🙏♥️:*चैत्रीय नवरात्रि व राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं*।
-♥️ माँ अन्नपूर्णा की कथा एवं अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से हमेशा भण्डार भरे रहेंगे । अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। शिव की अर्धांगनी, कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत् उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बडी रोचक है। भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात् उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलास पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे। इसी कारण वर्तमान समय में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ। स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। 'ब्रह्मवैवर्त्तपुराण' के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। परन्तु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है। श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता है। अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है। ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। तभी तो ऋषि-मुनि इनकी स्तुति करते हुए कहते हैं- शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्।दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥ काशी की पारम्परिक 'नवगौरी यात्रा' में आठवीं भवानी गौरी तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम महागौरी का दर्शन-पूजन अन्नपूर्णा मंदिर में ही होता है। अष्टसिद्धियों की स्वामिनी अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा आश्विन के नवरात्र में अष्टमी के दिन 108 परिक्रमा करने से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा करनी चाहिए। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रखते हुए उनकी उपासना करने से घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास के अन्नपूर्णा व्रत की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। काशी के कुछ प्राचीन पंचांग मार्गशीर्ष की पूर्णिमा में अन्नपूर्णा जयंती का पर्व प्रकाशित करते हैं। अन्नपूर्णा देवी का रंग जवापुष्प के समान है। इनके तीन नेत्र हैं, मस्तक पर अर्द्धचन्द्र सुशोभित है। भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं। बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर ये प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी के बायें हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जडा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछूल है। अन्नपूर्णा माता अन्न दान में सदा तल्लीन रहती हैं। देवीभागवत में राजा बृहद्रथ की कथा से अन्नपूर्णा माता और उनकी पुरी काशी की महिमा उजागर होती है। भगवती अन्नपूर्णा पृथ्वी पर साक्षात कल्पलता हैं, क्योंकि ये अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। स्वयं भगवान शंकर इनकी प्रशंसा में कहते हैं- "मैं अपने पांचों मुख से भी अन्नपूर्णा का पूरा गुण-गान कर सकने में समर्थ नहीं हूँ। यद्यपि बाबा विश्वनाथ काशी में शरीर त्यागने वाले को तारक-मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं, तथापि इसकी याचना माँ अन्नपूर्णा से ही की जाती है। गृहस्थ धन-धान्य की तो योगी ज्ञान-वैराग्य की भिक्षा इनसे मांगते हैं- अन्नपूर्णेसदा पूर्णेशङ्करप्राणवल्लभे। ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थम् भिक्षाम्देहिचपार्वति॥ मंत्र-महोदधि, तन्त्रसार, पुरश्चर्यार्णव आदि ग्रन्थों में अन्नपूर्णा देवी के अनेक मंत्रों का उल्लेख तथा उनकी साधना-विधि का वर्णन मिलता है। मंत्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'शारदातिलक' में अन्नपूर्णा के सत्रह अक्षरों वाले निम्न मंत्र का विधान वर्णित है- "ह्रीं नम: भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहा" मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका सोलह हज़ार बार जप करके, उस संख्या का दशांश (1600 बार) घी से युक्त अन्न के द्वारा होम करना चाहिए। जप से पूर्व यह ध्यान करना होता है- रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्रदाननिरताम्स्तनभारनम्राम्।नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टांभजेद्भगवतीम्भवदु:खहन्त्रीम्॥ अर्थात 'जिनका शरीर रक्त वर्ण का है, जो अनेक रंग के सूतों से बुना वस्त्र धारण करने वाली हैं, जिनके मस्तक पर बालचंद्र विराजमान हैं, जो तीनों लोकों के वासियों को सदैव अन्न प्रदान करने में व्यस्त रहती हैं, यौवन से सम्पन्न, भगवान शंकर को अपने सामने नाचते देख प्रसन्न रहने वाली, संसार के सब दु:खों को दूर करने वाली, भगवती अन्नपूर्णा का मैं स्मरण करता हूँ।' प्रात:काल नित्य 108 बार अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने से घर में कभी अन्न-धन का अभाव नहीं होता। शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने से वे अति प्रसन्न होती हैं। करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं। सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं। जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है, माँ अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं। मां अन्नपूर्णा स्तोत्र .. ॥ श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रम् अपरनाम अन्नपूर्णाष्टकम् ॥ नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी । घोरपापनिकरी प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ १॥ नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी मुक्ताहारविलम्बमान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी । काश्मीरागरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ २॥ योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी । सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ३॥ कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी । मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ४॥ दृश्यादृश्य विभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी । श्रीविश्वेशमनः प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ५॥ उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी वेणीनीलसमानकुन्तलधरी नित्यान्नदानेश्वरी । सर्वानन्दकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ६॥ आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी । कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ७॥ देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी वामे स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्य माहेश्वरी । भक्ताभीष्टकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ८॥ चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी । मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ९॥ क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी । दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ १०॥ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे । ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥ ११॥ माता मे पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः । बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १२॥ इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ अन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री अन्नपूर्णा देवी आरती बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम । जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम । अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम ॥ बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम । प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम । सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम ॥ बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम । चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम ॥ बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम देवि देव! दयनीय दशा में, दया-दया तब नाम । त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल, शरण रूप तब धाम ॥ बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम । श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या, श्री क्लीं कमला काम । कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम ॥ बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम । माता अन्नपूर्णा की जय ॥
🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱
*🎈नक्षत्र - पुष्य 30:23:48 रात्रि तत्पश्चात पुष्य* *🎈योग -सुकर्मा 18:54:0 शाम तक, तत्पश्चात धृति* *🎈करण- बालव 07:18:55 pm तत्पश्चात तैतुल* *🎈राहु काल_हर जगह का अलग है- 05:20 pm से 06:54 pm तक* *🎈सूर्योदय - 06:21:30* *🎈सूर्यास्त - 06:53:40 *🎈चन्द्र राशि - कर्क* *🎈सूर्य राशि - मीन* *⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में* *⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:49 से प्रातः 05:35 तक,* *⛅अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:03 पी एम* *⛅निशिता मुहूर्त - 12:14 ए एम, अप्रैल 07 से 01:00 ए एम, अप्रैल 07 तक* *⛅सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन*
👉*⛅ विशेष- * चैत्रीय नवरात्रि,हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं*। जप,तप, पूजन, ध्यान, व्रत माला ९ दिन विशेष रहेगा। *🛟चोघडिया, दिन🛟* काल 06:23 - 07:56 अशुभ शुभ 07:56 - 09:30 शुभ रोग 09:30 - 11:04 अशुभ उद्वेग 11:04 - 12:38 अशुभ चर 12:38 - 14:12 शुभ लाभ 14:12 - 15:46 शुभ अमृत 15:46 - 17:19 शुभ काल 17:19 - 18:53 अशुभ *🔵चोघडिया, रात🔵 लाभ 18:53 - 20:19 शुभ उद्वेग 20:19 - 21:45 अशुभ शुभ 21:45 - 23:11 शुभ अमृत 23:11 - 24:37* शुभ चर 24:37* - 26:03* शुभ रोग 26:03* - 27:29* अशुभ काल 27:29* - 28:55* अशुभ लाभ 28:55* - 30:22* शुभ
🙏♥️:*चैत्रीय नवरात्रि व राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं*।
-♥️ दुर्गा का नवां स्वरूप:- “माँ सिद्धि दात्री” नाम से भी जाना जाता है।
🎈. 🌹🍀चैत्र शुक्ल नवमी नवरात्र व राम नवमी🌹🍀🌹 🌹🍀🌹 06 अप्रैल 2025 रविवार 🌹🍀🌹
🍀सिद्धिदात्री -- माता दुर्गा की नवम और अंतिम शक्ति 🍀
🍁माता ‘सिद्धिदात्री’ (परमेश्वरी) की प्रादुर्भाव कथा 🍁 🍁🍁 ‘सिद्धिदात्री’ का ध्यान मंत्र स्तुति स्तोत्र🍁🍁 🍁🍁माता सिद्धिदात्री के मंत्र एवं कवचम् 🍁🍁🍁 🍁सिद्धिदात्री माता की पूजा विधि एवं भोग प्रसाद 🍁🍁 🍁🍁।।श्री आद्या महालक्ष्मी चालीसा ॥🍁🍁 🍁 महालक्ष्मी अष्टोत्तरशतनामावली🍁 🍁🍁माँ सिद्धिदात्री की आरती 🍁🍁
