*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*नागौर राजस्थान मानक समयानुसार*
*🎈दिनांक -21 अक्टूबर2025 *
*🎈 दिन - मंगलवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - कार्तिक*
*🎈 पक्ष - शुक्ल पक्ष*
*🎈तिथि- अमावस्या 05:54:06 pm तक तत्पश्चात् प्रतिपदा *
*🎈 नक्षत्र - चित्रा रात्रि 10:57:57 तत्पश्चात् स्वाति*
*🎈 योग - विश्कुम्भ 27:15:21* am तक तत्पश्चात् प्रीति*
*🎈करण - नाग 17:54:06*
Am तक तत्पश्चात् किन्स्तुघ्न*
*🎈 राहुकाल -हर जगह का अलग है- सुबह 03:09 दोपहर 04:34pm तक *
*🎈चन्द्र राशि - कन्या 09:35:19*
*🎈चन्द्र राशि - तुला from 09:35:19*
*🎈सूर्य राशि- तुला *
*🎈सूर्योदय - 06:39:23:am*
*🎈सूर्यास्त -17:59:29pm*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:57 से प्रातः 05:48 तक *
*🎈अभिजित मुहूर्त- 11:57 ए एम से 12:42 पी एम*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:54 पी एम से 12:45 ए एम, अक्टूबर 22तक*
*🎈अमृत काल 03:51 पी एम से 05:38 पी एम*
*🎈 व्रत एवं पर्व- गोवर्धन पूजा अन्नकूट प्रसाद बंसी वाला मंदिर नागौर (राजस्थान)।
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
मानक सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 रोग - अमंगल-06:38 ए एम से 08:03 ए एम*
*🎈 उद्वेग - अशुभ-08:03 ए एम से 09:29 ए एम वार वेला*
*🎈 चर - सामान्य-09:29 ए एम से 10:54 ए एम*
*🎈 लाभ - उन्नति-10:54 ए एम से 12:19 पी एम*
*🎈 अमृत - सर्वोत्तम-12:19 पी एम से 01:45 पी एम*
*🎈 काल - हानि-01:45 पी एम से 03:10 पी एम काल वेला*
*🎈 शुभ - उत्तम-03:10 पी एम से 04:35 पी एम*
*🎈 रोग - अमंगल-04:35 पी एम से 06:01 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈काल - हानि-06:01 पी एम से 07:35 पी एम*
*🎈लाभ - उन्नति-07:35 पी एम से 09:10 पी एम काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-09:10 पी एम से 10:45 पी एम*
*🎈शुभ - उत्तम-10:45 पी एम से 12:20 ए एम, अक्टूबर 22*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-12:20 ए एम से 01:54 ए एम, अक्टूबर 22*
*🎈चर - सामान्य-01:54 ए एम से 03:29 ए एम, अक्टूबर 22*
*🎈रोग - अमंगल-03:29 ए एम से 05:04 ए एम, अक्टूबर 22*
*🎈काल - हानि-05:04 ए एम से 06:39 ए एम, अक्टूबर 22*
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🚩*☀#*जय गणेश*☀*🚩
🚩*☀जय मां सच्चियाय* 🚩🍁 *🎈 🦚🦚🔥💚🕉️🥀💎♥️⛳🍃❤️🔥🚩🦚
🔯‼️🙏⛳ गोवर्धन अन्नकूट
पूजन⛳🙏‼️
*🕉श्रीगणेशाय नमोनित्यं ।।
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कमला जयंती मंगलवार 21, अक्टूबर 2025
कमला जयंती पर इस दिन दस वर्ष से कम आयु की कन्याओं की पूजा करनी और उन्हें भोजन कराना चाहिए. माता कमला देवी की पूजा के लिए सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूजा स्थल तैयार करें. इसके बाद गुरु वंदना, गुरु पूजा और गौ पूजा करें.
माता कमला देवी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करना चाहिए. मां कमला देवी का पूरा श्रृंगार करना चाहिए. माता को हल्दी, कुमकुम, अक्षत और सिंदूर चढ़ाना चाहिए. इसके बाद माता कमला देवी को फल और मिठाई का भोग लगाना चाहिए. आरती के बाद पूजा पूरी करनी चाहिए और प्रसाद बांटना चाहिए और खुद भी प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. इस दिन दान का भी बहुत महत्व है.
