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पंचांग - 22-08-2025

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈 दिनांक - 22 अगस्त 2025*
*🎈 दिन  शुक्रवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - वर्षा*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈तिथि - चतुर्दशी    11:55:13 AM तत्पश्चात् अमावस्या*

*🎈नक्षत्र -         आश्लेषा    24:15:27 रात्रि तत्पश्चात्         मघा*
*🎈योग -     वरियान    14:33:56 तक तत्पश्चात् परिध🎈*
*🎈 करण    -    वरियान    14:33:56 तत्पश्चात् नाग*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग  है-  दोपहर 11:01 से  सांय 12:38 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि-       कर्क    till 24:15:27*
*🎈चन्द्र राशि    -   सिंह    from 24:15:27*
*🎈 सूर्य राशि -     सिंह*
*🎈सूर्योदय - 06:10:48am*
*🎈सूर्यास्त - 07:04:36pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)* 
*🎈दिशा शूल -  पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:41 से प्रातः 05:25 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)* 
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:04 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:16 ए एम, अगस्त 23 से 01:00 ए एम, अगस्त 23*
*🎈अमृत काल    10:40 पी एम से 12:16 ए एम, अगस्त 23*

*🎈सुगंध बाला, जिसे हिंदी में "तगर" या "मुश्क बाला" भी कहा जाता
यह एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जो मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है। 
इसे संस्कृत में तगर कहा जाता है। इसकी जड़ों से विशेष सुगंध आती है, और इसका उपयोग आयुर्वेद, यूनानी, और अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। यह तंत्रिका तंत्र, नींद, और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के उपचार में विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।

➡️ सुगंध बाला के औषधीय उपयोग,,,

सुगंध बाला के औषधीय गुण इसके रासायनिक घटकों जैसे वेलरिएनिक एसिड, वेलरेट्स, और उड़नशील तेलों के कारण होते हैं। इसके प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं:

नींद संबंधी विकार (अनिद्रा):

सुगंधवाला एक प्राकृतिक सेडेटिव (शांतिदायक) है, जो अनिद्रा (Insomnia) के उपचार में मदद करता है। यह तंत्रिका तंत्र को शांत करता है और गहरी नींद को बढ़ावा देता है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का चूर्ण (1-2 ग्राम) गर्म दूध या पानी के साथ सोने से पहले लिया जा सकता है।

तनाव और चिंता (Stress and Anxiety):

यह जड़ी-बूटी तनाव, चिंता, और मानसिक अशांति को कम करने में सहायक है। यह कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का काढ़ा (10-15 मिली) दिन में एक बार लिया जा सकता है।

मिर्गी और तंत्रिका विकार...

सुगंधवाला का उपयोग मिर्गी (Epilepsy) और अन्य तंत्रिका संबंधी विकारों में तंत्रिकाओं को शांत करने के लिए किया जाता है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का चूर्ण (1 ग्राम) शहद के साथ दिन में दो बार लिया जा सकता है।

पाचन संबंधी समस्याएं.....

यह पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है और अपच, कब्ज, और पेट फूलने जैसी समस्याओं में राहत देता है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का चूर्ण (0.5-1 ग्राम) भोजन के बाद पानी के साथ लिया जा सकता है।

दर्द निवारक और सूजन रोधी....

सुगंधवाला में दर्द निवारक और सूजन रोधी गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन, और गठिया में राहत प्रदान करते हैं।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का तेल प्रभावित क्षेत्र पर मालिश करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

हृदय स्वास्थ्य......

यह रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय को शांत करने में मदद करता है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का काढ़ा (10 मिली) दिन में एक बार लिया जा सकता है।

त्वचा रोग....

सुगंधवाला की जड़ का उपयोग त्वचा रोगों जैसे खुजली और घावों के उपचार में भी किया जाता है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का लेप प्रभावित त्वचा पर लगाया जा सकता है।

मासिक धर्म संबंधी समस्याएं....

यह मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द और ऐंठन को कम करने में सहायक है।

उपयोग: सुगंधवाला की जड़ का चूर्ण (1 ग्राम) गर्म पानी के साथ लिया जा सकता है।

अन्य जड़ी-बूटियों के साथ नुस्खे.....