सिद्धिदात्री माता की पूजा नवरात्रि के अंतिम दिन नवमी पर की जाती है। नवरात्रि नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री के लिए व्रत भी किया जाता है। यह दिन उन साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो किसी भी प्रकार की सिद्धि अथवा साधना करना चाहते हैं। जैसा कि माँ सिद्धिदात्री का नाम है, वह विभिन्न प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। माता सिद्धिदात्री के पूजन के साथ ही नवरात्रि महोत्सव का समापन हो जाता है।
🌷माता ‘सिद्धिदात्री’ (परमेश्वरी) की प्रादुर्भाव कथा 🌷🌷
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड पूरी तरह से अंधेरे से भरा हुआ एक विशाल शून्य था। दुनिया मे कहीं भी किसी प्रकार का कोई संकेत नहीं था तब उस अंधकार से भरे हुए ब्रह्मांड मे ऊर्जा का एक छोटा सा पुंज प्रकट हुआ। देखते ही देखते उस पुंज का प्रकाश चारों ओर फैलने लगा, फिर उस प्रकाश के पुंज ने आकार लेना शुरू किया और अंत मे वह एक दिव्य नारी के आकार मे विस्तृत होकर रुक गया। वह प्रकाश पुंज देवी महाशक्ति के आलवा कोई और नहीं था।
सर्वोच्च शक्ति ने प्रकट होकर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी) को अपने तेज़ से उत्तपन्न किया और तीनों देवों को इस सृष्टि को सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वाहन के लिए आत्मचिंतन करने को कहा।
देवी के कथनानुसार तीनों देव आत्मचिंतन करते हुए जगतजननी से मार्गदर्शन हेतु कई युगों तक तपस्या मे लीन रहें। अंतत: उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महाशक्ति ‘माँ सिद्धिदात्री’ के रूप मे प्रकट हुईं। देवी ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने ब्रह्माजी को सरस्वती जी, विष्णुजी को लक्ष्मी जी और शिवजी को उमा या गौरी प्रदान की।
‘माँ सिद्धिदात्री’ ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना का भर सौंपा, विष्णु जी को सृष्टि के पालन का कार्य दिया और महादेव को समय आने पर सृष्टि के संहार का भार सौंपा। ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने तीनों देवों को बताया की उनकी शक्तियाँ उनकी पत्नियों मे हैं जो उनके कार्यनिर्वाहन मे उनकी सहायता करेंगी। उन्होने त्रिदेवों को दिव्य-चमत्कारी शक्तियाँ भी प्रदान की जिससे वो अपने कर्तव्यों को पूरा करने मे सक्षम हो सकें। देवी ने उन्हें आठ अलौकिक शक्तियाँ प्रदान की। इस तरह दो भागों नर एवं नारी, देव-दानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे तथा दुनिया की कई और प्रजातियों का जन्म हुआ। आकाश असंख्य तारों, आकाशगंगाओं और नक्षत्रों से जगमगा उठा। पृथ्वी पर महासागरों, नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों और जीवों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार ‘माँ सिद्धिदात्री’ की कृपा से सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य संचालित हुआ।
🌹एक अन्य कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर दानव महिषासुर का उत्पात बहुत बढ़ गया था तब सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण मे जाते हैं, तत्पश्चात सभी देवों के सामूहिक तेज़ से माता सिद्धिदात्री देवी अष्टादशभुजा महालक्ष्मी के रूप में प्रकट होती है।और सिंहवाहिनी ‘दुर्गा’ रूप मे महिषासुर का वध करके समस्त सृष्टि की रक्षा करती हैं।
🌹एक अन्य कथा के अनुसार यही सिद्धिदात्री परमशक्ति जिन्हें आदि नारायणी या त्रैलोक्यमोहनी शक्ति भी कहते हैं। यही सिद्धिदात्रीदेवी, त्रिदेवियों के अंश से वैष्णो देवी के रूप में पुन: धर्म और सत्य की रक्षा के लिए प्रकट हुई। और त्रिकूट पर्वत पर एक गुफा में तीन पिण्डियो के रूप में स्थापित हुईं।
🌹एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के आरंभ में, भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। साथ ही मां सिद्धिदात्री की कृपा ने भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाए। और शक्ति के सहयोग से उन्होंने सृष्टि लीला की।
मां दुर्गा का यह अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है। यह त्रैलोक्य मोहिनी नारायणी शक्ति भी कहलाती है यह बहुत रूपों और अवतारों में प्रकट हुई भगवान शिव विष्णु और ब्रहमा की समस्त शक्तियों की मूल आधार है। इन्हीं देवी की महिमा मार्कण्डेय पुराण की दूर्गा सप्तशती के प्राधानिक रहस्य में आद्या महालक्ष्मी परमेश्वरी के रूप में वर्णन है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार मां सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व सिद्धियां हैं। माता रानी अपने भक्तों को सभी आठों सिद्धियों से पूर्ण करती हैं। मां सिद्धिदात्री को जामुनी या बैंगनी रंग अतिप्रिय है। ऐसे में भक्त को नवमी के दिन इसी रंग के वस्त्र धारण कर मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से माता की हमेशा कृपा बनी रहती हैं।
मां सिद्धिदात्री के कई नाम हैं। इनमें अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि शामिल हैं। माता सिद्धिदात्री की कृपा से अठारह सिद्धिऔर नवनिधी प्राप्त होती है।
