*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक 12 नवंबर 2025 *
*🎈 दिन - बुधवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - मार्गशीर्ष*
*🎈 पक्ष - कृष्ण पक्ष*
*🎈तिथि- अष्टमी 22:57:42*pm तत्पश्चात् नवमी*
*🎈 नक्षत्र - आश्लेषा 18:34:25pm तत्पश्चात् मघा*
*🎈 योग -शुक्ल 08:01:22am* तक तत्पश्चात् ब्रह्म*
*🎈करण - बालव 10:56:50
am तक तत्पश्चात् कौलव*
*🎈 राहुकाल -हर जगह का अलग है- 03:02 am to 04:23pm तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- कर्क till 18:34:25
*🎈चन्द्र राशि- सिंह from 18:34:25*
*🎈सूर्य राशि- तुला *
*🎈सूर्योदय - 06:54:15am*
*🎈सूर्यास्त -17:43:51pm*
*(सूर्योदय एवं सूर्यास्त ,नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 05:08 ए एम से 06:00 ए प्रातः तक *(नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजित मुहूर्त- कोई नहीं*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:53 पी एम से 12:46 ए एम, नवम्बर 13*
*🎈अमृत काल -04:58 पी एम से 06:35 पी एम*
*🎈 व्रत एवं पर्व- अष्टमी के दिन व्रत करने वालों को सामान्य नमक, गेहूं, चावल, दालें, प्याज और लहसुन जैसी चीज़ें नहीं खानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, मांसाहार, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन भी वर्जित है। *
*🎈विशेष - मार्गशीर्ष महात्म्य*
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
मानक सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 लाभ - उन्नति-06:53 ए एम से 08:15 ए एम*
*🎈 अमृत - सर्वोत्तम-08:15 ए एम से 09:36 ए एम*
*🎈 काल - हानि-09:36 ए एम से 10:58 ए एम काल वेला*
*🎈 शुभ - उत्तम-10:58 ए एम से 12:19 पी एम*
*🎈 रोग - अमंगल-12:19 पी एम से 01:41 पी एम वार वेला*
*🎈 उद्वेग - अशुभ-01:41 पी एम से 03:02 पी एम*
*🎈 चर - सामान्य-03:02 पी एम से 04:24 पी एम*
*🎈 लाभ - उन्नति-04:24 पी एम से 05:45 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈उद्वेग - अशुभ-05:45 पी एम से 07:24 पी एम*
*🎈शुभ - उत्तम-07:24 पी एम से 09:02 पी एम*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-09:02 पी एम से 10:41 पी एम*
*🎈चर - सामान्य-10:41 पी एम से 12:19 ए एम, नवम्बर 13*
*🎈रोग - अमंगल-12:19 ए एम से 01:58 ए एम, नवम्बर 13*
*🎈काल - हानि-01:58 ए एम से 03:37 ए एम, नवम्बर 13*
*🎈लाभ - उन्नति-03:37 ए एम से 05:15 ए एम, नवम्बर 13 काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-05:15 ए एम से 06:54 ए एम, नवम्बर 13*
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🚩*श्रीगणेशाय नमोनित्यं*🚩
🚩*☀जय मां सच्चियाय* 🚩
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🌷 ..# कॉल भैरव जन्मोत्सव....💕कालभैरव जयंती बुधवार 12 , नवम्बर, 2025, इस दिन भक्त विधिपूर्वक भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान कालभैरव की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इससे व्यक्ति को बुरी शक्तियों और भय से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव का अंश माने जाने वाले काल भैरव जी की जयंती, मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है
💕श्री काल-भैरव- बटुक एवं काल भैरव कार्य सिद्धि एवं शत्रु नाशक प्रयोग श्री काल-भैरव।।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।
धर्मग्रन्थों के अनुशीलन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान शंकर के कालभैरव-स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनीअष्टमी में हुआ था, अत:यह तिथि कालभैरवाष्टमी के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव-मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथके भक्त कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रदोष-व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरवकी पूजा, दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को कालाष्टमी के नाम से प्रकाशित किया जाता है।
