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पञ्चाङ्ग - 15-11-2025

 *🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*

jyotis


*🎈दिनांक 15नवंबर 2025 *
*🎈 दिन -   शनिवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - मार्गशीर्ष*
*🎈 पक्ष - कृष्ण पक्ष*
*🎈तिथि-        एकादशी    26:36:45*am तत्पश्चात् द्वादशी*
*🎈 नक्षत्र - उत्तर फाल्गुनी    23:33:38 pm  तत्पश्चात्     हस्त*
*🎈 योग    -विश्कुम्भ    30:45:25am* तक तत्पश्चात् प्रीति*
*🎈करण    -         बव    13:39:33
Pm तक तत्पश्चात् बालव*
*🎈 राहुकाल -हर जगह का अलग है- 09:38 am to 10:59am तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)* 
*🎈चन्द्र राशि-     कन्या    *
*🎈सूर्य राशि-       तुला    *
*🎈सूर्योदय - 06:56:30am*
*🎈सूर्यास्त -17:42:32pm* 
*(सूर्योदय एवं सूर्यास्त ,नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 05:10 ए एम से 06:03 ए एम प्रातः तक *(नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजित मुहूर्त-    11:58 ए एम से 12:41 पी एम*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:54 पी एम से 12:46 ए एम, नवम्बर 16*
*🎈अमृत काल    -03:42 पी एम से 05:27 पी एम*
*🎈 व्रत एवं पर्व-  ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, नवमी को लौकी और कलंबी शाक नहीं खाना चाहिए।। *  
*🎈विशेष -  मार्गशीर्ष महात्म्य*
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    *🛟चोघडिया, दिन🛟*
   नागौर, राजस्थान, (भारत)    
   मानक सूर्योदय के अनुसार।

*🍁काल - हानि-06:55 ए एम से 08:16 ए एम काल वेला*

🍁शुभ - उत्तम-08:16 ए एम से 09:37 ए एम*

🍁रोग - अमंगल-09:37 ए एम से 10:58 ए एम*

🍁उद्वेग - अशुभ-10:58 ए एम से 12:20 पी एम*

🍁चर - सामान्य-12:20 पी एम से 01:41 पी एम*

🍁लाभ - उन्नति-01:41 पी एम से 03:02 पी एम वार वेला*

🍁अमृत - सर्वोत्तम-03:02 पी एम से 04:23 पी एम*

🍁काल - हानि-04:23 पी एम से 05:44 पी एम काल वेला*

      *🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈लाभ - उन्नति-05:44 पी एम से 07:23 पी एम काल रात्रि*

🍁उद्वेग - अशुभ-07:23 पी एम से 09:02 पी एम*

🍁शुभ - उत्तम-09:02 पी एम से 10:41 पी एम*

🍁अमृत - सर्वोत्तम-10:41 पी एम से 12:20 ए एम, नवम्बर 16*

🍁चर - सामान्य-12:20 ए एम से 01:59 ए एम, नवम्बर 16*

🍁रोग - अमंगल-01:59 ए एम से 03:38 ए एम, नवम्बर 16*

🍁काल - हानि-03:38 ए एम से 05:17 ए एम, नवम्बर 16*

🍁लाभ - उन्नति-05:17 ए एम से 06:56 ए एम, नवम्बर 16 काल रात्रि*
kundli




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     🚩*श्रीगणेशाय नमोनित्यं*🚩
  🚩*☀जय मां सच्चियाय* 🚩
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🌷 ..# 💐🍁🍁पुरुष को श्मशान-वैराग्य होता है, स्त्री को प्रसव-वैराग्य!🍁
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🍁पुरुष दाहकर्म करने श्मशान जाता है। वहाँ जीवन की अर्थवत्ता के प्रश्न और संसार की निस्सारता की चेतना उसे ग्रस लेती है। लोकेतर चिंताएँ चित्त में घर कर जाती हैं। मन में वैराग्य आ जाता है। फिर वह लौट आता है, कुछ देर बाद उसी जीवन-व्यापार में लीन हो जाता है। कोई विरला ही होता है सिद्धार्थ, जो श्मशान-वैराग्य को निर्वाण का पाथेय बना लेता है!