🌹मां सिद्धिदात्री का स्वरुप🌹 सिद्धिदात्री दुर्गा आद्या महालक्ष्मी स्वरूप है सिद्धिदात्री मां कमल के फूल पर विराजमान हैं जबकि उनकी सवारी सिंह है। वह लाल कपड़े पहने हुई हैं और उसके चार हाथ हैं। उनके निचले बाएं हाथ में कमल का फूल है जबकि ऊपरी बाएं हाथ में एक शंख विराजमान है। उनके ऊपरी दाहिने हाथ में चक्र है जबकि निचले दाहिने हाथ में एक गदा है। सिद्धिदात्री का अर्थ है- सिद्धि का अर्थ पूर्णता है जबकि दात्री का अर्थ है देने वाला। । कमल पुषप पर आसीन मां की 4 भुजाएं हैं। मां का वाहन सिंह है। सिद्धिदात्री मां की आराधना-उपासना कर भक्तों की लौकिक, पारलौकिक सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करती हैं जिससे कुछ भी ऐसा शेष नहीं बचता है जिसे व्यक्ति पूरा करना चाहे। व्यक्ति अपनी सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं से ऊपर उठता है और मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता है और फिर विषय-भोग-शून्य हो जाता है। इन सभी को पाने के बाद व्यक्ति को किसी भी चीज को पाने की इच्छा नहीं रह जाती है।ऐसा माना जाता है कि माता अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं, इसलिए उन्हें माता सिद्धिदात्री के रूप में पूजा जाता है।
🌷🌷माँ ‘सिद्धिदात्री’ का ध्यान मंत्र स्तुति स्तोत्र 🌷🌷
नवें दिन नवरात्र का अंतिम दिन होता है माता को विदा किया जाता है अतः आज के दिन प्रातः काल मे उठकर स्नान-ध्यान करके माता का आसान (चौकी) लगाना चाहिए। इसपर माता सिद्धिदात्री की मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए। माता को पुष्प अर्पित कर के उन्हे अनार (फल), नैवैद्य, अर्पित करें। माता की स्तुति, ध्यान मंत्र एवं दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना चाहिए। उसके बाद माता को मिष्ठान, पंचामृत एवं घर मे बने पकवान का भोग लगाएँ। माँ की आरती करें। इस दिन पूजा के अंत मे हवन करने का विधान है। इसी दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। माता को बैंगनी (जामुनी) रंग अत्यंत प्रिय है अतः भक्त को नवमी के दिन इसी रंग के वस्त्र पहनकर माँ सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए। मां को मिष्ठान और फलों का भोग लगाएं। पीले फलों का भोग माता के लिए शुभ माना जाता है। मां सिद्धिदात्री का अधिक से अधिक ध्यान करें। इस दिन मां की आरती अवश्य करें।
🌹सिद्धिदात्री माता का भोग प्रसाद:+-+🌹
सिद्धिदात्री को लगाएं इन चीजों का भोग यदि आप माता के इस स्वरुप को भोग में हलवा पूड़ी का भोग लगाएंगे तो सुख शांति बनी रहती है। इस दिन माता को काले चने का भोग भी लगाना चाहिए और इसी का भोग कन्याओं को भी खिलाना शुभ माना जाता है।
इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है नवरात्रि के नौवें दिन विधि विधान के साथ कन्या पूजन भी किया जाता है। आमतौर पर दस वर्ष से कम उम्र की इस दिन पूजा होती है। कन्याओं को घर में आमंत्रित किया जाता हाउ और उन्हें भोजन आदि कराया जाता है। इसके साथ उन्हें उपहार भी दिया जाता है। कन्या रूप में देवी जी के नौवें रूप की पूजा का प्रतीक माना जाता है। पूजन के बाद मां सिद्धिदात्री की आरती की जाती है और पूजन के साथ ही नवरात्रि का समापन हो जाता है।
🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
-♥️ दुर्गा का आठवां स्वरूप:- “माँ महागौरी” नाम से भी जाना जाता है।
🎈. नवरात्रि का पर्व 30 मार्च से शुरू होकर 6 अप्रैल को राम नवमी तिथि के साथ हो रहा है। इन नौ दिनों में लोग देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। इन पावन नौ दिनों में व्रत रखने और माता की आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। इस कड़ी में चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि का व्रत किस दिन रखा जाएगा। कई लोगों के मन में दुविधा है कि 5 या 6 अप्रैल किस दिन अष्टमी का व्रत रखा जाएगा। इसी कड़ी में आइए जानते हैं अष्टमी तिथि कब से कब तक रहेगी और इस दिन कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है।
चैत्र नवरात्रि 2025 की महाअष्टमी पंचांग के अनुसार इस बार चैत्र नवरात्रि में द्वितीय और तृतीया तिथि एक ही दिन रही, जिसके चलते नवरात्रि नौ नहीं बल्कि आठ दिन की हो रही हैं। 4 अप्रैल को सप्तमी तिथि रहेगी और 5 अप्रैल को अष्टमी। इसके बाद 6 अप्रैल को नवमी तिथि होगी, जिस दिन राम नवमी मनाई जाएगी।
अष्टमी तिथि का प्रारंभ 4 अप्रैल की रात 8:12:04 मिनट से शुरू होकर 5 अप्रैल की शाम 7:25:52 तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि 5 अप्रैल को ही मनाई जाएगी। यानी जिन लोगों को अष्टमी का व्रत रखना है वह 5 अप्रैल को ही व्रत रखेंगे।
अष्टमी कन्या पूजन मुहूर्त अष्टमी को व्रत का समापन करने वाले भक्त इसी दिन कन्या पूजन करते हैं। अष्टमी तिथि को कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:50 बजे से 05:36 बजे तक रहेगा।
प्रातः सन्ध्या सुबह 05:13 बजे से 06:21 बजे तक रहेगी और
शुभ बेला- शुभ 07:56 - 09:30 लाभ 14:12 - 15:46 शुभ बेला अमृत 15:46 - 17:19 शुभ बेला
अभिजित 12:13 - 13:03 शुभ बेला
अभिजित मुहूर्त सुबह 12:13 बजे से दोपहर 01:03 बजे तक रहेगा।
अष्टमी कन्या पूजन के लिए यह सभी मुहूर्त शुभ रहेंगे।
दुर्गा स्तुति मंत्र "या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता। या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थिता।। या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"
नवरात्रि की अष्टमी तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इसदिन लोग हवन करने के साथ ही कन्या पूजन भी करते हैं। मां महागौरी के स्वरूप की बात करें तो मां महागौरी का रंग अत्यंत गोरा है। इनकी चार भुजाएं हैं। मां बैल की सवारी करती हैं। मां का स्वभाव शांत है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मां महागौरी की पूजा करने से पापों से मु्क्ति मिलती है व संकटों से रक्षा होती है। जानें मां महागौरी की पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व, मंत्र व भोग..
सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें। इसके बाद मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। मान्यता है कि मां महागौरी को सफेद रंग अतिप्रिय है। मां रोली, कुमकुम आदि लगाएं। मां को पंच मेवा, फल व मिष्ठान के साथ काले चने का भोग लगाएं। मां की आरती करें। अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना शुभ माना गया है।
मां महागौरी प्रिय पुष्प- मां का प्रिय पुष्प रात की रानी है। मां का राहु ग्रह पर आधिपत्य माना गया है। यही कारण है कि राहु दोष से मुक्ति के लिए मां महागौरी की पूजा की जाती है।
मां महागौरी प्रिय भोग- मां महागौरी को नारियल से बनी चीजें, काले चने का भोग, खीर-पूड़ी, हलवा, लड्डू और फल आदि प्रिय हैं।
शुभ रंग- नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना गया है।
मां महागौरी ध्यान मंत्र- वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है।
सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है। 🌼💎👑🎈🩸♥️📌💥🪴
*🕉️चैत्र नवरात्रि में माँ की उपासना के लिये दुर्गा सप्तशती अनुष्ठान विधि दुर्गा सप्तशती के अध्याय पाठन से संकल्प अनुसार कामनापूर्ति 1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए। 2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए। 3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये। 4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये। 5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए। 6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये। 7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये। 8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये। 9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये। 10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये। 11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये। 12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये। 13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने और सिद्ध करने की विभिन्न विधियाँ सामान्य विधि - नवार्ण मंत्र जप और सप्तशती न्यास के बाद तेरह अध्यायों का क्रमशः पाठ, प्राचीन काल में कीलक, कवच और अर्गला का पाठ भी सप्तशती के मूल मंत्रों के साथ ही किया जाता रहा है। आज इसमें अथर्वशीर्ष, कुंजिका मंत्र, वेदोक्त रात्रि देवी सूक्त आदि का पाठ भी समाहित है जिससे साधक एक घंटे में देवी पाठ करते हैं। वाकार विधि - यह विधि अत्यंत सरल मानी गयी है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। आगे क्रमश..... 🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
-♥️ दुर्गा का छठा स्वरूप:-श्री मां “माँ कात्यायनी” नाम से भी जाना जाता है।
🎈. नवरात्रि का छठा दिन, माता का छठा स्वरूप:-
✨ “माँ कात्यायनी”✨
🎈 कात्यायनी नवदुर्गा या हिन्दू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठा रूप है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि ये परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थी, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दिये गये सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। 🎈 वे शक्ति की आदि रूपा है, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतांजलि के महाभाष्य में किया गया है, जिसे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखी गयी थी। 🎈 उनका वर्णन देवी-भागवत पुराण, और मार्कंण्डेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंण्डेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है जिसे ४०० से ५०० ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। 🎈 बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रन्थों, विशेष रूप से कालिका-पुराण (१०वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है, जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है। 🎈 परम्परागत रूप से देवी दुर्गा की तरह वे लाल रंग से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि उत्सव के षष्ठी में उनकी पूजा की जाती है। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। 🎈 इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। 🎈 माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है–कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। 🎈 इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। 🎈 कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। 🎈 महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। 🎈 ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। 🎈 माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 🎈 माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है।
🎈बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। 🎈 नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
🎉 'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥🎉
अर्थ : हे माँ ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है। विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-
💥 माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, सन्ताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मान्तर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए। ~~~०~~~
चैत्र शुक्ल पक्ष, 30 मार्च 2025 रविवार से माता रानी के चैत्र नवरात्र प्रारंभ हो गये हैं और आप लोगों में से बहुत से भक्त माता के नवरात्र में अखंड ज्योत रखते होंगे।
