*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈दिनांक - 4 दिसंबर2025
*🎈 दिन - गुरुवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - मार्गशीर्ष*
*🎈 पक्ष - शुक्ल पक्ष*
*🎈तिथि- चतुर्दशी 08:37:02
तिथि पूर्णिमा 28:43:06*(क्षय )
व्रत गुरुवार को*
*🎈 नक्षत्र - कृत्तिका 14:53:17* pmतत्पश्चात् रोहिणी*
*🎈 योग - शिव 12:33:16*pm तक तत्पश्चात् सिद्ध*
*🎈करण - वणिज 08:37:01pm तत्पश्चात् विष्टि भद्र*
*🎈 राहुकाल -हर जगह का अलग है- 01:44pm to 03:02pm तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- वृषभ*
*🎈सूर्य राशि- वृश्चिक*
*🎈सूर्योदय-07:11:00*
*🎈सूर्यास्त -17:39:35pm*
*(सूर्योदय एवं सूर्यास्त ,नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*🎈ब्रह्ममुहूर्त - 05:22 ए एम से 06:16:00( ए एम प्रातः तक *(नागौर
राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈अभिजित मुहूर्त- 12:04 पी एम से 12:46 पी एम*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:59 पी एम से 12:53 ए एम, नवम्बर03*
*🎈रवि योग- 07:10 ए एम से 02:54 पी एम *
*🎈 व्रत एवं पर्व- पूर्णिमा व्रत गुरुवार*
*🎈मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोष काल में सती अनसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ है। भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त अवतार माना गया है।
*🎈दत्त पूर्णिमा को अत्यंत मंगलकारी दिन माना जाता है, दत्तात्रेय जन्मोत्सव के दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है।
*🎈भगवान दत्तात्रेय भक्तों के स्मरण मात्र से ही प्रसन्न होकर उनके पास पहुंच जाते हैं, इसलिए इनको स्मृतिगामी भी कहा गया है, यह भक्तों पर सहज ही अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
*🎈इस वर्ष दत्त पूर्णिमा का पावन उत्सव गुरुवार, 4 दिसंबर 2025 को मनाया जाएगा।*
*🎈विशेष - मार्गशीर्ष महात्म्य पूर्ण*
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
मानक सूर्योदय के अनुसार।
*🛟शुभ - उत्तम-07:10 ए एम से 08:29 ए एम*
*🛟रोग - अमंगल-08:29 ए एम से 09:47 ए एम*
*🛟उद्वेग - अशुभ-09:47 ए एम से 11:06 ए एम*
*🛟चर - सामान्य-11:06 ए एम से 12:25 पी एम*
*🛟लाभ - उन्नति-12:25 पी एम से 01:44 पी एम*
*🛟अमृत - सर्वोत्तम-01:44 पी एम से 03:03 पी एम*
*🛟काल - हानि-03:03 पी एम से 04:22 पी एम काल वेला*
*🛟शुभ - उत्तम-04:22 पी एम से 05:41 पी एम वार वेला*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🛟अमृत - सर्वोत्तम-05:41 पी एम से 07:22 पी एम*
*🛟चर - सामान्य-07:22 पी एम से 09:03 पी एम*
*🛟रोग - अमंगल-09:03 पी एम से 10:44 पी एम*
*🛟काल - हानि-10:44 पी एम से 12:26 ए एम, दिसम्बर 05*
*🛟लाभ - उन्नति-12:26 ए एम से 02:07 ए एम, दिसम्बर 05 काल रात्रि*
*🛟उद्वेग - अशुभ-02:07 ए एम से 03:48 ए एम, दिसम्बर 05*
*🛟शुभ - उत्तम-03:48 ए एम से 05:29 ए एम, दिसम्बर 05*
*🛟अमृत - सर्वोत्तम-05:29 ए एम से 07:10 ए एम, दिसम्बर 05*
🚩*श्रीगणेशाय नमोनित्यं*🚩
🚩*☀जय मां सच्चियाय* 🚩
🌷 ..# 💐🍁🍁✍️ | #🌕 👉
*भैरवी जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएं*
*बृहस्पतिवार 15, दिसम्बर 2025, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भैरवी जयंती’ मनाई जाती है। इस दिन माँ त्रिपुर भैरवी की उत्पत्ति हुई थी*।
*हार्दिक शुभकामनाएं।*
*दत्तात्रेय जयन्ती बृहस्पतिवार,04, दिसम्बर 2025*
*दत्तात्रय शब्द दत्त + अत्रेय की संधि से बना है।*
*त्रिदेवों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद “ दत्त “ अर्थात दत्तात्रय*
पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है। पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है। इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है। पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण की शक्ति भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिक रुप में भी पूर्णिमा के दौरान ज्वार भाटा की स्थिति अधिक तीव्र बनती है। इस तिथि में समुद्र की लहरों में भी उफान देखने को मिलता है। यह तिथि व्यक्ति को भी मानसिक रुप से बहुत प्रभावित करती है। मनुष्य के शरीर में भी जल की मात्रा अत्यधिक बताई गई है ऎसे में इस तिथि के दौरान व्यक्ति की भावनाएं और उसकी ऊर्जा का स्तर भी बहुत अधिक होता है।
