*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 आश्विन,कृष्ण पक्ष नवमी श्राद्ध2082 कालयुक्त, विक्रम सम्वत 15 सितम्बर 2025 सोमवार पितृपक्ष चल रहा है।*
*🎈 दिनांक -15 सितंबर 2025*
*🎈 दिन- सोमवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास -अश्विन*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈 पक्ष -श्राद्ध *
*🎈तिथि - नवमी 25:30:39 रात्रि तत्पश्चात् दशमी*
*🎈नक्षत्र - मृगशीर्षा 07:30:43 am रात्रि तक तत्पश्चात् आद्रा*
*🎈योग - व्यतिपत 26:33:18
am तक तत्पश्चात् वरियान*
*🎈 करण - तैतुल 14:14:59 am तक तत्पश्चात् वणिज*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- 07:54 am से 09:26 am तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - मिथुन*
*🎈सूर्य राशि - सिंह*
*🎈सूर्योदय - 06:21:35am*
*🎈सूर्यास्त - 06:38:25:pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 04:47 ए एम से 05:34 ए एम तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:06 पी एम से 12:55 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:07 ए एम, सितम्बर 16 से 12:54 ए एम, सितम्बर 16*
*🎈अमृत सिद्धि योग 06:20 ए एम से 07:31 ए एम.
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 अमृत - सर्वोत्तम-06:20 ए एम से 07:53 ए एम*
*🎈काल - हानि-07:53 ए एम से 09:25 ए एम काल वेला*
*🎈शुभ - उत्तम-09:25 ए एम से 10:58 ए एम*
*🎈रोग - अमंगल-10:58 ए एम से 12:30 पी एम*
*🎈उद्वेग - अशुभ-12:30 पी एम से 02:02 पी एम*
*🎈चर - सामान्य-02:02 पी एम से 03:35 पी एम*
*🎈लाभ - उन्नति-03:35 पी एम से 05:07 पी एम वार वेला*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-05:07 पी एम से 06:40 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈चर - सामान्य-06:40 पी एम से 08:07 पी एम*
*🎈रोग - अमंगल-08:07 पी एम से 09:35 पी एम*
*🎈काल - हानि-09:35 पी एम से 11:03 पी एम*
*🎈 लाभ - उन्नति-11:03 पी एम से 12:30 ए एम, सितम्बर 16 काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-12:30 ए एम से 01:58 ए एम, सितम्बर 16*
*🎈शुभ - उत्तम-01:58 ए एम से 03:26 ए एम, सितम्बर 16*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-03:26 ए एम से 04:53 ए एम, सितम्बर 16*
*🎈चर - सामान्य-04:53 ए एम से 06:21 ए एम, सितम्बर 16*
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🚩*☀ #पितृ पक्ष☀*
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🔷 ##महालक्ष्मी_पूजनव्रत अंतिम दिन !!
16 दिवसीय महालक्ष्मी ( हाथीपूजा) व्रत की पुर्णाहुती आज होगी।राधाअष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत शुरू होते हैं और इनकी समाप्ति 16 दिन बाद अश्विन मास में कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को होती है।
विशेष --(महालक्ष्मी हाथी पूजा व्रत की विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग कथा और पूजन विधि विधान प्रचलित है।जो आपके क्षेत्र में कथा एवं पूजन विधि मान्य हो उसी अनुसार पूजा करें और चाहे तो इस लेख में बताएं पूजा विधि अनुसार भी कर सकते हो।)
~महालक्ष्मी हाथीपूजा व्रत का महत्व~
