*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 आश्विन,कृष्ण पक्ष अष्टमी श्राद्ध2082 कालयुक्त, विक्रम सम्वत 14 सितम्बर 2025 रविवार पितृपक्ष चल रहा है।*
*🎈 दिनांक -14 सितंबर 2025*
*🎈 दिन- रविवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास -अश्विन*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈 पक्ष -श्राद्ध *
*🎈तिथि - अष्टमी 27:05:30
तत्पश्चात् नवमी*
*🎈 वार- रविवार
*🎈नक्षत्र - रोहिणी 08:40:05 am रात्रि तक तत्पश्चात् मृगशीर्षा*
*🎈योग - हर्शण 10:31:23
am तक तत्पश्चात् व्यतिपत*
*🎈 करण - वणिज 07:22:41 am तक तत्पश्चात् तैतुल*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- 05:07 am से 06:40 pm तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- वृषभ till 20:02:35*
*🎈चन्द्र राशि - मिथुन from 20:02:35*
*🎈सूर्य राशि - सिंह*
*🎈सूर्योदय - 06:21:08am*
*🎈सूर्यास्त - 06:39:34:pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 04:47 ए एम से 05:33 ए एम तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 12:55 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:07 ए एम, सितम्बर 15 से 12:54 ए एम, सितम्बर 15*
*🎈रवि योग 06:20 ए एम से 08:41 ए एम*
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 उद्वेग - अशुभ-06:20 ए एम से 07:53 ए एम*
*🎈चर - सामान्य-07:53 ए एम से 09:25 ए एम*
*🎈लाभ - उन्नति-09:25 ए एम से 10:58 ए एम*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-10:58 ए एम से 12:30 पी एम वार वेला*
*🎈काल - हानि-12:30 पी एम से 02:03 पी एम काल वेला*
*🎈शुभ - उत्तम-02:03 पी एम से 03:36 पी एम*
*🎈रोग - अमंगल-03:36 पी एम से 05:08 पी एम*
*🎈उद्वेग - अशुभ-05:08 पी एम से 06:41 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈शुभ - उत्तम-06:41 पी एम से 08:08 पी एम*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-08:08 पी एम से 09:36 पी एम
*🎈चर - सामान्य-09:36 पी एम से 11:03 पी एम*
*🎈रोग - अमंगल-11:03 पी एम से 12:31 ए एम, सितम्बर 15*
*🎈काल - हानि-12:31 ए एम से 01:58 ए एम, सितम्बर 15*
*🎈लाभ - उन्नति-01:58 ए एम से 03:25 ए एम, सितम्बर 15 काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-03:25 ए एम से 04:53 ए एम, सितम्बर 15*
*🎈शुभ - उत्तम-04:53 ए एम से 06:20 ए एम, सितम्बर 15*
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🚩*☀ #पितृ पक्ष☀*
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🔷 #गरुड़ पुराण - सातवाँ अध्याय
इस अध्याय में पुत्र की महिमा, दूसरे के द्वारा दिये गये पिण्डदान आदि से प्रेतत्व से मुक्ति की बात कही गई है – इस संदर्भ में राजा बभ्रुवाहन तथा एक प्रेत की कथा का वर्णन है।
सूतजी ने कहा :– ऎसा सुनकर पीपल के पत्ते की भाँति काँपते हुए गरुड़जी ने प्राणियों के उपकार के लिए पुन: भगवान विष्णु से पूछा।
गरुड़ जी ने कहा – हे स्वामिन ;- किस उपाय से मनुष्य प्रमादवश अथवा जानकर पापकर्मों को करके भी यम की यातना को न प्राप्त हो, उसे कहिए। संसार रूपी सागर में डूबे हुए, दीन चित्तवाले, पाप से नष्ट बुद्धिवाले तथा विषयों के कारण दूषित आत्मा वाले मनुष्यों के उद्धार के लिये हे माधव! पुराणों में सुनिश्चित किये गये उपाय को बताइए, जिससे मनुष्य सद्गति प्राप्त कर सकें।
श्रीभगवान बोले – हे तार्क्ष्य ;- मनुष्यों के हित की कामना से तुमने अच्छी बात पूछी है। सावधान होकर सुनो, मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूँ। हे खगेश्वर! मैंने इसके पहले पुत्ररहित और पापी मनुष्यों की यातना का वर्णन किया है। पुत्रवान तथा धार्मिक मनुष्यों की पूर्वोक्त दुर्गति कभी नहीं होती। यदि अपने पूर्वार्जित कर्मों के कारण पुत्रोत्पत्ति में विघ्न हो तो किसी उपाय से पुत्र की उत्पत्ति सम्पन्न करें। हरिवंशपुराण की कथा सुनकर, विधानपूर्वक शतचण्डी यज्ञ करके तथा भक्तिपूर्वक शिव की आराधना करके विद्वान को पुत्र उत्पन्न करना चाहिए।