आइए जानते हैं अखंड ज्योत के कुछ साधारण नियम-:
📌अखंड ज्योत कलश स्थापना के साथ-साथ ही प्रज्वलित कर दें।
🌻अखंड ज्योत के आसपास 9 दिन तक झाड़ू ना निकाले केवल गिले व सूखे कपड़े से सफाई करें।
⛳इस बात का खास ख्याल रखें कि अखंड ज्योति जमीन की बजाय किसी लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़े बिछाकर रखकर जलाएं।
🪴 अखंड ज्योत के दीपक के नीचे चावल जरूर रखे, क्योंकि प्रज्वलित दीपक कभी जमीन पर नहीं रखा जाता।
🕉️अखंड ज्योति को गंदे हाथों से भूलकर भी ना छूएं।
🌹अखंड ज्योति को कभी अकेले ना छोड़े एवं पीठ दिखाकर भी नहीं जायें।
❤️🔥अखंड ज्योति जलाने के लिए भारतीय देसी गाय का शुद्ध देसी घी का प्रयोग करें, क्योंकि गाय का घी सबसे उत्तम और मंगलकारी है।
🩸आप चाहें तो तिल का तेल या फिर सरसों का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
🌹अगर आप घर में अखंड ज्योति की देखभाल नहीं कर सकते हैं तो आप किसी मंदिर में देसी घी अखंड ज्योति के लिए दान करें।
🐦अखंड ज्योति के लिए रूई की जगह कलावे का इस्तेमाल करें, कलावे की लंबाई इतनी हो कि ज्योति नौ दिनों तक बिना बुझे जलती रहे।
🩸अखंड ज्योति जलाते समय मां दुर्गा, शिव और गणेशजी का ध्यान करें। इस मंत्र का भी जप भी कर सकते हैं-: 🚩ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।"🚩
🪔अखंड ज्योति को मां दुर्गा के दाईं ओर रखा जाना चाहिए., अगर दीपक में सरसों का तेल है तो देवी के बाईं ओर रखें।
🔥ख्याल रखें कि नवरात्रि समाप्त होने पर इसे स्वंय ही समाप्त होने दें कभी भी बुझाने का प्रयास ना करें।
♥️अखंड ज्योत प्रज्वलित करने वाला जातक 9 दिन तक व्रत उपवास करें, सात्विक भोजन करें। स्वच्छता व पवित्रता का ध्यान रखें एवं कम से कम बोले मौन व्रत का पालन करें।। 🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
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*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 02 अप्रैल 2025* *🎈दिन- बुधवार* *🎈 संवत्सर -विश्वावसु* *🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी* *🎈विक्रम संवत् - 2082* *🎈अयन - उत्तरायण* *🎈ऋतु - बसन्त* *🎉मास - चैत्र* *🎈पक्ष- शुक्ल* *🎈तिथि - पंचमी रात्रि 11:49:10am तत्पश्चात षष्ठी * *🎈नक्षत्र - कृत्तिका 08:48:47 शाम तत्पश्चात रोहिणी* *🎈योग -आयुष्मान 26:48:43 रात्रि तक, तत्पश्चात सौभाग्य* *🎈करण- बव 13:06:37 अपराहन तत्पश्चात कौलव* *🎈राहु काल_हर जगह का अलग है- सुबह 12:39 से दोपहर 02:12 pm तक* *🎈सूर्योदय - 06:25:50* *🎈सूर्यास्त - 06:51:39 *🎈चन्द्र राशि - वृष* *🎈सूर्य राशि - मीन* *⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में* *⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:52 से प्रातः 05:38 तक,* *⛅अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं* *⛅निशिता मुहूर्त - 12:15 ए एम, अप्रैल 03 से 01:01 ए एम, अप्रैल 03तक* *⛅ विशेष- 🎈 पंचम दुर्गा: श्री स्कंदमाता की आराधना की जाती है। *🎈व्रत पर्व विवरण - 👉*⛅ विशेष- * चैत्रीय नवरात्रि,हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं*। जप,तप, पूजन, ध्यान, व्रत माला ९ दिन विशेष रहेगा। *🛟चोघडिया, दिन🛟* रोग 06:27 - 07:59 अशुभ उद्वेग 07:59 - 09:33 अशुभ चर 09:33 - 11:06 शुभ लाभ 11:06 - 12:39 शुभ अमृत 12:39 - 14:12 शुभ काल 14:12 - 15:45 अशुभ शुभ 15:45 - 17:18 शुभ रोग 17:18 - 18:51 अशुभ *🔵चोघडिया, रात🔵 काल 18:51 - 20:18 अशुभ लाभ 20:18 - 21:45 शुभ उद्वेग 21:45 - 23:12 अशुभ शुभ 23:12 - 24:38* शुभ अमृत 24:38* - 26:05* शुभ चर 26:05* - 27:32* शुभ रोग 27:32* - 28:59* अशुभ काल 28:59* - 30:26* अशुभ
🙏♥️:*चैत्रीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं*। नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति की सरल पाठ विधि क्या है? -♥️पंचम दुर्गा: श्री स्कंदमाता माँ दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है। इन्हें स्कन्द कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाना जाता है। यह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार शौर शक्तिधर बताकर इनका वर्णन किया गया है। इनका वाहन मयूर है अतः इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं भगवान स्कन्द की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। इनकी पूजा नवरात्रि में पांचवें दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में होता है। इनके विग्रह में स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं। स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकड़ा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। मंत्र: सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया | शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। ध्यान:
(चण्ड और मुण्ड का वध) महर्षि मेधा ने कहा-दैत्यराज की आज्ञा पाकर चण्ड और मुण्ड चतुरंगिनी सेना को साथ लेकर हथियार उठाये हुए देवी से लड़ने के लिए चल दिये। हिमालय पर्वत पर पहुँच कर उन्होंने मुस्कुराती हुई देवी जो सिंह पर बैठी हुई थी देखा, जब असुर उनको पकड़ने के लिए तलवारें लेकर उनकी ओर बढ़े तब अम्बिका को उन पर बड़ा क्रोध आया और मारे क्रोध के उनका मुख काला पड़ गया, उनकी भृकुटियाँ चढ़ गई और उनके ललाट में से अत्यंत भयंकर तथा अत्यंत विस्तृत मुख वाली, लाल आँखों वाली काली प्रकट हुई जो कि अपने हाथों में तलवार और पाश लिये हुए थी, वह विचित्र खड्ग धारण किये हुए थी तथा चीते के चर्म की साड़ी एवं नरमुण्डों की माला पहन रखी थी। उसका माँस सूखा हुआ था और शरीर केवल हड्डियों का ढाँचा था और जो भयंकर शब्द से दिशाओं को पूर्ण कर रही थी, वह असुर सेना पर टूट पड़ी और दैत्यों का भक्षण करने लगी।