🍁 स्त्रियां श्मशान नहीं जातीं। दाहकर्म और पिंडकर्म उनके लिए निषिद्ध हैं। किंतु स्त्रियाँ जीवन को जन्म देती हैं। और जीवन भी तो मृत्यु का सहोदर है!

🍁अतैव, पुरुष को जो वैराग्य श्मशान में होता है, वही स्त्रियों को प्रसव में होता है। 

🍁आश्चर्य की बात है कि मृत्यु और प्रसव दोनों के बाद ही सूतक की वर्जनाएँ हैं, शौच-अशौच का चिंतन है, निषेधों का छंद है।

🍁प्रसव के बाद स्त्रियाँ एक खिन्न-भाव और मृत्युबोध से भर जाती हैं। किंतु संतान-उत्पत्ति के उत्सव पर इसे भुलाकर सभी के सुख में सम्मिलित होने का प्रयास करती हैं। बहुतेरी स्त्रियों के मुखमंडल पर प्रसव के उपरांत एक विचित्र निर्वेद, उदासीनता, वैराग्य की छाया दिखती है, जिसे हम प्रसव से आई दुर्बलता मान लेते हैं। 

🍁जबकि प्रसव काल में स्त्रियाँ सृष्टि का माध्यम बन जाती हैं, एक नए जीवन को संसार में लाने की निमित्त। यह साधारण घटना नहीं है।

🍁संस्कृत काव्य में गर्भिणी के दौहृद का वर्णन आता है। दौहृद यानी दो हृदय। गर्भधारण के चौथे महीने में जब शिशु के अंग-प्रत्यंग, चेतना, भावना और हृदय का विकास होता है, तब गर्भिणी स्त्री के भीतर आकांक्षाओं का एक ज्वार-सा उठता है। गर्भिणी की आकांक्षाओं की पूर्ति अनिवार्य इसीलिए बतलाई गई है, क्योंकि वह केवल एक स्त्री की आकांक्षा नहीं है, उसमें एक नवजीवन की अभिलाषा का स्वर भी सम्मिलित होता है।

🍁एक देह के भीतर दो प्राण, दो चेतना, दो हृदय, दो आकांक्षाओं की वह अपूर्व घटना होती है!

🍁प्रसव के बाद उस परिघटना की क्षति प्रसूता को ग्रस लेती है। ज्यों अंगभंग हुआ हो। प्राण का एक पिण्ड टूटकर विलग हुआ हो जो अब कभी जुड़ न सकेगा। ज्वार ढल गया हो। प्लावन उतर गया हो। यह क्षति स्त्री को गहरी उदासीनता से भर देती है।

🍁विप्र को द्विज कहा गया है, जो एक जीवन में दो बार जन्म लेता है। एक बार माता के गर्भ से, दूसरी बार यज्ञोपवीत के संस्कार से।

🍁आत्मबोध से निर्वाण पाने वाले सिद्ध-बुद्ध भी द्विज कहलाए हैं। वे अपनी अस्ति के आयतन को लांघकर वैश्वानर के रूप में पुनः जन्मते हैं।

🍁किंतु स्वयम् को जन्म देने वाला यदि द्विज है, विप्र है, वरेण्य है तो अन्य- जो कि अब उत्तरोत्तर अन्येतर, सुदूर होता चला जाएगा - को जन्म देने वाली जननी को हमें क्या कहना चाहिए?

🍁सर्वेश्वरी जगदीश्वरी हे मां तू हो महेश्वरी
सर्वेश्वरी त्वम् पाही माम् शरणागतम्।
जय जग जननी
         ।। जय श्री कृष्ण ।।
       💥।। शुभम् भवतु।।💥

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🔱🇪🇬जय श्री महाकाल सरकार 🔱🇪🇬 मोर मुकुट बंशीवाले  सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)* 
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।* 
🕉️📿🔥🌞🚩🔱ॐ  🇪🇬🔱
vipul

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