*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 दिनांक -05 सितंबर 2025*
*🎈 दिन- शुक्रवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - भाद्रपद*
*🎈 पक्ष - शुक्ल*
*🎈तिथि - त्रयोदशी 03:12:28am रात्रि तत्पश्चात्
चतुर्दशी *
*🎈नक्षत्र - श्रवण 23:37:26pm तक तत्पश्चात् घनिष्ठा*
*🎈योग - शोभन 13:51:28pm तक तत्पश्चात् अतिगंड*
*🎈 करण - कौलव 15:44:56 pm तक तत्पश्चात् गर*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- 10:59 pm से 12:33 pm तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि मकर *
*🎈सूर्य राशि - सिंह*
*🎈सूर्योदय - 06:17:11am*
*🎈सूर्यास्त - 06:49:47:pm* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:45 से प्रातः 05:30 तक (राजस्थान प्रदेश नागौर मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजीत मुहूर्त - 12:08 पी एम से 12:59 पी एम*
*🎈निशिता मुहूर्त - 12:11 ए एम, सितम्बर 06 से 12:57 ए एम, सितम्बर 06*
*🎈रवि योग- 11:38 पी एम से 06:16 ए एम, सितम्बर 06 *
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 चर - सामान्य-06:16 ए एम से 07:50 ए एम*
*🎈लाभ - उन्नति-07:50 ए एम से 09:25 ए एम*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-09:25 ए एम से 10:59 ए एम वार वेला
*🎈काल - हानि-10:59 ए एम से 12:33 पी एम काल वेला
*🎈शुभ - उत्तम-12:33 पी एम से 02:08 पी एम
*🎈रोग - अमंगल-02:08 पी एम से 03:42 पी एम
*🎈उद्वेग - अशुभ-03:42 पी एम से 05:17 पी एम
*🎈चर - सामान्य-05:17 पी एम से 06:51 पी एम
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈रोग - अमंगल-06:51 पी एम से 08:17 पी एम*
*🎈काल - हानि-08:17 पी एम से 09:42 पी एम*
*🎈लाभ - उन्नति-09:42 पी एम से 11:08 पी एम काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-11:08 पी एम से 12:34 ए एम, सितम्बर 06*
*🎈शुभ - उत्तम-12:34 ए एम से 01:59 ए एम, सितम्बर 06*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-01:59 ए एम से 03:25 ए एम, सितम्बर 06*
*🎈चर - सामान्य-03:25 ए एम से 04:51 ए एम, सितम्बर 06*
*🎈रोग - अमंगल-04:51 ए एम से 06:16 ए एम, सितम्बर 06*
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🌹|| साधना के अनुभव ||🌹
शेष भाग कल.... से आगे
व साधक के मन में एक द्वंद्व पैदा होता है. वह दो नावों में पैर रखने जैसी स्थिति में होता है, इस संसार को पूरी तरह अभी छोड़ा नहीं ।
और परमात्मा की प्राप्ति अभी हुई नहीं जो उसे अभीष्ट है. इस स्थिति में आकर सांसारिक कार्य करने से उसे बहुत क्लेश होता है क्योंकि वह परवैराग्य को प्राप्त हो चुका होता है और भोग उसे रोग के सामान लगते हैं।
परन्तु समाधी का अभी पूर्ण अभ्यास नहीं है. इसलिए साधक को चाहिए कि वह धैर्य रखें व समाधी का अभ्यास करता रहे और यथासंभव सांसारिक कार्यों को भी यह मानकर कि गुण ही गुणों में वरत रहे हैं, करता रहे ।
और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखे. साथ ही इस समय उसे तत्त्वज्ञान की भी आवश्यकता होती है जिससे उसके मन के समस्त द्वंद्व शीघ्र शांत हो जाएँ. इसके लिए योगवाशिष्ठ नामक ग्रन्थ का विशेष रूप से अध्ययन व अभ्यास करें।
उमें बताई गई युक्तियों "जिस प्रकार समुद्र में जल ही तरंग है, सुवर्ण ही कड़ा/कुंडल है, मिट्टी ही मिट्टी की सेना है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर ही यह जगत है." का बारम्बार चिंतन करता रहे तो उसे शीघ्र ही परमत्मबोध होता है।
सारा संसार ईश्वर का रूप प्रतीत होने लगता है और मन पूर्ण शांत हो जाता है. चलते-फिरते उठते बैठते यह महसूस होना कि सब कुछ रुका हुआ है, शांत है, "मैं नहीं चल रहा हूँ, यह शरीर चल रहा है"।
यह सब आत्मबोध के लक्षण हैं यानि परमात्मा के अत्यंत निकट पहुँच जाने पर यह अनुभव होता है. कई साधकों को किसी व्यक्ति की केवल आवाज सुनकर उसका चेहरा, रंग, कद, आदि का प्रत्यक्ष दर्शन हो जाता है।
और जब वह व्यक्ति सामने आता है तो वह साधक कह उठता है कि, "अरे! यही चेहरा, यही कद-काठी तो मैंने आवाज सुनकर देखी थी, यह कैसे संभव हुआ कि मैं उसे देख सका?"