वह पार्श्व रक्षकों, अंकुशधारी महावतों, हाथियों पर सवार योद्धाओं और घण्टा सहित हाथियों को एक हाथ से पकड़-2 कर अपने मुँह में डाल रही थी और इसी प्रकार वह घोड़ों, रथों, सारथियों व रथों में बैठे हुए सैनिकों को मुँह में डालकर भयानक रूप से चबा रही थी, किसी के केश पकड़कर, किसी को पैरों से दबाकर और किसी दैत्य को छाती से मसलकर मार रही थी, वह दैत्य के छोड़े हुए बड़े-2 अस्त्र-शस्त्रों को मुँह में पकड़कर और क्रोध में भर उनको दाँतों में पीस रही थी, उसने कई बड़े-2 असुर भक्षण कर डाले, कितनों को रौंद डाला और कितनी उसकी मार के मारे भाग गये, कितनों को उसने तलवार से मार डाला, कितनों को अपने दाँतों से समाप्त कर दिया और इस प्रकार से देवी ने क्षण भर में सम्पूर्ण दैत्य सेना को नष्ट कर दिया।
यह देख महा पराक्रमी चण्ड काली देवी की ओर पलका और मुण्ड ने भी देवी पर अपने भयानक बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी और अपने हजारों चक्र उस पर छोड़े, उस समय वह चमकते हुए बाण व चक्र देवी के मुख में प्रविष्ट हुए इस प्रकार दिख रहे थे जैसे मानो बहुत से सूर्य मेघों की घटा में प्रविष्ट हो रहे हों, इसके पश्चात भयंकर शब्द के साथ काली ने अत्यन्त जोश में भरकर विकट अट्टहास किया। उसका भयंकर मुख देखा नहीं जाता था, उसके मुख से श्वेत दाँतों की पंक्ति चमक रही थी, फिर उसने तलवार हाथ में लेकर “हूँ”शब्द कहकर चण्ड के ऊपर आक्रमण किया और उसके केश पकड़कर उसका सिर काटकर अलग कर दिया, चण्ड को मरा हुआ देखकर मुण्ड देवी की ओर लपखा परन्तु देवी ने क्रोध में भरे उसे भी अपनी तलवार से यमलोक पहुँचा दिया।
चण्ड और मुण्ड को मरा हुआ देखकर उसकी बाकी बची हुई सेना वहाँ से भाग गई। इसके पश्चात काली चण्ड और मुण्ड के कटे हुए सिरों को लेकर चण्डिका के पास गई और प्रचण्ड अट्टहास के साथ कहने लगी-हे देवी! चण्ड और मुण्ड दो महा दैत्यों को मारकर तुम्हें भेंट कर दिया है, अब शुम्भ और निशुम्भ का तुमको स्वयं वध करना है।
महर्षि मेधा ने कहा-वहाँ लाये हुए चण्ड और मुण्ड के सिरों को देखकर कल्याणकायी चण्डी ने काली से मधुर वाणी में कहा-हे देवी! तुम चूँकि चण्ड और मुण्ड को मेरे पास लेकर आई हो, अत: संसार में चामुण्डा के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी।नवरात्री के पंचम दिवस आदि शक्ति माँ दुर्गा के स्कन्द स्वरूप की उपासना विधि एवं समृद्धि पाने के उपाय 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️
स्कंद माँ का स्वरूप 〰️〰️🔸〰️🔸〰️〰️ आदिशक्ति जगत जननी माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कन्द कुमार (कार्तिकेय)की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है। सिह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित होता है। स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है।
माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है । यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है।
श्री स्कन्दमाता की पूजा विधि 〰️〰️🔸〰️🔸〰️🔸〰️〰️ कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है। इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए ।
मन्त्र 〰️🔸〰️ सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
तदोपरांत पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए। नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को फलदायक कहा गया है। जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है।
श्री स्कन्दमाता शप्तशती मंत्र 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया । शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।। या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
श्री स्कन्दमाता कवच 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा। हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥ श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा। सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥ वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता। उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥ इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी। सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए । शास्त्रों में कहा गया है कि इस चक्र में अवस्थित साधक के मन में समस्त ब
🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞
🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
🎈दिनांक - 01 अप्रैल 2025* *🎈दिन- मंगलवार* *🎈 संवत्सर -विश्वावसु* *🎈संवत्सर- (उत्तर) सिद्धार्थी* *🎈विक्रम संवत् - 2082* *🎈अयन - उत्तरायण* *🎈ऋतु - बसन्त* *🎉मास - चैत्र* *🎈पक्ष- शुक्ल* *🎈तिथि - चतुर्थी 02:31:52am तत्पश्चात पंचमी * *🎈नक्षत्र - भरणी 11:05:47 शाम तत्पश्चात कृत्तिका* *🎈योग -विश्कुम्भ 09:46:54 रात्रि तक, तत्पश्चात आयुष्मान* *🎈करण- वणिज 16:03:56 अपराहन तत्पश्चात बव* *🎈राहु काल_हर जगह का अलग है- सुबह 08:01 से दोपहर 09:34 pm तक* *🎈सूर्योदय - 06:26:55* *🎈सूर्यास्त - 06:51:08 *🎈 चन्द्र राशि- मेष * *🎈चन्द्र राशि - वृषभ from 16:29:11* *🎈सूर्य राशि - मीन* *⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में* *⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:50 से प्रातः 05:13 तक,* *⛅अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 