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पंचांग - 23-08-2025

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis



*🎈 दिनांक - 23 अगस्त 2025*
*🎈 दिन  शनिवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - वर्षा*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - कृष्ण*
*🎈तिथि - अमावस्या    11:35:16 Am तत्पश्चात् प्रतिपदा*
*🎈नक्षत्र -             मघा - 12:54 ए एम, अगस्त 24 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*🎈योग -     परिघ    13:18:20 pm तक तत्पश्चात् शिव*
*🎈 करण    -    नाग    11:35:16 am तत्पश्चात् बव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग  है-   09:24 am से 11:01am तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि    -   सिंह    *
*🎈 सूर्य राशि -     सिंह*
*🎈सूर्योदय - 06:11:16am*
*🎈सूर्यास्त - 07:03:36pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)* 
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:41 से प्रातः 05:26 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)* 
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:12 पी एम से 01:00 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:15 ए एम, अगस्त 24 से 01:00 ए एम, अगस्त 24*
*🎈अमृत काल    10:27 पी एम से 12:05 एएम

 





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🎈शिव का मौन, पार्वती की शक्ति, गणेश की बुद्धि, कार्तिकेय की अग्नि: मुक्ति की शारीरिक रचना

*🎈यह कोई परिवार नहीं, बल्कि एक ब्रह्मांडीय समीकरण है, चेतना के व्यक्त से निरपेक्ष और पुनः निरपेक्ष में परिवर्तन का एक दिव्य सूत्र। शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय अस्तित्व, विलय और उनके बीच के मार्ग के मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

*🎈शिव: अचल निरपेक्ष। 
शिव शुद्ध चेतना (चित) हैं, समस्त सत्ता का मौन, स्थिर, अव्यक्त आधार। वे साक्षी हैं, वह शून्य परदा जिस पर अभिव्यक्ति की फिल्म चलती है। वे गुणों (निर्गुण) से परे, काल से परे, कर्म से परे हैं। गूढ़ रूप से, वे लक्ष्य हैं, सत् चित् आनंद की वह अवस्था जिसे साधक प्राप्त करना चाहता है।
*🎈पार्वती: गतिशील सृजनात्मक शक्ति।
पार्वती शक्ति हैं, उसी चेतना का सक्रिय, गतिशील पहलू। वे वापसी की मूल इच्छा हैं। वे प्रेम और उत्कंठा हैं जो सृष्टि को उसके स्रोत की ओर वापस खींचती है। वह आध्यात्मिक हृदय, भक्ति का उत्साह और संकल्प हैं जो घर की यात्रा का सूत्रपात करते हैं।
*🎈गणेश: एकीकरण का सिद्धांत और पवित्र आत्मा। 
गणेश, उस महत्वपूर्ण प्रथम चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं: 
वाहन की तैयारी। इससे पहले कि साधक पारलौकिकता (कार्तिकेय का मार्ग) की आकांक्षा कर सके, स्वयं को एकीकृत और शुद्ध करना आवश्यक है। गणेश एक सुसंस्कृत व्यक्ति हैं, वह आत्मा जिसने अपनी ऊर्जाओं को संतुलित किया है और स्वयं को मुक्ति की अपार शक्ति का पात्र बनाया है।
*🎈कार्तिकेय: प्रत्यक्ष पारलौकिकता का सिद्धांत।।
कार्तिकेय ज्ञान योग (ज्ञान का योग) और गहन तप (तपस) का मार्ग हैं। वे सभी अ-स्व ("नेति, नेति" - यह नहीं, यह नहीं) का प्रत्यक्ष, निर्मम और तीव्र निषेध हैं। वे परम (शिव) के साथ विलय की ओर साधक की ऊर्जा का अंतिम, प्रचंड आवेग हैं।
*🎈पूर्ण गूढ़ परिपथ। 
1. अवतरण (अंतर्ग्रहण): शिव (चेतना) पार्वती (ऊर्जा) के माध्यम से ब्रह्मांड के रूप में प्रकट होते हैं। यही बनने की प्रक्रिया है।
2. वापसी का आह्वान: सृष्टि में दिव्य प्रेरणा के रूप में पार्वती, वैयक्तिक आत्मा (जीव, जिसका प्रतिनिधित्व गणेश करते हैं) में आध्यात्मिक लालसा जगाती हैं।
3. तैयारी: आत्मा (गणेश) को पहले तैयार होना होगा। उसे बाधाओं को दूर करना होगा, अपने द्वैत को एकीकृत करना होगा और अपनी ऊर्जा को स्थिर करना होगा।
 4. आरोहण (विकास - दो विधाएँ):
*🎈· एकीकरण का मार्ग (गणेश सिद्धांत): क्रमिक मार्ग, संसार में कार्य करते हुए, कर्म को पवित्र करते हुए, और भक्ति एवं ज्ञान के माध्यम से धीरे-धीरे अहंकार का विलय।
*🎈· त्याग का मार्ग (कार्तिकेय सिद्धांत): त्याग और विवेक का प्रत्यक्ष, मौलिक मार्ग, जो सांसारिक ऊर्जा से जुड़े बिना सीधे स्रोत की ओर लक्ष्य करता है।
5. विलयन: पार्वती की प्रारंभिक इच्छा से प्रेरित दोनों मार्ग, एक ही बोध, साधक का साधित में विलय, में परिणत होते हैं। व्यक्तिगत चेतना (गणेश/कार्तिकेय) पुनः परम (शिव) में विलीन हो जाती है।
इस प्रकार, यह चतुर्भुज संपूर्ण मानचित्र है: स्थिरता, शक्ति, एकीकृत आत्मा और पारलौकिक आवेग। ये वास्तविकता के चार स्तंभ हैं, एक ही चेतना अपनी आत्म-खोज के दिव्य नाटक में चार अलग-अलग भूमिकाएँ निभाती है।
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*🎈शनि अमावस्या, जिसे शनिश्चरी अमावस्या भी कहते हैं, हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि है। यह तब होती है जब अमावस्या तिथि शनिवार के दिन पड़ती है। इस बार  यह 23 अगस्त 2025 को पड़ रही है इस दिन का धार्मिक महत्व बहुत बढ़ जाता है क्योंकि यह शनिदेव और पितरों (पूर्वजों) दोनों को समर्पित है।

