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पञ्चाङ्ग - 05-11-2025

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

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नागौर राजस्थान मानक समयानुसार 

*🎈दिनांक  05 नवंबर 2025 *
*🎈 दिन -   बुधवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - कार्तिक*
*🎈 पक्ष -  शुक्ल पक्ष*
*🎈तिथि-    पूर्णिमा    18:48:18* pm तत्पश्चात् प्रथम(प्रतिपदा)*
*🎈 नक्षत्र -     नक्षत्र    अश्विनी    09:39:25am*
*🎈नक्षत्र    भरणी-    30:33:15
am तत्पश्चात्  कृत्तिका*
*🎈 योग -     सिद्वि    11:27:22am* तक तत्पश्चात् व्यतिपत*
*🎈करण    -     विष्टि भद्र    08:43:33
am तक तत्पश्चात् बव*
*🎈 राहुकाल -हर जगह का अलग है- 12:18 am to 01:41pm तक * 
*🎈चन्द्र राशि    -   मीन till 12:33:41
*🎈चन्द्र राशि-      मेष*
*🎈सूर्य राशि-       तुला    *
*🎈सूर्योदय - 06:49:09am*
*🎈सूर्यास्त -17:47:45pm* 

*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 05:04 से प्रातः 05:56 तक
*🎈अभिजित मुहूर्त-    कोई नहीं*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:53 पी एम से 12:45 ए एम,5नवंबर 2025तक*
*🎈 सर्वार्थ सिद्धि योग    06:34 ए एम, नवम्बर 06 से 06:49 ए एम, नवम्बर 06*
*🎈 व्रत एवं पर्व-   कार्तिक पूर्णिमा व्रत५ नवंबर 2025  बुधवार को।
*🎈विशेष -  "कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली"
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station


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
   नागौर, राजस्थान, (भारत)    
   मानक सूर्योदय के अनुसार।

*🎈 लाभ - उन्नति-06:48 ए एम से 08:11 ए एम*

*🎈 अमृत - सर्वोत्तम-08:11 ए एम से 09:33 ए एम*

*🎈 काल - हानि-09:33 ए एम से 10:56 ए एम काल वेला*

*🎈 शुभ - उत्तम-10:56 ए एम से 12:18 पी एम*

*🎈 रोग - अमंगल-12:18 पी एम से 01:41 पी एम वार वेला*

*🎈 उद्वेग - अशुभ-01:41 पी एम से 03:04 पी एम*

*🎈 चर - सामान्य-03:04 पी एम से 04:26 पी एम*

*🎈 लाभ - उन्नति-04:26 पी एम से 05:49 पी एम*

      *🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈उद्वेग - अशुभ-05:49 पी एम से 07:26 पी एम*

*🎈शुभ - उत्तम-07:26 पी एम से 09:04 पी एम*

*🎈अमृत - सर्वोत्तम-09:04 पी एम से 10:41 पी एम*

*🎈चर - सामान्य-10:41 पी एम से 12:19 ए एम, नवम्बर 06*

*🎈रोग - अमंगल-12:19 ए एम से 01:56 ए एम, नवम्बर 06*

*🎈काल - हानि-01:56 ए एम से 03:34 ए एम, नवम्बर 06*

*🎈लाभ - उन्नति-03:34 ए एम से 05:11 ए एम, नवम्बर 06 काल रात्रि*

*🎈उद्वेग - अशुभ-05:11 ए एम से 06:49 ए एम, नवम्बर 06*

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      *कार्तिक पूर्णिमा महत्व*