सुगंधवाला का प्रभाव अन्य जड़ी-बूटियों के साथ संयोजन में और भी बढ़ जाता है। यहाँ कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे दिए गए हैं:

अनिद्रा के लिए (सुगंधवाला + अश्वगंधा):

सामग्री: सुगंधवाला जड़ का चूर्ण (1 ग्राम), अश्वगंधा चूर्ण (1 ग्राम), शहद (1 चम्मच), गर्म दूध (1 गिलास)।

विधि: दोनों चूर्णों को शहद के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ सोने से पहले लें। यह नींद को प्रेरित करता है और तनाव को कम करता है।

तनाव और चिंता के लिए (सुगंधवाला + जटामांसी):

सामग्री: सुगंधवाला जड़ का चूर्ण (1 ग्राम), जटामांसी चूर्ण (1 ग्राम), गर्म पानी (1 कप)।

विधि: दोनों चूर्णों को गर्म पानी में मिलाकर दिन में एक बार पिएं। यह मस्तिष्क को शांत करने और चिंता को कम करने में प्रभावी है।

 पाचन समस्याओं के लिए (सुगंधवाला + अजवायन):

सामग्री: सुगंधवाला जड़ का चूर्ण (0.5 ग्राम), अजवायन (1 ग्राम), सेंधा नमक (चुटकी भर), गर्म पानी (1 कप)।

विधि: सभी सामग्रियों को गर्म पानी में मिलाकर भोजन के बाद पिएं। यह अपच और पेट फूलने में राहत देता है।

जोड़ों के दर्द के लिए (सुगंधवाला + अदरक):

सामग्री: सुगंधवाला जड़ का तेल (5 मिली), अदरक का रस (1 चम्मच), नारियल तेल (10 मिली)।

विधि: सभी को मिलाकर हल्का गर्म करें और प्रभावित जोड़ों पर मालिश करें। यह दर्द और सूजन को कम करता है।

मिर्गी के लिए (सुगंधवाला + शंखपुष्पी):

सामग्री: सुगंधवाला जड़ का चूर्ण (1 ग्राम), शंखपुष्पी चूर्ण (1 ग्राम), शहद (1 चम्मच)।

 विधि: दोनों चूर्णों को शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम लें। यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है और मिर्गी के दौरे को नियंत्रित करने में मदद करता है।

खुराक और सावधानियां....

खुराक: सामान्यतः सुगंधवाला की जड़ का चूर्ण 1-2 ग्राम, काढ़ा 10-20 मिली, या तेल 5-10 मिली की मात्रा में लिया जाता है। खुराक व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य स्थिति, और चिकित्सक की सलाह पर निर्भर करती है।

सावधानियां....

अधिक मात्रा में सेवन से सुस्ती, चक्कर, या नींद की अधिकता हो सकती है।

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को चिकित्सक की सलाह के बिना इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।

इसे अन्य सेडेटिव दवाओं के साथ लेने से बचें, क्योंकि यह प्रभाव को बढ़ा सकता है।

➡️ हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लें।

 निष्कर्ष...

सुगंधवाला एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जो नींद, तनाव, तंत्रिका विकार, और पाचन समस्याओं में प्रभावी है। अन्य जड़ी-बूटियों जैसे अश्वगंधा, जटामांसी, शंखपुष्पी, और अदरक के साथ इसके संयोजन से इसके लाभ और बढ़ जाते हैं। हालांकि, इसका उपयोग सावधानीपूर्वक और चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए।

*🎈विशेष - चतुर्दशी तिथि को कुछ विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित माना जाता है। विशेष रूप से, इस दिन मूली, बेल, और नीम का सेवन नहीं करना चाहिए।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*


    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
   नागौर, राजस्थान, (भारत)    
       सूर्योदय के अनुसार।

चर-06:11-07:48 शुभ*

लाभ-07:48 -09:24शुभ*

अमृत-09:24-11:01शुभ*

काल-11:01-12:38अशुभ*

शुभ-12:38- 14:14शुभ*

रोग-14:14-15:51अशुभ*

उद्वेग-15:51-17:28 अशुभ

चर-17:28 -19:05 शुभ*

 *🛟चोघडिया, रात्🛟*

रोग-19:05- 20:28-अशुभ*

काल-20:28 -21:51अशुभ*

लाभ-21:51- 23:15 शुभ*

उद्वेग-23:15-24:38* अशुभ

24:38* -26:01*शुभ*

अमृत-26:01* --27:25*शुभ*

चर-27:25* -28:48* शुभ*

रोग-28:48* -30:11*अशुभ
kundli


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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
           
