है। शिव जी सन्तानवान् हैं। इसलिये उन्हें सन्तान सुख के लिये धरती पर अवतार नहीं लेना पड़ता उनके ६ मुख और १२ आँखों वाला एक पुत्र है, जिसे स्कन्द कहते हैं। यह देवताओं का सेनापति है। यह शिव और पार्वती के संसर्ग से उत्पन्न हुआ है, किन्तु पार्वती ने इसे अपने गर्भ में नहीं रखा। यह अग्नि के गर्भ में सदैव रहता है। ६ कृत्तिकाएँ (दाइया) इसकी माता (पालन कर्त्री) हैं। इसलिये इसे कार्तिकेय कहते हैं। ६ अतुओं एवं १२ मासों वाला संवत्सर (काल) ही कार्तिकेय है। यह हमारे लिये पूज्य है।

√• शिव जी का स्वेद (पसीना) श्री है। विष्णु के चरण की धोवन (जल) गंगा है। श्री को विष्णु का वक्षस्थल रहने के लिये मिला है। गंगा को शिव का शिर आवास हेतु प्राप्त है। धरती पर नर्मदा नदी श्री है तथा गंगा नदी ब्रह्म द्रव (विष्णु की चरण धोवन) है। हम इन दोनों नदियों को पूजते (अति सम्मान देते) हैं। शिव ने ताण्डव नृत्य किया। उससे जो पसीने की बूंदें गिरी, वे श्री हैं। विष्णु ने बलि के राज्य को लेने के लिये भू से ब्रह्म लोक तक जो अपना पैर फैलाया तो ब्रह्मा जी ने उनका पैर धोकर अपने कमण्डल में रख लिया। यही गंगा है। पसीना कौन पियेगा ? चरण को धोवन कौन पिये गा ? भक्त गण इन्हें पीते हैं। श्री युक्त होने से विष्णु को श्रीधर कहा जाता है। अपनी जटा में गंगा को रखने से शिव को गंगाधर नाम से जाना जाता है। शिव के अनन्य भक्त ही उनके पुत्र है। विष्णु के अनन्य सेवक उनको सन्तान हैं। भक्त का घर ही शिव का निवास है। सेवक का निवास ही विष्णु का घर है। देवता सर्वव्यापक होता है। नाना कथनोपकथनों से यही सिद्ध होता है कि शिव और विष्णु एक ही हैं। तत्वतः सभी एक हैं, सब में अभेद है। किन्तु व्यवहार में नानात्व है। इसी से संसार है जो सबको घर देता है, उसके पास घर नहीं होता है। जो सब को पुत्र देता है, उसके पुत्र नहीं होता। जो सबको धन देता है वह निर्धन होता है। जो सबको जन्म (देह) देता है, वह अजन्मा (विदेह) होता है। इस सत्य को जो जानता है, वह इन वस्तुओं के अभाव से कभी क्षुब्ध नहीं होता। ऐसी मति वाले को मेरा नमस्कार।

√• प्रत्येक घर सीमित होता है उसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई या विस्तार निश्चित होता है इसलिये उस घर में रहने वाले मनुष्य भी अपने संसाधनों से सीमित होते हैं। मनुष्य की आयु सीमित है, परिवार सीमित है, शक्ति सीमित है, इन्दियाँ सीमित हैं, बुद्धि सीमित है, किन्तु मनुष्य को इच्छाएँ सीमित नहीं हैं। इस कारण उसके सुखों एवं दुःखों को सीमा भी निश्चित नहीं है। मनुष्य का शरीर सीमित है। इसमें रहने वाला मन सीमित नहीं है। असीमित मन की इच्छाएँ कैसे सीमित रह सकती हैं ? जिसने अपने मन को सीमित कर लिया, उसकी इच्छाएँ भी सौमित हो जाती हैं। इससे उसके सुखों एवं दुखों का पारिसीमन हो जाता है। प्रत्येक सुख अपने पीछे एक दुःख रखता है। दुःख को क्षीण करने के लिये सुख को क्षोण करना होता है। इसके लिये तप एवं आचरण की मर्यादा है। प्रत्येक गृहस्थ को इस मर्यादा में रहना चाहिये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम गृहस्थधर्म के आदर्श हैं। जीवन में रामलीला का महत्व है, कृष्ण लीला का नहीं। घर में रहते हुए सन्तानों की उत्पत्ति होती है, वंश वृद्धि होती है। घर में रह कर उत्पन्न सन्तानों का पालन पोषण रक्षण किया जाता है। घर में वास करते हुए व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करता है। इस प्रकार घर उत्पादक पालक एवं संहारक देवता है। इसलिये यह स्थूल ब्रह्म (सृष्टिकर्ता) स्थूल विष्णु पालनकर्ता) तथा स्थूल शिव (संहर्ता) है। ऐसे घर को मेरा नमस्कार। 

√•घर समस्त देवतओं का आश्रय है। घर के पूर्वीभाग में इन्द्र अपनी शक्ति शची के साथ निवास करते हैं। घर के आग्नेय भाग में अग्निदेवता अपनी शक्ति स्वाहा के साथ वर्तमान होते हैं। घर के दक्षिण भाग मे यम देव अपनी शक्ति ज्वाला के साथ विराजमान होते हैं। घर के नैर्ऋत्य भाग में निर्भूति देव अपनी शक्ति कृत्या के साथ शोभायमान होते हैं। घर के पश्चिम भाग में वरुण देवता अपनी शक्ति ज्येष्ठा के संग राजते हैं। घर के वायव्य भाग में वायु देवता अपनी शक्ति गति के साथ विद्यमान होते हैं। घर के उत्तरी भाग में वित्तपति कुबेर अपनी शक्ति निधि के साथ रमण करते हैं। घर के ईशान भाग में दक्षिणामूर्ति शिव अपनी शक्ति गौरी के संग क्रीडारत रहते हैं। घर के मध्य भाग में प्रजापति ब्रह्मा अपनी शक्ति वाणी के संग नित्य विहार करते हैं। घर के नीचे के भूभाग में जगद्धारक भगवान अनन्त अपनी शाक्ति मूला के साथ प्रतिष्ठित होते हैं। घर के ऊपर अच्छादन भाग में भगवान विष्णु अपनी शक्ति लक्ष्मी से संयुक्त होकर योगनिद्रा में प्रतिष्ठित रहते है। घर के अन्तराकाश में मन बुद्धि एवं इन्द्रियों द्वारा होने वाली समस्त क्रियाओं के अवलोकन कर्ता भगवान् चित्रगुप्त अपनी शक्ति प्रज्ञा के साथ नित्य वर्तते हैं। अन्य सभी देवगण इन्हीं द्वादश देवों के सायुज्य को प्राप्त कर घर के कोने-कोने को आवृत किये रहते हैं। ऐसे सर्वदेवमय घर को मेरा नमस्कार।

√• घरमें रह कर हम जो कुछ भी करते हैं, वह सब इन देवताओं को प्राप्त होता है। वे देवता हमारे पुण्यापुण्य कर्मों को ग्रहण कर उन्हें पचाते हैं। कालान्तर में वे उनका विस्तार कर हमें फल के रूप में प्रदान करते हैं। हम इन फलों के षड्सों का आस्वादन करते हुए अपने भीतर नाना प्रकार के भावों को प्राप्त कर सुख वा दुःख का अनुभव करते हैं। जैसे उर्वर भूमि में बीज बो कर हम कालान्तर में उससे अधिक बीज पाते हैं, वैसे ही हम घर (शरीर) में रहते हुए एक पुण्य वा पाप कर के अनेक पुण्य वा पाप के भागी होते हैं। क्योंकि एको बहुधाभि जायते एक ही अनेक रूपों में प्रकट होता है। अतएव घर में रहते हुए हमें महाजनो येन गतः स पन्थाः अर्थात् महापुरुषों द्वारा आचरित मार्ग का अनुसरण करना चाहिये। गृह को नमस्कार गृह के देवता को नमस्कार गृहाधिदेव को नमस्कार।

🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 07 जून 2025*
*🎈दिन- शनिवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    द्वादशी    अहोरात्र*
 तत्पश्चात् द्वादशी*
*🎈 नक्षत्र    -                चित्रा    09:38:46 पश्चात स्वाति*
*🎈योग -     वरियान    11:16:02 तक, तत्पश्चात्  परिघ*
*🎈करण -     बव    18:03:16 पश्चात बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-09:08pm
से  10:51 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:19*
*🎈सूर्यास्त - 19:26:49*
*🎈चन्द्र राशि-     तुला*
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 01:01 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:14 ए एम, जून 08 से 12:54 ए एम, जून 08तक*
*🎈सर्वार्थ सिद्धि योग    09:40 ए एम से 05:40 ए एम, जून 08*
*🎈एकादशी व्रत आज है।
    
   *🛟चोघडिया, दिन🛟*
काल    05:41 - 07:25    अशुभ
शुभ    07:25 - 09:08    शुभ
रोग    09:08 - 10:51    अशुभ
उद्वेग    10:51 - 12:34    अशुभ
चर    12:34 - 14:17    शुभ
लाभ    14:17 - 16:00    शुभ
अमृत    16:00 - 17:44    शुभ
काल    17:44 - 19:27    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ    19:27 - 20:44    शुभ
उद्वेग    20:44 - 22:00    अशुभ
शुभ    22:00 - 23:17    शुभ
अमृत    23:17 - 24:34*    शुभ
चर    24:34* - 25:51*    शुभ
रोग    25:51* - 27:08*    अशुभ
काल    27:08* - 28:24*    अशुभ
लाभ    28:24* - 29:41*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
🍁👉तिथियों और नक्षत्रों के देवता तथा उनके पूजन का फल 

विभाजन के समय प्रतिपद् आदि सभी तिथियां अग्नि आदि देवताओं को तथा सप्तमी भगवान सूर्य को प्रदान की गई। जिन्हें जो तिथि दी गई, वह उसका ही स्वामी कहलाया। अत: अपने दिन पर ही अपने मंत्रों से पूजे जाने पर वे देवता अभीष्ट प्रदान करते हैं। 