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। इस दिन
यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह 'महाकार्तिकी' होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष रूप से फलदायी होती है और रोहिणी नक्षण होने पर इसका महत्व बहुत ही अधिक बढ़ जाता है।
यह तिथि देव दीपावली महोत्सव के रूप में
मनाई जाती है।
विष्णु भक्तों के लिए यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन संध्याकाल में भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्यावतार हुआ था।
भगवान को यह अवतार वेदों, प्रलय के अंत
तक सप्त ऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था।
इस तिथि को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि का दिन भी माना जाता है।
इस दिन किए जाने वाले स्नान, दान, हवन,
यज्ञ व उपासना का अनंत फल प्राप्त होता है। इस दिन सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है।
सायंकाल देवालयों, मंदिरों, चौराहों और
पीपल व तुलसी वृक्ष के सम्मुख दीये जलाए जाते
हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर चूंकि जलाशय में
स्नान का विशेष महत्व है तो इस दिन नदियों
किनारे बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर
स्नान करते हैं और श्री हरि का स्मरण करते हैं।
देखिए: कुछ इस तरह आए दुनिया में धर्म
यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र,
अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य
की प्राप्ति होती है। ऐसा भी कहा जाता है
कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर भगवान विष्णु
चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होते हैं तो
फिर वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को उठते हैं और
पूर्णिमा से वे कार्यरत हो जाते हैं। यही वजह है
कि दीपावली को लक्ष्मीजी का पूजन बिना
विष्णुजी के श्रीगणेश के साथ किया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान का विशेष
महत्व है। इस दिन जो भी दान किया जाता है
उसका कई गुना पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन
अन्ना, धन व वस्त्र दान का विशेष महत्व है।
मान्यता तो यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो
भी दान करता है वह मृत्युपरांत स्वर्ग में उसे
पुन: प्राप्त होता है।
सभी सुखों व ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली
कार्तिक पूर्णिमा को की गई पूजा और व्रत के
प्रताप से हम ईश्वर के और करीब पहुंचते हैं।
इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा से
प्रतिष्ठा प्राप्ति होती है, शिवजी के अभिषेक
से स्वास्थ्य और आयु में बढ़ोतरी,दीपदान
से भय से मुक्ति और सूर्य आराधना से
लोकप्रियता और मान सम्मान की प्राप्ति
होती है।
कृष्ण ने किया स्नान-दीपदान
कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तरप्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर
तीर्थ में स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है
कि महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अपने
परिजनों के शव देखकर युधिष्ठिर बहुत शोकाकुल हो उठे। पाण्डवों को शोक से निकालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने
गढ़मुक्तेश्वर में आकर मृत आत्माओं की
शांति के लिए यज्ञ और दीपदाद किया।
तभी से इस जगह पर स्नान और दीपदान
की परंपरा शुरू हुई।
पूर्णिमा पर शिव हुए त्रिपुरारी
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या
गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने
त्रिपुरासुर नाम के असुर का अंत किया था और
भगवान विष्णु ने उन्हें त्रिपुरारी कहा।
इस दिन शिव शंकर के दर्शन करने से
सात जन्म तक व्यक्ति को ज्ञान और धन की
प्राप्ति होती है। इस दिन चंद्रमा उदय के समय
शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और
क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से
शिवजी प्रसन्ना होते हैं। इस दिन गंगा नदी में
स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान का फल
मिलता है।
सिख संप्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन
प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है क्योंकि
इस दिन सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक
देव जी का जन्म हुआ था। नानकदेव सिखों के
पहले गुरु हैं। इस दिन सिख संप्रदाय के अनुयायी
सुबह गुरुद्वारे जाकर गुरुवाणी सुनते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
इस दिन सिख धर्म को मानने वाले सभी लोग
नानकदेव जी के तीन सिद्धांतों के पालन का
महत्व समझते हैं। ये तीन सिद्धांत हैं- पहला- नाम जपना, दूसरा कीर्त करना (कमाई करना) और तीसरा वंड के छकना (बांट कर खाना)।


कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरारी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा 05 नवंबर 2025 को पड़ रही है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है।  इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। पापों का नाश होता हैं। कार्तिक पूर्णिमा हमें देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है।

कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त

कार्तिक पूर्णिमा इस साल 05 नवंबर को है. 

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 04, 2025 - 10:36 pm.

पूर्णिमा तिथि समाप्त - नवम्बर 05, 2025 - 06:48 pm.