पूर्णिमा को धार्मिक आयोजनों और शुभ मांगलिक कार्यों के लिए शुभ तिथि के रुप में ग्रहण किया जाता है। धर्म ग्रंथों में इन दिनों किए गए पूजा-पाठ और दान का महत्व भी मिलता है। पूर्णिमा का दिन यज्ञोपवीत संस्कार जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं किया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। इस प्रकार इस दिन की गई पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने सौभाग्य और संतान की कामना पूर्ति करती है। बच्चों की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं। पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि में जन्में जातक
जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति संपतिवान होता है। उस व्यक्ति में बौद्धिक योग्यता होती है। अपनी बुद्धि के सहयोग से वह अपने सभी कार्य पूर्ण करने में सफल होता है। इसके साथ ही उसे भोजन प्रिय होता है। उत्तम स्तर का स्वादिष्ट भोजन करना उसे बेहद रुचिकर लगता है। इस योग से युक्त व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न करने की योग्यता रखता है। कभी- कभी भटक कर वह विवाह के बाद विपरीत लिंग में आसक्त हो सकता है।
व्यक्ति का मनोबल अधिक होता है, वह परेशानियों से आसानी से हार नही मानता है। जातक में जीवन जीने की इच्छा और उमंग होती है। वह अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता है। व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है। जल्दबाजी में अधिक रह सकता है।
ऐसे व्यक्ति की कल्पना शक्ति अच्छी होती है। वह अपनी इस योग्यता से भीड़ में भी अलग दिखाई देता है। आकर्षण का केन्द्र बनता है। बली चंद्रमा व्यक्ति में भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों को विकसित करने में सहयोग करता है। व्यक्ति कलाकार, संगीतकार या ऎसी किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को मजबूती के साथ करने की क्षमता भी रखता है।
मजबूत मानसिक शक्ति के कारण रुमानी भी होते हैं कई बार उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार भी कर सकते हैं जो इनके लिए नकारात्मक पहलू को भी दिखाती है और व्यक्ति अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी होता है।
सत्यनारायण व्रत
पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण व्रत की पूजा की जाने का विधान होता है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार इस दिन व्रत रखते हैं अगर व्रत नहीं रख पाते हैं तो पूजा पाठ और कथा श्रवण जरुर करते हैं। सत्यनारायण व्रत में पवित्र नदियों में स्नान-दान की विशेष महत्ता बताई गई है। इस व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है। चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। कथा और पूजन के बाद बाद प्रसाद अथवा फलाहार ग्रहण किया जाता है। इस व्रत के द्वारा संतान और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
पूर्णिमा तिथि योग
पूर्णिमा तिथि के दिन जब चन्द्र और गुरु दोनों एक ही नक्षत्र में हो, तो ऎसी पूर्णिमा विशेष रुप से कल्याणकारी कही गई है। इस योग से युक्त पूर्णिमा में दान आदि करना शुभ माना गया है। इस तिथि के स्वामी चन्द्र देव है। पूर्णिमा तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चन्द्र देव की पूजा नियमित रुप से करनी चाहिए।
पूर्णिमा तिथि महत्व
इस तिथि के दिन सूर्य व चन्द्र दोनों एक दूसरे के आमने -सामने होते है, अर्थात एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते है। इसके साथ ही यह तिथि पूर्णा तिथि कहलाती है। यह तिथि अपनी शुभता के कारण सभी शुभ कार्यो में प्रयोग की जा सकती है। इस तिथि के साथ ही शुक्ल पक्ष का समापन होता है। तथा कृष्ण पक्ष शुरु होता है। एक चन्द्र वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती है। सभी पूर्णिमाओं में कोई न कोई शुभ पर्व अवश्य आता है। इसलिए पूर्णिमा का आना किसी पर्व के आगमन का संकेत होता है