कमला जयंती महत्व
देवी कमला दस महाविद्याओं में दसवीं महाविद्या हैं और इनका संबंध काली कुल से माना जाता है और इन्हें तंत्र की देवी माना गया है. ग्रंथों में देवी कमला को तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. देवी कमला अपने भक्तों को धन, समृद्धि, सौभाग्य आदि प्रदान करती हैं.
देवी कमला भगवान विष्णु की वैष्णवी शक्ति और लीला सहचरी हैं. आगम और निगम दोनों में ही मां की महिमा का वर्णन किया गया है. देवी कमला को देवी भार्गवी के नाम से भी जाना जाता है. स्वतंत्र तंत्र के अनुसार देवी कमला ने कोलासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए अवतार लिया था इसी लिए देवी को शत्रुओं का नाश करने वाली शक्ति भी जाना गया है.
कमला जयंती स्त्रोत आरती
कमला जयंती के शुभ दिन पर देवी कमला स्त्रोत का पाठ करने से भक्तों को पूजा का शुभ फल प्राप्त होता है.
कमला स्तोत्रम
ओंकाररूपिणी देवि विशुद्धसत्त्वरूपिणी।
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी लक्ष्मी! आप ओंकारस्वरूपिणी हैं, आप विशुद्धसत्त्व गुणरूपिणी
और देवताओं की माता हैम्। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
तन्मात्रंचैव भूतानि तव वक्षस्थलं स्मृतम्।
त्वमेव वेदगम्या तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे सुंदरी! पंचभूत और पंचतन्मात्रा आपके वक्षस्थल हैं,
केवल वेद द्वारा ही आपको जाना जाता है। आप मुझ पर कृपा करें।
देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षसकिन्नरः।
स्तूयसे त्वं सदा लक्ष्मि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी लक्ष्मी! देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस्
और किन्नर सभी आपकी स्तुति करते हैम्। आप हम पर प्रसन्न होम्।
लोकातीता द्वैतातीता समस्तभूतवेष्टिता।
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे जननी! आप लोक और द्वैत से परे और सम्पूर्ण भूतगणों से
घिरी हुई रहती हैं। विद्वान लोग सदा आपका गुण-कीर्तन करते हैं।
हे सुंदरी! आप मुझ पर प्रसन्न होम्।
परिपूर्णा सदा लक्ष्मि त्रात्री तु शरणार्थिषु।
विश्वाद्या विश्वकत्रीं च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी लक्ष्मी! आप नित्यपूर्णा शरणागतों का उद्धार करने वाली,
विश्व की आदि और रचना करने वाली हैं। हे सुन्दरी! आप मुझ पर
प्रसन्न होम्।
ब्रह्मरूपा च सावित्री त्वद्दीप्त्या भासते जगत्।
विश्वरूपा वरेण्या च प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे माता! आप ब्रह्मरूपिणी, सावित्री हैं। आपकी दीप्ति से ही त्रिजगत
प्रकाशित होता है, आप विश्वरूपा और वर्णन करने योग्य हैं।
हे सुंदरी! आप मुझ पर कृपा करें।
क्षित्यप्तेजोमरूद्धयोमपंचभूतस्वरूपिणी।
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे जननी! क्षिति, जल, तेज, मरूत् और व्योम
पंचभूतों की स्वरूप आप ही हैं। गंध, जल का रस,
तेज का रूप, वायु का स्पर्श और आकाश में शब्द आप ही हैं।
आप इन पंचभूतों के गुण प्रपंच का कारण हैं, आप हम
पर प्रसन्न होम्।
महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च।
ब्रह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे देवी! आप शूलपाणि महादेवजी की प्रियतमा हैं। आप केशव की
प्रियतमा कमला और ब्रह्मा की प्रेयसी ब्रह्माणी हैं, आप हम पर
प्रसन्न होम्।
चंडी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरूपिणी।
योगिनी योगगम्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप चंडी, दुर्गा, कालिका, कौशिकी,
सिद्धिरूपिणी, योगिनी हैं। आपको केवल योग से ही प्राप्त किया जाता है।
आप हम पर प्रसन्न होम्।
बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवतीति च।
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप बाल्यकाल में बालिका, यौवनकाल में युवती और
वृद्धावस्था में वृद्धारूप होती हैं। हे सुन्दरी! आप हम पर
प्रसन्न होम्।
गुणमयी गुणातीता आद्या विद्या सनातनी।
महत्तत्त्वादिसंयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे जननी! आप गुणमयी, गुणों से परे, आप आदि, आप सनातनी
और महत्तत्त्वादिसंयुक्त हैं। हे सुंदरी!