वास्तव में धारणा के प्रबल होने से, जिस व्यक्ति की ध्वनि सुनी है, साधक का मन या चित्त उस व्यक्ति की भावना का अनुसरण करता हुआ उस तक पहुँचता है और उस व्यक्ति का चित्र प्रतिक्रिया रूप उसके मन पर अंकित हो जाता है. इसे दिव्य दर्शन भी कहते हैं।
आँखें बंद होने पर भी बाहर का सब कुछ दिखाई देना, दीवार-दरवाजे आदि के पार भी देख सकना, बहुत दूर स्थित जगहों को भी देख लेना, भूत-भविष्य की घटनाओं को भी देख लेना।
यह सब आज्ञा चक्र (तीसरा नेत्र ) के खुलने पर अनुभव होता है. अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के मन की बात जान लेना या दूर स्थित व्यक्ति क्या कर रहा है दु:खी है, रो रहा है, आनंद मना रहा है, हमें याद कर रहा
इसका अभ्यास हो जाना और सत्यता जांचने के लिए उस व्यक्ति से उस समय बात करने पर उस आभास का सही निकलना, यह सब दूसरों के साथ अपने चित्त को जोड़ देने पर होता है।
यह साधना में बाधा उत्पन्न करने वाला है क्र्योकि दूसरों के द्वारा इस प्रकार साधक का मन अपनी और खींचा जाता है और ईश्वर प्राप्ति के अभ्यास के लिए कम समय मिलता है और समय कम हो पाता है।
जिससे साधना धीरे -धीरे क्षीण हो जाती है. इसलिए इससे बचना चाहिए. दूसरों के विषय में सोचना छोड़ें. अपनी साधना की और ध्यान दें. इससे कुछ ही दिनों में यह प्रतिभा अंतर्मुखी हो जाती है और साधना आगे बढ़ती है।
ईश्वर के सगुण रूप की साधना करने वाले साधको को, भगवान का वह रूप कभी आँख वंद करने या कभी बिना आँख बंद किये यानी खुली आँखों से भी दिखाई देने का आभास सा होने लगता है या स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
उस समय उनको असीम आनंद की प्राप्ति होती है।
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*🎈7 सितंबर से 21 सितंबर तक रहेगा श्राद्ध पक्ष
*जानिए इस बार पितृ पक्ष में श्राद्ध तिथियाँ* सनातन ज्योतिष पंचांग अनुसार
भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक मनाया जाने वाला महालय पितृपक्ष 7 सितंबर रविवार से शुरू होकर 21सितंबर रविवार तक रहेगा। इस बार सप्तमी तिथि का क्षय होने से 10 सितंबर को तृतीया व चतुर्थी का श्राद्ध रहेगा। अपराह्न काल के मध्य मौजूद तिथि में ही श्राद्ध करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि को देवलोक हुए पूर्वजों का श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए,जिन पूर्वजो की मृत्यु तिथि का पता नहीं है, उन सभी का श्राद्ध भी अमावस्या को होता है। लोक परंपरा में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने की परंपरा है। लेकिन शास्त्र नियम के अनुसार उस दिन जो श्राद्ध होता है। वह पिता से ऊपर की तीन पीढ़ी का श्राद्ध होता है।जिसे प्रोष्ठपदी श्राद्ध कहते है।
*7 सितंबर रविवार को पूर्णिमा-प्रोष्ठपदी का श्राद्ध, इस बार दोपहर 12:57 बजे चंद्र ग्रहण का सूतक लग जाने से इसके पूर्व ही श्राद्ध संपन्न होगा*।
*8 सितंबर सोमवार को प्रतिपदा का श्राद्ध*,
*9 सितंबर मंगलवार को द्वितीया का श्राद्ध*,
*10 सितंबर बुधवार को तृतीया व चतुर्थी का श्राद्ध*,
*11सितंबर गुरुवार को पंचमी व भरणी का श्राद्ध*,
*12 सितंबर शुक्रवार को षष्ठी व कृतिका का श्राद्ध*,
*13 सितंबर शनिवार को सप्तमी का श्राद्ध*,
*14 सितंबर रविवार को अष्टमी का श्राद्ध,*
*15 सितंबर सोमवार को नवमी- सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध*,
*16 सितंबर मंगलवार को दशमी श्राद्ध*,
*17 सितंबर बुधवार को एकादशी श्राद्ध*,
*18 सितंबर गुरुवार को द्वादशी व सन्यासी श्राद्ध*,
*19 सितंबर शुक्रवार को त्रयोदशी व मघा का श्राद्ध,*
*20 सितंबर शनिवार को चतुर्दशी-दग़्धशस्त्रहंता श्राद्ध*,
*21सितंबर रविवार को सर्व पितृ-अमावस्या श्राद्ध व पूर्णिमा को देवलोक हुए पितरों का श्राद्ध*,
22 सितंबर सोमवार को मातामह श्राद्ध,
इन श्राद्ध तिथियों में विधि-विधान से 16 दिन में तर्पण-पंच बलि,ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए,
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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