सूर्य ने अग्नि को प्रतिपदा, ब्रह्मा को द्वितीया, यक्षराज कुवेर को तृतीया और गणेश को चतुर्थी तिथि दी है। नागराज को पंचमी, कार्तिकेय को षष्ठी, अपने लिए सप्तमी और रुद्र को अष्टमी तिथि प्रदान की है। दुर्गादवी को नवमी, अपने पुत्र यमराज को दशमी, विश्वेदेवगणों को एकादशी तिथि दी गई है। विष्णु को द्वादशी, कामदेव को त्रयोदशी, शंकर को चतुर्दशी तथा चंद्रमा को पूर्णिमा की तिथि दी है। सूर्य के द्वारा पितरों को पवित्र, पुण्यशालिनी अमावास्या तिथि दी गई है। ये कही गई पंद्रह तिथियां चंद्रमा की हैं। कृष्ण पक्ष में देवता इन सभी तिथियों में शनै: शनै: चंद्रकलाओं का पान कर लेते हैं। वे शुक्ल पक्ष में पुन: सोलहवीं कला के साथ उदित होती हैं। वह अकेली षोडशी कला सदैव अक्षय रहती है। उसमें साक्षात सूर्य का निवास रहता है। इस प्रकार तिथियों का क्षय और वृद्धि स्वयं सूर्यनारायण ही करते हैं। अत: वे सबके स्वामी माने जाते हैं। ध्यानमात्र से ही सूर्यदेव अक्षय गति प्रदान करते हैं।दूसरे देवता भी जिस प्रकार उपासकों की अभीष्ट कामना पूर्ण करते हैं, संक्षेप में वह इस प्रकार है:

प्रतिपदा तिथि में अग्निदेव की पूजा करके अमृतरूपी घृत का हवन करे तो उस हवि से समस्त धान्य और अपरिमित धन की प्राप्ति होती है। द्वितीया को ब्रह्मा की पूजा करके ब्रह्मचारी ब्राह्मण को भोजन कराने से मनुष्य सभी विद्याओं में पारंगत हो जाता है। तृतीया तिथि में धन के स्वामी कुबेर का पूजन करने से मनुष्य निश्चित ही विपुल धनवान बन जाता है तथा क्रय-विक्रयादि व्यापारिक व्यवहार में उसे अत्यधिक लाभ होता है। चतुर्थी तिथि में भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए। इससे सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। पंचमी तिथि में नागों की पूजा करने से विष का भय नहीं रहता, स्त्री और पुत्र प्राप्त होते हैं और श्रेष्ठ लक्ष्मी भी प्राप्त होती है। षष्ठी तिथि में कार्तिकेय की पूजा करने से मनुष्य श्रेष्ठ मेधावी, रूपसंपन्न, दीर्घायु और कीर्ति को बढ़ानेवाला हो जाता है। सप्तमी तिथि को चित्रभानु नामवाले भगवान सूर्यनारायण का पूजन करना चाहिए, ये सबके स्वामी एवं रक्षक हैं। अष्टमी तिथि को वृषभ से सुशोभित भगवान सदाशिव की पूजा करनी चाहिए, वे प्रचुर ज्ञान तथा अत्यधिक कांति प्रदान करते हैं। भगवान शंकर मृत्य्हरण करनेवाले, ज्ञान देने वाले और बंधनमुक्त करने वाले हैं। नवमी तिथि में दुर्गा की पूजा करके मनुष्य इच्छापूर्वक संसार-सागर को पार कर लेता है तथा संग्राम और लोकव्यवहार में वह सदा विजय प्राप्त करता है। दशमी तिथि को यह की पूजा करनी चाहिए, वे निश्चित ही सभी रोगों को नष्ट करने वाले और नरक तथा मृत्यु से मानव का उद्धार करने वाले हैं। एकादशी तिथि को विश्वेदेवों की भली प्रकार से पूजा करनी चाहिए। वे भक्त को संतान, धन-धान्य और पृथ्वी प्रदान करते हैं। द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करके मनुष्य सदा विजयी होकर समस्त लोक में वैसे ही पूज्य हो जाता है, जैसे किरणमालौ भगवान सूर्य पूज्य हैं। त्रयोदशी में कामदेव की पूजा करने से मनुष्य उत्तम भार्या प्राप्त करता है तथा उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। चतुर्दशी तिथि में भगवान देवदेवेश्वर सदाशिव की पूजा करके मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों से समन्वित हो जाता है तथा बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है। पौर्णमासी तिथि में जो भक्तिमान मनुष्य चंद्रमा की पूजा करता है, उसका संपूर्ण संसार पर अपना आधिपत्य हो जाता है और वह कभी नष्ट नहीं होता। अपने दिन में अर्थात् अमावास्या में पितृगण पूजित होने पर सदैव प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा, आयु तथा बल-शक्ति प्रदान करते हैं। उपवास के बिना भी ये पितृगण उक्त फल को देनेवाले होते हैं। अत: मानव को चाहिए कि पितरों को भक्तिपूर्वक  पूजा के द्वारा सदा प्रसन्न रखे। मूलमंत्र, नाम-संकीर्तन और अंश मंत्रों से कमल के मध्य में स्थित तिथियों के स्वामी देवताओं की विविध उपचारों से भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजा करनी चाहिए तथा जप-होमादि कार्य संपन्न करने चाहिए। इसके प्रभाव से मानव इस लोक में और परलोक में सदा सुखी रहता है। उन-उन देवों के लोकों को प्राप्त करता है और मनुष्य उस देवता के अनुरूप हो जाता है। उसके सारे अरिष्ट नष्ट हो जाते हैं तथा वह उत्तम रूपवान, धार्मिक, शत्रुओं का नाश करनेवाला राजा होता है।

इसी प्रकार सभी नक्षत्र-देवता जो नक्षत्रों में ही व्यवस्थित हैं, वे पूजित होने पर समस्त अभीष्ट कामनाओं को प्रदान करते हैं। अश्विनी नक्षत्र में अश्विनीकुमारों की पूजा करने से मनुष्य दीर्घायु एवं व्याधिमुक्त होता है। भरणी नक्षरे में कृष्णवर्ण के सुंदर पुष्पों से बनी हुई मान्यादि और होम के द्वारा पूजा करने से अग्निदेव निश्चित ही यथेष्ट फल देते हैं। रोहिणी नक्षत्र में ब्रह्मा की पूजा करने से वह साधका की अभिलाषा पूरी कर देते हैं। मृगशिरा नक्षत्र में पूजित होने पर उसके स्वामी चंद्रदेव उसे ज्ञान और आरोग्य प्रदान करते हैं। आर्द्रा नक्षत्र में शिव के अर्चन से विजय प्राप्त होती है। सुंदर कमल आदि पुष्पों से पूजे गए भगवान शिव सदा कल्याण करते हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र में अदिति की पूजा करनी चाहिए। पूजा से संतृप्त होकर वे माता के सदृश रक्षा करती हैं। पुष्य नक्षत्र में उसके स्वामी बृहस्पति अपनी पूजा से प्रसन्न होकर प्रचुत सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। आश्लेषा नक्षत्र में नागों की पूजा करने से नागदेव निर्भय कर देते हैं, काटते नहीं। मघा नक्षत्र में हव्य-कव्य के द्वारा पूजे गए सभी पितृगण धन-धान्य, भृत्य, पुत्र तथा पशु प्रदान करते हैं। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में पूषा की पूजा करने पर विजय प्राप्त हो जाती है और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भग नामक सूर्यदेव की पुष्पादि से पूजा करने पर वे विजय कन्या को अभीप्सित पति और पुरुष को अभीष्ट पत्नी प्रदान करते हैं तथा उन्हें रूप एवं द्रव्य-संपदा से संपन्न बना देते हैं। हस्त नक्षत्र में भगवान सूर्य गंध-पुष्पादि से पूजित होने पर सभी प्रकार की धन-संपत्तियां प्रदान करते हैं। चित्रा नक्षत्र में पूजे गए भगवान त्वष्टा शत्रुरहित राज्य प्रदान करते हैं। स्वाती नक्षत्र में वायुदेव पूजित होने पर संतुष्ट जो परम शक्ति प्रदान करते हैं। विशाखा नक्षत्र में लाल पुष्पों से इंद्राग्नि का पूजन करके मनुष्य इस लोक में धन-धान्य प्राप्त कर सदा तेजस्वी रहता है।

अनुराधा नक्षत्र में लाल पुष्पों से भगवान मित्रदेव की भक्तिपूर्वक विधिवत पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और वह इस लोक में चिरकाल तक जीवित रहता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में देवराज इंद्र की पूजा करने से मनुष्य पुष्टि बल प्राप्त करता है तथा गुणों में, धन में एवं कर्म में सबसे श्रेष्ठ हो जाता है। मूल नक्षत्र में सभी देवताओं और पितरों की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मानव स्वर्ग में अचलरूप से निवास करता है और पूर्वोक्त फलों को प्राप्त करता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अप्-देवता (जल) की पूजा और हवन करके मनुष्य शारीरिक तथा मानसिक संतापों से मुक्त हो जाता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में विश्वेदेवों और भगवान विश्वेश्वर कि पुष्पादि द्वारा पूजा करने से मनुष्य सभी कुछ प्राप्त कर लेता है।