आप हम पर प्रसन्न होम्।
तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तदर्थिषु।
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे माता! आप तपस्वियों की तपःसिद्धि स्वर्गार्थिगणों की
स्वर्गसिद्धि, आनंदस्वरूप और मूल प्रकृति हैं।
हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
त्वमादिर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकारणम्।
त्वमन्ते निधनस्थानं स्वेच्छाचारा त्वमेवहि॥
हे जननी! आप जगत् की आदि, स्थिति का एकमात्र कारण हैं। देह के
अंत में जीवगण आपके ही निकट जाते हैं। आप स्वेच्छाचारिणी हैं।
आप हम पर प्रसन्न होम्।
चराचराणां भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि।
व्याप्यव्याकरूपेण त्वं भासि भक्तवत्सले॥
हे भक्तवत्सले! आप चराचर जीवगणों के बाहर और भीतर दोनों
स्थलों में विराजमान रहती हैं, आपको नमस्कार है।
त्वन्मायया हृतज्ञाना नष्टात्मानो विचेतसः।
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्यवशात्सदा॥
हे माता! जीवगण आपकी माया से ही अज्ञानी और चेतनारहित होकर
पुण्य के वश से बारम्बार इस संसार में आवागमन करते हैं।
तावन्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा।
यावन्न ज्ञायते ज्ञानं चेतसा नान्वगामिनी॥
जैसे सीपी में अज्ञानतावश चांदी का भ्रम हो जाता है और फिर
उसके स्वरूप का ज्ञान होने पर वह भ्रम दूर हो जाता है, वैसे
ही जब तक ज्ञानमयी चित्त में आपका स्वरूप नहीं जाना जाता है,
तब तक ही यह जगत् सत्य भासित होता है, परन्तु आपके स्वरूप
का ज्ञान हो जाने से यह सारा संसार मिथ्या लगने लगता है।
त्वज्ज्ञानात्तु सदा युक्तः पुत्रदारगृहादिषु।
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुखप्रदान् ध्रुवम्॥
जो मनुष्य आपके ज्ञान से पृथक रहते हुए जगत् को ही सत्य
मानकर विषयों में लगे रहते हैं, निःसंदेह अंत में उनको
महादुख मिलता है।
त्वदाज्ञया तु देवेशि गगने सूर्यमण्डलम्।
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवेश्वरी! आपकी आज्ञा से ही सूर्य और चंद्रमा आकाश मण्डल
में नियमित भ्रमण करते हैम्। आप हम पर प्रसन्न होम्।
ब्रह्मेशविष्णुजननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया।
व्यक्ताव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवेश्वरी! आप ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की भी जननी हैं।
आप ब्रह्माख्या और ब्रह्मासंश्रया हैं, आप ही प्रगट और गुप्त रूप
से विराजमान रहती हैम्। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरि।
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप अचल, सर्वगामिनी, माया से परे,
शिवात्मा और नित्य हैम्। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
सर्वकायनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरी।
अनन्ता निष्काला त्वं हि प्रसन्ना भवसुन्दरि॥
हे देवी! आप सबकी देह की रक्षक हैं। आप सम्पूर्ण जीवों की
ईश्वरी, अनन्त और अखंड हैम्। आप हम पर प्रसन्न होम्।
सर्वेश्वरी सर्ववद्या अचिन्त्या परमात्मिका।
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे माता! सभी भक्तिपूर्वक आपकी वंदना करते हैं। आपकी कृपा
से ही भुक्ति और मुक्ति प्राप्त होती है। हे सुंदरि! आप हम पर
प्रसन्न होम्।
ब्रह्माणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुण्ठे सर्वमंगला।
इंद्राणी अमरावत्यामम्बिका वरूणालये॥
हे माता! आप ब्रह्मलोक में ब्रह्माणी, वैकुण्ठ में सर्वमंगला
अमरावती में इंद्राणी और वरूणालय में अम्बिकास्वरूपिणी हैं।
आपको नमस्कार है।
यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा।
महानन्दाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप यम के गृह में कालरूप, कुबेर के भवन में
शुभदायिनी और अग्निकोण में महानन्दस्वरूपिणी हैं, हे
सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
नैरृत्यां रक्तदन्ता त्वं वायव्यां मृगवाहिनी।
पाताले वैष्णवीरूपा प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप नैरृत्य में रक्तदन्ता, वायव्य कोण में मृगवाहिनी
और पाताल में वैष्णवी रूप से विराजमान रहती हैं। हे सुंदरी!