पूर्णिमा तिथि में किए जाने वाले काम
पूर्णिमा तिथि के दिन गृह निर्माण किया जा सकता है।
पूर्णिमा के दिन गहने और कपड़ों की खरीदारी की जा सकती है।
किसी नए वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं।
यात्रा भी इस दिन की जा सकती है।
इस तिथि में शिल्प से जुड़े काम किए जा सकते हैं।
विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
पूजा पाठ और यज्ञ इत्यादि कर्म इस तिथि में किए जा सकते हैं।
माघ पूर्णिमा महत्व, कथा, व्रत , पूजा विधि
माघ मास की पूर्णिमा तिथि को माघी पूर्णिमा मनाई जाती है। 27 नक्षत्रो में मघा नक्षत्र के नाम से “माघ पूर्णिमा” की उत्पत्ति होती है। इस तिथि का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व बताया गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार माघ पूर्णिमा पर स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इस दिन जो भी जातक गंगा स्नान करते है तथा उसके बाद जप और दान करते है उन्हें सांसारिक बंधनो से मुक्ति मिलती है।
यह स्नान सम्पूर्ण माघ मास में चलता है अर्थात पौष मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर माघ पूर्णिमा तक होता है। सम्पूर्ण मास में गंगा स्नान करने का विशेष महत्त्व है न की केवल पूर्णिमा के दिन। यदि आप सम्पूर्ण मास में स्नान न कर सके, तो तीन दिन अथवा एक दिन माघ स्नान अवश्य ही करना चाहिए। जो जातक पूरे महीने गंगा स्नान करता वह इसी जन्म में मुक्ति का भागीदार होता है। त्रिवेणी स्नान करने का अंतिम दिन माघ पूर्णिमा ही है। कहा जाता है कि माघ स्नान करने वाले व्यक्ति पर भगवान कृष्ण प्रसन्न होकर धन-धान्य, सुख-समृद्धि तथा संतान एवं मुक्ति प्रदान करते हैं।
माघ पूर्णिमा का पौराणिक महत्व
हिन्दू मान्यता के अनुसार माघ मास में सभी देवता मानव रूप धारण करके स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आकर वास करते है तथा प्रयागराज में स्नान, जप और दान करते हैं। इसी कारण कहा जाता है कि इस दिन प्रयाग में गंगा स्नान करने से व्यक्ति की सभी मनोवांछित मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रयाग गंगा यमुना और सरस्वती का संगम स्थल है इसी कारण इस स्थान का विशेष महत्व हो जाता है।आ इस दिन ही होली का डंडा गाड़ा जाता है। इस दिन भैरव जयंती भी मनाने की परम्परा है।
जो जातक चिरकाल तक स्वर्गलोग में रहना चाहते हैं। उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।
स्वर्गलोके चिंर वासो येषां मनसि वर्तते |
यत्र क्वापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे॥
माघ पूर्णिमा
माघ पूर्णिमा का ज्योतिषीय महत्त्व भी माना गया है। जब चन्द्रमा अपनी ही राशि कर्क में होता है तथा सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में होता है तब माघ पूर्णिमा का योग बनता है। इस योग में सूर्य और चन्द्रमा एक दूसरे से आमने सामने होते है। इस योग को पुण्य योग भी कहा जाता है। इस योग में स्नान करने से सूर्य और चंद्रमा से मिलने वाले कष्ट शीघ्र ही नष्ट हो जाते है।
जिस जातक की जन्मकुंडली में चन्द्रमा नीच का है तथा मानसिक संताप प्रदान कर रहा है तो उसे सम्पूर्ण मास गंगा जल से स्नान करना चाहिए तथा अंतिम दिन दान करना चाहिए ऐसा करने से चन्द्रमा का दोष समाप्त हो जाता है।
जिस जातक की कुंडली में सूर्य तुला राशि में है तथा मान-सम्मान, यश में कमी प्रदान कर रहा है तो वैसे व्यक्ति को माघ स्नान करना चाहिए तथा सूर्य भगवान् को प्रतिदिन अर्घ्य देना चाहिए ऐसा करने से सूर्य से मिलने वाले कष्ट दूर हो जाते है।
माघ पूर्णिमा व्रत कथा
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर शुभव्रत नामक विद्वान ब्राह्मण निवास करते थे। ये बहुत ही लालची थे। इनका जीवन का मूल उद्देश्य येन केन प्रकारेण धन कमाना था तथा उन्होंने ऐसा किया भी। धन कमाते कमाते वे वृद्ध दिखने लगे। वे अनेक प्रकार के व्याधि से ग्रस्त हो गए। इसी मध्य उन्हें अचानक संज्ञान हुआ की आजतक मैंने सारा जीवन धन कमाने में ही नष्ट कर दिया है। मुक्ति के लिए मैंने कुछ भी नहीं किया है। अब मेरे जीवन का उद्धार कैसे होगा? मैंने तो आजतक कोई सत्कर्म नहीं किया है। उसी समय उन्हें अचानक एक श्लोक स्मरण आया, जिसमें माघ मास में स्नान का महत्त्व बताया गया था।
