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पञ्चाङ्ग - 28-11-2025

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis



*🎈दिनांक 28 नवंबर 2025 *
*🎈 दिन -  शुक्रवार"
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - मार्गशीर्ष*
*🎈 पक्ष - शुक्ल पक्ष*
*🎈तिथि-    अष्टमी    24:14:43*am तत्पश्चात् नवमी*
*🎈 नक्षत्र - शतभिष    26:48:40* pmतत्पश्चात्     पूर्वभाद्रपदा*
*🎈 योग    - व्याघात    11:04:19*am तक तत्पश्चात्     हर्शण    *
*🎈करण    -     विष्टि भद्र    12:27:35am  तत्पश्चात् बव    *
*🎈 पंचक 2-अहोरात्र-अशुभ*
*🎈 राहुकाल -हर जगह का अलग है- 11:04am to 12:23pm तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)* 
*🎈चन्द्र राशि-    कुम्भ*
 *🎈सूर्य राशि-       वृश्चिक*
*🎈सूर्योदय - 07:06:03am*
*🎈सूर्यास्त -17:39:29pm* 
*(सूर्योदय एवं सूर्यास्त ,नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 05:18 ए एम से 06:12:00( ए एम प्रातः तक *(नागौर 
राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजित मुहूर्त- 12:02 पी एम से 12:44 पी एम*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:57 पी एम से 12:50 ए एम, नवम्बर 29*
*🎈 अमृत काल    -07:32 पी एम से 09:09 पी एम*
*🎈 व्रत एवं पर्व- अष्टमी व्रत* 
*🎈विशेष -  मार्गशीर्ष महात्म्य*

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    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
   नागौर, राजस्थान, (भारत)    
   मानक सूर्योदय के अनुसार।

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      *🛟चोघडिया, रात्🛟*

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     🚩*श्रीगणेशाय नमोनित्यं*🚩
  🚩*☀जय मां सच्चियाय* 🚩
🌷 ..# 💐🍁🍁✍️ | #🌕 👉 #देवगुरु बृहस्पति की उत्पत्ति की कुछ कथा👇🏼.......❗️
❤️💐 🌼🪔🌷❤️💐 🌼🪔
 👉 🍁 👉♦️ ⭐ 

(हिन्दू शास्त्रों, पुराणों और लोकमान्य कथाओं का मिश्रण, सरल भाषा में)

भाग 1 : जन्म और दिव्यता

1. देवताओं के गुरु—बृहस्पति—ऋषि अङ्गिरा के पुत्र थे।

2. उनका जन्म एक अत्यंत शुभ नक्षत्र में हुआ।

3. जन्म के समय देवलोक में अद्भुत प्रकाश फैल गया।

4. सभी दिशाएँ स्वर्णिम आभा से चमक उठीं।
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5. ऋषि अङ्गिरा ने देखा कि उनके पुत्र के मुखमंडल पर धीर-गंभीर तेज है।

6. वे जन्म से ही ज्ञान, शांति और धर्म के प्रतीक थे।

7. बालक के स्पर्श से ही अशांत वातावरण शांत हो जाता था।

8. देवों ने पहले दिन ही अनुमान लगा लिया—यह बालक भाईयों को धर्म मार्ग दिखाएगा।

9. उनके भीतर करुणा, विनम्रता, विवेक और क्षमा का अद्भुत संगम था।

10. वे प्रारंभ से ही ध्यान, वेद और ऋचाओं में गहरी रुचि रखते थे।

भाग 2 : शिक्षा और विद्या का विकास

11-25.
युवावस्था में बृहस्पति ने वेद, वेदांग, उपनिषद, ज्योतिष, आयुर्वेद, राजनीति, धर्म-अधर्म, यज्ञ, ब्रह्म ज्ञान आदि सभी शास्त्रों को अल्प आयु में ही पूर्ण रूप से आत्मसात कर लिया।
उनकी स्मरण शक्ति इतनी प्रखर थी कि एक बार सुना हुआ शास्त्र कभी भूलते नहीं थे।
ऋषि अङ्गिरा स्वयं आश्चर्य करते—
“यह बालक साधारण नहीं, साक्षात ब्रह्मज्ञान का सागर है।”

