*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 दिनांक - 18 अगस्त 2025*
*🎈 दिन - सोमवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - वर्षा*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈 तिथि - दशमी 05:21:51 शाम तक तत्पश्चात् दशमी*
*🎈 नक्षत्र - मृगशीर्षा 02:04:52 रात्रि अगस्त 19 तक तत्पश्चात् आद्रा*
*🎈 योग - हर्शण 10:58:34 रात्रि तक, तत्पश्चात् वज्र*
*🎈करण- वणिज 06:21:33 तक पश्चात बालव*
*🎈 राहुकाल - सुबह 07:46 से सुबह 09:24 तक ( नागौर राजस्थान के मानक समयानुसार)*
*🎈 सूर्योदय - 06:08:53*
*🎈 सूर्यास्त - 07:08:28 (सूर्योदय एवं सूर्यास्त नागौर राजस्थान के मानक समयानुसार)*
*🎈 चन्द्र राशि - वृषभ till 14:39:16*
*🎈 चन्द्र राशि- मिथुन from 14:39:16 *
*🎈 सूर्य राशि - सिंह *
*🎈 दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈 ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:40 से प्रातः 05:24 तक (नागौर राजस्थान के मानक समयानुसार)*
*🎈 अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:13 से दोपहर 01:05*
*🎈 निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:17अगस्त 19 से रात्रि 01:01 अगस्त 19 तक ( नागौर राजस्थान के मानक समयानुसार)*
*🎈 व्रत पर्व विवरण - गोगा नवमी गोगाजी के सम्मान में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। किंवदंतियों के अनुसार, गुगा एक शक्तिशाली राजपूत राजकुमार थे जिनके पास विषैले साँपों को नियंत्रित करने की अलौकिक शक्तियाँ थीं। इस दिन अनुष्ठानों के एक भाग के रूप में उनकी कहानियों के विभिन्न संस्करण सुनाए जाते हैं। कुछ कहानियों में उनके दिव्य जन्म, उनके विवाह, पारिवारिक जीवन, युद्धों, साँप के काटने पर उपचार की उनकी अद्भुत कला और पृथ्वी से उनके अंतर्ध्यान होने का वर्णन है। हिंदुओं का मानना है कि इस दिन उनकी पूजा करने से उन्हें साँपों और अन्य बुराइयों से सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा, एक लोकप्रिय मान्यता यह भी है कि भगवान गुगा बच्चों को सभी प्रकार की विपत्तियों से बचाते हैं। इसलिए विवाहित महिलाएँ गोगा नवमी पर पूजा करती हैं और अपने बच्चों की भलाई और दीर्घायु के लिए उनसे प्रार्थना करती हैं। कुछ निःसंतान विवाहित महिलाएँ भी इस दिन संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।*
*🎈 विशेष - नवमी को लौकी, बैंगन, प्याज, लहसुन, और मांस-मदिरा जैसी तामसिक या वर्जित चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
अमृत-06:09-07:46शुभ*
काल-07:46 -09:24अशुभ*
शुभ-09:24-11:01शुभ*
रोग-11:01-12:39अशुभ*
उद्वेग-12:39-14:16अशुभ*
चर-14:16-15:54शुभ*
लाभ-15:54-17:31शुभ*
अमृत-17:31-19:08शुभ*
*🛟चोघडिया, रात्रि🛟*
चर-19:08 -20:31शुभ*
रोग-20:31-21:54 अशुभ*
काल-21:54- 23:16अशुभ"
लाभ-23:16- 24:39*शुभ*
उद्वेग-24:39* --26:02*अशुभ*
शुभ-26:02* -27:24*शुभ*
अमृत-27:24* --28:47*शुभ*
चर-28:47* -30:09*शुभ
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🍁।। हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’
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अग्निदेव की दाहिकाशक्ति है ‘स्वाहा’
अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें ‘परिपाककरी’ भी कहते हैं।
सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं ‘प्रकृति’ और ‘पुरुष’ इन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृतिदेवी ही मूलप्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं।
