*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 दिनांक - 27 अगस्त 2025*
*🎈 दिन -बुधवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - गणेशचतुर्थी 03:43:52 pm तत्पश्चात् पंचमी*
*🎈नक्षत्र - चित्रा पूर्ण रात्रि तक तक तत्पश्चात् चित्रा*
*🎈योग - शुभ 12:33:17pmतक तक तत्पश्चात् शुक्ल*
*🎈 करण - विष्टि - 03:44 पी एम तक
तक तत्पश्चात् बालव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- 12:36pm से 02:12 pm तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- कन्या till 19:20:23*
*🎈चन्द्र राशि - तुला from 19:20:23*
*🎈सूर्य राशि - सिंह*
*🎈सूर्योदय - 06:13:08am*
*🎈सूर्यास्त - 06:59:21pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:43 से प्रातः 05:27 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:14 ए एम, अगस्त 28 से 12:59 ए एम, अगस्त 28*
*🎈अमृत काल 01:37 ए एम, अगस्त 28 से 03:24 ए एम, अगस्त 28*
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*🎈विशेष - चतुर्थी तिथि को मूली का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन का नाश करती है. इसके अलावा, कुछ मान्यताओं के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के व्रत के दौरान प्याज, लहसुन, मांस, अंडे, अनाज, दालें और सामान्य नमक का सेवन भी वर्जित है.
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
🌹गणेश चतुर्थी विशेष प्रयोग।
कल बुधवार के दिन चतुर्थी का सुंदर संयोग है। कल के दिन ये साधना आपको अवश्य ही उन्नति और तरक्की प्रदान करेगी।
यदि आपके जीवन में दुख और मुसीबत ज्यादा है तो बुधवार के दिन बाजार से एक पूरी सही और बड़ी हो ऐसी एक सुपारी ले आए।
बुधवार के दिन उसके ऊपर सिंदूर लगा दे। पूरी सुपारी सिंदुरिया रंग की हो जानी चाइए।
उसके बाद घर के मंदिर में या कोई चौकी पर सफेद कपड़े पर उसे स्थान दे दे। उसके सामने घी का दीपक जलाए अगरबती करे। लड्डू या गुड़ का भोग लगाए। फूल और चावल अर्पण करे। जल अर्पण करे। उसे सुत अर्पण करे। मौली अर्पण करे। उसके सिवा जो उचित लगे सेवा करे।
फिर भगवान गणेश जी से प्रार्थना करे की वो आपके सभी विघ्न और बधाओ को दूर करे।
फिर वहा संकटनाशन गणेश स्तोत्र का एक पाठ करे।
नियमित गणपति की विशेष सेवा करते रहे और एक पाठ स्तोत्र का करते रहे। कही पर भी जाए एक पाठ अवश्य कर ले।
जल्द ही उचित परिणाम मिलने लगेंगे।
मां भगवती की कृपा आप सभी के ऊपर बनी रहे।
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नागौर, राजस्थान, (भारत) सूर्योदय के अनुसार
*🛟चोघडिया, दिन🛟*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
🌹🌹जय जय श्रीगणेश (१)
।।गणेश।।
१. शिवधर्म के अनुसार- गणेश का सर्वप्रथम आविर्भाव माता पार्वती के यहाँ माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ है । शिवपुराण के अनुसार- भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्रमा का शुभोदय होने पर माता पार्वती के यहाँ गणेश का आविर्भाव हुआ।
२. गणेशजी अपने आराधकों के सभी संकटों तथा कष्टों को नष्ट कर देते हैं । अतः उनके प्रादुर्भाव की तिथि संकष्ट चतुर्थी कहलाती है। सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्ति के लिये गणेशजी के साथ शिव, विष्णु, सूर्य तथा दुर्गा की पूजा करनी चाहिये ।
३. शास्त्रों के मतानुसार केवल एक देवता की मूर्ति पूजा का निषेध कहा गया है इसलिये जो प्राणी अपनी कामनाओं को पूर्ण करना चाहते हैं । उन्हें पंच देवताओं की पूजा करनी चाहिये ।