इस दिन माता महालक्ष्मी का पूजन किया जाता हैं और संध्या के समय चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देते हैं। महिलायें यह महालक्ष्मी व्रत, माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये करती है, ऐसी मान्यता है कि इन सोलह दिनों तक महालक्ष्मी व्रत का पालन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है, धन-धान्य की कोई कमी नही होती, जीवन की सभी परेशानियों का नाश हो जाता है और जीवन सुखमय हो जाता हैं। इस व्रत का पालन करने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
इस पूजा में हाथी पर विराजमान माता लक्ष्मी के स्वरूप की पूजा का बिशेष महत्व है । बहुत से स्थानों पर कच्ची मिट्टीसे निर्मित हाथी पर बैठी हुई माता गजलक्ष्मी की मूर्ति कीपूजा की जाती है ।( सोलह दिन बाद इस मिट्टी की मूर्ति का
विसर्जन घर के गमले रखे या जलाशय में विसर्जित करते हैं।)।इस व्रत को बहुत से लोग हाथी पूजा व्रत भी कहते हैं। मूर्ति के अभाव में चित्र का पूजन भी किया जा सकता है।
महालक्ष्मी व्रत सोलह दिनों करें जाने की परम्परा हैं।
पर बहुत सारे लोग अंतिम एक दिन यानि केवल अश्विन कृष्ण अष्टमी को व्रत कर पूजा करते हैं ।
यह व्रत स्त्री और पुरूष दोनों कर सकते हैं। इस व्रत का पालन करने वाले को सोलह दिनों तक व्रत रखना होता हैं और व्रत के इन सोलह दिनों में संध्या के समय चंद्रमा को अर्ध्य देना होता हैं। अगर कोई सोलह दिनों तक व्रत न कर सकता हो, तो वो अपनी क्षमता के अनसार सोलह दिनों से कम दिन का व्रत रख सकता हैं।
पर अंतिम एक दिन का व्रत अनिवार्य है।सोलह दिनों तक व्रत रखने के बाद इस व्रत का उद्यापन किया जाता हैं। इस व्रत में भोजन में अन्न ग्रहण नही करतें।बहुत से लोग पूजा के बाद संध्या को एक समय कोई मीठा पकवान या फलाहार अथवा सात्विक भोजन करते हैं।
1. महालक्ष्मी व्रत का पालन करने से साधक को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं।
2. कभी धन-धान्य की कमी नही होती।
3. जीवन की समस्त परेशानियों का नाश हो जाता हैं।
4. माँ लक्ष्मी की कृपा से इस व्रत का पालन करने वाली स्त्री को संतान का सुख और पारिवार का सुख प्राप्त होता हैं। धन-समृद्धि प्राप्त होती हैं।
5. माँ लक्ष्मी की कृपा से इस व्रत का पालन करने वाले पुरुष को रोजगार और व्यवसाय में उन्नति प्राप्त होती हैं।
महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार हैं-
पूजन की सामग्री
श्री गजलक्ष्मी का चित्र, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, आसऩ (बैठने के लिये), रुपया, धूप, दीपक, लाल फूल, लाल रंग का वस्त्र, ताँबे का कलश, कलश को ढ़कने के लिये कटोरी, घी, नैवेद्य, फल, फूल, चन्दन, फूल माला, दूर्वा, धागा (कच्चा सूत), सुपारी और नारियल।
महालक्ष्मी पूजा के लिए पुष्प से निर्मित छत्र (फुलेरा) चढ़ाने का भी बिशेष महत्व है।
अनार के दानों का भी भोग लगाएं ।
दूर्वादल अवश्य चढ़ाएं। इसके अतिरिक्त महालक्ष्मी को बेलपत्र भी बहुत प्रिय है संभव हो तो नित्य या अंतिम दिन 16 बेलपत्र भी चढ़ावें या 16 बेलपत्र और 16 कमलगट्टे को घी और शहद में मिलाकर हवन में लक्ष्मी मंत्र पढ़कर आहुति दें। सूखे हुए कमलपुष्प गुलाब, तथा बिल्बफल के गूदे से भी लक्ष्मी हवन किया जाता है। अंतिम दिन मखाने की खीर का भोग लगाएं।
1. महालक्ष्मी व्रत के आरम्भ के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
2. चावल के घोल से घर के आंगन में अल्पना बनाएं। और उस अल्पना में मां लक्ष्मी के चरण जरूर बनायें।
3. फिर पूजा स्थान पर आसन बिछा कर बैठ जाये और उसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करके व्रत का संकल्प करें।