शुभव्रत ने उसी श्लोक के अनुरूप माघ स्नान का संकल्प लिया और नर्मदा नदी में स्नान करने लगे। इस प्रकार वे लगातार 9 दिनों तक प्रात: नर्मदा के जल में स्नान करते रहे। दसवें दिन स्नान के बाद उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। उनके मृत्यु का समय आ गया था वे सोचने लगे की मैंने तो आजीवन धनार्जन में लगा रहा कोई भी सत्कार्य नहीं किया अतः मुझे तो नरकलोक में ही रहना पड़ेगा। परन्तु माघ मास में स्नान करने के कारण उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
माघ पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि
माघ पूर्णिमा के दिन सर्वप्रथम सुबह सूर्योदय से पहले किसी पवित्र गंगा, यमुना नदी, जलाशय, कुआं या बावड़ी में स्नान करना चाहिए ।
यदि आप गंगा स्नान नहीं कर सकते हैं तो नहाने की पानी मे गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए।
यदि गंगाजल भी उपलब्ध न हो तो हाथ में जल लेकर इस संकल्प मन्त्र का उच्चारण करे -
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यैतस्य मासानाम् मासोतमे मासे माघ मासे शुक्ल पक्षे पूर्णिमा शुभ पूण्य तिथौ रविवासरे अमुक (अपने गौत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नः शर्माऽहं/(वर्माऽहं/गुप्तोऽहं/दासोऽहं ) ममात्मनः सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं अहम अपना नाम लेकर माघ पूर्णिमा स्नान करिष्ये। फिर निम्न मंत्र बोलें।
ॐ गंगे च यमुना गोदावरी नर्मदे सिंधु कावेरी अस्मिन जले सन्निधिं कुरु। इस मंत्र के उच्चारण के बाद स्नान करना प्रारम्भ करे।
स्नान के बाद सूर्यदेव को “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मन्त्र से अर्घ्य देना चाहिए।
इसके बाद मन में माघ पूर्णिमा व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
दोपहर में किसी गरीब व्यक्ति और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दे।
दान में तिल और काले तिल विशेष रूप से दान करे तथा काले तिल से हवन और काले तिल से पितरों का तर्पण करे।
माघ पूर्णिमा व्रत में स्नान और दान से लाभ-
माघ पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त में नदी में स्नान करने से शारीरिक व्याधियां दूर होती हैं और शरीर निरोगी होता है।
इस दिन स्नान-ध्यान कर भगवान महादेव या विष्णु की पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
व्यक्ति को तिल और कम्बल का दान करना चाहिए ऐसा करने से जातक को नरक लोक से मुक्ति मिलती है।
माघ की पूर्णिमा पर ब्रह्मवैवर्तपुराण का दान करे ऐसा करने से श्रद्धालु को ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है ।
सभी पापों से विमुक्ति, स्वर्गलाभ तथा भगवान् वासुदेव की प्राप्ति के लिए सभी श्रद्धालुओं को माघ स्नान करना चाहिए।
12 माह की पूर्णिमा
चैत्र माह की पूर्णिमा, इस दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है।
वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री और कबीर जयंती मनाई जाती है।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है।
श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाया जाता है।
भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध संपन्न होता है।
अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।
कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंति और गुरुनानक जयंती मनाई जाती है।
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।
पौष माह की पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है।
माघ माह की पूर्णिमा को श्री ललिता जयंती मनाई जाती है।
फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है।
पूर्णिमा के उपाय -पूर्णिमा के टोटके