भाग 3 : देवताओं के गुरु बनने का प्रसंग

26-40.
देवलोक में उस समय असुरों का आतंक बढ़ रहा था।
इन्द्र सहित सभी देव निर्णय लेने में चूक करते थे।
उनमें विवेक की कमी दिख रही थी।

देवसभा में ब्रह्मा ने घोषणा की—
“देवताओं को मार्गदर्शन हेतु एक गुरु चाहिए।”

सभी ऋषियों ने एक स्वर में कहा—
“अंगिरस-पुत्र बृहस्पति इस पद के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं।”

इस प्रकार वे देवगुरु बृहस्पति कहलाए।
उनकी प्रथम शिक्षा यही थी—
“देवता हो या मानव, अहंकार विनाश का पहला कारण है।”

भाग 4 : असुरों पर विजय का ज्ञान

41-70.
देवगुरु ने देवों को धर्म, संयम और सामंजस्य का पाठ पढ़ाया।
उन्होंने इन्द्र को समझाया कि
“शक्ति का उपयोग तभी पवित्र होता है जब वह धर्म की रक्षा करे।”

उनकी शिक्षाओं की वजह से देवों ने असुरों पर विजय पाना आरम्भ किया।
उन्होंने युद्धनीति और कूटनीति दोनों सिखाईं।

उनके मार्गदर्शन में—

देवलोक संगठित हुआ

आपसी मतभेद समाप्त हुए

असुरों के आक्रमण कम होने लगे

देवों की बुद्धि दृढ़ हुई

इन्हीं कारणों से बृहस्पति को “परम बुद्धि और विवेक का ग्रह” माना गया।

भाग 5 : इन्द्र का अहंकार और शाप

71-110.
एक समय इन्द्र अपने अहंकार में इतना डूब गया कि उसने बृहस्पति की उपेक्षा कर दी।
देवगुरु सभा में आए, पर इन्द्र ने उन्हें आदर नहीं दिया।
बृहस्पति ने बिना कुछ कहे सभा त्याग दी।
उनके जाते ही देवताओं का तेज घटने लगा।

इन्द्र को अपनी भूल का भान हुआ, पर अब देर हो चुकी थी।
असुरों ने इस अवसर का लाभ उठाकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।

बृहस्पति ने देवों को शिक्षा दी—
“ज्ञान बिना शक्ति अंधी होती है।
अहंकार बिना प्रयास सब कुछ छीन लेता है।”

यह प्रसंग बृहस्पति की धैर्य, क्षमा और गंभीरता का अद्भुत उदाहरण है।

भाग 6 : असुर गुरु शुक्राचार्य से संघर्ष

111-160.
देवगुरु बृहस्पति और असुर गुरु शुक्राचार्य दोनों अत्यंत विद्वान थे।
दोनों ही ब्रह्मविद्या में निपुण थे।

शुक्राचार्य को “मृतसंजीवनी विद्या” प्राप्त थी।
उनकी इस शक्ति से असुर बार-बार जीवित हो जाते थे और देवों को पराजित करते।

बृहस्पति ने देवों को संयम, धैर्य और शांति से रणनीति बनाना सिखाया।
उन्होंने कहा—
“हमारे पास मृतसंजीवनी नहीं, पर हमारे पास धर्म है।”

इसी धर्मबल के कारण देव अंततः विजयी हुए।

यह संघर्ष “अधर्म और धर्म” की लड़ाई का शाश्वत उदाहरण है।

भाग 7 : तारा और चन्द्रमा का प्रसंग

161-210.
एक दिन चन्द्रमा ने देवराज बृहस्पति की धर्मपत्नी ‘तारा’ को अपने आश्रम में रखा।
कथा लंबी है पर सार यह—
चन्द्रमा तारा के सौंदर्य पर मोहित हो गए।
तारा कई दिनों तक चन्द्रमा के साथ रहीं।
उनसे एक पुत्र हुआ—
बुध (Mercury)

जब तारा बच्चा लेकर लौटीं, विवाद खड़ा हुआ।
बृहस्पति ने पूछा—

“यह बच्चा किसका है?”

