*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 आश्विन,कृष्ण पक्ष दशमी श्राद्ध2082 कालयुक्त, विक्रम सम्वत 16 सितम्बर 2025 मंगल वार पितृपक्ष चल रहा है।*
*🎈 दिनांक -16 सितंबर 2025*
*🎈 दिन- मंगलवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास -अश्विन*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈 पक्ष -श्राद्ध *
*🎈तिथि - दशमी 24:21:22 रात्रि तत्पश्चात् एकादशी*
*🎈नक्षत्र - आद्रा 06:45:04 am रात्रि तक तत्पश्चात् पुनर्वसु*
*🎈योग - वरियान 24:32:52
am तक तत्पश्चात् परिघ*
*🎈 करण - वणिज 12:52:43 am तक तत्पश्चात् बव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का to get अलग है- 03:33 am से 05:05 am तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - मिथुन till 24:27:32*
*🎈चन्द्र राशि - कर्क from 24:27:32*
*🎈सूर्य राशि- सिंह till 25:46:27*
*🎈सूर्य राशि- कन्या from 25:46:27*
*🎈सूर्योदय - 06:22:01am*
*🎈सूर्यास्त - 06:37:16:pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - अमृत काल 04:04 ए एम, सितम्बर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 04:47 ए एम से 05:34 ए एम तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:05 पी एम से 12:54 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:06 ए एम, सितम्बर 17 से 12:53 ए एम, सितम्बर 17*
*🎈अमृत सिद्धि योग 06:20 ए एम से 07:31 ए एम.
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 रोग - अमंगल-06:21 ए एम से 07:53 ए एम*
उद्वेग - अशुभ-07:53 ए एम से 09:25 ए एम वार वेला*
चर - सामान्य-09:25 ए एम से 10:57 ए एम*
लाभ - उन्नति-10:57 ए एम से 12:30 पी एम
अमृत - सर्वोत्तम-12:30 पी एम से 02:02 पी एम*
काल - हानि-02:02 पी एम से 03:34 पी एम काल वेला*
शुभ - उत्तम-03:34 पी एम से 05:06 पी एम*
रोग - अमंगल-05:06 पी एम से 06:38 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈काल - हानि-06:38 पी एम से 08:06 पी एम*
*🎈लाभ - उन्नति-08:06 पी एम से 09:34 पी एम काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-09:34 पी एम से 11:02 पी एम*
*🎈शुभ - उत्तम 11:02 पी एम से 12:30 ए एम, सितम्बर 17*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-12:30 ए एम से 01:58 ए एम, सितम्बर 17*
*🎈चर - सामान्य-01:58 ए एम से 03:26 ए एम, सितम्बर 17*
*🎈रोग - अमंगल+03:26 ए एम से 04:53 ए एम, सितम्बर 17*
*🎈काल - हानि-04:53 ए एम से 06:21 ए एम, सितम्बर 17*
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🚩*☀ #पितृ पक्ष☀*
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🔷 गरुड़ पुराण – दसवाँ अध्याय
"मृत्यु के अनन्तर के कृत्य, शव आदि नाम वाले छ्: पिण्ड दानों का फल, दाह संस्कार की विधि, पंचक में दाह का निषेध, दाह के अनन्तर किये जाने वाले कृत्य, शिशु आदि की अन्त्येष्टि का विधान"
गरुड़ जी बोले – हे विभो :- अब आप पुण्यात्मा पुरुषों के शरीर के दाह संस्कार का विधान बतलाइए और यदि पत्नी सती हो तो उसकी महिमा का भी वर्णन कीजिए।
श्रीभगवान ने कहा – हे तार्क्ष्य :- जिन और्ध्वदैहिक कृत्यों को करने से पुत्र और पौत्र, पितृ-ऋण से मुक्त हो जाते हैं, उसे बताता हूँ, सुनो। बहुत-से दान देने से क्या लाभ? माता-पिता की अन्त्येष्टि क्रिया भली-भाँति करें, उससे पुत्र को अग्निष्टोम याग के समान फल प्राप्त हो जाता है।
माता-पिता की मृत्यु होने पर पुत्र को शोक का परित्याग करके सभी पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए समस्त बान्धवों के साथ मुण्डन कराना चाहिए। माता-पिता के मरने पर जिसने मुण्डन नहीं कराया, वह संसार सागर को तारने वाला पुत्र कैसे समझा जाए? अत: नख और काँख को छोड़कर मुण्डन कराना आवश्यक है। इसके बाद समस्त बान्धवों सहित स्नान करके धौत वस्त्र धारण करें तब तुरंत जल ले आकर जल से शव को स्नान करावे और चन्दन अथवा गंगा जी की मिट्टी के लेप से तथा मालाओं से उसे विभूषित करें। उसके बाद नवीन वस्त्र से ढककर अपसव्य होकर नाम-गोत्र का उच्चारण करके संकल्पपूर्वक दक्षिणासहित पिण्डदान देना चाहिए। मृत्यु के स्थान पर “शव” नामक पिण्ड को मृत व्यक्ति के नाम-गोत्र से प्रदान करें। ऎसा करने से भूमि और भूमि के अधिष्ठाता देवता प्रसन्न होते हैं।