करिष्यहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा।
तदविघ्नेन में यातु समाप्तिं स्वत्प्रसादत:।।
4. फिर सोलह तार का धागा लेकर उसमें सोलह गांठ लगाये और उसे हल्दी से रंग कर अपने हाथ पर बांध ले। स्त्रियाँ अपने बायें हाथ पर और पुरूष अपने दायें हाथ पर धागा बांधे।
5. फिर धान की बालियाँ, आम और आंवले के पत्ते लेकर उनसे माँ लक्ष्मी का आसन सजायें।
6. तत्पश्चात कलश में जल भरकर रखें। और साथ ही भगवान गणेश और माँ गजलक्ष्मी की तस्वीर लगायें।
7. धूप-दीप जलाकर भगवान गणेश की पूजा करें, फिर उसके बाद कलश की पूजा करें।
8. तत्पश्चात् मां गजलक्ष्मी की पूजा करें।
जल के छींटे लगायें, रोली-मोली-चावल लगायें, लाल वस्त्र चढ़ायें, लाल फूल, बेलपत्र, चढ़ायें, फूल माला अर्पित करें, नैवेध चढ़ायें, दूर्वा, नारियल, सुपारी चढ़ायें, सामर्थ्य अनुसार सोना या चाँदी या रूपये चढ़ायें। विधि-विधान के साथ माँ का पूजन करें। भगवान नारायण का भी यथोचित स्मरण पूजन करें।इन सोलह दिन तक महालक्ष्मी को उनके वाहन हाथी को दूर्वा अवश्य चढ़ाएं।
9. पूजन करने के बाद महालक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।संभव हो तो कथा के साथ भगवती लक्ष्मी केश्री सूक्त कनकधारा स्तोत्र लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी सहस्रनाम या 105 नाम का पाठ करें।
10. सामर्थ्य अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार लक्ष्मी मंत्र का जाप करें।
11. फिर धूप-दीप से माँ लक्ष्मी की आरती करें।
12 सोलहवे दिन पूजन करने के बाद उद्यापन अवश्य करें।
13. माता लक्ष्मी की पूजा में भगवान नारायण का भी स्मरण अवश्य करें। साथ में गणेश सरस्वती, कुबेर का भी नाम स्मरण करें।
पूजा के प्रारंभ में गणेश, पंचदेव,नवग्रह कुलदेव
पितृदेव हनुमान, स्वर्णाकर्षणभैरव आदि का भी स्मरण करें ।
🪷आज महालक्ष्मी व्रत के उद्यापन की विधि
(आश्विन कृष्ण अष्टमी के अंतिम दिन की पूजा विधि)
1. महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर आश्विन मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तक चलता है।
(बहुत सारे लोग केवल इस अंतिम दिन ही व्रत और पूजन करते हैं)।सोलह दिन का व्रत पूर्ण होने के पश्चात अंतिम दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी को वस्त्र से एक मंडप बनायें।इस दिन हाथी पर सवार गजलक्ष्मी स्वरूप के पूजन काबिशेष महत्व है।
गजलक्ष्मी व्रत का पूजन शाम के समय किया जाता है. शाम के समय स्नान कर पूजास्थान पर लाल कपड़ा बिछाएं. केसर मिले चन्दन से अष्टदल बनाकर उस पर चावल रखें. फिर जल से भरा कलश रखें. अब कलश के पास हल्दी से कमल बनाएं. इस पर माता लक्ष्मी की कच्ची मिट्टी की मूर्ति रखें. मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या घर में बनाकर उसे स्वर्णाभूषणों से सजाएं. अगर यह संभव न हो तो हो तो इस दिन अपनी श्रद्धानुसार आटे या बेसन से बने (तेल में तलकर) प्रसादस्वरूप स्वर्णाभूषण बनाकर भी चढ़ा सकते हैं गेहूं के आटे से बने 16 दीपक विशेष रूप से जलाएं।
सोने या चांदी का हाथी भी ला सकते या कच्ची मिट्टी का प्रयोग कर सकते हैं। इस दिन चांदी के हाथी का ज्यादा महत्व माना गया है। इसलिए अगर संभव हो तो पूजा स्थान पर चांदी के छोटे से हाथी का प्रयोग करें। इस दौरान माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें. कमल के फूल से मां का पूजन करें. दूर्वा, बेलपत्र गुलाब गेंदा गुड़हल मोगरा चमेली आदि सुगंधित पुष्प भी चढ़ा सकते हैं।