४. पंचायतन देवताओं में प्रत्येक देव के प्रति समान रूप से भक्ति हो तो कर्ता को सर्वप्रथम सूर्य की उपरान्त गणेश की फिर दुर्गा की उसके पश्चात् शंकर तथा विष्णु की पूजा करनी चाहिये । तथा अपना हित चाहने वाले प्राणी को अपने गृह में तीन गणेश प्रतिमाओं को कभी भी पूजित व स्थापित नहीं करना चाहये ।
५. मत्स्यपुराण के अनुसार गृह में कर्ता के अंगुष्ठ पर्व से लेकर वितस्तिपर्यन्त अर्थात् बारह अंगुल परिमाण तक के आकार वाली मूर्ति की स्थापना प्रशस्त कही गयी है ।
६. गणेशजी आदिदेवताओं का मन्दिर घर के ईशानकोण में ही होना चाहिये और उनकी स्थापना इस क्रम से करनी चाहिये कि उनके मुख पश्चिमदिशा की ओर रहें । कर्ता को ग्राम अथवा शहर के दक्षिण भाग की ओर उत्तरमुख गणेश की प्रतिष्ठा करनी चाहिये ।
७. यदि कर्ता के इष्टदेव गणेश हैं तो उनकी स्थापना मध्य में करके ईशानकोण में विष्णु, अग्निकोण में शिव, नैर्ऋत्यकोण में सूर्य, तथा वायुकोण में भगवती दुर्गा को स्थापित करना चाहिये ।
८. शास्त्रों के मतानुसार गणेशजी की एक परिक्रमा ही कही गयी है । किन्तु तीन परिक्रमा करने का भी शास्त्रों में प्रमाण मिलता है । गणेशपूजा में तुलसी का निषेध किया गया है। क्योंकि गणेश के द्वारा तुलसी शापित हुई थीं । गणेश के नैवेद्य में मोदक की विशेष महत्ता है ।
९. जो यज्ञोपवीतधारी द्विज हों वे वैदिक मन्त्रों से और पौराणिक मन्त्रों से गणपति की पूजा कर सकते हैं । किन्तु जिनके यज्ञोपवीत न हो वे केवल पौराणिक मन्त्रों के द्वारा इनका पूजन कर सकते हैं । गणेश की पूजा अधिकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को भी है ।
१०. गणेश की पूजा का मुख्य समय पूर्वाह्नकाल है,प्रातः मध्याह्न तथा सायंकाल तीनों कालों में इनकी पूजा अपना सुख चाहने वाले प्रत्येक प्राणी को करनी चाहिये ।गणेश पूजा में दूर्वाङ्कुर अत्यन्त महत्वपूर्ण है । जो मनुष्य इसके द्वारा इनकी पूजा करते हैं वे सबकुछ प्राप्त कर लेते हैं ।
११. जो पुष्प कीड़ों से दूषित हो, बासी हो, स्वयं पेड़ से नीचे गिर रहे हों ऐसे पुष्प गणपति पूजा के योग्य नहीं होते।
१२. गणेश मन्दिर में प्रधान मूर्ति से बायीं ओर गजकर्ण की तथा दाहिनी ओर सिद्धि की मूर्ति होनी चाहिये। उत्तर दिशा की ओर गौरी की पूर्व की ओर बुद्धि की, आग्नेयदिशा में बालचन्द्रमा की, दक्षिण दिशा में सरस्वती की, पश्चिम दिशा में कुबेर की तथा पीछे की ओर धूम्रक की मूर्ति विद्यमान होनी चाहिये।
१३. गणेशजी के देवालय में चारों द्वारों पर दो-दो द्वारपाल को स्थापित करना चाहिये । पूर्वी द्वार के द्वारपालों के नाम, अविघ्न तथा विघ्नराज हैं, दक्षिण द्वार वालों के सुवक्त्र तथा बलवान्, पश्चिम द्वार के गजकर्ण तथा गोकर्ण और उत्तर के सुसौम्य और सुभदायक हैं।
१४. द्वारपालों की ये सभी प्रतिमाएँ वामनाकृति तथा घोररूपी प्रशस्त की गयी है। सभी के चार हाथों में से एक हाथ में दण्ड तथा एक हाथ तर्जनी मुद्रा में हो । अविघ्न तथा विघ्नराज के शेष दो हाथों में परशु तथा पद्म होनी चाहिये । सुवक्त्र व बलवान् के खड्ग और खेटक, गजकर्ण व गोकर्ण के धनुष तथा बाण तथा सुसौम्य व शुभदायक के पद्म तथा अङ्कुश प्रशस्त कहे गये हैं।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
मो.न.83878 69068
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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