*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 दिन - शनिवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - वर्षा*
*🎈 मास - श्रावण*
*🎈 पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - पूर्णिमा 13:24:00 रात्रि तक तत्पश्चात् प्रतिपदा*
*🎈नक्षत्र - श्रवण 14:22:38 रात्रि तत्पश्चात् धनिष्ठा *
*🎈योग - सौभाग्य 26:14:02 तक तत्पश्चात् शोभन*
*🎈 करण - बव 13:24:01 रात्रि तत्पश्चात् कौलव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- दोपहर 09:22 से सांय 11:01 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - मकर till 26:10:06*
*🎈चन्द्र राशि - कुम्भ from 26:10:06*
*🎈 सूर्य राशि - कर्क*
*🎈सूर्योदय - 06:04:24am*
*🎈सूर्यास्त - 07:16:20pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:37 से प्रातः 05:20 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:07 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:19 ए एम, अगस्त 10 से 01:02 ए एम, अगस्त 10 तक
*🎈सर्वार्थ सिद्धि योग 06:03 ए एम से 02:23 पी एम*
*🎈व्रत पर्व विवरण - हयग्रीव जयंती, वरलक्ष्मी व्रत, सर्वार्थ सिद्धि योग।
*🎈विशेष - चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
काल-06:04 - 07:43अशुभ*
शुभ-07:43-09:22 शुभ*
रोग-09:22-11:01अशुभ*
उद्वेग-11:01 -12:40अशुभ*
चर-12:40-14:19 शुभ*
लाभ-14:19 - 15:58 शुभ*
अमृत-15:58-17:37शुभ*
काल- 17:37-19:16 अशुभ*
*🛟चोघडिया, रात्रि🛟*
लाभ-19:16 - 20:37शुभ*
उद्वेग-20:37- 21:58अशुभ*
शुभ-21:58 - 23:20शुभ*
अमृत-23:20- 24:41*शुभ*
चर-24:41* --26:02*शुभ*
रोग-26:02* --27:23*अशुभ*
रोग-26:02* -27:23*अशुभ*
काल-27:23* -28:44*अशुभ*
लाभ-28:44* -30:05*शुभ*
♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
♦️रक्षा बन्धन शनिवार 09,अगस्त 2025
रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय -
सुबह 05:21 से 02:23 दोपहर तक
सर्वार्थ सिद्धि योग 06:03 ए एम से 02:23 पी एम तक।
सुबह 7:43 to 9:22
लाभ अमृत 02:19 to5:37
अभिजीत मुहूर्त - 12:14 पी एम से 01:07 पी एम*
रक्षा बन्धन के दिन भद्रा सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ -08, अगस्त , 2025 को 14:12 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त -09 अगस्त 2025 को 13:24 बजे
1 रक्षाबन्धन के दिन सर्वप्रथम गणेश जी को राखी बाॅधे तत्पश्चात अन्य लोगों को बाॅधें।
2 राखी बॅधवाने वाले व्यक्ति का मुॅख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
3 रक्षा सूत्र बॅधवाते वक्त सिर पर रूमाल या कोई कपड़ा अवश्य रखें।
4 महिलावर्ग रखी बाॅधते समय लाल, गुलाबी, पीले या केसरिया रंग कपड़े पहने तो विशेष लाभ होगा।
5 सर्वप्रथम कलाई में कलावा बाॅधे उसके बाद अन्य कोई फैशनेबल राखी बाॅधे।
6 बहने जों रक्षा सूत्र बाॅधें उसे एक वर्ष तक कलाई में बाॅधे रखे और दूसरे वर्ष पुराना वाला रक्षा सूत्र उतार कर किसी नदीं में प्रवाहित करके पुनः नया रक्षा सूत्र बहनों से बॅधवायें। ऐसा करने पर आपकी सुख, समृद्धि व स्वास्थ्य की रक्षा पूरे वर्ष होती रहेगी।
7 येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामानुवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
बहने राखी बाॅधते समय उपरोक्त मन्त्र का उच्चारण करें।
8 राखी बाॅधवाते समय दाहिने हाथ की मुठ्ठी में फॅूल अवश्य रखें।
9 रक्षा सूत्र शत-प्रतिशत सूती धागे का ही होना चाहिए।
10 राखी को 7 या 5 बार घुमाकर ही हाथ में बाॅधना चाहिए।
रक्षा सूत्र क्यों बाॅधा जाता है ?