पूर्णिमा या पूनम के दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकर में होते है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्रमा का विशेष प्रभाव होता हैं। साथ ही यह दिन माता लक्ष्मी को भी विशेष प्रिय होता है। पूर्णिमा के दिन किये गए उपायों का विशेष और शीघ्र प्रभाव होता है। शास्त्रों में पूर्णिमा को करने योगय बहुत से उपाय और टोटके बताये गए हैं। आइये जानते है कुछ ऐसे ही उपाय –
1. शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सुबह-सुबह पीपल के वृक्ष पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इसलिए यदि आप धन की इच्छा रखते हैं तो तो इस दिन सुबह उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पीपल के पेड़ के नीचे मां लक्ष्मी का पूजन करें और लक्ष्मी को घर पर निवास करने के लिए आमंत्रित करें। इससे लक्ष्मी की कृपा आप पर सदा बनी रहेगी।
2. पूर्णिमा की रात में घर में महालक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा किसी ब्राह्मण से करवाएंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
3. प्रत्येक पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा के उदय होने के बाद साबूदाने की खीर मिश्री डालकर बनाकर माँ लक्ष्मी जी का भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में वितरित करने से धन के आगमन के मार्ग खुल जाते है।
4. जो भी इंसान धन संबंधी परेशानियों से जूझ रहा है, उसे पूर्णिमा के दिन चंद्र उदय होने पर चंद्रमा को कच्चे दूध में चीनी और चावल मिलाकर अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते समय ‘ओम स्त्रां स्त्रीं स्त्रों स: चंद्रमसे नम:’ या फिर ‘ओम ऐं क्लीं सोमाय नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक परेशानियां धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।
5. प्रत्येक पूर्णिमा के दिन मां श्री लक्ष्मी के चित्र या फोटो पर 11 कौड़ियां चढ़ाकर उन पर हल्दी से तिलक करें उसके बाद अगले दिन सुबह इन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें लें। इस उपाय से घर में धन की कमी नही रहती है। पर एक बात का ध्यान रखें की प्रत्येक पूर्णिमा के दिन इन कौड़ियों को अपनी तिजोरी से निकाल कर माता के सम्मुख रखकर उन पर पुन: हल्दी से तिलक करें फिर अगले दिन उन्हें लाल कपड़े में बांध कर अपनी तिजोरी में रखे ले।
6. पूर्णिमा के दिन किसी हनुमान मंदिर में हनुमानजी के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
7. यदि आप अपने दाम्पत्य जीवन को प्रेम पूर्वक लम्बे समय के लिए रखना चाहते है तो कभी भी भूलवश पूर्णिमा और अमावस्या के दिन शारीरिक सम्बन्ध या सम्भोग नही करना चाहिए।
8. प्रत्येक पूर्णिमा की रात में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक ( लगातार देखना ) विधि करने से जातक की नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
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💐 * ##कामदेव के तेरह तथ्य .... ⭐👇🏼.......❗️
🍁हिन्दू धर्म में कामदेव, कामसूत्र, कामशास्त्र और चार पुरुषर्थों में से एक काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से संबंधित कई मूर्तियां हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्स ही होता है? नहीं, काम का अर्थ होता है कार्य, कामना और कामेच्छा से। वह सारे कार्य जिससे जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है काम के अंतर्गत ही आते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
🍁आपने कामदेव के बारे में सुना या पढ़ा होगा। पौराणिक काल की कई कहानियों में कामदेव का उल्लेख मिलता है। जितनी भी कहानियों में कामदेव के बारे में जहां कहीं भी उल्लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात जो समझ में आती है वह यह कि कि कामदेव का संबंध प्रेम और कामेच्छा से है।
🍁लेकिन असल में कामदेव हैं कौन? क्या वह एक काल्पनिक भाव है जो देव और ऋषियों को सताता रहता था या कि वह भी किसी देवता की तरह एक देवता थे?आजो जानते हैं कामदेव के बारे में 13 रहस्य...