भैरवनाथके व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होगा। कालभैरवकी अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति इस कालभैरवाष्टमीसे प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्तप्रत्येक कालाष्टमीको व्रत , भैरवनाथकी उपासना करें।
💦कालाष्टमीमें दिन भर उपवास रखकर सायं सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोषकालमें भैरवनाथकी पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।
💕मन्त्रविद्याकी एक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपि से महाकाल भैरव का यह मंत्र मिला है-
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:।
इस मंत्र का 21हजार बार जप करने से बडी से बडी विपत्ति दूर हो जाती है।।
💦साधक भैरव जी के वाहन श्वान (कुत्ते) को नित्य कुछ खिलाने के बाद ही भोजन करे।
साम्बसदाशिवकी अष्टमूíतयोंमें रुद्र अग्नि तत्व के अधिष्ठाता हैं। जिस तरह अग्नि तत्त्व के सभी गुण रुद्र में समाहित हैं, उसी प्रकार भैरवनाथभी अग्नि के समान तेजस्वी हैं। 💕भैरवजीकलियुग के जाग्रत देवता हैं। भक्ति-भाव से इनका स्मरण करने मात्र से समस्याएं दूर होती हैं।
इनका आश्रय ले लेने पर भक्त निर्भय हो जाता है। भैरवनाथअपने शरणागत की सदैव रक्षा करते हैं
सामान्य व्यक्ति भक्ति भाव से इनकी पूजा कर इनकी कृपा प्राप्त कर सकता है, किंतु इनकी साधना के लियर पहले इनकी दीक्षा लें उसके बाद ही साधना करें।
क्योंकि भैरव जयंती के दिन श्री भैरव जी का प्राकट्य हुआ था इसलिए इनका बाल स्वरुप भी अति पूजनीय और अति शीघ्र फल देने वाला है।
सर्वकार्य सिद्धि हेतु बटुक प्रयोग
इनकी प्रसन्नता हेतु इनके कवच, मन्त्र का जप और अष्टोत्तरशत नाम का पाठ अति फलदायी है।
सर्वप्रथम कवच पाठ करें फिर 1 माला मन्त्र और उसके बाद अष्टोत्तरशतनाम के 21 सम्पुटित पाठ फिर पुनः 1 माला मन्त्र और क्षमा प्रार्थना एवं बलि दें।
यदि ये प्रयोग 41 दिन तक कर लिया जाये तो व्यक्ति का असम्भव लगने वाला कठिन से कठिन कार्य भी श्री बटुक भैरव की कृपा से अति शीघ्र सिद्ध हो जाता है।
💕श्री वटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम का विशेष महत्व है ।इसके 21 पाठ मन्त्र सहित विधि सहित कोई नित्य करें तो ये सिद्ध हो जाता है और फिर जाग्रत रूप से कार्य करता है।रोग दोष आधी व्याधि का नाश करता है।इससे अभिमन्त्रित भस्म जल किसी रोगी पर छिड़कने से रोग दूर हो जाता है किसी पर कोई ऊपरी बाधा हो तो वो दूर हो जाती है।बहुत ही अच्छा और कृपा
करने वाला है।कलियुग में अन्य देवता तो समय आने पर फल देते है पर भगवान वटुक भैरव जिस दिन से इन्हें पूजो उसी दिन से अपना प्रभाव दिखाने लगते है।
बटुक भैरव रक्षार्थ है और देवी के पुत्र स्वरूप है।
🏓तांत्रोक्त भैरव कवच✍️
💕ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||
💦इस आनंददायक कवच का प्रतिदिन पाठ करने से प्रत्येक विपत्ति में सुरक्षा प्राप्त होती है| यदि योग्य गुरु के निर्देशन में इस कवच का अनुष्ठान सम्पन्न किया जाए तो साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य, धन, धान्य आदि से पूर्ण होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है|
💕बटुक भैरव मूल मन्त्र:-
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।
💦भैरव अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र:-
व ध्यान –वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल -दण्डौ दधानम्॥
💕अर्थात् भगवान् श्री बटुक-भैरव बालक रुपी हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुँघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्जवल रुपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल औरदण्ड धारण किए हुए हैं।
भगवान श्री बटुक- भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।
💕मानसिक पूजन करे :-
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
💕ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
💕ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
💕ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
💕ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
💕ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः॥
कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः॥
शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः॥
धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्॥
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्॥
त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः॥
भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः॥
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः॥
अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः॥
कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा॥
शुद्द नीलाञ्जन प्रख्य देहः मुण्ड -विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल
पराक्रम॥
सर्वापत् तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी॥
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया मन्त्रौषधी -मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ विष्णुरितीव हि॥
॥फल-श्रुति॥
अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्॥
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा॥
न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः॥
मारी-भये राज-भये, तथा चौ राग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये॥
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव कीर्तनात्॥
॥ क्षमा-प्रार्थना ॥
आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर॥
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥
श्री बटुक-बलि-मन्त्रः-
घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र २१ का उच्चारण करें, आपके घर के विघ्न बाधा और उपद्रव शांत होंगे।
१. ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः॥
२. ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ॥
३. ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः॥
पाठ से पहले एक माला वटुक मन्त्र की सभी पाठो के बाद एक माला वटुक भैरव की अनिवार्य है, ॐ के बाद ह्रीं लगाकर करें।
प्रत्येक पाठ के पहले और बाद में वटुक भैरव मन्त्र का सम्पुट लगाये।
तेल का दीपक के सामने पाठ करे।और वहीँ एक लड्डू या गुड़ रख ले पूजा होने पर पूजा समर्पण करे और उसके बाद उस लड्डू को घर से बाहर
रख आये या कोई कुत्ता मिले उसे खिला दे कोई न मिले तो चौराहे पर रख दे। ये बलिद्रव्य होता है।
आसन से उठने से पहले आसन के नीचे की भूमि मस्तक से लगाये फिर आसन से उठे ऐसा न करने पर पूजा का आधा फल इंद्र ले लेता है।
1. शत्रु नाश् उपाय :
मित्रों, काफी मित्रों ने पूछा की आज यानि भैरव अष्टमी पर क्या करें तो ये प्रयोग आप आज शाम अपने घर या भैरव मंदिर में कर सकते हैं।
1-यदि आप भी अपने शत्रुओं से परेशान हैं तो आज शाम ये उपाए करें और अपने शत्रुओं से मुक्ति पायें।
एक सफ़ेद कागज़ पर भैरव मंत्र जपते हुए काजल से शत्रु या शत्रुओं के नाम लिखें और उनसे मुक्त करने की प्रार्थना करते हुए एक छोटी सी शहद की शीशी जो की किसी भी कंपनी की मिल जाएगी में ये कागज़ मोड़ के डुबो दें व् ढक्कन बंद कर किसी भी भैरव मंदिर या शनि मंदिर में गाड़ दें। यदि संभव न हो तो किसी पीपल के नीचे भी गाड़ सकते हैं। कुछ दिनों में शत्रु स्वयं कष्ट में होगा और आपको छोड़ देगा।
मंत्र जप पूरी प्रक्रिया के दौरान करते रहना होगा। अर्थात नाम लिखने से लेकर गाड़ने तक।
मंत्र:
ॐ क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा।
ॐ न्यायागाम्याय शुद्धाय योगिध्येयाय ते नम:।
नम: कमलाकांतय कलवृद्धाय ते नम:।
2.शत्रुओं से छुटकारा पाने हेतु एक लघु प्रयोग:-
इस प्रयोग से एक बार से ही शत्रु शांत हो जाता है और परेशान करना छोड़ देता है पर यदि जल्दी न सुधरे तो पांच बार तक प्रयोग कर सकते हैं।
ये प्रयोग शनी, राहु एवं केतु ग्रह पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।