1 कलावा या मोली बाॅधने की प्रथा तब से चली आ रही है, जब से दानवीर राजा बलि की वीरता की रक्षा के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाॅधा था। शास्त्रों में इस श्लोक का उल्लेख मिलता भी मिलता है।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामानुवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
2 रक्षासूत्र बाॅधने से त्रिदेव ब्रहमा, विष्णु, महेश व तीनों देवियाॅ लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा की कृपा बनी रहती है।
3 शरीर की संरचना का प्रमुख नियन्त्रण हाथ की कलाई में होता है। इसलिए कलाई में रक्षा सूत्र बाॅधने से आत्म-विश्वास आता है एंव तीनों दोष वात, पित्त व कफ में सन्तुलन बना रहता है, जिससे स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
4 कलावा या मोली बाॅधने से ब्लडप्रेशर व तनाव का रोग कम होता है।
यदि बहन भाई से रूष्ठ है तो क्या करें-
जन्मकुण्डली में बहन का कारक ग्रह बुध होता है। यदि आपका बुध अशुभ है, पापी है या नीच का है तो बहन से आपके रिश्तें मधुर नहीं रहेंगे। किसी भी प्रकार की नोंक-झोक चलती रहेगी।
1 बहन से रिश्तें मधुर हो जायें इसके लिए आपको रक्षा बन्धन के दिन अपनी बहन को हरें रंग साड़ी, हरे रंग की चूडियाॅ उपहार में दें।
2 नाक व कान में पहनें वाली कोई वस्तु भेंट करने से भी रिश्तें अच्छें हो जाते है।
3 रक्षा बन्धन के दिन बहन को सौंफ युक्त मीठा पान खिलायें।
4 विष्णु सह्रसनाम का पाठ करें।
5 अपनी बहन को हरे रंग की ब्रेसलेट या कोई अन्य उपहार जो हरें रंग का हो उसे दें।
यदि भाई नाराज है तो बहनें क्या करें-
भाई का कारक ग्रह मंगल होता है। स्त्रियों की कुण्डली में मंगल अशुभ, नीच का या भावसन्धि में फॅसा है तो भाई से रिश्तें अच्छे नहीं रहेंगे।
1 बहनें रक्षा बन्धन के दिन सबसे पहले हनुमान जी को रखी बाॅधे और उसके बाद भाई को राखी बाॅधते वक्त हनुमान जी की दाहिने भुजा से लिया हुआ वन्दन भाई को लगायें। ऐसा करने से आपस में प्रेम सम्बन्ध मजबूत होंगे।
2 आज के दिन बहनें सुन्दर काण्ड का पाठ करके भाई को राखी बाॅधें तथा बेसन लडडू खिलायें।
3 बहनें अपनें भाईयों को गहरे लाल रंग का कोई उपहार दें।
4 रक्षाबन्धन के दिन बहनें अपनें भाईयों को अपने हाथों से भोजन करायें तथा केसर युक्त कोई मीठी वस्तु अवश्य खिलायें।
5 भाई को राखी बाॅधते समय बहन मन में कार्तिकेय भगवान का स्मरण करें। हे कार्तिकेय जी मेरे और भाई के बीच रिश्तें हमेशा मधुर बनें।
रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है।
हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है।इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"
रक्षासूत्र बाँधने का नियम एवं परंपरा
प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्त्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्त्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह-सुबह यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन, वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य भी इससे अछूते नहीं हैं।
उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।
महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है। यही कारण है कि इस एक दिन के लिये मुंबई के समुद्र तट नारियल के फलों से भर जाते हैं।
राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि सुबह से दोपहर में और तालाब नाडी पर
गोबर[ख],
मिट्टी[ग] और
भस्मी[घ] से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट (पूजास्थल) बनाकर उनकी मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती हैं। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमन्त्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है।
तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भाँति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भाँति नया जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों के लिये वेद का अध्ययन प्रारम्भ करते हैं।इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ है- नयी शुरुआत।व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं।
उत्तर प्रदेश :श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। रक्षा बंधन के अवसर पर बहिन अपना सम्पूर्ण प्यार रक्षा (राखी ) के रूप में अपने भाई की कलाई पर बांध कर उड़ेल देती है। भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट के समय सहायता देने का बचन देता है।
स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं।
~~~~~~~~~~~💐💐〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