यत: पुत्र पितरों की पुम् नामक नरक से रक्षा करता है, अत: स्वयं भगवान ब्रह्मा ने ही उसे पुत्र नाम से कहा है। एक धर्मात्मा पुत्र सम्पूर्ण कुल को तार देता है। पुत्र के द्वारा व्यक्ति लोकों को जीत लेता है, ऎसी सनातनी श्रुति है। इस प्रकार वेदों ने भी पुत्र के उत्तम माहात्म्य को कहा है। इसलिए पुत्र का मुख देख करके मनुष्य पितृ-ऋण से मुक्त हो जाता है। पौत्र का स्पर्ष करके मनुष्य तीनों ऋणों – देव, ऋषि, पितृ – से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार पुत्र-पौत्र तथा प्रपौत्रों से यमलोक का अतिक्रमण करके स्वर्ग आदि को प्राप्त करता है। ब्राह्मविवाह की विधि से ब्याही गई पत्नी से उत्पन्न औरस पुत्र ऊर्ध्वगति प्राप्त कराता है और संगृहीत पुत्र अधोगति की ओर ले जाता है।
हे खगश्रेष्ठ - ऎसा जान करके व्यक्ति हीनजाति की स्त्री से उत्पन्न पुत्रों को त्याग दे।
हे खग - सवर्ण पुरुषों से सवर्णा स्त्रियों में जो पुत्र उत्पन्न होते हैं, वे औरस पुत्र कहे जाते हैं और वे ही श्राद्ध प्रदान करके पितरों को स्वर्ग प्राप्त कराने के कारण होते हैं। औरस पुत्र के द्वारा किए गये श्राद्ध से पिता को स्वर्ग प्राप्त होता है, इस विषय में क्या कहना? दूसरे के द्वारा दिये गये श्राद्ध से भी प्रेत स्वर्ग को चला जाता है, इस विषय में सुनो। यहाँ मैं एक प्राचीन इतिहास कहूँगा, जो और्ध्वदैहिक दान के श्रेष्ठ माहात्म्य को सूचित करता है।
हे तार्क्ष्य - पूर्वकाल में त्रेता युग में महोदय नाम के रमणीय नगर में महाबलशाली और धर्मपरायण बभ्रुवाहन नामक एक राजा रहता था। वह यज्ञानुष्ठानपरायण, दानियों में श्रेष्ठ, लक्ष्मी से सम्पन्न, ब्राह्मणभक्त तथा साधु पुरुषों के प्रति अनुराग रखने वाला, शील तथा आचार आदि गुणों से युक्त, स्वजनों के प्रति अपनत्व और इतरजनों के प्रति दया के भाव से सम्पन्न था। क्षात्रधर्मपरायण वह राजा औरस पुत्र की भाँति धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता था और दण्ड देने योग्य अपराधियों को दण्ड देता था।
वह महाबाहु किसी समय सेना के साथ मृगया के लिए नाना वृक्षों से युक्त एक घनघोर वन में प्रविष्ट हुआ। वह वन नाना मृग गणों से व्याप्त और अनेक पक्षियों से भरा हुआ था। उस समय राजा ने वन के मध्य में दूर से एक मृग को देखा।
राजा के द्वारा सुदृड़ बाण से विद्ध वह मृग बान सहित जंगल में अदृश्य हो गया। रुधिर से गीली हुई घास पर अंकित चिह्न से राजा ने उसका पीछा किया तब मृग के प्रसंग से वह राजा दूसरे वन में जा पहुंचा। भूख-प्यास से सूखे हुए कण्ठ वाला तथा परिश्रम के संताप से पीड़ित उस राजा ने एक जलाशय के समीप पहुँचकर घोड़े के साथ उसमें स्नान किया तथा कमल की गन्धादि से सुगन्धित शीतल जल का पान किया।
इसके बाद उस जलाशय से बाहर निकलकर श्रमरहित राजा बभ्रुवाहन ने वृक्ष रूपी विशाल शाखाओं के कारण फैले हुए, मनोहर और शीतल छाया वाले तथा पक्षी समूहों से कूजित एक वट वृक्ष देखा। वह वृक्ष सम्पूर्ण वन की महती पताका की भाँति स्थित था। उसकी जड़ के पास जाकर राजा बैठ गया। उसके बाद राजा ने भूख और प्यास से व्याकुल इन्द्रियों वाले, ऊपर की ओर उठे हुए बालों वाले, अत्यन्त मलिन, कुबड़े और माँस रहित एक भयावह प्रेत को देखा।
उस विकृत आकृति वाले भयावह प्रेत को देखकर बभ्रुवाहन विस्मित हो गया। प्रेत भी घने जंगलों में आये हुए राजा को देखकर चकित हो गया और समुत्सुक मन वाला होकर वह प्रेतराज उसके पास आया।
हे तार्क्ष्य -
तब उस प्रेतराज ने राजाh से कहा – हे महाबाहो ;- आपके संबंध से मैंने प्रेत भाव का त्याग कर दिया है अर्थात मेरा प्रेत भाव छूट गया है और मैं परम शान्ति को प्राप्त हो गया हूँ तथा धन्यतर हो गया हूँ।
राजा ने कहा – हे कृष्णवर्ण वाले तथा भयावह रूप वाले प्रेत ! किस कर्म के प्रभाव से देखने में डरावने लगने वाले और बहुत ही अमंगलकारी इस प्रेतत्व-स्वरूप को तुमने प्राप्त किया है।
हे तात ;- अपने प्रेतत्व की प्राप्ति का सारा कारण बतलाओ। तुम कौन हो और किस दान से तुम्हारा प्रेतत्व नष्ट होगा?
प्रेत ने कहा – हे श्रेष्ठ राजन ! मैं आरंभ से आपको सब कुछ बतलाता हूँ। प्रेतत्व का कारण सुनकर आप कृपया उसे दूर करने की दया कीजिए। वैदिश नाम का एक नगर था जो सभी प्रकार की सम्पत्तियों से समृद्ध, नाना जनपदों से व्याप्त, अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण, धनिकों के भवनों तथा देव एवं राजप्रसादों से सुशोभित और अनेक प्रकार के धर्मानुष्ठानों से युक्त था।
शेष भाग आगे.....
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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