श्रवण नक्षत्र में श्वेत, पीत और नीलवर्ण के पुष्पों द्वारा भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा कर मनुष्य उत्तम लक्ष्मी और विजय को प्राप्त करता है। धनिष्ठा नक्षत्र में गन्ध-पुष्पादि से वसुओं के पूजन से मनुष्य बहुत बड़े भय से भी मुक्त हो जाता है। उसे कहीं भी कुछ भी भय नहीं रहता। शतभिषा नक्षत्र में इन्द्र की पूजा करने से मनुष्य व्याधियों से मुक्त हो जाता है और आतुर व्यक्ति पुष्टि, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुद्ध स्फटिक मणि के समान कांतिमान अजन्मा प्रभु की पूजा करने से उत्तम भक्ति और विजय प्राप्त होती है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मेँ अहिर्बुध्न्य की पूजा करने से परम शांति की प्राप्ति होती है। रेवती नक्षत्र श्वेत पुष्प से पूजे गए भगवान पूषा सदैव मंगल प्रदान करते हैं और अचल धृति तथा विजय भी देते हैं। अपनी सामर्थ्य के अनुसार भक्ति से किए गए पूजन से ये सभी सदा फल देने वाले होते हैं। यात्रा करने की इच्छा हो अथवा किसी कार्य को प्रारंभ करने की इच्छा हो तो नक्षत्र-देवता की पूजा आदि करके ही वह सब कार्य करना उचित है। इस प्रकार करने पर यात्रा में तथा क्रिया में सफलता होती है - ऐसा स्वयं भगवान सूर्य ने कहा है।
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 06 जून 2025*
*🎈दिन- शुक्रवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    एकादशी    28:47:21*
 तत्पश्चात् द्वादशी*
*🎈 नक्षत्र    -            हस्त    06:32:44 पश्चात चित्रा*
*🎈योग -     व्यतिपत    10:11:44 तक, तत्पश्चात्  वरियान*
*🎈करण -     वणिज    15:30:53 पश्चात बव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-10:51pm
से  12:34 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:23*
*🎈सूर्यास्त - 19:26:24*
*🎈चन्द्र राशि-     कन्या    till 20:05:33*
*🎈चन्द्र राशि-     तुला    from 20:05:33    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 01:01 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:13 ए एम, जून 07 से 12:54 ए एम, जून 07 तक*
    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
चर    05:41 - 07:25    शुभ
लाभ    07:25 - 09:08    शुभ
अमृत    09:08 - 10:51    शुभ
काल    10:51 - 12:34    अशुभ
शुभ    12:34 - 14:17    शुभ
रोग    14:17 - 16:00    अशुभ
उद्वेग    16:00 - 17:43    अशुभ
चर    17:43 - 19:26    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
रोग    19:26 - 20:43    अशुभ
काल    20:43 - 22:00    अशुभ
लाभ    22:00 - 23:17    शुभ
उद्वेग    23:17 - 24:34*    अशुभ
शुभ    24:34* - 25:51*    शुभ
अमृत    25:51* - 27:08*    शुभ
चर    27:08* - 28:24*    शुभ
रोग    28:24* - 29:41*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
🍁👉गायत्री जन्मोत्सव
06, जून 2025  को गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं। इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है। ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री - चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है।
एकादशी तिथि का प्रारम्भ 6 जून, 2025 सुबह 2.15 मिनट पर होगा. एकादशी की तिथि 7 जून, 2025 शनिवार को सुबह 4.47 मिनट पर समाप्त होगी. इसके साथ ही गायत्री जन्मोत्सव पर शुभ योगों का संयोग मिल रहा है. इस दिन रवि योग का संयोग रहेगा, साथ ही इस दिन व्यतीपात और वरीयान योग का भी संयोग रहने वाला है।


*विवेचना...निर्जला एकादशी व्रत कब करें ६ जून या ७ जून को...?*

*पद्मपुराण में एक प्रसंग है,जब भगवान वाराह और हिरण्याक्ष का युद्ध हो रहा था,तब भगवान नारायण के बार बार कोशिश करने पर भी हिरण्याक्ष नहीं मर रहा था,तब भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान नारायण से पूछा हे प्रभु यह असुर तो आपकी दृष्टि मात्र से ही मर जाना चाहिये था।परन्तु ऐसा क्यों नहीं हो रहा है।आप इसे क्यों मार नहीं पा रहे हैं ।*
*तब भगवान जी बोले ब्रह्मा जी...शुक्राचार्य की माया से मोहित होने से कुछ ब्राह्मण दशमी युक्ता एकादशी का व्रत कर रहे हैं।*

*क्यों कि दशमी के दिन दैत्यों की उत्पत्ति हुई थी और एकादशी के दिन देवताओं की उत्पत्ति हुई थी इसीलिए दशमी को व्रत करने से दैत्यों का बल बढ़ता है और एकादशी को व्रत करने से देवताओं का बल बढ़ता है ब्राह्मणों के दशमी युक्त एकादशी का व्रत करने से दैत्यों का बल बढ़ रहा है,और यह मर नहीं रहा है।*

*जो मनुष्य दशमी युक्ता एकादशी का व्रत करता है उसके अंदर आसुरी शक्ति बढ़ती है।*

*जब सीता जी को लक्ष्मण जी वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ कर आए थे,तब सीता जी ने वाल्मीकि ऋषि से पूछा कि हे...ऋषिवर मैंने जीवन में कभी कोई पापकर्म नहीं किया पतिव्रता रही पति की सेवा की फिर भी मेरे जीवन में इतने सारे कष्ट क्यों आये।तब बाल्मीकि जी ने सीता जी को जवाब दिया था कि आपने कभी पूर्व जन्म में दशमी विद्धा एकादशी का व्रत किया था।उसी दिन भगवान की पूजा की थी उससे पुण्य नहीं बल्कि आपके पाप बढ़े। उसी का परिणाम है,कि आपको यह कष्ट झेलना पड़ा ।*
*पुराणों में लिखा है कि दशमी विद्धा एकादशी का व्रत करने से धन और पुत्र का विनाश होता है।*
*इस बार जून ६ जूनको निर्जला एकादशी दशमी विद्धा अशुद्ध आसुरी शक्ति को बढ़ाने वाली है। इसीलिए उस दिन एकादशी का व्रत कदापि शास्त्र सम्मत नहीं है इसलिए सभी को एकादशी ७ जून शनिवार को करना चाहिए पुराणों में स्पष्ट मत मिलता है कि अगर दशमी विद्धा एकादशी हो और दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही एकादशी समाप्त हो रही हो तो भी द्वादशी के दिन ही एकादशी का व्रत करके त्रयोदशी को पारण करना चाहिए।*
*भगवान नारायण सबका भला करें।*
      
 निर्जला एकादशी व्रत कब करना चाहिए। 
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को २४ एकादशी का सार बताया गया है
वैसे   गंगा दशहरा निसन्देह 5 जून को हो गया।
 
लेकिन निर्जला एकादशी को लेकर  
कुछ भ्रांति है ।
वैसे शास्त्रीय नियम तो विद्वजन जानें , लेकिन एक गृहस्थ होने और बचपन से जिन नियमों को देखते आ रहे है। उसके अनुसार 

जो एकादशी सूर्योदय से 96 मिनट पहले शुरू होकर अगले दिन के सूर्योदय से 96 मिनट पहले खत्म हो गयी हो तो गृहस्थों के लिए एकादशी व्रत निर्विवाद रूप से उदया तिथि में ही होना होता है।
अरुणोदय से 96 मिनट के अंदर दशमी तिथि हो तो वो पूर्वविद्धा या दशम वेधी मानी जाती है। 
और अगले दिन 96 मिनट के अंदर एकादशी तिथि हो तो  परविद्धा या द्वादशी वेधी मानी जाती है। ऐसा शास्त्रोक्त मान्यता है। 
पहले दिन भले ही सूर्योदय से 96 मिनट पूर्व एकादशी आ गयी हो , लेकिन दूसरे दिन सूर्योदय से 96 मिनट के अंदर तक एकादशी तिथि हो तो एकादशी व्रत  द्वादशी में ही रखा जाता है।  

एकादशी तिथि वृद्धि में व्रत दूसरे दिन की एकादशी तिथि में रखा जाता है।

द्वादशी तिथि बढ़ी हो तो एकादशी  व्रत पहली द्वादशी में होता है। 
अमावस पूर्णिमा बढ़ती हैं तो भी व्रत द्वादशी में ही होता है।

वैष्णव लोगों की एकादशी का सूर्योदय से 6 घण्टे पूर्व से एकादशी का आना जरूरी है, और 6 घण्टे पहले ही द्वादशी आना भी जरूरी होता है,  अन्यथा उनका व्रत द्वादशी में ही होता है। 

5/6जून की रात्रि में एकादशी 2:18 यानी 96 मिनट से पूर्व तो आ रही है , लेकिन 6/7 की रात में सुबह 4:50 तक एकादशी तिथि है 
उस सुबह सूर्योदय 5:18 पर है , यह 96 मिनट के अंदर होने के कारण व्रत 7 जून को होना ही श्रेष्ठ
है।
दूसरे द्वादशी तिथि भी बढ़ रही है तो ये दोनों बिंदु 2025 का निर्जला एकादशी व्रत 7 जून को होना तय करते हैं।
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ये मेरा कोई शास्त्रीय अध्ययन वाला लॉजिक नहीं वरन अपने व रिश्तेदारों के घर होने वाले लोक व्यवहार आधारित व्रत परम्परा के आधार पर बताया है।
वैसे आशा यही है कि विद्वान आचार्य भी इससे असहमति नहीं दिखाएंगे।  






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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 05 जून 2025*
*🎈दिन- गुरुवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    दशमी    26:15:20*
 तत्पश्चात् एकादशी*
*🎈 नक्षत्र    -            हस्त    30:32:44 पश्चात हस्त    *
*🎈योग -     सिद्वि    09:12:23 तक, तत्पश्चात्  व्यतिपत*
*🎈करण -     तैतुल    13:02:22 पश्चात वणिज*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-02:17pm
से  03:59 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:25*
*🎈सूर्यास्त - 19:25:55*
*🎈चन्द्र राशि-       कन्या    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 01:01 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:13 ए एम, जून 06 से 12:54 ए एम, जून 06 तक*
    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
शुभ    05:41 - 07:24    शुभ
रोग    07:24 - 09:08    अशुभ
उद्वेग    09:08 - 10:51    अशुभ
चर    10:51 - 12:34    शुभ
लाभ    12:34 - 14:17    शुभ
अमृत    14:17 - 15:59    शुभ
काल    15:59 - 17:43    अशुभ
शुभ    17:43 - 19:26    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
अमृत    19:26 - 20:43    शुभ
चर    20:43 - 21:59    शुभ
रोग    21:59 - 23:17    अशुभ
काल    23:17 - 24:34*    अशुभ
लाभ    24:34* - 25:51*    शुभ
उद्वेग    25:51* - 27:07*    अशुभ
शुभ    27:07* - 28:24*    शुभ
अमृत    28:24* - 29:41*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
🍁👉जय श्रीराम ।।
🍁👉 #गंगादशहरा (5 जून 2025 दिन गुरुवार) 
🍁ओम् ह्रीम गंगाये ओम् ह्रीम   स्वाहा.
🍁ॐ भागीर्थ्ये च विद्महे विष्णुपत्न्ये च धीमहि ! तन्नो गंगा प्रचोदयात !
🍁👉   हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है।  ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। 

🍁👉दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान के बाद दान करना बेहद शुभ फलदाई माना जाता है। इस दिन मां गंगा की विधि-विधान पूर्वक उपासना करने से जीवन में आ रही तमाम समस्याएं दूर हो जाती हैं। सनातन धर्म में मां गंगा को मोक्ष दायिनी के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि गंगा दशहरा के दिन स्नान के बाद मां गंगा के मंत्रों का जाप करने से जीवन में समृद्धि आती है। चलिए जानते हैं मां गंगा के मंत्रों के बारे में... 