इससके पश्चात द्वार देश पर “पान्थ” नामक पिण्ड मृतक के नाम-गोत्रादि का उच्चारण करके प्रदान करे। ऎसा करने से भूतादि कोटि में दुर्गतिग्रस्त प्रेत मृत प्राणी की सद्गति में विघ्न-बाधा नहीं कर सकते। इसके बाद पुत्र वधू आदि शव की प्रदक्षिणा करके उउसकी पूजा करें तब अन्य बान्धवों के साथ पुत्र को शव यात्रा के निमित्त कंधा देना चाहिए। अपने पिता को कंधे पर धारण करके जो पुत्र श्मशान को जाता है, वह पग-पग पर अश्वमेघ का फल प्राप्त करता है।
पिता अपने कंधे पर अथवा अपनी पीठ पर बिठाकर पुत्र का सदा लालन-पालन करता है, उस ऋण से पुत्र तभी मुक्त होता है जब वह अपने मृत पिता को अपने कंधे पर ढोता है। इसके बाद आधे मार्ग में पहुँचकर भूमि का मार्जन और प्रोक्षण करके शव को विश्राम कराए और उसे स्नान कराकर भूत संज्ञक पितर को गोत्र नामादि के द्वारा ‘भूत’ नामक पिण्ड प्रदान करें। इस पिण्डदान से अन्य दिशाओं में स्थित पिशाच, राक्षस, यक्ष आदि उस हवन करने योग्य देह की हवनीयता अयोग्यता नहीं उत्पन्न कर सकते।
उसके बाद श्मशान में ले जाकर उत्तराभिमुख स्थापित करें। वहाँ देह के दाह के लिए यथाविधि भूमि का संशोधन करें। भूमि का सम्मार्जन और लेपन करके उल्लेखन करें अर्थात दर्भमूल से तीन रेखाएँ खींचें और उल्लेखन क्रमानुसार ही उन रेखाओं से उभरी हुई मिट्टी को उठाकर ईशान दिशा में फेंककर उस वेदिका को जल से प्रोक्षित करके उसमें विधि-विधानपूर्वक अग्नि स्थापित करें। पुष्प और अक्षत आदि से क्रव्यादसंज्ञक अग्निदेव की पूजा करें और “लोमभ्य: (स्वाहा)” इत्यादि अनुवाक से यथाविधि होम करना चाहिए। (तब उस क्रव्याद – मृतक का मांस भक्षण करने वाली – अग्नि की इस प्रकार प्रार्थना करें) तुम प्राणियों को धारण करने वाले, उनको उत्पन्न करने वाले तथा प्राणियों का पालन करने वाले हो, यह सांसारिक मनुष्य मर चुका है, तुम इसे स्वर्ग ले जाओ। इस प्रकार क्रव्याद-संज्ञक अग्नि की प्रार्थना करके वहीं चंदन, तुलसी, पलाश और पीपल की लकड़ियों से चिता का निर्माण करें।
हे खगेश्वर :- उस शव को चिता पर रख करके वहाँ दो पिण्ड प्रदान करें। प्रेत के नाम से एक पिण्ड चिता पर तथा दूसरा शव के हाथ में देना चाहिए। चिता में रखने के बाद से उस शव में प्रेतत्व आ जाता है। प्रेतकल्प को जानने वाले कतिपय विद्वज्जन चिता पर दिये जाने वाले पिण्ड को “साधक” नाम से संबोधित करते हैं। अत: चिता पर साधक नाम से तथा शव के हाथ पर “प्रेत” नाम से पिण्डदान करें। इस प्रकार पाँच पिण्ड प्रदान करने से शव में आहुति-योग्यता सम्पन्न होती है। अन्यथा श्मशान में स्थित पूर्वोक्त पिशाच, राक्षस तथा यक्ष आदि उसकी आहुति-योग्यता के उपघातक होते हैं। प्रेत के लिए पाँच पिण्ड देकर हवन किये हुए उस क्रव्याद अग्नि को तिनकों पर रखकर यदि पंचक (धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती ये पाँच नक्षत्र पंचक कहलाते हैं और इन पंचकों के स्वामी ग्रह क्रमश: वसु, वरुण, अजचरण अथवा अजैकपात, अहिर्बुध्न्य और पूषा हैं) न हो तो पुत्र अग्नि प्रदान करे।
पंचक में जिसका मरण होता है, उस मनुष्य को सद्गति नहीं प्राप्त होती। पंचक शान्ति किये बिना उसका दाह संस्कार नहीं करना चाहिए अन्यथा अन्य की मृत्यु हो जाती है। धनिष्ठा नक्षत्र के उत्तरार्ध से रेवती तक पाँच नक्षत्र पंचक संज्ञक है। इनमें मृत व्यक्ति दाह के योग्य नहीं होता औऔर उसका दाह करने से परिणाम शुभ नहीं होता। इन नक्षत्रों में जो मरता है, उसके घर में कोई हानि होती है, पुत्र और सगोत्रियों को भी कोई विघ्न होता है। अथवा इस पंचक में भी दाह विधि का आचरण करके मृत व्यक्ति का दाह-संस्कार हो सकता है।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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