तारा ने कहा—
“यह चन्द्रमा का पुत्र है।”

बृहस्पति ने क्रोध में भी अत्यंत संयम रखा।
उन्होंने बच्चे को अपना आशीर्वाद दिया।
बुध आगे चलकर ग्रहों में अत्यंत तेजस्वी ग्रह बने।

बृहस्पति की यह घटना इस बात का प्रतीक है—
“महान पुरुष कभी अपने क्रोध को स्वयं पर हावी नहीं होने देते।”

भाग 8 : वामन अवतार और बृहस्पति की राजनीति

211-250.
जब असुर-बली पूरे तीनों लोक जीतने को तैयार थे,
देवगुरु ने देवों को सलाह दी—
“धर्म की रक्षा हेतु भगवान विष्णु स्वयं जन्म लेंगे।”

वामन अवतार हुआ।
बाली ने तीन पग पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल दान कर दिया।

बृहस्पति की दूरदर्शिता से ही देवों का राज्य वापस मिल गया।

---

भाग 9 : जब बृहस्पति हुए अदृश्य

251-300.
एक समय देवगुरु इतने विरक्त हो गए कि वे देवलोक छोड़कर चले गए।
उन्होंने घोर तप किया।

देवगुरु के बिना देव कमजोर हो गए।
इन्द्र को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा।

अंततः देवों ने जाकर बृहस्पति से क्षमा माँगी।
उन्होंने देवों को आशीर्वाद दिया और पुनः देवलोक लौट आए।

भाग 10 : बृहस्पति ग्रह का आध्यात्मिक महत्व

301-360.
बृहस्पति ज्योतिष में—

ज्ञान,धन,शिक्षा,विवाह,संतान

धर्म,न्याय,भाग्य,गुरु,सम्मान,उच्च आदर्श,के कारक माने जाते हैं।

जहाँ बृहस्पति शुभ बैठ जाए—
वहाँ भाग्य खिल उठता है।
मनुष्य राज जैसा जीवन पाता है।

अगर वे दुख देते हैं तो—
मनुष्य का जीवन उलझनों से भर जाता है।
परंतु
उपाय, तप, दान, और सेवा से वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

भाग 11 : बृहस्पति की विनम्रता का अद्भुत प्रसंग

361-400.
एक बार सभी देवताओं ने बृहस्पति से कहा—
“गुरुदेव, आप सर्वश्रेष्ठ हैं। आपसे बड़ा कोई नहीं।”

बृहस्पति ने मुस्कुराकर कहा—
“मैं केवल आपका मार्गदर्शक हूँ।
श्रेष्ठ वह है जो अपना अहंकार त्याग दे।”

उनके इस उत्तर से देवसभा मौन हो गई।
इन्द्र के नेत्रों में विनम्रता झलक उठी।

भाग 12 : भक्तों को आशीर्वाद

401-450.
बृहस्पति सदैव अपने भक्तों को बुद्धि, ज्ञान और संतान की प्राप्ति कराते हैं।
जो व्यक्ति गुरुवार को—

पीला व्रत रखे

गरीब ब्राह्मण को भोजन दे

पीली चीजें दान करे

गुरु का सम्मान करे

माता-पिता की सेवा करे

उसे बृहस्पति अत्यधिक आशीर्वाद देते हैं।

भाग 13 : बृहस्पति का अंतिम संदेश

451-500.
देवगुरु सदा कहते हैं—

“जहाँ धर्म है, वहीं देवत्व है।
जहाँ ज्ञान है, वहीं प्रकाश है।
जहाँ विनम्रता है, वहीं विजय है।”

उन्होंने देवों और मनुष्यों दोनों को सिखाया—

सत्य का मार्ग कभी मत छोड़ो

झूठ, छल और अन्याय से बचो

गुरु का सम्मान करो

क्रोध को ज्ञान से दबाओ

कर्तव्य को धर्म मानकर निभाओ

कर्म करो, फल की चिंता मत करो

और अंत में—

  💥“ज्ञान ही सच्ची संपत्ति है।
      बाकी सब क्षणभंगुर है।”💥
     🌼 ।। जय श्री कृष्ण ।।🌼
       💥।। शुभम् भवतु।।💥
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🔱🇪🇬जय श्री महाकाल सरकार 🔱🇪🇬 मोर मुकुट बंशीवाले  सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
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