मंत्र और इनसे होने वाले लाभ 
‘गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानाम् शतैरपि! 
मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स गच्छति’!!
 🍁👉 गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने और इस मंत्र का जाप करने से मृत्यु के बाद जातक को यमलोक की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती है। कहते हैं कि इस मंत्र का जाप करने से आत्मा आसानी से अपना सफर तय करती है।

👉'ॐ नमो गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नम:।।' 

 🍁👉  इस मंत्र को बेहद शक्तिशाली माना गया है। गंगा स्नान के समय 3 बार गंगा में डुबकी लगाते हुए इस मंत्र का जाप करने से 7 जन्मों के पाप धुल जाते हैं और मृत्यु के बाद व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

👉'ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी, धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।'
 
🍁👉जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है या वंश वृद्धि नहीं हो रही, घर में गरीबी है और करियर में उन्नति नहीं मिल रही है, उन्हें गंगा दशहरा पर गंगा स्नान के बाद पितरों की शांति के लिए घाट पर तर्पण करना चाहिए। गंगाजल और काले तिल हाथ में लेकर तर्पण करें और इस मंत्र का जाप करें, इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

🍁👉'गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। 
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।' 
  🍁👉   गंगा दशहरा पर गंगा में स्नान करते हुए इस मंत्र का जाप करने से नकारात्मक ऊर्जा खत्‍म होती है और व्‍यक्ति को हर काम में सफलता मिलने लगती है।



🍁👉 कुंडली में गजकेसरी राजयोग🍁👉
      ===================

🍁👉ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कुंडली में कई शुभ योग बनते हैं । जिनमें से कुछ अत्यंत शुभ माने जाते हैं। कुंडली के शुभ योगों में से एक गजकेसरी योग है । इस योग के प्रभाव के आर्थिक उन्नति की प्रबल संभवना बनती है ।  इस योग के प्रभाव से नौकरी में पदोन्नति का भी योग बनता है । इस योग के प्रभाव से जातक को राजा जैसा सुख मिलता है ।

🍁👉ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कुंडली में गजकेसरी योग तब बनता है जब बृहस्पति और चंद्र ग्रह की युति होती  है । बृहस्पति और चंद्रमा जब एक साथ आते हैं या परस्पर दृष्टि संबंध बनाते है तो उससे गजकेसरी योग का निर्माण होता है । यह एक ऐसा शुभ योग है जो चंद्रमा और बृहस्पति से बनता है । बृहस्पति को ज्योतिष में शुभ ग्रह माना गया है।  बृहस्पति देव को दोवताओं का गुरू होने का सौभाग्य प्राप्त है । वहीं चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है।

🍁👉गजकेसरी योग का बारें कहा गया है कि गज यानि हाथी और केसरी का अर्थ स्वर्ण होता है । यानि यह योग शक्ति और धन से जुड़ा हुआ योग है । 

🍁👉जिस व्यक्ति की कंडली में  गजकेसरी योग का निर्माण होता है तो इंसान के पास हाथी जैसा बल और लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहता है । इसलिए लोग गजकेसरी योग की अवधि में खूब आर्थिक तरक्की करते हैं । ऐसे लोग जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते है।
 

🍁👉परंतु गजकेसरी योग कुंडली में होने के बावजूद भी कुछ परिस्थितियों में इस योग का पूरा लाभ नहीं है । ऐसा तब होता है जब इस योग पर राहु या अन्य किसी पापी ग्रह की नजर पड़ती है । माना जाता है कि राहु की नजर से इस योग का लाभ नहीं मिलता है । इसके अलावा जब कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है तो गजकेसरी योग का लाभ नहीं मिलता है ।

 1- लग्न में यह योग बने तो जातक कोई नेता या अभिनेता होता है। ऐसे जातक को देखने के लिए जनता उतावली हो जाती है। उसका रहन सहन राजाओं जैसा होता है। यह योग जातक को गलत रास्ते पर भी जाने से रोकता है। जातक ईश्वर को मानने वाला होता है।

2- दूसरे भाव में योग दूसरे भाव में बने तो जातक उच्च घराने में जन्म लेता है, वाणी का धनी होता है, धन सम्पदा की कमी नहीं रहती। ऐसे जातक की बात को गौर से सुना जाता है। ऐसे जातक कथा वाचक और बड़े-बड़े साधू संत भी देखे गए हैं।

3- तीसरे भाव में यह योग बने तो भाई बहन को भी उच्च पद पर ले जाता है। जातक बहुत पराक्रमी और मान-सम्मान वाला होता है।

4- चौथे भाव में यह योग बने तो मां से अत्यंत प्यार और लाभ मिलता है। भूमि और वाहन का उच्च सुख प्रदान होता है। रहने के लिये अच्छा निवास स्थान होता है।

5 -पंचम भाव में यह योग बने तो बुद्धि के बल पर धन कमाने का संकेत होता है। जातक बुद्धिमान होता है। ऐसा जातक अच्छा स्कूल टीचर, वैज्ञानिक, नए नए अविष्कार करने वाला होता है। ऐसा जातक उच्च कोटि का लेखक भी बन सकता है। ऐसे जातक को पूर्ण संतान का सुख मिलता है, संतान के उच्च पद पर आसीन होने के योग भी बनते हैं।

6- छठे भाव में यह योग कुछ कमजोर पड़ जाता है। छठे भाव में गुरु शत्रुहंता होता है। शत्रु दब कर रहते हैं साथ में चंद्रमा मन और माता के लिए ठीक नहीं होता उनका स्वास्थ्य बिगड़ा सा रहता है।

7- सप्तम भाव जीवन साथी का होता है जीवन साथी उच्च पद पर आसिन होता है। उच्च घराने में शादी करवाता है। जीवन साथी उच्च विचारों वाला होता है।

8. अष्टम/ आयु भाव में- अष्टम भाव का गजकेसरी योग भी कमजोर पड़ जाता है। यह योग जातक को गुप्त विद्या में ले जाता है इस योग में बड़े-बड़े तांत्रिक और साधू संत देखे जाते हैं। यह योग कई बार अचानक धन भी दिलवा देता है। यह योग गुप्त धन की प्राप्ति जरूर देता है। जातक कल्पना भी नहीं कर सकता वहां से धन की प्राप्ति हो जाती है।

9. नवम भाव में गजकेसरी योग जातक को कर्म से ज्यादा भाग्य के द्वारा मिल जाता है। नवम भाव धर्म और भाग्य का माना गया है। ऐसा जातक बहुत भाग्य शाली होता है और भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता है।

10.दसवें भाव में गजकेसरी योग पिता को उच्च पद पर ले जाता है। जातक को भी उच्च पद प्राप्त होता है। जातक भाग्य से ज्यादा कर्म को महत्व देता है समाज में मान-सम्मान दिलवाता है।

11- ग्यारहवे भाव में गजकेसरी योग जातक की आय के एक से अधिक स्रोत होते हैं। जातक को कई प्रकार से इनकम आती है कम मेहनत मे ज्यादा पैसा का संकेत होता है। ऐसा जातक घर बैठे पैसा कमाता है।

12- बारहवें भाव में गजकेसरी योग कुछ कमजोर पड़ जाता है। जातक धर्म-कर्म पर पैसा खर्च करने वाला घर से दूर सफलता का-सूचक होता है।

           
कुंडली विश्लेषण🌷

हस्त निर्मित कुंडली🌷

रत्न🌷

विवाह बाधा🌷

संतान बाधा🌷

गर्भपात समस्या🌷

पितर बाधा🌷

प्रेत बाधा🌷

तंत्र बाधा🌷

भूमि में प्रेत या तंत्र बाधा🌷

वास्तु बाधा🌷

धन न टिकना🌷

व्यापार बाधा🌷

नौकरी प्राप्ति में बाधा🌷

नौकरी में प्रमोशन बाधा🌷

पति पत्नी क्लेश🌷

बीमारी रहना🌷

घर में क्लेश रहना🌷

घर में बरकत न होना🌷

ग्रह बाधा🌷

मस्तिष्क बंधन🌷

घर बंधन🌷

कुंडली में ग्रहण दोष🌷

काल सर्प दोष🌷

सर्प दोष🌷

मंगलिक दोष🌷

विष दोष🌷

विवाह प्रतिबंधक दोष🌷


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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*



