*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 दिनांक - 19 अगस्त 2025*
*🎈 दिन मंगल वार *
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - वर्षा*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈तिथि - एकादशी 15:31:53 रात्रि तत्पश्चात् द्वादशी*
*🎈आज इसका एकादशी व्रत है*
*🎈नक्षत्र - आद्रा 25:06:36 रात्रि तत्पश्चात् पुनर्वसु*
*🎈योग - वज्र 20:28:34 तक तत्पश्चात् सिद्वि🎈*
*🎈 करण - बालव 15:31:53* तत्पश्चात् तैतुल*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- दोपहर 03:53 से सांय 05:30 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - मिथुन*
*🎈 सूर्य राशि - कर्क*
*🎈सूर्योदय - 06:06:22am*
*🎈सूर्यास्त - 07:07:31pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:40 से प्रातः 05:24 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:04 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:17 ए एम, अगस्त 20 से 01:01 ए एम, अगस्त 20*
*🎈त्रिपुष्कर योग 01:07 ए एम, अगस्त 20 से 06:09 ए एम, अगस्त 20*
*🎈एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने का महत्व है, और इस दौरान कुछ विशेष बातें ध्यान रखनी चाहिए: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, तुलसी के पत्ते न तोड़ें, किसी से झगड़ा या द्वेष न करें, मानसिक शांति बनाए रखें और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें. आप अपनी क्षमता के अनुसार साबूदाना, फल और दूध का सेवन कर सकते हैं. व्रत खोलने से पहले भगवान विष्णु की पूजा करें.
*🎈विशेष - एकादशी को चावल, अनाज, नमक (विशेषकर साधारण नमक), लहसुन, प्याज, मसूर की दाल, मांस और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, फलों या सेंधा नमक से बनी सात्विक चीजें खा सकते हैं, या बिना भोजन के भी व्रत रख सकते हैं।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
रोग-06:09- 07:47अशुभ*
उद्वेग-07:47- 09:24अशुभ*
चर-09:24 -11:01शुभ*
लाभ-11:01 -12:38शुभ*
अमृत-12:38- 14:16शुभ*
काल-14:16-15:53अशुभ*
शुभ-15:53-17:30शुभ*
रोग-17:30-19:08अशुभ*
*🛟चोघडिया, रात्रि🛟*
काल-19:08-20:30अशुभ*
लाभ-20:30-21:53शुभ*
उद्वेग-21:53-23:16अशुभ*
शुभ-23:16-24:39*शुभ*
अमृत-24:39* -26:01*शुभ*
♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
🔥# 🌹🍁 #* काल, महाकाल और परमकाल, तीन रूपों में काल की अभियोजना की गई है। 4,32,00,00,000 (चार अरब बत्तीस करोड़) वर्षों का एक कल्प है, 1000 चतुर्युग का। एक चतुर्युग है 43,20,000 (तैंतालिस लाख बीस हजार) वर्षों का। चतुर्युग के चार युग और इनका माप है -
कृतयुग - 17,28,000
त्रेतायुग - 12,96,000
द्वापरयुग - 8,64,000
कलियुग - 4,32,000
----------------
कुल - 43,20,000
-----------------
* यह एक कल्प ब्रह्मा का एक दिन है। इसी माप की ब्रह्मा की एक रात्रि है। इस अहोरात्र माप से 360 का एक वर्ष है। ब्रह्मा की पूर्ण आयु 100 वर्षों की है। यह काल का माप है।
* ब्रह्मा की पूर्ण आयु के बराबर विष्णु का एक दिन है। इसी माप की विष्णु की एक रात्रि है। इस अहोरात्र माप से 360 का एक वर्ष है। विष्णु की पूर्ण आयु 100 वर्षों की है। यह महाकाल का माप है।
* विष्णु की पूर्ण आयु के बराबर रुद्र का एक दिन है। इसी माप की रुद्र की एक रात्रि है। इस अहोरात्र माप से 360 का एक वर्ष है। रुद्र की पूर्ण आयु 100 वर्ष की है। यह परमकाल का माप है।
* रुद्र की पूर्ण आयु शिवलोक का परम् है जहां से फिर किसी दूसरे रुद्र का काल प्रारंभ होता है। और इस तरह अगणित रुद्र, विष्णु और ब्रह्मा होते रहते हैं।
* शिवलोक के परम् को सुमेरु शीर्ष भी कहते हैं योग/तंत्र की भाषा में जहां पहुंचना योगी का परम् लक्ष्य होता है। एक ही जीवन में परम् शिव का बोध किया जा सकता है, त्याग और वैराग्य से तथा योग और प्राणायाम से।
* शिवलिंग की परिक्रमा नहीं की जाती। इसका कारण भी यही है कि परम् से वापस लौटना पड़ता है, वहां कोई चक्र नहीं है। जैसे माउंट एवरेस्ट पर पहुंच कर परिक्रमा नहीं कर सकते, वापस लौटना पड़ता है। हां, नीचे आकर परिक्रमा संभव होती है। अर्थात्, रुद्र, विष्णु और ब्रह्मा की परिक्रमा की जाती है।
* वैदिक संस्कृति और सनातन धर्म उस अनंत को नापता है, कि कहां से काल का आदि है, कहां पर अंत है। परम् शिव ही अनादि है, अनंत है और इसका बोध भी संभव है।
* जिसने इस परम् शिव/ब्रह्म का बोध कर लिया, उसे परम् शिव या परम् ब्रह्मर्षि या परम् ब्रह्म-योगी उपाधि से विभूषित किया जाता है।
* बृहदारण्यक उपनिषद् (1.4.10) का महावाक्य है,
"अहं_ब्रह्मास्मि,
यही मूल तत्त्व है, जहां परम् ब्रह्म को ही अव्यक्त और व्यक्त ब्रह्म माना गया है। परम् अव्यक्त है, जिसमें से परा-अपरा शक्ति रूप में व्यक्त होती हैं।
* श्रीमद्भगवद्गीता (8.3) का कथन है,
"अक्षरं_परमं_ब्रह्म",
यहां अव्यक्त ब्रह्म को परमं कहा गया है, जो सदा अक्षर है, अनंत है, अनादि है, परम् शिव है।
* आत्मबोध में जीवभाव नहीं होता। ऐसा सक्षम ध्यान-योगी परम् ब्रह्म या परमं का बोध करता है सहस्त्रार में। यह उस स्व-आत्मा का अव्यक्त परम्-आत्म बोध है। इस ध्यान-योगी को (परम्)ब्रह्म-योगी कहा जाएगा।
* अव्यक्त परमात्मा से व्यक्त परम ईश्वर का प्राकट्य होता है जिसकी शक्ति विशेष है परमेश्वरी। परमेश्वरी में, परमकाली, परमलक्ष्मी और परमसरस्वती, परमशक्ति के तीनों रूप विद्यमान हैं, जिनका उपयोग वह (परम्)ब्रह्म-योगी करता
~~~~~~~~~~~💐💐〰〰🌼〰〰🌼〰〰
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