आप हम पर प्रसन्न होम्।
सुरसा त्वं मणिद्वीपे ऐशान्यां शूलधारिणी।
भद्रकाली च लंकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप मणिद्वीप में सुरसा, ईशान कोण में शूलधारिणी और
लंकापुरी में भद्रकाली रूप में स्थित रहती हैं। हे सुंदरी! आप
हम पर प्रसन्न होम्।
रामेश्वरी सेतुबन्धे सिंहले देवमोहिनी।
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप सेतुबन्ध में रामेश्वरी, सिंहद्वीप में देवमोहिनी
और पुरूषोत्तम में विमला नाम से स्थित रहती हैं। हे सुंदरी!
आप हम पर प्रसन्न होम्।
कालिका त्वं कालिघाटे कामाख्या नीलपर्वत।
विरजा ओड्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे देवी! आप कालीघाट पर कालिका, नीलपर्वत पर कामाख्या और
औड्र देश में विरजारूप में विराजमान रहती हैं। हे सुंदरी!
आप हम पर प्रसन्न होम्।
वाराणस्यामन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी।
गयासुरी गयाधाम्नि प्रसन्ना भव सुंदरि॥
हे देवी! आप वाराणसी क्षेत्र में अन्नपूर्णा, अयोध्या नगरी में
माहेश्वरी और गयाधाम में गयासुरी रूप से विराजमान रहती हैं।
हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
भद्रकाली कुरूक्षेत्रे त्वंच कात्यायनी व्रजे।
माहामाया द्वारकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप कुरूक्षेत्र में भद्रकाली, वज्रधाम में कात्यायनी और
द्वारकापुरी में महामाया रूप में विराजमान रहती हैं। हे देवी! आप
हम पर प्रसन्न होम।
क्षुधा त्वं सर्वजीवानां वेला च सागरस्य हि।
महेश्वरी मथुरायां च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप सम्पूर्ण जीवों में क्षुधारूपिणी हैं, आप मथुरानगरी
में महेश्वरी रूप में विराजमान रहती हैं। हे देवी! आप हम पर
प्रसन्न होम्।
रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी।
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे देवी! आप रामचंद्र की जानकी और शिव को मोहने वाली दक्ष की
पुत्री हैम् । हे देवी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
विष्णुभक्तिप्रदां त्वं च कंसासुरविनाशिनी।
रावणनाशिनां चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥
हे माता! आप विष्णु की भक्ति देने वाली, कंस और रावण का नाश
करने वाली हैम् । हे देवी! आप हम पर प्रसन्न होम्।
लक्ष्मीस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेद्भक्सिंयुतः।
सर्वज्वरभयं नश्येत्सर्वव्याधिनिवारणम्॥
जो प्राणी भक्ति सहित सर्वव्याधि के नाशक इस पवित्र लक्ष्मी स्तोत्र
का पाठ करता है, उसे किसी प्रकार का ज्वर का भय नहीं रहता है।
इदं स्तोत्रं महापुण्यमापदुद्धारकारणम्।
त्रिसंध्यमेकसन्ध्यं वा यः पठेत्सततं नरः॥
मुच्यते सर्वपापेभ्यो तथा तु सर्वसंकटात्।
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले॥
यह लक्ष्मी स्तोत्र परम पवित्र और विपत्ति का नाशक है । जो प्राणी
तीनों संध्याओं में अथवा केवल एक बार ही इसका पाठ करता है,
वह भी पापों से छूट जाता है ।
♨️ ⚜️ 🕉🌞 🌞🕉 ⚜🚩
🔱🇪🇬जय श्री महाकाल सरकार 🔱🇪🇬 मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱ॐ 🇪🇬🔱