*🎈महत्व:
 ● शनिदेव की कृपा: शनि अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या महादशा का प्रभाव होता है, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। इस दिन पूजा-पाठ और दान करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
 ● पितृ दोष से मुक्ति: अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित होती है। शनि अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
 ● सकारात्मक ऊर्जा: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।

*🎈पूजा विधि और उपाय:
 ● स्नान और दान: शनि अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। यदि संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इसके बाद जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, सरसों का तेल, काले तिल, उड़द की दाल और लोहे की बनी वस्तुओं का दान करना चाहिए।

 ● शनिदेव की पूजा:
   ● शनिदेव की प्रतिमा पर सरसों का तेल, नीले फूल और काले तिल चढ़ाएं।
   ● सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
   ● "ॐ शं शनैश्चराय नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें।
   ● शनि चालीसा का पाठ करें।
 ● पीपल के पेड़ की पूजा: इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करना बहुत शुभ होता है। सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और शाम को सरसों के तेल का दीपक जलाकर 7 बार परिक्रमा करें।
 ● हनुमान जी की पूजा: शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करना भी बहुत लाभकारी होता है। इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान मंदिर में सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं।

*🎈क्या न करें:
 ● शनि अमावस्या के दिन नाखून काटना, बाल कटवाना या दाढ़ी-मूंछ बनवाना उचित नहीं माना जाता है।
 ● नमक, सरसों का तेल या लोहे की चीजें खरीदना शुभ नहीं होता है।
 ● किसी से झगड़ा करने या बड़ों का अपमान करने से बचना चाहिए।

*🎈शनि अमावस्या एक ऐसा दिन है जब शनिदेव और पितरों दोनों को प्रसन्न करके जीवन की कई परेशानियों को दूर किया जा सकता है। इस दिन किए गए उपाय और पूजा-पाठ का फल कई गुना अधिक मिलता है।


*🎈विशेष - बैंगन, सरसों का साग और मूली जैसी सब्जियों को अमावस्या के दिन खाना अशुभ माना जाता है
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*

नागौर, राजस्थान, (भारत)    
       सूर्योदय के अनुसार।


*🛟चोघडिया, दिन🛟*

choghdiya


   