गंगा स्नान 05 नवंबर

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य,तर्पण,जप-तप,पूजन,कीर्तन एवं दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु,प्राणियों को ब्रह्मघात और अन्य कृत्या-कृत्य पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं।

दीपदान करने का महत्व  -

कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का भी विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन  देव दीवाली भी मनाई जाती है।  मान्यता है कि सभी देवता गंगा नदी के घाट पर आकर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता को दर्शाते हैं और दिवाली मनाते हैं। इसलिए इस दिन नदी के तट पर दीपदान का बहुत ही महत्व माना जाता है। इस दिन नदी सरोवर आदि जगहों पर दीपदान करने से समस्याएं दूर होती हैं आर्थिक कष्टो से छुटकारा मिलता है। अगर आप किसी नदी या सरोवर पर न जा पाएं तो किसी मंदिर में जाकर दीप प्रज्वलित करने चाहिए।

दान करने का महत्व -

इस दिन स्नान करने के साथ ही दान भी अवश्य करना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए दान का कई गुना ज्यादा पुण्य फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा को दूध, चावल और शक्कर आदि का दान करना चाहिए। थोड़ी मात्रा में इन चीजों के जल में भी प्रवाहित करना चाहिए। इसके अलावा आप जो भी अन्न और वस्त्र दान कर सकते है क्षमतानुसार करना चाहिए।

कर्ज मुक्ति के लिए -

पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा का श्रवण, गीता पाठ ,विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्जमुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है।

भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों,मंदिरों,पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्वलित करने चाहिए,गंगा आदि पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए।

शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए -

पुराणों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर सम्पूर्ण सदगुणों की प्राप्ति एवं शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के मंदिर जाकर दर्शन अवश्य करें।

कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा -

एक कथा के अनुसार त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। धीरे-धीरे उसने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया. त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तपस्या की. उसके तप के तेज से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी उसके सामने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा. त्रिपुरासुर ने वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी, निशाचर कोई भी ना मार सके।

इसी वरदान के मिलते ही त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। तब सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास जाकर त्रिपुरासुर के अंत का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया. इसके बाद सभी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर का वध करने की प्रार्थना की। तब महादेव ने उस राक्षस का वध किया। यही कारण है कि कई जगहों पर इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं।

।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो ।।

                 🙏  धन्यवाद  🙏
     🚩*श्रीगणेशाय नमोनित्यं*🚩
  🚩*☀जय मां सच्चियाय* 🚩
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🚩🌼#🌷🌷  #तुलसीजी के विषय मे महत्त्वपूर्ण बातें!!🌷🌷🌷
    
🚩5 नवंबर 2025 मंगलवार: आज भीष्म पंचक व्रत चल रहा है।

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 — 🌷🌷 ........❤️💐 🌼🪔
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🔴 #तुलसीजी के विषय मे महत्त्वपूर्ण बातें!!
         पुरानी परंपरा है कि घर में तुलसी जरूर होना
चाहिए। शास्त्रों में तुलसी को पूजनीय, पवित्र और देवी का स्वरूप बताया गया है। यदि आपके घर में भी तुलसी हो तो यहां बताई जा रही 10 बातें हमेशा ध्यान रखनी चाहिए। यदि ये बातें ध्यान रखी जाती हैं तो सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा हमारे घर पर बनी रहती है। घर में सकारात्मक और सुखद वातावरण रहता है। पैसों की कमी नहीं आती है और परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। यहां जानिए शास्त्रों के अनुसार बताई गई तुलसी की खास बातें...

1👉 तुलसी के पत्ते चबाना नहीं चाहिए
तुलसी का सेवन करते समय ध्यान रखें कि इन पत्तों को चबाए नहीं, बल्कि निगल लेना चाहिए। इस तरह तुलसी का सेवन करने से कई रोगों में लाभ मिलता है। तुलसी के पत्तों में पारा धातु के तत्व होते हैं। पत्तों को चबाते समय ये तत्व हमारे दांतों पर लग जाते हैं जो कि दांतों के लिए फायदेमंद नहीं है। इसीलिए तुलसी के पत्तों को बिना चबाए ही निगलना चाहिए।