🍁कामदेव का परिवार :पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं। उनका विवाह रति नाम की देवी से हुआ था, जो प्रेम और आकर्षण की देवी मानी जाती है। कुछ कथाओं में यह भी उल्लिखित है कि कामदेव स्वयं ब्रह्माजी के पुत्र हैं और इनका संबंध भगवान शिव से भी है। कुछ जगह पर धर्म की पत्नी श्रद्धा से इनका आविर्भाव हुआ माना जाता है।
🍁प्रेम के देवता :जिस तरह पश्चिमी देशों में क्यूपिड और यूनानी देशों में इरोस को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, उसी तरह हिन्दू धर्मग्रंथों में कामदेव को प्रेम और आकर्षण का देवता कहा जाता है।
🍁कामदेव के अन्य नाम: 'रागवृंत', 'अनंग', 'कंदर्प', 'मनमथ', 'मनसिजा', 'मदन', 'रतिकांत', 'पुष्पवान' तथा 'पुष्पधंव' आदि कामदेव के प्रसिद्ध नाम हैं। कामदेव को अर्धदेव या गंधर्व भी कहा जाता है, जो स्वर्ग के वासियों में कामेच्छा उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी हैं। कहीं-कहीं कामदेव को यक्ष की संज्ञा भी दी गई है।
🍁कामदेव का स्वरूप :कामदेव को सुनहरे पंखों से युक्त एक सुंदर नवयुवक की तरह प्रदर्शित किया गया है जिनके हाथ में धनुष और बाण हैं। ये तोते के रथ पर मकर (एक प्रकार की मछली) के चिह्न से अंकित लाल ध्वजा लगाकर विचरण करते हैं। वैसे कुछ शास्त्रों में हाथी पर बैठे हुए भी बताया गया है।
🍁कामदेव के धनुष और बाण :उनका धनुष मिठास से भरे गन्ने का बना होता है जिसमें मधुमक्खियों के शहद की रस्सी लगी है। उनके धनुष का बाण अशोक के पेड़ के महकते फूलों के अलावा सफेद, नीले कमल, चमेली और आम के पेड़ पर लगने वाले फूलों से बने होते हैं।
🍁कामदेव के पास मुख्यत:5 प्रकार के बाण हैं।कामदेव के 5 बाणों के नाम :1. मारण, 2. स्तम्भन, 3. जृम्भन, 4. शोषण, 5. उम्मादन (मन्मन्थ)।
🍁मदन-कामदेव मंदिर :मदन-कामदेव मंदिर को 'असम का खजुराहो' के नाम से जाना जाता है। वहां की मैथुन-प्रतिमाएं मध्यप्रदेश के खजुराहो की याद दिलाती हैं। सेक्स के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति की कथा को आज भी ये जीवंत बना रही हैं। यह मंदिर घने जंगलों के भीतर पेड़ों से छुपा हुआ है। कहते हैं कि भगवान शंकर द्वारा तृतीय नेत्र खोलने पर भस्म हो गए कामदेव का इस स्थान पर पुनर्जन्म तथा उनकी पत्नी रति के साथ पुन: मिलन हुआ था।
🍁कामदेव की ऋतु वसंत :वसंत पंचमी के दिन कामदेव की पूजा की जाती है। वसंत कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है यानी जब कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है।
🍁 कामदेव का एक नाम 'अनंग' है यानी बिना शरीर के ये प्राणियों में बसते हैं। एक नाम 'मार' है यानी यह इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। वसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।
🍁यहां रहता है कामदेव का वास :
यौवनं स्त्री च पुष्पाणि सुवासानि महामते:।
गानं मधुरश्चैव मृदुलाण्डजशब्दक:।।
उद्यानानि वसन्तश्च सुवासाश्चन्दनादय:।
सङ्गो विषयसक्तानां नराणां गुह्यदर्शनम्।।
वायुर्मद: सुवासश्र्च वस्त्राण्यपि नवानि वै।
भूषणादिकमेवं ते देहा नाना कृता मया।।