इसके लिए किसी भी मंगलवार या शनिवार को भैरवजी के मंदिर जाएँ और उनके सामने एक आटे का चौमुखा दीपक जलाएं। दीपक की बत्तियों को रोली से लाल रंग लें। फिर शत्रु या शत्रुओं को याद करते हुए एक चुटकी पीली सरसों दीपक में डाल दें। फिर निम्न श्लोक से उनका ध्यान कर 21बार निम्न मन्त्र का जप करते हुए एक चुटकी काले उड़द के दाने दिए में डाले। फिर एक चुटकी लाल सिंदूर दिए के तेल के ऊपर इस तरह डालें जैसे शत्रु के मुंह पर डाल रहे हों। फिर 5 लौंग ले प्रत्येक पर 21 21 जप करते हुए शत्रुओं का नाम याद कर एक एक कर दिए में ऐसे डालें जैसे तेल में नहीं किसी ठोस चीज़ में गाड़ रहे हों। इसमें लौंग के फूल वाला हिस्सा ऊपर रहेगा।
फिर इनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करते हुए प्रणाम कर घर लौट आएं।
ध्यान :-
ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तम शशिश्कलधरम
मुण्डमालं महेशम्।
दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिं
खडगपाशाभयानि।।
नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै
र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।
दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद
किंकिणी नुपुराढ्यम।।
मन्त्र:-
ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः।
यदि भैरव मन्दिर न हो तो शनि मन्दिर में भी ये प्रयोग कर सकते हैं।
दोनों न हों तो पूरी क्रिया घर में दक्षिण मुखी बैठ कर भैरव जी का पूजन कर उनके समक्ष कर लें और दीपक मध्य रात्रि में किसी चौराहे पर रख आएं। चौराहे पर भी ये प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु याद रहे चौराहे पर करेंगे तो कोई देखे न वरना कोई टोक सकता है जादू टोना करने वाला भी समझ सकता है। चौराहें पर करें तो चुपचाप बिना पीछे देखे घर लौट आएं हाथ मुंह धोकर ही किसी से बात करें।
यदि एक बार में शत्रु पूर्णतः शांत न हो तो 5 बार तक एक एक हफ्ते बाद कर सकते हैं।
उक्त प्रयोग शत्रु के उच्चाटन हेतु भी कर सकते हैं पर उसमे बत्ती मदार के कपास की बनेगी और दीपक शत्रु के मुख्य द्वार के सामने जलाना होगा।
🌷 ..# बुध अष्टमी व्रत......
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सनातन धर्म में बताया गया है कि जो भी मनुष्य पूरी श्रद्धा पूर्वक बुध अष्टमी का व्रत करता है उसे मृत्यु के पश्चात नरक नहीं जाना पड़ता है. लोक कथाओं के अनुसार बुध अष्टमी का उपवास करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
बुध अष्टमी का महत्व-
हमारे शास्त्रों में अष्टमी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. जिस बुधवार के दिन अष्टमी तिथि पड़ती है उसे बुध अष्टमी कहा जाता है. बुध अष्टमी के दिन सभी लोग विधिवत बुद्धदेव और सूर्य देव की पूजा अर्चना करते हैं. मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है उनके लिए बुध अष्टमी का व्रत बहुत ही फलदाई होता है.
बुध अष्टमी पूजनविधि-
• बुध अष्टमी का व्रत करने के लिए व्यक्ति को प्रातः काल उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के पश्चात् पूजा का संकलप लेना चाहिए.
• अगर आपके घर के आस पास कोई नदी नहीं है तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें. ऐसा करने से आपको गंगा स्नान जितना ही पुण्य प्राप्त होगा.
• अब एक कलश में गंगाजल भर कर अपने घर के पूजा कक्ष स्थापित करें.
• बुधाष्टमी के दिन बुध देव की पूजा के साथ बुधाष्टमी की कथा भी अवश्य सुननी चाहिए.
• व्रत का संकल्प लेने के पश्चात् बुध ग्रह की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए.
• बुधाष्टमी के दिन भगवान् को भोग लगाने के लिए 8 प्रकार के पकवान बनाने चाहिए और इन्हे बांस के पत्तों में रखकर भगवान को भोग लगाना चाहिए.
• इस भोग को फल, फूल, धूप आदि के साथ बुध देव को चढ़ाना चाहिए. पूजा खत्म होने के पश्चात् भगवान् पर चढ़ाये गए भोग को परिवार के सभी लोगों के साथ मिलकर ग्रहण करना चाहिए.
• कई जगहों पर बुध अष्टमी के दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा का भी नियम है.
• बुध अष्टमी के दिन आपके घर को अच्छी तरह से साफ सुथरा करके अपने इष्ट देव की पूजा करनी चाहिए.
• शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है.
• बुध अष्टमी के दिन भगवान गणेश की पूजा करना भी शुभ माना जाता है.
बुध अष्टमी व्रतके लाभ-
• जो भी मनुष्य पूरे विधि विधान से बुध अष्टमी का व्रत करता है उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं.