 *♨️  ⚜️ 🕉🌞    श्वेताश्वरोपनिषद 🌞🕉
               ⚜🚩⚜
🌞👉 जब योग साधना से युक्त साधक जिस प्रकार से दीपक से वस्तु को देखा जाता है वैसे ही आत्म तत्व के द्वारा ब्रह्म तत्व का साक्षात्कार करता है ।
👉  इसका अर्थ है  कि उस परब्रह्म परमात्मा तक इंद्रिय, मन ,बुद्धि अहंकार आदि की पहुंच नहीं हैं, वह तो निर्विकल्प ,निर्विचार अजन्मा, निश्चल, संपूर्ण तत्वों से अतीत है इसलिए उस तत्व अतीत को  तत्व कैसे जान सकते हैं ? उसे जानते जानते ये सभी तत्व मार्ग में ही अपना अस्तित्व खो देते हैं, समाप्त हो जाते हैं  और जब उसे जाना जाता है तो वहां पर सिर्फ और सिर्फ आत्म तत्व ही शेष रहता है । आत्म तत्व के प्रकाश में ही उस ब्रह्म के प्रकाश को जाना जाता है किंतु जब आत्मा उसे जान लेता है तो जानने के साथ ही वह बिल्कुल शून्य हो जाता है क्योंकि आत्मा के पास अब जानने का कोई अनुभव नहीं।वह जिसको जानता है उसी में एकाकार हो जाता है । डूब जाता है खो जाता है ।
🌞👉 वही एक परमात्मा संपूर्ण दिशाओं में व्याप्त है। वही सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ रूप में प्रकट हुआ ।यह हिरण्यगर्भ शब्द अधिकांश योग ग्रंथों में मिलता है। गीता में भी यह शब्द आया है। हिरण्यगर्भ के संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है - "सर्वप्रथम मैंने यह योग का ज्ञान हिरण्यगर्भ को दिया था"। इसलिए योग का आदि जनक "हिरण्यगर्भ "को ही माना जाता है। इस दृष्टिकोण से यह शब्द योगपथ के प्रत्येक जिज्ञासु साधक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है किंतु इस शब्द की  व्याख्या किसी भी प्रकाशन की गीता एवं पुराणों में कहीं पर भी उपलब्ध नहीं है ।उपनिषदों में इस शब्द को जिज्ञासा के रूप में शिष्यों द्वारा पूछे जाने पर ऋषियों ने गहराई से समझा रखा है। उसी अनुसार हिरण्यगर्भ किसी व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि यह मनुष्य के सूक्ष्म शरीर का पर्याय है। हमारे इस शरीर का निर्माण 25 तत्वों से हुआ है एवं  संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण भी इन्हीं 25 तत्वों से हुआ है ।इनमें से पंच आंतरिक कर्मेंद्रीयां ,पंच आंतरिक ज्ञानेंद्रियां, पाँच पंच तत्वों की तन्मात्रायें एवं मन,बुद्धि, अहंकार के साथ आत्मा के अस्तित्व के द्वारा जिस सूक्ष्म तेजो मयी शरीर का निर्माण होता है ,उसी को "हिरण्यगर्भ" संज्ञा दी गई है। इस प्रकार कुल मिलाकर 19 तत्व होते हैं जिन से सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है। मृत्यु होने पर यही 19 तत्वों से युक्त सूक्ष्म शरीर शरीर को छोड़कर बाहर निकलता है। किसी भी ज्ञान को ग्रहण करने का हेतु यह सूक्ष्म शरीर ही होता है। मनुष्य यदि स्वर्ग में जाता है तो वहां पर भी इसी सूक्ष्म शरीर से जाता है भौतिक शरीर से नहीं और यह शरीर सुख दुख आदि का उसी तरह अनुभव करता है जिस प्रकार से स्थूल शरीर के रहते हुए करता है। मुक्ति की अवस्था में जीवात्मा इन 19 तत्वों में से प्रकृति से संबंधित अट्ठारह तत्वों को भी छोड़ देता है । उस स्थिति में मात्र एक  तत्व " आत्मा "ही शेष रह जाता है और जहां पर आत्मा ही शेष रह जाता है वहां पर आत्मवत सर्वभूतेषु स्थिति का जन्म होता है जबकि जन्म ग्रहण करने पर इस सूक्ष्म शरीर में पांच स्थूल तत्व पृथ्वी ,जल, अग्नि, वायु आकाश और जुड़ जाते हैं इन्हीं पंचभूत तत्वों से इस शरीर रूपी पिंड का निर्माण होता है। इस प्रकार से कुल 24 तत्व होते हैं। यहां पर सूक्ष्म शरीर की संरचना समझाते हुए हमने आत्म तत्व को पहले ही जोड़ लिया है क्योंकि इस पिंड रूपी शरीर में  आत्म तत्व  ब्रह्म का ही प्रतिनिधित्व करता है। 25 वा तत्व मूल प्रकृति जो सतोगुण रजोगुण तमोगुण की साम्यावस्था है। इस प्रकार से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना का तत्वज्ञान सामने आता है।
👏 यहां पर विषय को समझाने की आवश्यकता को देखते हुए तत्वों की गणना ऊपर नीचे हो गई है। ज्ञानी जन सिर्फ विषय के संदर्भ में इन तत्वों की क्रमबद्धता को समझने का कष्ट करें।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले  सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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