मुद्गल पुराण के अनुसार कामदेव का वास यौवन, स्त्री, सुंदर फूल, गीत, पराग कण या फूलों का रस, पक्षियों की मीठी आवाज, सुंदर बाग-बगीचों, वसंत ऋतु, चंदन, काम-वासनाओं में लिप्त मनुष्य की संगति, छुपे अंग, सुहानी और मंद हवा, रहने के सुंदर स्थान, आकर्षक वस्त्र और सुंदर आभूषण धारण किए शरीरों में रहता है। इसके अलावा कामदेव स्त्रियों के शरीर में भी वास करते हैं, खासतौर पर स्त्रियों के नयन, ललाट, भौंह और होठों पर इनका प्रभाव काफी रहता है।
🍁1.कामदेव और शिव :जब भगवान शिव की पत्नी सती ने पति के अपमान से आहत और पिता के व्यवहार से क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था तब सती ने ही बाद में पार्वती के रूप में जन्म लिया। सती की मृत्यु के पश्चात भगवान शिव संसार के सभी बंधनों को तोड़कर, मोह-माया को पीछे छोड़कर तप में लीन हो गए। वे आंखें खोल ही नहीं रहे थे।
🍁ऐसे में सभी देवों की अनुशंसा पर कामदेव ने उन पर अपना बाण चलाकर शिव के भीतर देवी पार्वती के लिए आकर्षण विकसित किया। शिव ने क्रोधित होकर जब आंखें खोलीं तो उससे कामदेव भस्म हो गए। हालांकि बाद में शिवजी ने उन्हें जीवनदान दे दिया था, लेकिन बगैर देह के।
🍁श्रीकृष्ण और कामदेव :पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को भी कामदेव ने अपने नियंत्रण में लाने का प्रयास किया था। कामदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से यह शर्त लगाई कि वे उन्हें भी स्वर्ग की अप्सराओं से भी सुंदर गोपियों के प्रति आसक्त कर देंगे। श्रीकृष्ण ने कामदेव की सभी शर्त स्वीकार की और गोपियों संग रास भी रचाया लेकिन फिर भी उनके मन के भीतर एक भी क्षण के लिए वासना ने घर नहीं किया।
🍁रति ने पाला कामदेव को पुत्र की तरह फिर उनसे कर लिया विवाह :जब शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया तब ये देख रति विलाप करने लगी तब जाकर शिव ने कामदेव के पुनः कृष्ण के पुत्र रूप में धरती पर जन्म लेने की बात बताई। शिव के कहे अनुसार भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणि को प्रद्युम्न नाम का पुत्र हुआ, जो कि कामदेव का ही अवतार था।
कहते हैं कि श्रीकृष्ण से दुश्मनी के चलते राक्षस शंभरासुर नवराज प्रद्युम्न का अपहरण करके ले गया और उसे समुद्र में फेंक आया। उस शिशु को एक मछली ने निगल लिया और वो मछली मछुआरों द्वारा पकड़ी जाने के बाद शंभरासुर के रसोई घर में ही पहुंच गई।
🍁तब रति रसोई में काम करने वाली मायावती नाम की एक स्त्री का रूप धारण करके रसोईघर में पहुंच गई। वहां आई मछली को उसने ही काटा और उसमें से निकले बच्चे को मां के समान पाला-पोसा। जब वो बच्चा युवा हुआ तो उसे पूर्व जन्म की सारी याद दिलाई गई। इतना ही नहीं, सारी कलाएं भी सिखाईं तब प्रद्युम्न ने शंभरासुर का वध किया और फिर मायावती को ही अपनी पत्नी रूप में द्वारका ले आए।
🍁भगवान ब्रह्मा ने दिया वरदान: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय ब्रह्माजी प्रजा वृद्धि की कामना से ध्यानमग्न थे। उसी समय उनके अंश से तेजस्वी पुत्र काम उत्पन्न हुआ और कहने लगा कि मेरे लिए क्या आज्ञा है? तब ब्रह्माजी बोले कि मैंने सृष्टि उत्पन्न करने के लिए प्रजापतियों को उत्पन्न किया था किंतु वे सृष्टि रचना में समर्थ नहीं हुए इसलिए मैं तुम्हें इस कार्य की आज्ञा देता हूं। यह सुन कामदेव वहां से विदा होकर अदृश्य हो गए।