*🎈दिनांक - 04 जून 2025*
*🎈दिन- बुधवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    नवमी    23:53:39*
 तत्पश्चात्  दशमी*
*🎈 नक्षत्र    -            उत्तर फाल्गुनी    27:34:37 पश्चात हस्त    *
*🎈योग -     वज्र    08:27:37तक, तत्पश्चात्  वज्र*
*🎈करण -     बालव    10:50:56 पश्चात तैतुल*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-12:34pm
से  02:16 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:31*
*🎈सूर्यास्त - 19:25:28*
*🎈चन्द्र राशि     -  चन्द्र राशि       सिंह    till 07:34:12*
*🎈चन्द्र राशि-       कन्या    from 07:34:12    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:13 ए एम, जून 05 से 12:54 ए एम, जून 05 तक*
    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
लाभ    05:42 - 07:25    शुभ
अमृत    07:25 - 09:08    शुभ
काल    09:08 - 10:51    अशुभ
शुभ    10:51 - 12:34    शुभ
रोग    12:34 - 14:16    अशुभ
उद्वेग    14:16 - 15:59    अशुभ
चर    15:59 - 17:42    शुभ
लाभ    17:42 - 19:25    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
उद्वेग    19:25 - 20:42    अशुभ
शुभ    20:42 - 21:59    शुभ
अमृत    21:59 - 23:16    शुभ
चर    23:16 - 24:33*    शुभ
रोग    24:33* - 25:50*    अशुभ
काल    25:50* - 27:07*    अशुभ
लाभ    27:07* - 28:24*    शुभ
उद्वेग    28:24* - 29:41*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
🍁👉दशमहाविद्या स्तोत्र का अर्थ सहित हिंदी में प्रस्तुत है। यह स्तोत्र दस महाविद्याओं की स्तुति करता है, जो तांत्रिक परंपरा में महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक श्लोक में विभिन्न देवियों की विशेषताओं, शक्तियों और महत्व का वर्णन है। नीचे प्रत्येक श्लोक का अर्थ हिंदी में दिया गया है:

🍁👉शिव उवाच  
शिवजी कहते हैं:

दुर्लभ तारिणी मार्ग दुर्लभं तारिणी ओअदम्। 
मन्त्रार्थ मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम्॥

🍁👉अर्थ: तारिणी (माँ तारा) का मार्ग और उनकी पूजा का ज्ञान दुर्लभ है। मंत्रों का अर्थ और उनकी चेतना को समझना, साथ ही शवसाधना (तांत्रिक साधना) भी अत्यंत दुर्लभ है।

🍁👉श्मशानसाधनं योनि साधनं ब्रह्मसाधनम्।  
क्रिया साधनक भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्॥

अर्थ: श्मशान में साधना, योनि साधना, ब्रह्म साधना, क्रिया साधना, भक्ति साधना और मुक्ति प्राप्ति की साधना सभी दुर्लभ हैं।

🍁👉स्तवप्रसादाद्देवेशि सर्वाः सिद्ध्यन्ति सिद्धयः।

अर्थ: हे देवी, तुम्हारे स्तोत्र के प्रसाद से सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।

🍁👉ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि।  
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि॥ १॥

अर्थ: हे चण्डिका, चण्डमुण्ड राक्षसों का नाश करने वाली, तुम्हें नमस्कार। हे कालिका, काल और महान भय का नाश करने वाली, तुम्हें प्रणाम।

🍁👉**शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।  
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्॥ २॥**

अर्थ: हे शिवे, विश्व की रक्षा करने वाली और जगत की माता, कृपा करो। हे शिव की प्रिय, मैं जगत की पालक और रचयिता को प्रणाम करता हूँ।

🍁👉जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।  
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्॥ ३॥

अर्थ: तुम विश्व को संचालित करने वाली विद्या हो, विश्व की सृष्टि करने वाली हो। तुम्हारा रूप भयंकर, विकराल और मुंडों की माला से सुशोभित है।

🍁👉हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम्॥ ४॥**

अर्थ: शिव द्वारा पूजित और उनकी प्रिय, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ। हे गौरी, गुरुओं की प्रिय, गोरे रंग और आभूषणों से सुशोभित, तुम्हें प्रणाम।

🍁👉**हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।  
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम्॥ ५॥

अर्थ: विष्णु की प्रिय, महामाया, ब्रह्मा द्वारा पूजित, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ। तुम सिद्धियों की स्वामिनी, सिद्ध विद्या और गणों से युक्त हो।

🍁👉मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम्। 
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम्॥ ६॥

अर्थ: तुम मंत्र और योनि सिद्धि देने वाली, लिंग से शोभित हो। हे महामाया, दुखों का नाश करने वाली दुर्गा, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉 उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्। 
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम्॥ ७॥

अर्थ: तुम उग्र रूप वाली, उग्र तारा, उग्र गणों से युक्त हो। नीले रंग की, घने नीले बादल जैसी, हे नीलसुंदरी, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ।

🍁👉श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम्।  
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम्॥ ८॥

अर्थ: श्यामवर्ण वाली, श्याम रंग के आभूषणों से सुशोभित, हे गौरी, सभी कार्य सिद्ध करने वाली जगद्जननी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।  
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम्॥ ९॥

अर्थ: विश्व की स्वामिनी, महाघोर, विकराल, भयंकर नाद करने वाली, आदि विद्या, आदि गुरु और आदि नाथ द्वारा पूजित, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम्।  
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्॥ १०॥

अर्थ: धन, अन्न और संपदा देने वाली, कमल पर विराजमान, देवताओं की स्वामिनी, चंद्रशेखर की प्रिय, हे दुर्गा, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम्।  
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्॥ ११॥

अर्थ: त्रिपुर सुंदरी, बालरूपा, गणों से सुशोभित, शिव की दूती, शिव द्वारा पूजित और ध्यान करने योग्य, सनातनी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम्।  
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम्॥ १२॥

अर्थ: सुंदरी, तारिणी, शिव गणों से सुशोभित, विष्णु द्वारा पूजित नारायणी, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रिय, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम्॥ १३॥

अर्थ: सभी सिद्धियाँ देने वाली, नित्य और अनित्य, गुणों से रहित, सगुण और निर्गुण, ध्यान करने योग्य, सभी सिद्धियाँ देने वाली, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।  
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्॥ १४॥

अर्थ: विद्या और सिद्धि देने वाली, महाविद्या, महेश्वरी, शिव की भक्त, महाकाल द्वारा पूजित, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्॥ १५॥

अर्थ: शुम्भ राक्षस का नाश करने वाली, रक्त की प्रिय, रक्तवर्ण वाली, रक्तबीज का वध करने वाली, हे जगद्जननी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिव्हां सुरेश्वरीम्।  
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्॥ १६॥

अर्थ: भैरवी, विश्व की स्वामिनी, लोल जिह्वा वाली, देवताओं की स्वामिनी, चार, दस और अठारह भुजाओं वाली, शुभस्वरूपा, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्। 
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम्॥ १७॥

अर्थ: त्रिपुर की स्वामिनी, विश्वनाथ की प्रिय, विश्व की स्वामिनी, शिवरूपा, अट्टहास करने वाली और धूम्र राक्षस का नाश करने वाली, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

🍁👉कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम्।
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम्॥ १८॥

अर्थ: कमला, छिन्नमस्ता, मातंगी, सुरसुंदरी, षोडशी, विजया, भीमा, धूमावती और बगलामुखी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम्।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये॥ १९॥

अर्थ: सभी सिद्धियाँ देने वाली, सभी विद्याओं और मंत्रों को शुद्ध करने वाली, मंत्र सिद्धि के लिए हे जगत की तारिणी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।  
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि॥ २०॥

अर्थ: हे गिरिनंदिनी, इस सिद्धिकर स्तोत्र का पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह सत्य है।

🍁👉कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे।  
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्॥

अर्थ: मंगलवार, चतुर्दशी, अमावस्या, गुरुवार या शुक्रवार की रात में इस स्तोत्र का पाठ करने से मोक्ष प्राप्त होता है।

🍁👉त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धिस्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि। 
चतुर्दश्यां निशाभागे शनि भौम दिने तथा॥

अर्थ: तीन पक्षों तक इस स्तोत्र का पाठ करने से मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है। चतुर्दशी की रात, शनिवार या मंगलवार को पाठ करने से विशेष फल मिलता है।

🍁👉निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्र सिद्धिमवाप्नुयात्।  
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मन्त्र सिद्धिरनुत्तमा।  
जागर्ति सततं चण्डी स्तोत्र पाठाभुजङ्गिनी॥

अर्थ: रात के समय इस स्तोत्र का पाठ करने से मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है। केवल इस स्तोत्र के पाठ से ही उत्तम मंत्र सिद्धि मिलती है। चण्डी सदा जागृत रहती हैं और इस स्तोत्र के पाठ से प्रसन्न होती हैं।

🍁👉 इति मुण्डमालातन्त्रोक्त दशमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

अर्थ: इस प्रकार मुंडमाला तंत्र में वर्णित दशमहाविद्या स्तोत्र पूर्ण हुआ।

🍁👉यह स्तोत्र दस महाविद्याओं (काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला) की महिमा का वर्णन करता है। प्रत्येक श्लोक में इन देवियों की शक्तियों, रूप और महत्व को दर्शाया गया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ साधक को सिद्धि, मोक्ष और मंत्र शक्ति प्रदान करता है।

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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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vipul

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 03 जून 2025*
*🎈दिन- मंगलवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    अष्टमी    21:55:50*
 तत्पश्चात्  नवमी*
*🎈 नक्षत्र    -            पूर्व फाल्गुनी    24:57:41 पश्चात     उत्तर फाल्गुनी*
*🎈योग -     हर्शण    08:07:09 तक, तत्पश्चात्  वज्र*
*🎈करण -     विष्टि भद्र    09:09:53 पश्चात बालव*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-03:59pm
से  05:42 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:39*
*🎈सूर्यास्त - 19:25:01*
*🎈चन्द्र राशि     -  सिंह    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:18 ए एम से 04:59 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 01:01 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:13 ए एम, जून 04 से 12:54 ए एम, जून 04तक*
    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
रोग    05:42 - 07:25    अशुभ
उद्वेग    07:25 - 09:07    अशुभ
चर    09:07 - 10:50    शुभ
लाभ    10:50 - 12:33    शुभ
अमृत    12:33 - 14:16    शुभ
काल    14:16 - 15:59    अशुभ
शुभ    15:59 - 17:42    शुभ
रोग    17:42 - 19:25    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
काल    19:25 - 20:42    अशुभ
लाभ    20:42 - 21:59    शुभ
उद्वेग    21:59 - 23:16    अशुभ
शुभ    23:16 - 24:33*    शुभ
अमृत    24:33* - 25:50*    शुभ
चर    25:50* - 27:07*    शुभ
रोग    27:07* - 28:24*    अशुभ
काल    28:24* - 29:42*    अशुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           
कामना पूर्ण करने वाले 24  व्रत-उपवास। 
( मत्स्यपुराण अध्याय १०१ ; कुल 60 हैं पर आज 24 का ही वर्णन )