2👉 शिवलिंग पर तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए
शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाना चाहिए। इस संबंध में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार, पुराने समय दैत्यों के राजा शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति के कारण सभी देवता भी शंखचूड़ को हराने में असमर्थ थे। तब भगवान विष्णु ने छल से तुलसी का पतिव्रत भंग कर दिया। इसके बाद शिवजी ने शंखचूड़ का वध कर दिया। जब ये बात तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। विष्णुजी ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में हमेशा रहोगी। इसके बाद से ही अधिकांश पूजन कर्म में तुलसी का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, लेकिन शंखचूड़ की पत्नी होने के कारण तुलसी शिवलिंग पर नहीं चढ़ाई जाती है।

3👉 तुलसी के पत्ते कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए। ये दिन हैं एकादशी, रविवार और सूर्य या चंद्र ग्रहण समय। इन दिनों में और रात के समय तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। बिना वजह तुलसी के पत्ते कभी नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करने पर दोष लगता है। अनावश्यक रूप से तुलसी के पत्ते तोड़ना, तुलसी को नष्ट करने के समान माना गया है।

4👉 रोज करें तुलसी का पूजन हर रोज तुलसी पूजन करना चाहिए। साथ ही, तुलसी के संबंध में यहां बताई गई सभी बातों का भी ध्यान
रखना चाहिए। हर शाम तुलसी के पास दीपक
जलाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो लोग
शाम के समय तुलसी के पास दीपक जलाते हैं, उनके घर में महालक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।

5👉 तुलसी से दूर होते हैं वास्तु दोष घर-आंगन में तुलसी होने से कई प्रकार के वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी इसका शुभ असर होता है।

6👉 तुलसी घर में हो तो नहीं लगती है बुरी नजर मान्यता है कि तुलसी से घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती है। साथ ही, घर के आसपास की किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा पनप नहीं पाती है। सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

7👉 तुलसी से वातावरण होता है पवित्र तुलसी से घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और
हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं से मुक्त रहता है। इसी पवित्रता के कारण घर में लक्ष्मी का वास होता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

8👉 तुलसी का सूखा पौधा नहीं रखना चाहिए घर में यदि घर में लगा हुआ तुलसी का पौधा सूख जाता है तो उसे किसी पवित्र नदी में, तालाब में या कुएं में प्रवाहित कर देना चाहिए। तुलसी का सूखा पौधा घर में रखना अशुभ माना जाता है। एक पौधा सूख जाने के बाद तुरंत ही दूसरा पौधा लगा लेना चाहिए। घर में हमेशा स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाना चाहिए।

9👉 तुलसी है औषधि भी आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बहुत-सी बीमारियों को दूर करने में और उनकी रोकथाम करने में सहायक होते हैं। तुलसी का पौधा घर में रहने से
उसकी महक हवा में मौजूद बीमारी फैलाने वाले कई सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करती है।

10👉 रोज तुलसी की एक पत्ती सेवन करने से मिलते हैं ये फायदे तुलसी की महक से सांस से संबंधित कई रोगों में लाभ मिलता है। साथ ही, तुलसी का एक पत्ता रोज सेवन करने से हम सामान्य बुखार से बचे रहते हैं। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली बीमारियों से बचाव हो जाता है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, लेकिन हमें नियमित रूप से तुलसी का सेवन करते रहना चाहिए।

एक और बात तुलसी कृष्ण को बेहद प्यारी हैं,इसलिये प्रतिदिन कान्हा के चरणों में तुलसीदल यानि तुलसी का पत्ता ज़रूर अर्पण करना चाहिये..

कृष्णसेवा के प्रत्येक भोग में तुलसी दल रखकर अर्पण करना चाहिये

“तुलसी कृष्ण प्रेयसी नमो: नमो:"
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   💥 ।। शुभम् भवतु।।💥

‼️🙏⛳ ⛳🙏‼️🍁 * 
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🔱🇪🇬जय श्री महाकाल सरकार 🔱🇪🇬 मोर मुकुट बंशीवाले  सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱ॐ  🇪🇬🔱

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