 *🛟चोघडिया, रात्🛟*
choghdiya





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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*

           
 *♨️  ⚜️ 🕉🌞 कुंती
सूर्यपुत्र कर्ण 🌞🕉
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🌞👉 महादानी तेजस्वी सूर्यपुत्र कर्ण का जीवन इतना त्रासदी युक्त क्यों रहा?
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एक असुर था - दम्बोद्भव । उसने सूर्यदेव की बड़ी तपस्या की । सूर्य देव जब प्रसन्न हो कर प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा तो उसने "अमरत्व" का वरदान माँगा । सूर्यदेव ने कहा यह संभव नहीं है। तब उसने माँगा कि उसे एक हज़ार दिव्य कवचों की सुरक्षा मिले। इनमे से एक भी कवच सिर्फ वही तोड़ सके जिसने एक हज़ार वर्ष तपस्या की हो और जैसे ही कोई एक भी कवच को तोड़े, वह तुरंत मृत्यु को प्राप्त हो ।

सूर्यदेवता बड़े चिंतित हुए। वे इतना तो समझ ही पा रहे थे कि यह असुर इस वरदान का दुरपयोग करेगा, किन्तु उसकी तपस्या के आगे वे मजबूर थे।उन्हे उसे यह वरदान देना ही पडा ।

इन कवचों से सुरक्षित होने के बाद वही हुआ जिसका सूर्यदेव को डर था । दम्बोद्भव अपने सहस्र कवचों की सहक्ति से अपने आप को अमर मान कर मनचाहे अत्याचार करने लगा । वह "सहस्र कवच" नाम से जाना जाने लगा ।

उधर सती जी के पिता "दक्ष प्रजापति" ने अपनी पुत्री "मूर्ति" का विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र "धर्म" से किया । मूर्ति ने सहस्र्कवच के बारे में सुना हुआ था - और उन्होंने श्री विष्णु से प्रार्थना की कि इसे ख़त्म करने के लिए वे आयें । विष्णु जी ने उसे आश्वासन दिया कि वे ऐसा करेंगे ।

समयक्रम में मूर्ति ने दो जुडवा पुत्रों को जन्म दिया जिनके नाम हुए नर और नारायण । दोनों दो शरीरों में होते हुए भी एक थे - दो शरीरों में एक आत्मा । विष्णु जी ने एक साथ दो शरीरों में नर और नारायण के रूप में अवतरण किया था ।

दोनों भाई बड़े हुए । एक बार दम्बोध्भव इस वन पर चढ़ आया । तब उसने एक तेजस्वी मनुष्य को अपनी ओर आते देखा और भय का अनुभव किया ।

उस व्यक्ति ने कहा कि मैं "नर" हूँ , और तुमसे युद्ध करने आया हूँ । भय होते भी दम्बोद्भव ने हंस कर कहा - तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो ? मेरा कवच सिर्फ वही तोड़ सकता है जिसने हज़ार वर्षों तक तप किया हो ।

नर ने हंस कर कहा कि मैं और मेरा भाई नारायण एक ही हैं - वह मेरे बदले तप कर रहे हैं, और मैं उनके बदले युद्ध कर रहा हूँ ।

युद्ध शुरू हुआ , और सहस्र कवच को आश्चर्य होता रहा कि सच ही में नारायण के तप से नर की शक्ति बढती चली जा रही थी । जैसे ही हज़ार वर्ष का समय पूर्ण हुआ,नर ने सहस्र कवच का एक कवच तोड़ दिया । लेकिन सूर्य के वरदान के अनुसार जैसे ही कवच टूटा नर मृत हो कर वहीँ गिर पड़े । सहस्र कवच ने सोचा, कि चलो एक कवच गया ही सही किन्तु यह तो मर ही गया ।

तभी उसने देखा की नर उसकी और दौड़े आ रहा है - और वह चकित हो गया । अभी ही तो उसके सामने नर की मृत्यु हुई थी और अभी ही यही जीवित हो मेरी और कैसे दौड़ा आ रहा है ???