12:59 पी एम* *⛅निशिता मुहूर्त - 12:10 ए एम, मई 02 से 12:54 ए एम, मई 02तक* *⛅ विशेष- 🎈 चौथे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। *🎈व्रत पर्व विवरण - 👉*⛅ विशेष- * चैत्रीय नवरात्रि,हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं*। जप,तप, पूजन, ध्यान, व्रत माला ९ दिन विशेष रहेगा। *🛟चोघडिया, दिन🛟* रोग 06:27 - 07:59 अशुभ उद्वेग 07:59 - 09:33 अशुभ चर 09:33 - 11:06 शुभ लाभ 11:06 - 12:39 शुभ अमृत 12:39 - 14:12 शुभ काल 14:12 - 15:45 अशुभ शुभ 15:45 - 17:18 शुभ रोग 17:18 - 18:51 अशुभ *🔵चोघडिया, रात🔵 काल 18:51 - 20:18 अशुभ लाभ 20:18 - 21:45 शुभ उद्वेग 21:45 - 23:12 अशुभ शुभ 23:12 - 24:38* शुभ अमृत 24:38* - 26:05* शुभ चर 26:05* - 27:32* शुभ रोग 27:32* - 28:59* अशुभ काल 28:59* - 30:26* अशुभ
🙏♥️:*चैत्रीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं*। नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति की सरल पाठ विधि क्या है? -♥️नवरात्र का महत्व को समझे;-
🌹#चैत्र_नवरात्रि_व्रत_के_लाभ --- हें प्रिये !! #हिन्दू_संस्कृति के अनुसार नववर्ष का शुभारम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है।
इस दिन से #वसंतकालीन_नवरात्र की शुरूआत होती है।
विद्वानों
के मतानुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की समाप्ति के साथ भूलोक के परिवेश
में एक विशेष परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगता हैं जिसके अनेक स्तर और स्वरुप
होते हैं।
इस दौरान ऋतुओं के परिवर्तन के साथ नवरात्रों का त्यौहार
मनुष्य के जीवन में बाह्य और आतंरिक परिवर्तन में एक विशेष संतुलन स्थापित
करने में सहायक होता हैं।
जिस तरह बाह्य जगत में परिवर्तन होता है उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में भी परिवर्तन होता है।
इस
लिए नवरात्र उत्सव को आयोजित करने का उद्देश्य होता हैं की मनुष्य के भीतर
में उपयुक्त परिवर्तन कर उसे बाह्य परिवर्तन के अनुरूप बनाकर उसे स्वयं के
और प्रकृति के बीच में संतुलन बनाए रखना हैं।
नवरात्रों के दौरान किए जाने वाली पूजा-अर्चना, व्रत इत्यादि से पर्यावरण की शुद्धि होती हैं।
उसी के साथ-साथ मनुष्य के शरीर और भावना की भी शुद्धि हो जाती हैं।
क्योंकि व्रत-उपवास शरीर को शुद्ध करने का पारंपरिक तरीका हैं जो प्राकृतिक-चिकित्सा का भी एक महत्वपूर्ण तत्व है।
यही कारण हैं की विश्व के प्राय: सभी प्रमुख धर्मों में व्रत का महत्व हैं।
इसी लिए हिन्दू संस्कृति में युगों-युगों से नवरात्रों के दौरान व्रत करने का विधान हैं।
क्योंकि व्रत के माध्यम से प्रथम मनुष्य का शरीर शुद्ध होता हैं, शरीर शुद्ध हो तो मन एवं भावनाएं शुद्ध होती हैं।
शरीर की शुद्धी के बिना मन व भाव की शुद्धि संभव नहीं हैं।
चैत्र नवरात्रों के दौरान सभी प्रकार के व्रत-उपवास शरीर और मन की शुद्धि में सहायक होते हैं।
नवरात्रों में किये गए व्रत-उपवास का सीधा असर हमारे अच्छे स्वास्थ्य और रोगमुक्ति के लिए भी सहायक होता हैं।
बड़ी धूम-धाम से किया गया नवरात्रों का आयोजन हमें सुखानुभूति एवं आनंदानुभूति प्रदान करता हैं।
मनुष्य के लिए आनंद की अवस्था सबसे अच्छी अवस्था हैं।
जब
व्यक्ति आनंद की अवस्था में होता हैं तो उसके शरीर में तनाव उत्पन्न करने
वाले शूक्ष्म कोष समाप्त हो जाते हैं और जो सूक्ष्म कोष उत्सर्जित होते हैं
वे हमारे शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होते हैं।
जो हमें नई व्याधियों से बचाने के साथ ही रोग होने की दशा में शीघ्र रोगमुक्ति प्रदान करने में भी सहायक होते हैं।
नवरात्र
में #दुर्गासप्तशती को पढने या सुनाने से देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं
ऐसा शास्त्रोक्त वचन हैं सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृति में करने
पर ही पूर्ण प्रभावी होता हैं।
व्यक्ति को #श्रीदुर्गासप्तशती को भगवती दुर्गा का ही स्वरुप समझना चाहिए।
पाठ करने से पूर्व #श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करें-
मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध इत्यादि शत्रुओं का नाश करो।
विद्वानों
के अनुसार सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में जो लोग असमर्थ हो वह नवरात्र
के सात रात्रि, पांच रात्रि, दो रात्रि और एक रात्रि का व्रत भी करके लाभ
प्राप्त कर सकते हैं।
नवरात्र में नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप शांत होता हैं।
🕉️🕉️🕉️🕉️ *☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ *♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।* *अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।* *हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।* *राशि
रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं
अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से
परामर्श अवश्य लेवें...* *👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष* *👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय* *👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*। *👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण* *👉*राजवशीकरण* *👉*शत्रुपराजय* *👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति* *👉 *भूतप्रेतबाधा नाश* *👉 *सर्वसिद्धि* *👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।* *♥️रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* *।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