• बुध अष्टमी का व्रत करने से धन-धान्य पुत्र और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
• बुध अष्टमी का व्रत करने से मनुष्य धरती पर सभी सुखों को भोग कर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग को प्राप्त होता है.
बुधाष्टमी के दिनकरें इनमंत्रो काजाप-
बुद्ध अष्टमी के बुध देव की पूजा करते वक़्त नीचे दिए गए मत्रों का उच्चारण करना चाहिए:
ऊं बुधाय नमः, ऊं सोमामात्मजायनमः
ऊं दुर्बुद्धिनाशनाय,
ऊं सुबुद्धिप्रदायनमः
ऊं ताराजाताय,ऊं सोम्यग्रहाय नमः
ऊं सर्वसौख्याप्रदाय नम:।
बुद्ध दोष दूरकरने केलिए बुद्धअष्टमी केदिन करेंये उपाय-
अगर आपकी कुंडली में बुध दोष है और आप अपनी कुंडली से बुद्ध दोष को दूर करना चाहते हैं तो ,बुद्ध अष्टमी के दिन ये छोटे-छोटे उपाय करके इस दोष से छुटकारा पा सकते हैं.
• भगवान् गणेश को मोदक बहुत प्रिय है, अगर आप बुद्ध दोष से छुटकारा पाना चाहते हैं तो बुद्ध अष्टमी के दिन भगवान् गणेश को मोदक का प्रसाद चढ़ाये.
• अपनी कुंडली से बुध दोष के प्रभाव को दूर करने के लिए बुद्ध अष्टमी के दिन अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पन्न रत्न धारण करें. पन्ना रत्न धारण करने से पहले किसी ज्योतिषी से सलाह जरूर लें.
• बुधवार के दिन गाय को हरी घास खिलाने से भी भगवान् गणेश प्रसन्न होते हैं और बुध दोष का असर कम होता है.
• कुंडली से बुद्ध दोष को दूर करने के लिए बुद्ध अष्टमी के दिन भगवान् गणेश को सिंदुर अर्पित करें.
• बुद्ध अष्टमी के दिन स्नान करने के पश्चात् किसी मंदिर में जाकर गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं. अगर आप भगवान गणेश को दूर्वा की 11 या 21 गांठ चढ़ाते है तो इससे आपको बहुत जल्द फल प्राप्त होगा.
बुधाष्टमी व्रत कथा-
मिथिला नाम की एक नगरी में निमि नाम का एक राजा रहते थे । वह एक लड़ाई में मारे गये। उनकी पत्नी जिनका नाम उर्मिला था अपने पति के बिना राज्य से निराश्रित हो इधर उधर भटकने लगी , तब अपने दो बच्चो को लेकर वह अवन्ति देश चली गई और वहाँ एक ब्राह्मण के घर में में गेहू पीसने का काम करती थी और गेहु पिसते समय वह थोड़े से गेहु चुराकर रख लेती और उसे से अपने भूखे बच्चो का पालन करती थी । कुछ समय बाद उर्मिला का निधन हो गया पर उसके बच्चे बड़े हो चुके थे। उसका पुत्र बड़ा होकर, मिथिला आया और पिता के राज्य को वापिस प्राप्त कर शासन करने लगा। उसकी बहन श्यामला भी विवाह योग्य हो गई थी। वह अत्यंत रूपवती थी व उसका विवाह अवन्ति देश के राजा धर्मराज से हो गया।
एक दिन धर्मराज ने अपनी पत्नी से श्यामला से कहा – " हे प्रिये ! तुम सभी काम करना , परन्तु ये सात स्थानों जिनमे तालें बंद हैं , इनमे तुम कभी मत जाना. " श्यामला ने ‘ बहुत अच्छा ‘ कह कर पति की बात मान ली , उसके मन में उत्सुकता बनी रहे।
एक दिन जब धर्मराज अपने किसी कार्य में व्यस्त थे , तब श्यामला ने एक मकान का ताला खोलकर वहां देखा कि उसकी माता उर्मिला को अति भयंकर यमदूत बांध कर तप्त तेल के कडाह में बार – बार डाल रहे हैं. लज्जित होकर श्यामला ने वह कमरा बंध कर दिया , फिर दुसरा कमरा खोला तो देखा कि वहाँ भी उसकी माता को यमदूत शिला के ऊपर रखकर पिस रहें हैं और माता चिल्ला रही हैं इसी प्रकार तीसरा कमरा खोला देखा की यमदूत उसकी माता के मस्तक में किले ठोक रहे हैं ,इसी तरह चौथे में अति भयंकर श्रवान उसका भक्षण कर रहें हैं , पांचवे में लोहे के स्न्दंश उसे पीड़ित कर रहे हैं. छठे में कोल्हू के बिच ईख के समान पेरी जा रही हैं और सातवे को खोलकर देखा तो वहाँ भी उसकी माता को हजारो कृमि भक्षण कर रहे हैं और वह रुधिर आदि से लथपथ हो रही हैं.