नन्दिकेश्वर बोले- नारदजी ! अब मैं उन 
सर्वोत्तम व्रतोंका वर्णन कर रहा हूँ, जो साक्षात् शंकरजीद्वारा कथित, दिव्य एवं महापातकोंके विनाशक हैं।  पृथ्वीपर स्थित अनेक मनुष्य कहते हैं कि ईश्वर हमारी मनोकामना पूर्ण नहीं करता अतः ईश्वर नाम की कोई भी वस्तु या शक्ति नहीं पर लोग यह भूल जाते हैं कि उनके दुख का कारण वे स्वयं ही हैं। उनके पूर्व जन्म के पाप ही उनको दुख देते हैं। रानी के गर्भ से जन्मे बालक या बालिका जन्म से ही धनाढ्य और दरिद्र कोख से जनी संतान जन्म से ही शोकग्रस्त रहती है यह भी प्रारब्ध ही है। अतः प्रारब्ध के दुखों के क्षय के लिए महादेव ने इन व्रतों की आज्ञा दी है कोई भी मनुष्य इनमें से एक भी करे तो निश्चित ही उसे पर्याप्त धन धान्य और यश आदि निश्चित ही प्राप्त हो सकेंगे। इसके अतिरिक्त त्रिकाल जप-परायण व्यक्ति या त्रिकाल कवच पाठ से भी देव अनुकूल होकर सब कुछ देने में समर्थ हो जाता है। तथा पार्थिव शिवलिंग निर्माण ( निश्चित संख्या ) से भी मनुष्य दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकता है। वृक्षारोपण से भी अलग अलग फल हैं। अनार , पाखर, वट, अशोक , आम या नीम अलग अलग कामना के लिए अलग अलग वृक्ष हैं । पर कहने या सुनने मात्र से नहीं अपितु करने से ( यही उत्तम कर्म से) ही सब कुछ  होगा ।  अलग अलग रुद्राक्ष धारण के भी अलग अलग फल हैं। पुराण पाठ से भी दुखों का नाश होता है। तुलादान और गोदान से भी। 
( हे नारद जी ) सकाम कर्मकांड दुख और पीड़ा के नाश के लिए ही प्रभु ने बनाये हैं पर उनको पूरे मनोयोग से अखंड ब्रह्मचर्य पूर्वक करना होता है। भोग के साथ व्रत फल नहीं देते। अतः श्रवण करें - 
1.जो मनुष्य एक वर्षतक रात्रिमें एक बार भोजन कर स्वर्णनिर्मित चक्र और त्रिशूल तथा दो वस्त्र गौके साथ कुटुम्बी संध्यापूत  ब्राह्मणको दान करता है, वह शिवस्वरूप होकर शिवलोकमें हमलोगोंके साथ आनन्द मनाता है। यह महापातकोंका विनाश करनेवाला 'देवव्रत' है। 
2.जो मनुष्य एक वर्षतक दिनमें एक बार भोजन कर स्वर्णनिर्मित वृषसहित तिलमयी धेनु का दान किसी जितेन्द्रिय विप्र को करता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है। यह पाप एवं शोकका क्षयकारक 'रुद्रव्रत' है।
🧿
3 जो मनुष्य एक दिनके अन्तरसे रातमें एक बार भोजन करके वर्षकी समाप्तिके अवसरपर शक्करसे पूर्ण पात्रसहित स्वर्णनिर्मित नील कमलको वृषभके साथ दान करता है वह विष्णुलोकको जाता है; यह 'नीलव्रत' कहा जाता है। 
4.जो मनुष्य आषाढ़से लेकर चार मासतक शरीरमें तेल नहीं लगाता और भोजनकी सामग्री दान करता है वह श्रीहरिके लोकको जाता है। इस लोकमें यह मनुष्योंमें प्रत्येक व्यक्तिको प्रिय लगनेवाला 'प्रीतिव्रत' नामसे कहा जाता है।
5. जो मनुष्य चैत्रमासमें दही, दूध, घी और शक्करका त्याग कर देता है और 'गौरी मुझपर प्रसन्न हों'- इस भावनासे जितेन्द्रिय ब्राह्मण-दम्पतिकी भलीभाँति पूजा करके रसपूर्ण पात्रोंके साथ महीन वस्त्रोंका दान करता है (वह गौरीलोकमें जाता है)। गौरीलोककी प्राप्ति करानेवाला यह 'गौरीव्रत' है ॥ १-८॥
6.
पुनः जो मनुष्य पुष्यनक्षत्रसे युक्त त्रयोदशी तिथिको रातमें एक बार भोजन कर (दूसरे दिन) दस अङ्गुल लम्बा सोनेका अशोक-वृक्ष बनवाकर उसे वस्त्र और गन्नेके साथ 'प्रद्युम्न मुझपर प्रसन्न हों' इस भावनासे पात्र ब्राह्मण को दान करता है, वह एक कल्पतक विष्णुलोकमें निवास करके पुनः शोकरहित हो जाता है। सदा शोकका विनाश करनेवाला यह 'कामव्रत' है। 
7.जो मनुष्य चौमासेमें- आषाढ़ पूर्णिमासे लेकर कार्तिक तक नख व बाल नहीं कटवाता और भाँटा ( बेगन)नहीं खाता, पुनः कार्तिकी पूर्णिमाको मधु और घीसे भरे हुए घड़ेके साथ स्वर्णनिर्मित भाँटा ब्राह्मणको दान करता है वह रुद्रलोकको प्राप्त होता है। इसे 'शिवव्रत' कहा जाता है। 
8.
जो मनुष्य हेमन्त और शिशिर ऋतुओंमें पुष्पोंको काममें नहीं लेता और फाल्गुनमासकी पूर्णिमा तिथिको अपनी शक्तिके अनुकूल सोनेके तीन पुष्प बनवाकर उन्हें सायंकालमें 'भगवान् शिव और केशव मुझपर प्रसन्न हों'- इस भावनासे दान करता है, वह परमपदको प्राप्त होता है। यह 'सौम्यव्रत' कहलाता है।
9.
 जो मनुष्य फाल्गुनमासकी आदि तृतीया तिथिको नमक खाना छोड़ देता है तथा वर्षान्तके दिन 'भवानी मुझपर प्रसन्न हों' - इस भावनासे द्विज-दम्पतिकी भलीभाँति पूजा करके गृहस्थीके उपकरणोंसे युक्त गृह और शय्या दान करता है, वह एक कल्पतक गौरीलोकमें निवास करता है। इसे 'सौभाग्यव्रत' कहा जाता है। 
10.
जो मनुष्य संध्याकी वेलामें मौन रहनेका नियम पालन कर वर्षकी समाप्तिमें घृतपूर्ण घट, दो वस्त्र, तिल और घंटा ब्राह्मणको दान करता है, वह पुनरागमनरहित सारस्वत-पदको प्राप्त होता है। सौन्दर्य और विद्या प्रदान करनेवाला यह 'सारस्वत' नामक व्रत है॥ ९-१८॥
11.
जो मनुष्य पञ्चमी तिथिको निराहार रहकर लक्ष्मी देवी  पूजा करता है और वर्षकी समाप्तिके दिन गौके साथ स्वर्ण-निर्मित कमलका दान करता है. वह विष्णुलोको जाता है और प्रत्येक जन्ममें लक्ष्मीसे सम्पन्न रहता है। यह 'सम्पद्वत' है, जो दुःख और शोकका विनाश करनेवाला है। 
12.जो मनुष्य एक वर्षतक भगवान् शिव और केशवकी मूर्तिके सामनेकी भूमिको लीपकर वहाँ जलपूर्ण घटसहित गौका दान करता है, वह दस हजार वर्षोंतक राजा होता है और मरणोपरान्त शिवलोकमें जाता है। यह 'आयुव्रत' है, जो सभी मनोरथोंको सिद्ध करनेवाला है। 
13.
जो मनुष्य एक वर्षतक मत्सररहित हो दिनमें एक बार भोजन कर मौन धारणपूर्वक एक ही स्थानपर पीपल, सूर्य और गङ्गाको प्रणाम करता है तथा व्रतकी समाप्तिमें पूजनीय ब्राह्मण-दम्पतिको तीन गौओ के  साथ स्वर्णनिर्मित वृक्षका दान करता है, उसे अश्वमेध-यज्ञके फलकी प्राप्ति होती है। यह 'कीर्तिव्रत' है, जो वैभव और कीर्तिरूपी फलका प्रदाता है। 
14.
जो मनुष्य एक वर्षतक गोबरसे मण्डल बनाकर वहाँ भगवान् शिव अथवा केशवको घीसे स्नान कराकर पुष्प, अक्षत आदिसे पूजा करता है और वर्षान्तमें तिल-धेनुसहित आठ अङ्गुल लम्बा शुद्ध स्वर्णनिर्मित कमल सामवेदी ब्राह्मणको दान करता है, वह शिवलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसे इस लोकमें 'सामव्रत' कहा जाता है ॥ १९-२६॥
15.
जो मनुष्य नवमी तिथिको दिनमें एक बार भोजन करके अपनी शक्तिके अनुसार कन्याओंको भोजन कराकर उन्हें आसन और सोनेके तारोंसे खचित चोली एवं साड़ी तथा ब्राह्मणको स्वर्णनिर्मित सिंह दान करता है, वह शिवलोकमें जाता है और एक अरब जन्मोंतक सौन्दर्यसम्पन्न एवं शत्रुओंके लिये अजेय हो जाता है। यह 'वीरव्रत' है, जो नारियोंके लिये सुखदायक है। 
16.
जो मनुष्य एक वर्षतक पूर्णिमा तिथिको केवल दूध पीकर व्रत करता है और वर्षकी समाप्तिके दिन श्राद्ध करके लालिमायुक्त भूरे रंगके वस्त्र और जलपूर्ण घंटोंके साथ पाँच दुधारू गायें दान करता है, वह विष्णुलोकको जाता है और अपने #सौ #पीढ़ीतकके पितरोंको तार देता है। पुनः एक कल्प व्यतीत होनेपर वह भूतलपर राजराजेश्वर होता है। यह 'पितृव्रत' कहलाता है। 
17.
जो मनुष्य चैत्रसे आरम्भकर चार मासतक बिना याचना किये जलका दान देता है अर्थात् पौसला चलाता है तथा व्रतके अन्तमें अन्न एवं वस्त्रसे युक्त मिट्टीका घड़ा, तिलसे भरा पात्र और सुवर्णका दान करता है, वह ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। एक कल्पके व्यतीत होनेपर वह निश्चय ही भूपाल होता है। यह 'आनन्दव्रत' कहा जाता है॥ २७-३२॥
18.
जो एक वर्षतक पञ्चामृत (दूध, दही, घी, मधु, शक्कर) से भगवान्‌की मूर्तिको खान कराता है, पुनः वर्षान्तमें पञ्चामृतसहित गौ और शङ्ख ब्राह्मणको दान करता है, वह शिवलोकमें जाता है और एक कल्पके बाद भूतलपर राजा होता है। यह 'धृतिव्रत' कहा जाता है।
19.
 जो मनुष्य  ( मांसाहारी भी )  एक वर्षतक मांस खाना छोड़कर वर्षान्तमें गौ दान करता है तथा उसके साथ स्वर्णनिर्मित मृग भी देता है, वह अश्वमेधयज्ञके फलका भागी होता है और कल्पान्तमें राजा होता है। यह 'अहिंसाव्रत' कहलाता है। पर शेष पापों का दण्ड भी वह कालांतर में पायेगा अतः पाप न करें तो ही अधिक श्रेष्ठ है। 
20.
जो मनुष्य माघमासमें ब्राह्मवेला में स्नान कर अपनी शक्तिके अनुसार एक द्विज-दम्पतिको भोजन कराकर पुष्पमाला, वस्त्र और आभूषण आदिसे उनकी पूजा करता है, वह एक कल्पतक सूर्यलोकमें निवास करता है। यह 'सूर्यव्रत' कहा जाता है। 
21.
जो मनुष्य आषाढ़से आरम्भकर चार महीनेतक नित्य प्रातःकाल स्नान करता है और ब्राह्मणोंको भोजन देता है तथा कार्तिकी पूर्णिमाको गो-दान करता है, वह विष्णुलोकको जाता है। यह मङ्गलमय 'विष्णुव्रत' है।
22.
 जो मनुष्य एक अयनसे दूसरे अयनतक (उत्तरायणसे दक्षिणायन अथवा दक्षिणायनसे उत्तरायणतक) पुष्प और घीका त्याग कर देता है और व्रतान्तके दिन घृत, धेनुसहित पुष्पोंकी मालाएँ एवं घी और दूधसे बने हुए खाद्य पदार्थ ब्राह्मणको दान करता है, वह शिवलोकको जाता है। यह 'शीलव्रत' है, जो सुशीलता एवं नीरोगतारूप फल प्रदान करता है। 
23.
जो एक वर्षतक नित्य सायंकाल दीप-दान करता है और तेल-घी खाना छोड़ देता है, पुनः वर्षान्तमें ब्राह्मणको स्वर्णनिर्मित चक्र, त्रिशूल और दो वस्त्रके साथ दीपकका दान देता है, वह इस लोकमें तेजस्वी होता है और मरणोपरान्त रुद्रलोकको प्राप्त होता है। यह 'दीप्तिव्रत' कहलाता है ॥३३-४१ ॥
24.
जो एक वर्षतक कार्तिकमाससे प्रारम्भ कर तृतीया तिथिको गोमूत्र एवं जौसे बने हुए खाद्य पदार्थोंको खाकर नक्तव्रतका पालन करता है और वर्षान्तमें गोदान करता है, वह एक कल्पतक गौरीलोकमें निवास करता है और (पुण्य क्षीण होनेपर) भूतलपर राजा होता है। यह 'रुद्रव्रत' है जो सदाके लिये कल्याणकारी है।