🍁यह देख ब्रह्माजी क्रोधित हुए और शाप दे दिया कि तुमने मेरा वचन नहीं माना इसलिए तुम्हारा जल्दी ही नाश हो जाएगा। शाप सुनकर कामदेव भयभीत हो गए और हाथ जोड़कर ब्रह्माजी के समक्ष क्षमा मांगने लगे। कामदेव की अनुनय-विनय से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें रहने के लिए 12 स्थान देता हूं- स्त्रियों के कटाक्ष, केश राशि, जंघा, वक्ष, नाभि, जंघमूल, अधर, कोयल की कूक, चांदनी, वर्षाकाल, चैत्र और वैशाख महीना। इस प्रकार कहकर ब्रह्माजी ने कामदेव को पुष्प का धनुष और 5 बाण देकर विदा कर दिया।
🍁ब्रह्माजी से मिले वरदान की सहायता से कामदेव तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे और भूत, पिशाच, गंधर्व, यक्ष सभी को काम ने अपने वशीभूत कर लिया। फिर मछली का ध्वज लगाकर कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ संसार के सभी प्राणियों को अपने वशीभूत करने बढ़े। इसी क्रम में वे शिवजी के पास पहुंचे। भगवान शिव तब तपस्या में लीन थे तभी कामदेव छोटे से जंतु का सूक्ष्म रूप लेकर कर्ण के छिद्र से भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर गए। इससे शिवजी का मन चंचल हो गया।
🍁उन्होंने विचार धारण कर चित्त में देखा कि कामदेव उनके शरीर में स्थित है। इतने में ही इच्छा शरीर धारण करने वाले कामदेव भगवान शिव के शरीर से बाहर आ गए और आम के एक वृक्ष के नीचे जाकर खड़े हो गए। फिर उन्होंने शिवजी पर मोहन नामक बाण छोड़ा, जो शिवजी के हृदय पर जाकर लगा। इससे क्रोधित हो शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से उन्हें भस्म कर दिया।
🍁कामदेव को जलता देख उनकी पत्नी रति विलाप करने लगी। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें रति को रुदन न करने और भगवान शिव की आराधना करने को कहा गया। फिर रति ने श्रद्धापूर्वक भगवान शंकर की प्रार्थना की।
🍁रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो शिवजी ने कहा कि कामदेव ने मेरे मन को विचलित किया था इसलिए मैंने इन्हें भस्म कर दिया। अब अगर ये अनंग रूप में महाकाल वन में जाकर शिवलिंग की आराधना करेंगे तो इनका उद्धार होगा।
🍁तब कामदेव महाकाल वन आए और उन्होंने पूर्ण भक्तिभाव से शिवलिंग की उपासना की। उपासना के फलस्वरूप शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम अनंग, शरीर के बिन रहकर भी समर्थ रहोगे। कृष्णावतार के समय तुम रुक्मणि के गर्भ से जन्म लोगे और तुम्हारा नाम प्रद्युम्न होगा।
🍁कामदेव मंत्र :कामदेव के बाण ही नहीं, उनका 'क्लीं मंत्र' भी विपरीत लिंग के व्यक्ति को आकर्षित करता है। कामदेव के इस मंत्र का नित्य दिन जाप करने से न सिर्फ आपका साथी आपके प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित होगा बल्कि आपकी प्रशंसा करने के साथ-साथ वह आपको अपनी प्राथमिकता भी बना लेगा।
🍁कहा जाता है कि प्राचीनकाल में वेश्याएं और नर्तकियां भी इस मंत्र का जाप करती थीं, क्योंकि वे अपने प्रशंसकों के आकर्षण को खोना नहीं चाहती थीं। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का लगातार जाप करते रहने की वजह से उनका आकर्षण, सौंदर्य और कांति बरकरार रहती थी।
💥“ज्ञान ही सच्ची संपत्ति है।
बाकी सब क्षणभंगुर है।”💥
🌼 ।। जय श्री कृष्ण ।।🌼
💥।। शुभम् भवतु।।💥
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🔱🇪🇬जय श्री महाकाल सरकार 🔱🇪🇬 मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
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