वैसे भगवती महालक्ष्मी के अनंत रूप है। एक मनुष्य अपने जीवन में जो भी भौतिक और आध्यात्मिक रूप से जिस भी वस्तु या तत्व की कामना करता है उसके पीछे लक्ष्मी का कोई न कोई स्वरूप होता है इस सृष्टि में जो भी शुभ,सुंदर,पवित्र उपयोगी कल्याणकारी तत्व है वह महालक्ष्मी का ही एक रूप है।
कुछ विशिष्ट 16 रूपों के नाम के दो समूह नीचे दिए गए हैं। जिनमे से किसी भी एक समूह के 16 नामो के द्वारा इन 16 दिनों में पूजा कर सकते हैं।
लक्ष्मी के 16 रूप ये हैं-
१.ॐ आदिलक्ष्म्यै नमः। २.ॐ धनलक्ष्म्यै नमः।
३.ॐ , धान्यलक्ष्म्यै नमः। ४.ॐ, गजलक्ष्म्यै नमः।
५.ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः। ६..ॐ गृहलक्ष्म्यै नमः।
७..ॐ भोगवरदा लक्ष्म्यै नमः। ८.ॐ सन्तानलक्ष्म्यै नमः।
९.ॐ विजयलक्ष्म्यै नमः। १०.ॐ सौभाग्यदालक्ष्म्यै नमः।
११.ॐ साम्राज्यदालक्ष्म्यै नमः।
१२.ॐ , त्रिशक्तिलक्ष्म्यै नमः।
१३.ॐ,प्रसन्नवरदालक्ष्म्यै नमः।
१४.ॐ सिद्धियोगलक्ष्म्यै नमः।
१५.ॐ अमृतसंजीवनीलक्ष्म्यै नमः।
१६.ॐ मोक्षलक्ष्म्यै नमः।
इसके अतिरिक्त महालक्ष्मी कुछ अन्य कल्याणकारी 16 विशिष्ट नाम भी है ।
१.ॐ श्रीदेव्यै नमः।२ ॐ पदमायै नमः।
३.ॐ कमलायै नमः। ४.ॐ रमादेव्यै नमः।
५ .ॐ लक्ष्म्यै नमः। ६.ॐ अम्बुजायै नमः।
७.ॐ इन्दिरायै नमः। ८.ॐ हरिप्रियायै नमः।
९. ॐ हेमामालिन्यै नमः। १०.ॐ कनकप्रभायै नमः।
११. ॐ दारिद्यविनाशिन्यै नमः। १२.ॐ ऋणमुक्तायै नमः।
१३.ॐ,धनदात्र्यै नमः।१४..ॐ भाग्येश्वर्यै नमः।
१५..ॐ त्रिभुवनराजराजेश्वर्यै नमः।
१६. ॐ महासुदर्शनायै नमः।
1.आखिर में आटे के 16 दीपक जलाकर पूजा कर कथा सुनें, माता लक्ष्मी की आरती करें और उन्हें भोग लगाएं।
2.माँ लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजन करें। अगर आप स्वयं पूजन नही कर सकते हो तो किसी योग्य पण्ड़ित के द्वारा भी पूजा करा सकते हैं।
3. नया सूप लेकर उसमें सोलह की संख्या में चन्दन, तालपत्र, पुष्पमाला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि सामग्री रखें और उसे दूसरे नये सूप से ढककर इस मंत्र का उच्चारण करके इसे माँ लक्ष्मी को अर्पित करें।
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीचन्द्र सहोदरा।
व्रतेनानेन सन्तुष्टा भव भर्तोवपुबल्लभा॥
(इस श्लोक का अर्थ है, क्षीर सागर में उत्पन्न हुई लक्ष्मी, चन्द्रमा की बहन, श्री विष्णु वल्लभा इस व्रत से सन्तुष्ट हों।)
4. अंतिम दिन कम से कम एक ब्राह्मण और एक सुहागिन स्त्री को भोजन कराएं।
5. रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें।
महालक्ष्मी मंत्र --
👉🪷१.ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: श्रीं जगतप्रसूत्यै महालक्ष्म्यै नमः।
👉🪷२.ॐ ह्रीं कमलायै सर्व सुखदायिनी कष्टनाशिनी कमलायै श्रीं नमः।
महालक्ष्मी कथा का छंद
(यह नित्य पूजा कथा में आवश्यक रूप से बोला जाता है )
ऊंचों सो पोरपाटन गांव, जहां थे राजा मंगलसेन
आमोती दामोती दो रानी, वामन बरूआ कहे कहानी
सुनो महालक्ष्मी महारानी, हमसे कहते तुम सब सुनते।
सोलह बोल की एक कहानी।
(कथा पढ़ने के बाद सोलह दिन इस छंद को सोलह बार पढ़कर महालक्ष्मी को अर्पित करते हुए 16 अखंड चावल के दाने एक जल कलश में डालते जाते हैं।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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