यह देख कर श्यामला ने विचार किया कि मेरी माता ने ऐसा कौन – सा पाप किया , जिससे वह इस दुर्गति को प्राप्त हुई. वह सोचकर उसने सारा वृतांत अपने पति धर्मराज को बताया.
धर्मराज बोले – प्रिये ! मैंने इसलिए कहा था की ये सात ताले कभी न खोलना , नही तो तुम्हे वहां पश्चाताप होगा. तुम्हारी माता ने सन्तान के स्नेह से ब्राह्मण के खेत से गेहु चुराये थे , क्या तुम इस बात को नही जानती जों तुम इस बात को मुझसे पूछ रही हो ? यह सब उसी कर्म का फल हैं. ब्राह्मण का धन स्नेह से भी भक्षण करे तो भो सात कुल अधोगति को प्राप्त होते हैं और चुराकर खाए तो जब तक सूर्य और चन्द्रमा और तारें हैं , तबतक नरक से उद्धार नही होता. जों गेहु इसने चुराये थे , वे ही कृमि बनकर इसका भक्षण कर रहे हैं.
श्यामला ने कहा – महाराज ! मेरी माता ने जों कुछ भी पहले किया वह सब मैं जानती हूँ फिर भी अब आप कोई ऐसा उपाय बतलाये , जिससे मेरी माता का नरक से उद्दार हो जाय. इस पर धर्मराज ने कुछ समय विचार किया और कहने लगे — प्रिये ! आज से सात जन्म पूर्व ब्राह्मणी थी. उस समय तुमने अपनी सखियों के साथ जों बुधाष्टमी का व्रत किया था , यदि उसका फल तुम संकल्प पूर्वक अपनी माता को दे दो तो इस संकट से उसके मुक्ति हो जायेगी. यह सुनते ही श्यामला सी स्नानकर अपने व्रत का पुण्य फल संकल्प पूर्वक माता के लिए दान कर दिया. व्रत के फल के प्रभाव से उसकी माता भी उसी क्षण दिव्य देह धारण कर विमान में बैठकर अपने पति सहित स्वर्ग लोक की चली गई और बुध ग्रह के समीप हो गई.यह व्रत अपनी सन्तान को अपनी माता के लिए रखना चाहिये. इस व्रत को रखने से धन , धान्य , पुत्र , पौत्र , दीर्घ आयु और एश्वर्य मिलता हैं.
बुधअष्टमी की दूसरी कथा
भविष्यपुराण की एक कथा के अनुसार इल नाम के राजा रहा करते थे। एक बार वह हिरण का पीछा करते हुए, उस वन में जा पहुंचे जहां भगवान शिव और पार्वती जी भ्रमण कर रहे थे। उस समय शिव जी का आदेश था कि वन में पुरुष प्रवेश करते ही स्त्री में बदल जाए।
इसलिए जैसे ही राजा इल ने वन में प्रवेश किया वह स्त्री बन गए। इल के उत्तम स्वरूप को देख बुध देव उन पर मोहित हो गए तथा उनसे विवाह कर लिया। जिस दिन इल और बुध का विवाह हुआ उस दिन अष्टमी तिथि थी, तभी से बुधाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
🌺 बुध अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺
।। जय श्री कृष्ण ।।
💥।। शुभम् भवतु।।💥
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🔱🇪🇬जय श्री महाकाल सरकार 🔱🇪🇬 मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
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*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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