*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 दिनांक - 13 अगस्त 2025*
*🎈 दिन बुधवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - वर्षा*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈तिथि - चतुर्थी 06:35:25
तिथि पंचमी 28:23:02*(क्षय )*
*🎈नक्षत्र - उत्तरभाद्रपदा 10:31:25 रात्रि तत्पश्चात् रेवती*
*🎈योग - धृति 16:04:11* तक तत्पश्चात् शूल*
*🎈 करण - बालव 06:35:25* तत्पश्चात् विष्टि गर*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- दोपहर 12:40 से सांय 02:18 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - मीन *
*🎈 सूर्य राशि - कर्क*
*🎈सूर्योदय - 06:06:25am*
*🎈सूर्यास्त - 07:12:59pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:38 से प्रातः 05:22 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:18 ए एम, अगस्त 14 से 01:02 ए एम, अगस्त 14*
*🎈विशेष - भाद्रपद की तीज को दही और गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, इस दिन मांस, मदिरा, बैंगन, और नारियल का तेल भी नहीं खाना चाहिए। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
लाभ- 06:06-07:45शुभ*
अमृत-07:45-09:23शुभ*
काल-09:23-11:01अशुभ*
शुभ-11:01 -12:40शुभ*
रोग-12:40 -14:18अशुभ*
उद्वेग-14:18-15:56 अशुभ*
चर-15:56-17:35 शुभ*
लाभ-17:35- 19:13 शुभ*
*🛟चोघडिया, रात्रि🛟*
उद्वेग-19:13 -20:35 अशुभ*
शुभ-20:35- 21:56शुभ*
अमृत-21:56- 23:18शुभ*
चर-23:18 -24:40*शुभ*
रोग-24:40* -26:02*अशुभ*
काल-26:02* -27:23*अशुभ*
लाभ-27:23* -28:45*शुभ*
उद्वेग-28:45* -30:07*अशुभ*
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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
🔥# 🌹श्री शिव तांडव स्त्रोत
कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्य कुबेर को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए।
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कुबेर के चले जाने के बाद इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। वह लंका का राजा बन गया और लंका का राज्य प्राप्त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी होगया कि उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए।
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जब दशानन के इन अत्याचारों की ख़बर कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा, जिसने कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी। कुबेर की सलाह सुन दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने उस दूत को बंदी बना लिया व क्रोध के मारे तुरन्त अपनी तलवार से उसकी हत्या कर दी।
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कुबरे की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया लेकिन कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक किया।
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चूंकि दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था, सो एक दिन पुष्पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा। लेकिन एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई।
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चूंकि पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो दशानन को बडा आश्चर्य हुआ। तभी उसकी दृष्टि सामने खडे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पडी। नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि-
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यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ.
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लेकिन दशानन कुबेर पर विजय पाकर इतना दंभी होगया था कि वह किसी कि सुनने तक को तैयार नहीं था। उसे उसने कहा कि-
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कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है।
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इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा। अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। लेकिन भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई।
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फलस्वरूप क्रोध और जबरदस्त पीडा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार कर उठा, जिससे ऐसा लगने लगा कि मानो प्रलय हो जाएगा। तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी ताकि उसका हाथ उस पर्वत से मुक्त हो सके।
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दशानन ने बिना देरी किए हुए सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त किया।
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दशानन द्वारा भगवान शिव की स्तुति के लिए किए जो स्त्रोत गाया गया था, वह दशानन ने भयंकर दर्द व क्रोध के कारण भीषण चीत्कार से गाया था और इसी भीषण चीत्कार को संस्कृत भाषा में राव: सुशरूण: कहा जाता है।
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इसलिए जब भगवान शिव, रावण की स्तुति से प्रसन्न हुए और उसके हाथों को पर्वत के नीचे से मुक्त किया, तो उसी प्रसन्नता में उन्होंने दशानन का नाम रावण यानी ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ रखा क्योंकि भगवान शिव ने रावण को भीषण चीत्कार करने पर विवश कर दिया था और तभी से दशानन काे रावण कहा जाने लगा।
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शिव की स्तुति के लिए रचा गया वह सामवेद का वह स्त्रोत, जिसे रावण ने गाया था, को आज भी रावण-स्त्रोत व शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना जाता है, जो कि निम्नानुसार है-
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शिव तांडव स्त्रोत
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। । मृत्योर्माम् अमृतं गमय 💗
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* जय शिव शंकर🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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