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*🎈दिनांक - 02 जून 2025*
*🎈दिन- सोमवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    सप्तमी     20:34:26*
 तत्पश्चात्  अष्टमी*
*🎈 नक्षत्र    -        मघा    22:54:37 पश्चात     पूर्व फाल्गुनी*
*🎈योग -     व्याघात    08:19:21 तक, तत्पश्चात्  हर्शण*
*🎈करण -     गर     08:10:31 पश्चात विष्टि भद्र*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-05:41pm
से  07:24 pm तक*
*🎈सूर्योदय -     05:41:48*
*🎈सूर्यास्त - 19:24:04*
*🎈चन्द्र राशि     -  सिंह    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 01:01 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:13 ए एम, जून 03 से 12:54 ए एम, जून 03तक*
    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
अमृत    05:42 - 07:25    शुभ
काल    07:25 - 09:07    अशुभ
शुभ    09:07 - 10:50    शुभ
रोग    10:50 - 12:33    अशुभ
उद्वेग    12:33 - 14:16    अशुभ
चर    14:16 - 15:59    शुभ
लाभ    15:59 - 17:42    शुभ
अमृत    17:42 - 19:25    शुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
चर    19:25 - 20:42    शुभ
रोग    20:42 - 21:59    अशुभ
काल    21:59 - 23:16    अशुभ
लाभ    23:16 - 24:33*    शुभ
उद्वेग    24:33* - 25:50*    अशुभ
शुभ    25:50* - 27:07*    शुभ
अमृत    27:07* - 28:25*    शुभ
चर    28:25* - 29:42*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉💐.           🍁👉युवनाश्व-🍁👉
श्रीराम के वो पूर्वज जिन्होंने पुरुष
होते हुए भी गर्भ धारण किया।

आज के आधुनिक युग में हम नए नए
अविष्कार कर रहे हैं।

विगत कुछ वर्षों से ये बात सिद्ध हो चुकी है
कि ऐसी कई/अधिकतर चीजें जो आज हम
बना रहे हैं,उसका वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों में
पहले ही दे दिया गया था।

ये इस बात को सिद्ध करता है कि सनातन
हिन्दू धर्म ना केवल अति-प्राचीन है अपितु
बहुत वैज्ञानिक भी।

आज हम जो सेरोगेसी की बात करते हैं वह 
दियों पहले महाभारत में वर्णित था।

उसी प्रकर आज के वैज्ञानिक इस बात पर
भी शोध कर रहे हैं कि क्या पुरुष कृत्रिम रूप
से गर्भ धारण कर सकते हैं ?

आज की ये कथा इसी बात का उत्तर है।

हम सबने श्रीराम के वंश के बारे में पढ़ा है।

ब्रह्मा जी से १९वीं पीढ़ी में एक राजा हुए
महाराज युवनाश्व।

महाराज युवनाश्व अपने आप में अनोखे हैं
क्यूंकि उन्होंने पुरुष होते हुए भी गर्भ धारण
किया था।

इस कथा का वर्णन हमें नारद पुराण में मिलता है।

युवनाश्व की पत्नी का नाम गौरी था।
विवाह के बहुत वर्षों के बाद भी दोनों निःसंतान रहे।

संतान प्राप्ति के लिए महाराज युवनाश्व ने वन
जाकर तप करने का निश्चय किया।
उन्होंने राज-पाठ मंत्रियों के हाथ सौंपा और वन
जाकर तपस्या करने लगे। 

उसी दौरान उनकी भेंट महर्षि भृगु के पुत्र च्यवन
ऋषि से हुई।

जब महर्षि च्यवन ने महाराज युवनाश्व की
समस्या सुनी तो उन्होंने उन्हें सांत्वना देते
हुए कहा कि यज्ञ के प्रभाव से उन्हें संतान
प्राप्त हो सकती है।

तब महाराज युवनाश्व ने उनसे ही उस यज्ञ
को संपन्न करने का अनुरोध किया।

महर्षि की स्वीकृति के बाद महाराज युवनाश्व
ने अपने मंत्रियों और सेना को वहाँ बुलाया और
च्यवन ऋषि के निर्देशानुसार एक महान "इष्टि
यज्ञ" का आयोजन किया।

वो यज्ञ १ वर्ष तक अविलम्ब चलता रहा और
यज्ञ समाप्ति पर महर्षि च्यवन ने एक मटके
में अभिमंत्रित जल रख दिया ताकि जिसे
पीकर महारानी गौरी गर्भ धारण कर सके।

यज्ञ समाप्त होने के बाद सभी लोग थकान से
पीड़ित होकर गहरी निद्रा में सो गए।

रात्रि को महाराज युवनाश्व को अत्यधिक प्यास
लगी और वे अपने सेवकों को पुकारने लगे।

किन्तु अत्यधिक गहन निद्रा में होने के कारण
किसी ने उनकी पुकार ना सुनी।

विवश होकर राजा युवनाश्व स्वयं जल ढूंढने निकले। 

बहुत ढूंढने के बाद भी उन्हें जल नहीं मिला
किन्तु तभी यञभूमि के पास उन्हें एक मटके
में रखा जल दिखा।

वे नहीं जानते थे कि वो जल अभिमंत्रित है जिसे
उनकी पत्नी को पीना है और इसी अज्ञानता में
उन्होंने उस अभिमंत्रित जल को पी लिया।

जल पीते ही उनके शरीर में बदलाव आरम्भ हुआ
और वे अस्वस्थ हो गए।

जब महर्षि च्यवन ने ये देखा तो उन्होंने कहा कि
अब उनके ही गर्भ से संतान की उत्पत्ति होगी।

महाराज युवनाश्व ने उनसे बड़ी प्रार्थना की कि
वे उसका कोई उपाय बताएं किन्तु वे भी विवश
थे क्यूंकि वो जल यज्ञ संपन्न कर अभिमंत्रित
किया गया था और उसके फल को अब रोका
नहीं जा सकता था। 

जब संतान के जन्म लेने का सही समय आया
तो राजा बहुत घबरा गए।

महर्षि च्यवन के लिए भी ये असाधारण
स्थिति थी।

तब उन्होंने देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों
का आह्वान किया।

तब अश्विनीकुमारों ने महाराज युवनाश्व के
कोख को चीर कर एक बालक को बाहर निकाला।

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि किसी पुरुष
ने संतान उत्पन्न किया हो इसी लिए इस अद्भुत
घटना के साक्षी बनने हेतु देवराज इंद्र सहित
सभी देवता वहॉं उपस्थित हुए।

उस बालक के जन्म के साथ एक समस्या
ये उत्पन्न हुई कि अब उसे दुग्धपान कौन
करवाएगा ?