स्वाहा के बिना देवताओं को नहीं मिलता है भोजन
सृष्टि के आरम्भ की बात है, उस समय ब्राह्मणलोग यज्ञ में देवताओं के लिए जो हवनीय सामग्री अर्पित करते थे, वह देवताओं तक नहीं पहुंच पाती थी। देवताओं को भोजन नहीं मिल पा रहा था इसलिए उन्होंने ब्रह्मलोक में जाकर अपने आहार के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के आदेश पर ब्रह्माजी देवी मूलप्रकृति की उपासना करने लगे। इससे प्रसन्न होकर देवी मूलप्रकृति की कला से देवी ‘स्वाहा’ प्रकट हो गयीं और ब्रह्माजी से वर मांगने को कहा।
ब्रह्माजी ने कहा–’आप अग्निदेव की दाहिकाशक्ति होने की कृपा करें। आपके बिना अग्नि आहुतियों को भस्म करने में असमर्थ हैं। आप अग्निदेव की गृहस्वामिनी बनकर लोक पर उपकार करें।’
ब्रह्माजी की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण में अनुरक्त देवी स्वाहा उदास हो गयीं और बोलीं–’परब्रह्म श्रीकृष्ण के अलावा संसार में जो कुछ भी है, सब भ्रम है। तुम जगत की रक्षा करते हो, शंकर ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है। शेषनाग सम्पूर्ण विश्व को धारण करते हैं। गणेश सभी देवताओं में अग्रपूज्य हैं। यह सब उन भगवान श्रीकृष्ण की उपासना का ही फल है।’
यह कहकर वे भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने चली गयीं और वर्षों तक एक पैर पर खड़ी होकर उन्होंने तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए।
देवी स्वाहा के तप के अभिप्राय को जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–’तुम वाराहकल्प में मेरी प्रिया बनोगी और तुम्हारा नाम ‘नाग्नजिती’ होगा। राजा नग्नजित् तुम्हारे पिता होंगे। इस समय तुम दाहिकाशक्ति से सम्पन्न होकर अग्निदेव की पत्नी बनो और देवताओं को संतृप्त करो। मेरे वरदान से तुम मन्त्रों का अंग बनकर पूजा प्राप्त करोगी। जो मानव मन्त्र के अंत में तुम्हारे नाम का उच्चारण करके देवताओं के लिए हवन-पदार्थ अर्पण करेंगे, वह देवताओं को सहज ही उपलब्ध हो जाएगा।’
देवी स्वाहा बनी अग्निदेव की पत्नी
भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से अग्निदेव का देवी स्वाहा के साथ विवाह-संस्कार हुआ। शक्ति और शक्तिमान के रूप में दोनों प्रतिष्ठित होकर जगत के कल्याण में लग गए। तब से ऋषि, मुनि और ब्राह्मण मन्त्रों के साथ ‘स्वाहा’ का उच्चारण करके अग्नि में आहुति देने लगे और वह हव्य पदार्थ देवताओं को आहार रूप में प्राप्त होने लगा।
जो मनुष्य स्वाहायुक्त मन्त्र का उच्चारण करता है, उसे मन्त्र पढ़ने मात्र से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। स्वाहाहीन मन्त्र से किया हुआ हवन कोई फल नहीं देता है।
देवी स्वाहा के सिद्धिदायक सोलह नाम
देवी स्वाहा के सोलह नाम हैं–
1. स्वाहा,
2. वह्निप्रिया,
3. वह्निजाया,
4. संतोषकारिणी,
5. शक्ति,
6. क्रिया,
7. कालदात्री,
8. परिपाककरी,
9. ध्रुवा,
10. गति,
11. नरदाहिका,
12. दहनक्षमा,
13. संसारसाररूपा,
14. घोरसंसारतारिणी,
15. देवजीवनरूपा,
16. देवपोषणकारिणी।
इन नामों के पाठ करने वाले मनुष्य का कोई भी शुभ कार्य अधूरा नहीं रहता। वह समस्त सिद्धियों व मनोकामनाओं को प्राप्त कर लेता है।
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☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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