लेकिन फिर उसने देखा कि नर तो मृत पड़े हुए थे, यह तो हुबहु नर जैसे प्रतीत होते उनके भाई नारायण थे - जो दम्बोद्भव की और नहीं, बल्कि अपने भाई नर की और दौड़ रहे थे ।

दम्बोद्भव ने अट्टहास करते हुए नारायण से कहा कि तुम्हे अपने भाई को समझाना चाहिए था - इसने अपने प्राण व्यर्थ ही गँवा दिए ।

नारायण शांतिपूर्वक मुस्कुराए । उन्होंने नर के पास बैठ कर कोई मन्त्र पढ़ा और चमत्कारिक रूप से नर उठ बैठे । तब दम्बोद्भव की समझ में आया कि हज़ार वर्ष तक शिवजी की तपस्या करने से नारायण को मृत्युंजय मन्त्र की सिद्धि हुई है - जिससे वे अपने भाई को पुनर्जीवित कर सकते हैं ।

अब इस बार नारायण ने दम्बोद्भव को ललकारा और नर तपस्या में बैठे । हज़ार साल के युद्ध और तपस्या के बाद फिर एक कवच टूटा और नारायण की मृत्यु हो गयी ।

फिर नर ने आकर नारायण को पुनर्जीवित कर दिया, और यह चक्र फिर फिर चलता रहा ।

इस तरह ९९९ बार युद्ध हुआ । एक भाई युद्ध करता दूसरा तपस्या । हर बार पहले की मृत्यु पर दूसरा उसे पुनर्जीवित कर देता ।

जब 999 कवच टूट गए तो सहस्र्कवच समझ गया कि अब मेरी मृत्यु हो जायेगी । तब वह युद्ध त्याग कर सूर्यलोक भाग कर सूर्यदेव के शरणागत हुआ ।

नर और नारायण उसका पीछा करते वहां आये और सूर्यदेव से उसे सौंपने को कहा । किन्तु अपने भक्त को सौंपने पर सूर्यदेव राजी न हुए। तब नारायण ने अपने कमंडल से जल लेकर सूर्यदेव को श्राप दिया कि आप इस असुर को उसके कर्मफल से बचाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए आप भी इसके पापों के भागीदार हुए और आप भी इसके साथ जन्म लेंगे इसका कर्मफल भोगने के लिए ।

इसके साथ ही त्रेतायुग समाप्त हुआ और द्वापर का प्रारम्भ हुआ ।

समय बाद कुंती जी ने अपने वरदान को जांचते हुए सूर्यदेव का आवाहन किया, और कर्ण का जन्म हुआ । लेकिन यह आम तौर पर ज्ञात नहीं है, कि , कर्ण सिर्फ सूर्यपुत्र ही नहीं है, बल्कि उसके भीतर सूर्य और दम्बोद्भव दोनों हैं । जैसे नर और नारायण में दो शरीरों में एक आत्मा थी, उसी तरह कर्ण के एक शरीर में दो आत्माओं का वास है - सूर्य और सहस्रकवच । दूसरी ओर नर और नारायण इस बार अर्जुन और कृष्ण के रूप में आये ।

कर्ण के भीतर जो सूर्य का अंश है,वही उसे तेजस्वी वीर बनाता है । जबकि उसके भीतर दम्बोद्भव भी होने से उसके कर्मफल उसे अनेकानेक अन्याय और अपमान मिलते है, और उसे द्रौपदी का अपमान और ऐसे ही अनेक अपकर्म करने को प्रेरित करता है ।

यदि अर्जुन कर्ण का कवच तोड़ता, तो तुरंत ही उसकी मृत्यु हो जाती ।इसिलिये इंद्र उससे उसका कवच पहले ही मांग ले गए थे ।

एक और प्रश्न जो लोग अक्सर उठाते हैं - श्री कृष्ण ने (इंद्रपुत्र) अर्जुन का साथ देते हुए (सूर्यपुत्र) कर्ण को धोखे से क्यों मरवाया ?

कहते हैं कि श्री राम अवतार में श्री राम ने (सूर्यपुत्र) सुग्रीव से मिल कर (इंद्रपुत्र) बाली का वध किया था (वध किया था, धोखा नहीं । जब किसी अपराधी को जज मृत्युदंड की सजा देते हैं तो उसे सामने से मारते नहीं - यह कोई धोखे से मारना नहीं होता)- सो इस बार उल्टा हुआ ।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*मोर मुकुट बंशीवाले  सेठ की जय हो*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
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