तब देवराज इंद्र स्वयं वहाँ आये और उन्होंने
उस बालक के मुँह में अपनी तर्जनी अंगुली
डाली जिससे दिव्य दूध निकल रहा था।

उस दिव्य दुग्ध से तृप्त होकर वो बालक
१३ अंगुल बढ़ गया और संतुष्ट होकर सो
गया।

तब इंद्र ने कहा - "मम धाता", अर्थात मैं
ही इसकी माँ हूँ। इसी कारण उस बालक
का नाम "मान्धाता" पड़ा। देवराज इंद्र ने
उसे ये वरदान दिया कि वो चक्रवर्ती राजा
बनेगा जिसका यश दिग-दिगन्तर तक
फैलेगा। 

देवराज इंद्र का वरदान फलीभूत हुआ और
मान्धाता संसार के सबसे महान सम्राटों में
एक बने।

कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवनकाल में
प्रत्येक दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक राज
किया।

उन्होंने १०० अश्वमेघ एवं १०० राजसु यज्ञ
किये और १० योजन लम्बे और १ योजन
ऊँचा स्वर्ण मत्स्य का ढेर बना कर ब्राह्मणों
को दान किया था।

इन्ही मान्धाता से ४४ पीढ़ी के बाद इक्ष्वाकु
कुल में श्रीराम ने जन्म लिया।

मान्धाता के विषय में हमारे पुराणों में बहुत
कुछ लिखा गया है,उनके विषय में एक विस्तृत
लेख बाद में प्रकाशित किया जाएगा। 
💐जयश्रीराम💐
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

✅◾◾ 
🕉️🕉️🕉️🕉️
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* 
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞

 

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक - 01 जून 2025*
*🎈दिन- रविवार *
*🎈संवत्सर    -विश्वावसु*
*🎈संवत्सर- (उत्तर)    सिद्धार्थी*
*🎈विक्रम संवत् - 2082*
*🎈अयन - उत्तरायण*
*🎈ऋतु- ग्रीष्म*
*🎉मास - ज्येष्ठ*
*🎈पक्ष- शुक्ल*
*🎈तिथि-    षष्ठी    19:58:59*
 तत्पश्चात्  सप्तमी*
*🎈 नक्षत्र    -        आश्लेषा    21:35:31 पश्चात     मघा*
*🎈योग -     ध्रुव    09:10:10 तक, तत्पश्चात्  व्याघात*
*🎈करण -     कौलव    08:00:20 पश्चात गर*
*🎈राहु काल_हर जगह, का अलग है-09:08am
से  10:50am तक*
*🎈सूर्योदय -     05:42:09*
*🎈सूर्यास्त - 19:23:34*
*🎈चन्द्र राशि-       कर्क    till 21:35:31*
*🎈चन्द्र राशि     -  सिंह    from 21:35:31    *
*🎈सूर्य राशि-       वृषभ*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्राह्ममुहूर्त - 04:19 ए एम से 05:00 ए एम तक,*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:05 पी एम से 01:01 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त -  12:12 ए एम, जून 02 से 12:53 ए एम, जून 02तक*
    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
काल    05:42 - 07:25    अशुभ
शुभ    07:25 - 09:08    शुभ
रोग    09:08 - 10:50    अशुभ
उद्वेग    10:50 - 12:33    अशुभ
चर    12:33 - 14:16    शुभ
लाभ    14:16 - 15:58    शुभ
अमृत    15:58 - 17:41    शुभ
काल    17:41 - 19:24    अशुभ
    *🔵चोघडिया, रात🔵*
लाभ    19:24 - 20:41    शुभ
उद्वेग    20:41 - 21:58    अशुभ
शुभ    21:58 - 23:15    शुभ
अमृत    23:15 - 24:33*    शुभ
चर    24:33* - 25:50*    शुभ
रोग    25:50* - 27:07*    अशुभ
काल    27:07* - 28:25*    अशुभ
लाभ    28:25* - 29:42*    शुभ
kundli



🙏♥️ 🍁👉 🍁👉"सर्वसिद्धिप्रदायक प्रत्यक्ष    दुर्गासिद्धि प्रयोग 🍁👉
   यह प्रयोग किसी भी दिन सम्पन्न किया जा सकता है। दुर्गा पूजा के लिए किसी भी प्रकार के मुहूर्त की आवश्यकता नहीँ रहती । 

🍁👉  देवीरहस्य तन्त्र के अनुसार दुर्गापूजा मेँ न तो कोई विशेष विधान है । न विध्न है और न कठिन आचार। प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठ कर साधक स्नान कर शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर अपने पूजा स्थान को स्वच्छ करेँ । जल से धोकर स्थान शुद्धि और भूमि शुद्धि कर अपना आसन बिछाएं । आसन पर बैठ कर ध्यान करेँ और अपने चित को एकाग्र करेँ । कार्य सिद्धि साधना के संबंध मेँ पूरे विश्वास के आधार पर कार्य करते हुए संकल्प लेँ । .. 

  🍁👉   अपने सामने सिँह पर स्थित देवी का एक चित्र स्थापित करेँ और "श्री गणेशाय नमः" बोले फिर एक ओर घी का दीपक तथा दूसरी ओर धूप अगरबत्ती इत्यादि जलाएं । अब बाएं हाथ मे जल लेकर दाएं हाथ से अपने मुख, शरीर इत्यादि पर छिडकते हुए निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ तत्व-न्यास सम्पन्न करते हुए, थोडा जल दोनो आंखों मे लगा कर भूमि पर छोड देँ 

🍁👉ॐ आत्म तत्वाय नमः । ॐ ह्रीँ विद्या तत्वाय नमः । ॐ दुं शिव तत्वाय नमः । ॐ गुं गुरु तत्वाय नमः । ॐ ह्रीं शक्ति तत्वाय नमः। ॐ श्रीँ शक्ति तत्वाय नमः। 

 🍁👉सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर पुष्प की पंखुडियोँ का आसन बनाएं तथा दुर्गा यंत्र को दुग्ध धारा से फिर जल धारा से धोकर साफ कपडे से पोछ कर

🍁👉 ॥ ॐ ह्रीँ वज्रनख दंष्ट्रायुधाय महासिँहाय फट् ॥ 

 🍁👉   इस मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गायंत्र को पुष्प के आसन पर स्थापित कर अबीर, गुलाल, कुंकुंम, केशर, मौली, सिंन्दूर अर्पित करेँ । इसके पश्चात् एक पुष्प माला देवी के चित्र पर चढाए तथा दूसरी माला इस देवी यंत्र के सामने रख देँ अब दुर्गा की शक्तियो का पूजन कार्य सम्पन्न करेँ, सामने दुर्गा यंत्र के आगे 9 गोमती चक्र स्थापित करेँ । (गोमती चक्र के आभाव मे यंत्र पर ही करेंगे) 

🍁👉प्रत्येक चक्र के नीचे पुष्प की एक एक पंखुडी रखे तथा चावल को कुंकुंम से रंग कर मंत्र जप करते हुए इन 9 शक्तियो का जप करेँ । 
ॐ प्रभायै नमः । ॐ जयायै नमः । 
ॐ विशुद्धाय नमः । ॐ सुप्रभायै नमः 
ॐ मायायै नमः । ॐ सूक्ष्मायै नमः । 
ॐ नन्दिन्यै नमः । ॐ विजयायै नमः । 
ॐ र्सव सिद्धिदायै नमः । 

🍁👉अब गणेश पूजन कर देवी का पूजन सम्पन्न करेँ । अपने हाथ मे धूप लेकर 21 बार धूप करेँ । फिर दुर्गा अष्टाक्षर मंत्र का जप प्रारम्भ करेँ । 

🍁👉॥ ॐ ह्रीँ दुं दुर्गायै नमः ॥ 

🍁👉शारदा तिलक तंत्र शास्त्रमे लिखा है कि शान्त ह्रदय से चित्त मे शान्ति तथा एकाग्रता रखते हुए साधक इस मंत्र की रोज 51 माला का जप 121 दिन उसी स्थान पर बैठ कर करेँ तो उसे साक्षात स्वरुप मेँ प्रगट होकर माँ अष्ट सिद्धि वरदान देती है । 

🍁👉साधक को जो वर प्राप्त होता है, उस से साधक भैरव के समान हो जाता है । उसे अभय का वह स्वरुप प्राप्त हो जाता है कि उसके मन से भय पूण रुप से समाप्त हो जाता है । शरीर की व्याधियो का निवारण तथा दीर्धायु प्राप्ति के लिए भी यही र्सवश्रेष्ठ विधान है । प्रतिदिन पूजा के पश्चात साधक देवी की आरती तथा ताम्रपात्र मे जल को आचमनी मे लेकर ग्रहण करेँ तो उसके भीतर शक्ति का प्रादुर्भाव होता है ।

👉धन्यवाद 🙏
🙏〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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